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मंगलवार, जनवरी 12, 2016

चले आओ राम.; चर्चा मंच 2219

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

मुखौटे राम के पहने हुए रावण जमाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।

दया के द्वार परबैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
मिटी सम्वेदना सारीमनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
shashi purwar   
sapne(सपने) 
Naveen Mani Tripathi  
तीखी कलम से
udaya veer singh 

देवेन्द्र पाण्डेय   
बेचैन आत्मा
Alpana Verma अल्पना वर्मा  


औरत 

प्यार पर Rewa tibrewal 
ये लक्ष्यहीन जीना कैसा 
जिसमें न हो कोई सपना 
विवशतायें मेरी सीख नहीं 
तुम धीर मेरे इतना सुनना... 

शहरों की ओर जाते रहे... 

घर नहीं, मकान बनाते रहे 
रंगीन नकाशियों से, चमकाते रहे, 
मकान तो बन गया राजमहल सा 
सब शहरों की ओर जाते रहे... 
मन का मंथन  पर kuldeep thakur 

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