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शनिवार, फ़रवरी 28, 2015

"फाग वेदना..." (चर्चा अंक-1903)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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न छोड़ो आस का दामन 

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
पथ में साथी घोर अँधेरा ,बैरी चारों ओर ।
मत घबराना , बढ़ते जाना ,दूर नहीं है भोर ।
हम हारे वे लोग हँसेगेजो हैं पथ के शूल ।
वे तो चाहते चूर-चूर हो , हम बन जाएँ धूल... 
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शीर्षकहीन 

satywan verma saurabh 
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रेल बजट : 

डरपोक लगे प्रभु ! 

TV स्टेशन ... पर महेन्द्र श्रीवास्तव 
सतीश का संसार पर 
satish jayaswal
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तबहिं जनम लिए थे व्यासा...! 

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 
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कलि 

Tushar Raj Rastogi 
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Philosophy 

अगर अपने पास भी बचपन में 
रुपया और जवानी में समय होता 
तो आज कुछ नहीं कर पाते, 
मै या हम जैसे लोग 
इन दो चीजों की ना होने की वजह से ही 
"सेल्फ मेड" हो पाए है 
और परिवार की सीख थी कि 
हारना मत... 
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 
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एक लघु कथा 

चार लाठी 

... परोक्ष रूप से अपने विरोधियों को चेतावनी देने का उनका अपना तरीका था। जब किसी शादी व्याह में जाते तो बड़े गर्व से दोस्तों और रिश्तेदारों को सुनाते -चार चार लाठी है मेरे पास -बुढ़ापे का सहारा... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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डाल डाल फूल महके 

कवि किशोर कुमार खोरेन्द्र 
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धृष्टता... 

जितनी बार मिली तुमसे
ख्वाहिशों ने जन्म लिया मुझमें  
जिन्हें यकीनन पूरा नहीं होना था  
मगर दिल कब मानता है... 
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम 
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क्षणिकायें 

सपने हैं जीवन,      
जीवन एक सपना,
कौन है सच
कौन है अपना?.... 
Kailash Sharma 
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"होली गीत-महके है मन में फुहार" 

आई बसन्त-बहार, चलो होली खेलेंगे!!
रंगों का है त्यौहार, चलो होली खेलेंगे!!

शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2015

"परीक्षा के दिन ... " (चर्चा अंक-1902)

मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी 
डेढ़ माह के लिए बाहर हैं।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 
(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ये बिंदिया 

मन का पंछी पर शिवनाथ कुमार 
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शीर्षकहीन 

satywan verma saurabh 
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बचपना 

कभी गिरना, कभी उठना, 
कभी रोना, कभी हँसना । 
कभी सोना, कभी जगना, 
कभी हाथो के बल चलना ॥ 
माँ की एक झलक के लिए, 
कभी रोना, सुबकना । 
शायद यही है, मेरा बचपना... 
हिन्दी कविता मंच पर ऋषभ शुक्ला 
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शहर 

निविया पर Neelima Sharma
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मेरा दिल 

गुज़ारिश पर सरिता भाटिया 
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रोज़ 'मुसाफिर' सा फिरते हैं 

तेरी आस लगाये बैठे; 
गुज़रे जाने दिन कितने है। 
अब तो ये आलम है देखो; 
लोग मुझे पागल कहते हैं... 
पथ का राही पर musafir 
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आपका एक आराधक 

(वही 90 फीसद मूर्खों वाला) 

हे! पक्ष-विपक्ष के देवतागण 
अगर संभव तो आप सभी देवासूर संग्राम के 
इस धर्मयुद्ध को बन्दकर 
इस तुच्छ राष्ट्र के बारे में सोचिए। 
क्योंकि देर हो जाने के बाद 
हाथ मलते रह जाएगें... 
स्वयं शून्य पर Rajeev Upadhyay 
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लोरी ! 

अनुभूतिपरकालीपद "प्रसाद" 
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तार - तार छाया की चुनरी 

मुरझे सब हरियाली - जैसे , 
बदले गए सूरज के तेवर ; 
गरमी के काफ़िले आ गये , 
आज अतृप्ति धरे कन्धों पर... 
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खुशियों की सौगात लिए होली आई है।
रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।

रंग-बिरंगी पिचकारी ले,
बच्चे होली खेल रहे हैं।

मम्मी-पापा दोनों मिल कर,
मठरी-गुझिया बेल रहे हैं।

पकवानों को साथ लिए, होली आई है।
रंगों की बरसात लिए, होली आई है... 

गुरुवार, फ़रवरी 26, 2015

उचित समायोजन की जरूरत { चर्चा - 1901 }

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है 
बजट के चर्चों के साथ-साथ अब क्रिकेट विश्व कप का खुमार सिर चढ़ कर बोल रहा है, वैसे यह बदलाव अच्छा ही है क्योंकि आप और भाजपा का प्रचार सुनते-सुनते कान पक गए थे लेकिन विद्यार्थियों के लिए यह दुविधा के दिन हैं क्यों एक तरफ क्रिकेट है तो दूसरी तरफ परीक्षा । ऐसे में उचित समायोजन तो करना ही होगा । 
चलते हैं चर्चा की ओर 
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इलाहाबाद में कांग्रेसियों का प्रदर्शन
धन्यवाद 

बुधवार, फ़रवरी 25, 2015

आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है; चर्चा मंच 1900