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शुक्रवार, जनवरी 08, 2016

"क्या हो जीने का लक्ष्य" (चर्चा अंक-2215)

आज के चर्चा मंच पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। 
उद्देश्य किसी के द्वारा थोपा भी नहीं जा सकता। इसका चयन आपको खुद को ही करना होता है कि आप आखिर जी क्यूं रहे हैं? अगर आपने इस तरह का उद्देश्य नहीं चुना है तो जल्दी चुन लीजिए नहीं तो जीवन के अंतिम समय में आप खुद को कोसते रह जाएंगे कि मैंने तो अपनी जिंदगी बिना कुछ किए ही गंवा दी। बल्कि ये तो उस लापरवाही का नतीजा है जिसके कारण आज समाज से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। लोगों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना हो गया है। अपने लिए तो हर प्राणी जीता है। अगर हम मानव हैं तो क्यूं न अपने जीवन का ऐसा परम् लक्ष्य निर्धारित करें जिनसे संपूर्ण मानवता लाभान्वित हो। उदाहरण के लिए मानव के जीवन स्तर को पहले से यादा उन्नत, सभ्य और विकसित करने में अपना योगदान देना जीवन का उद्देश्य हो सकता है। माता-पिता को भी चाहिए कि बच्चे को बजाए कॅरियर के बारे में सिखाने के जीवन के नैतिक लक्ष्यों के बारे में शिक्षा दें ताकि वक्त के साथ उन लक्ष्यों को हासिल करना उसके जीवन का उद्देश्य बन जाए। उस उद्देश्य को हासिल करने के लिए वह किस कॅरियर का चुनाव करता है, उस पर छोड़ दें। बच्चे को लक्ष्य और उद्देश्य में भेद बताएं और बजाए यह पूछने के कि आप क्या बनना चाहते हो, ये पूछना शुरू करें कि जिंदगी में क्या करना चाहते हो? 
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गुरनाम सिंह सोढी 
वो एक कहानी का किरदार है 
कहानी में रहता है, 
कहानी को ही जीता है, 
पर कहानी के बारे में उसे कुछ नहीं पता, 
शालिनी कौशिक 
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से शामली जिले का इतिहास काफी उल्लेखनीय है एक ओर जहाँ शामली में कैराना ''कर्ण नगरी ''के नाम से विख्यात है वहीँ कांधला''कर्ण दल'' का अपभ्रंश है.हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए शामली जिला इतिहास के पन्नो में अपनी एक अलग  
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प्रमोद जोशी 
दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए सम और विषम संख्या की कारों का फॉर्मूला एक माने में बेहद सफल नजर आता है, भले ही वह अपने मूल उद्देश्य में विफल रहा हो। अब तक की जानकारी के अनुसार 
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ऋता शेखर मधु 
ऋता शेखर 'मधु'
'अदिति, भाई के लिए दही बड़े भी बना लेना| उसे बहुत पसन्द है| और हाँ, इमली वाली खट्टी मीठी चटनी भी भाभी के लिए'- माँ ने कहा| 
जी माँ- कहती हुई अदिति किचेन में जुट गई| शाम को उसके भाइ-भाभी आलोक और अन्वेषा पूरे दो साल बाद विदेश से आ रहे थे| 
यशोदा अग्रवाल 
 
