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शनिवार, जनवरी 30, 2016

"प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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"गांधी जी कहते हे राम!" 
राम नाम है सुख का धाम। 
राम सँवारे बिगड़े काम।।... 
जब भी अन्त समय आता है, 
मुख पर राम नाम आता है, 
गांधी जी कहते हे राम!
राम सँवारे बिगड़े काम।। 
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घुलनशील पदार्थ 

अपने आने जाने के क्रम में 
कितनी ही उठापटक कर लें 
मगर हश्र अंततः मिटना ही है 
फिर वो कोई भी हो चिंताएं ,  
ज़िन्दगी या इन्सान 
तिल तिल कर जलने से नहीं मिटा करतीं... 
vandana gupta 
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शब्द से ख़ामोशी तक –  

अनकहा मन का (६) 

खाली को भरने की कवायद में 
भरते गए सब कुछ अंदर । 
कुछ चाहा कुछ अनचाहा । 
भर गया सब..बिल्कुल भरा प्रतीत हुआ, 
लेश मात्र भी जगह बाकी ना रही । 
फिर भी उस भरे में कुछ हल्कापन था... 
सु-मन (Suman Kapoor) 
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एक व्यंग्य :  

अवसाद में हूँ... 

जी हाँ, आजकल मैं अवसाद में हूँ । अवसाद में हूँ इसलिए नहीं कि कल बड़े बास ने डाँट पिला दी। इस ठलुए निठलुए पर जब वह डाँट पिलाने का कोई असर नहीं देखते हैं तो खुद ही अवसाद में चले जाते हैं... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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अन्धेरी निशा में नदी के किनारे  

सरयू सिंह 'सुन्दर' 

धधक कर किसी की चिता जल रही है । 
धरा रो रही है, बिलखती दिशाएँ, 
असह वेदना ले गगन रो रहा है, 
किसी की अधूरी कहानी सिसकती, 
कि उजड़ा किसी का चमन रो रहा है, 
घनेरी नशा में न जलते सितारे, 
बिलखकर किसी की चिता जल रही है... 
कविता मंच पर kuldeep thakur 
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हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप-  

गलती होने पर करो, दिल से पश्चाताप |
हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप |
हरगिज नहीं प्रलाप, हवाला किसका दोगे |
जौ-जौ आगर विश्व, हँसी का पात्र बनोगे |
ऊर्जा-शक्ति सँभाल, नहीं दुनिया यूँ चलती |
तू-तड़ाक बढ़ जाय, जीभ फिर जहर उगलती ||

"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर 

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कभी डाल मत हाथ, अगर रविकर जल खौले 

हौले हौले हादसे, मित्र जाइये भूल। 
ईश्वर की मर्जी चले, करिये इसे कुबूल। 
करिये इसे कुबूल, सावधानी भी रखिये। 
दुर्घटना की मूल, चूक होने पे चखिए। 
कभी डाल मत हाथ, अगर रविकर जल खौले। 
हर गलती से सीख, सीख ले हौले हौले।।
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रुसवा होता गया 

तू होती गई जब दूर मुझसे, 
मैं तुझमे ही और खोता गया, 
भीड़ बढ़ती गई महफिल में, 
मैं तन्हा और तन्हा होता गया । 
तू खुद की ही करती रही जब, 
मैं तेरे ही सपने पिरोता गया... 
ई. प्रदीप कुमार साहनी 
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मेरी ज़िम्मेदारी 

वो माँ का झूठ मूठ में पतीला खनकाना 
सब भरपेट खाओ बहुत है खाना 
फटी हुइ साड़ी को शाला से ढक लिया 
मेरी फीस का सारा जिम्मा अपने सिर कर लिया 
रात में ठंड से काँपती रहे 
और मुझे दो-दो दुशालें से ढांपती रहे... 
Madhulika Patel 
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जिंदगी-ट्रेन-लड़की-चाय 

ट्रेन डब्बा मुसाफिर जिंदगी 
तेज धीमी रफ़्तार समय 
भागते हांफते आराम 
बैठे तो रेत जैसे जिंदगी 
हथेली किसी के हाथ में 
फिसल जाता है... 
पथ का राही पर musafir 
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बदलाव (परिवर्तन) 

कहते है परिवर्तन ही जीवन का आधार है। 
जो समय के साथ बदल जाये 
वही व्यक्ति सफल कहलाता है। 
लेकिन मेरी सोच और समझ यह कहती है कि 
“परिस्थिति के आधार पर 
समग्ररूप से मानवता का 
जो कल्याण करने में सक्षम हो 
या फिर जिसमें मानवता के 
कल्याण की भावना निहित हो, 
सही मायने में वही सच्चा बदलाव है”... 
मेरे अनुभव पर Pallavi saxena 
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कुछ जतन कीजिए उस घड़ी के लिए 

मौत भी आए तो ज़िन्दगी के लिए  
पर किया आपने क्या किसी के लिए... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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लाभों से दूर .....  

ज़रूरतमंद 

साल दर साल न जाने कितनी सरकारी योजनाएं आतीं है। 
लागू भी होतीं है , लेकिन जिन जरूरतमंद लोगों के भले के लिए ये बनाई जातीं है उन को कोई जानकारी ही नही होती। क्यूंकि ये लोग अख़बार , पत्र -पत्रिकाएं और इंटरनेट से कोसों दूर रहते है। न तो ज़रूरतमंद इसका लाभ उठा पाते है , योजनाएं भी धरी की धरी रह जातीँ है... 
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इछुड़े - बिछुड़े से मेरे शब्द हैं सारे 
अटक -भटक कर फिरे मारे -मारे 
ना कोई ठौर है , रहे किसके सहारे ... 
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मरने के बाद रोहित का पहला इंटरव्यू 
नमस्कार,  
मैं ऋषिराज आज आपको 
एक ऐसा इन्टरव्यू पढाने जा रहा हूं 
जो अपने आपमें नये किस्म का हैं। 
मैने मर चुके दलित छात्र रोहित का 
इन्टरव्यू किया है ... 
नई क़लम - उभरते हस्ताक्षर 

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