इंसानियत की मेरी बीमारी नहीं जाती। 
सिर से मेरी अना ये उतारी नहीं जाती। 

है वास्ता हमारा भी रघुकुल से दोस्तो, 
खाली कभी ज़ुबान हमारी नहीं जाती। 
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फ़िरदौस ख़ान 
ज़िन्दगी सिर्फ़ ख़ुशहाली का ही नाम नहीं है... ज़िन्दगी में मुश्किलें भी आती हैं... अम्मी ने हमेशा यही सिखाया कि मुश्किलों से कभी डरना नहीं चाहिए... और न ही उनसे कभी भागना चाहिए, बल्कि हिम्मत के साथ उनका मुक़ाबला करना चाहिए... हिम्मत वाले लोग मुश्किल से मुश्किल हालात में भी अपना वजूद बनाए रखते हैं... 
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
कपड़े छोटे हो गये, दिखता नंगा गात। 
बिन पतझड़ झड़ने लगे, नये पुराने पात। 
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बदल गया है आज तो, जीने का अन्दाज। 
लोगों के आचरण से, शर्मिन्दा है लाज।। 
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रितेश गुप्ता  
बेखबर ,बेसबर, बेबाक ये जिन्दगी 
 हंसती ना हंसाती ये जिन्दगी । 
 चिराग नही जिसे जला दूं,  
दुबारा हाथो से फिसल जाती ये जिन्दगी । 
गगन शर्मा  
समय अब ऐसा है कि राजनीति और उसके दलों के दाव-पेंचों से हट कर हम सब को दिल्ली की जहरीली आबोहवा से छुटकारा पाने के बारे में सोचना ही है। सिर्फ विरोध करने के लिए ही किसी भी कदम का विरोध करना किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा पाएगा। 
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प्रबोध कुमार गोविल  
आखिर जन-आक्रोश के बाद हमारे कानून में ये बदलाव आ ही गया कि किशोर बालकों को केवल १६ साल तक की उम्र में ही नादान और मासूम समझा जाये। उसके बाद वे पूरे आदमी हैं और यदि वे कोई पुरुषों जैसा अपराध कर देते हैं तो उनकी मासूमियत अब उनकी ढाल नहीं बनेगी।
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कुलदीप ठाकुर  
मुझे याद है
जाते वक़्त उसने
कहा था मुझसे
...तुम जैसे हज़ार मिलेंगे...
मैं ये सुनकर
चौंका पर मौन रहा
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प्रवीण चौपड़ा  
बचपन में हमारे पड़ोस की एक दादी आसपास की औरतों को दोपहर में इक्ट्ठा कर के सुख सागर, गरूड़-पुराण सुनाया करती थीं... मुझे भी इसी से ध्यान आ गया... गुड़ पुराण ! 
आज लिखते समय बार बार गुड़ का ध्यान आ रहा है ...मैं बिल्कुल वैसी ही बात कर रहा हूं जैसे वह बाबा करता है जिसके टीवी शो में लोग पांच-छः हज़ार का टिकट खर्च कर आते है 
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दिलबाग सिंह विर्क 
“ एक सच यह भी ” डॉ. शील कौशिक जी दूसरा कहानी संग्रह है, यह संग्रह 2008 में प्रकाशित हुआ | इस संग्रह में सत्रह कहानियाँ हैं, जो वास्तव में जीवन को देखने के सत्रह झरोखे हैं | 
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नीतीश तिवारी 
कुछ तो खता कर दी मैंने मोहब्बत निभाने में, 
जो तुमने देर ना की पल भर में मुझे भुलाने में। 

खुदा की जगह तेरा सज़दा किया मैंने सुबह-ओ-शाम, 
पर तेरी दिलचस्पी नहीं थी इस रिवाज़ को निभाने में। 
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नीरज कुमार नीर  
मैं एक काफिर हूँ 
 हां! तुम्हारे लिए मैं एक काफिर हूँ, 
 यद्यपि कि मैं मानता नहीं किसी को 
 सिवा एक ईश्वर के  
मैने कभी सर नहीं झुकाया 
 किसी बुत के सामने 
 मैं नहीं मान... 
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संतोष त्रिवेदी  
बात शुरू होने वाली थी पर घात हो गई।बात रुक गई पर घात नहीं रुक सकती।अचानक रिश्तों में आई गर्माहट को पाला मार गया ।सरप्राइज का जवाब सरप्राइज।जिसे मास्टरस्ट्रोक समझा जा रहा था,वह हार्ट अटैक निकला।शांति के कबूतर देखते ही बहेलिये निकल आये।बात के बदले लात चलने लगी।लातों के भूत बातों से मान लेते तो परम्परा टूट जाती।इस लिहाज़ से वे शुद्ध परम्परावादी ठहरे। 
आकांक्षा सक्सेना 
दोस्तों इस नये दोस्तों इस नये साल में आपसे पुरानी बात करने का तो कोई मन नहीं पर बहुत मेल मिलते हैं कि मुझे लिखने की शक्ति कहाँ से मिलती है ? हर क्यों और कैसे का जवाब आज मैं जरूर दूँगी तो दोस्तों लिखती तो बचपन से ही हूँ |जब सामने किसी दुखी, बीमार,गरीब विकलांग भिखारी को देखती तो तब उन दिनों हम भी बहुत साधारण बड़ी मुश्किल से गुजर होती थी 
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