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रविवार, मार्च 27, 2016

मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई--चर्चा अंक 2294

जय मां हाटेशवरी...
आज की रवीवारीय चर्चा में... मैं कुलदीप ठाकुर आप का स्वागत व अभिनंद करता हूं... मुझे आज मुनव्वर राना जी की... मां और मात्र भूमि पर लिखी कुछ शायरी याद आ रही है... सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’ माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गईं ‘मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती पैदा यहीं हुआ हूँ यहीं पर मरूँगा मैं वो और लोग थे जो कराची चले गये मैं मरूँगा तो यहीं दफ़्न किया जाऊँगा मेरी मिट्टी भी कराची नहीं जाने वाली अब चलते हैं...चर्चा की ओर... -------  
यही विनय है आपसे, मेरी हे करतार। 
देना फिर से जगत में, माता को अवतार।। 
--माता जैसा है नहीं, दूजा जग में कोय। 
जिस घर में माता रहे, वहाँ विधाता होय।। 
जीवित माता-पिता हैं, धरती पर भगवान। 
उनको देना चाहिए, पग-पग पर सम्मान।। 
उच्चारण  पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
गिर न जाए आकाश, से लौट के 
पत्थर  अपने मक़सद का, 
निशाना लगाते हो  हाथों हाथ बेचा करो,  
ईमान-धरम तुम  सड़कों पे नुमाइश, 
तमाशा लगाते हो  फूलो से रंज तुम्हें, ख़ुशबू से परहेज़ 
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मेरी धरोहर  पर yashoda Agrawal 
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यूँ ही नहीं सर टेकना गर देवता भी हो 
ठोको बजा कर देख लो सत्कार से पहले तैयार हूँ 
मैं हारने को जंग दुनिया की 
तुम जीत निष्चित तो करो इस हार से पहले  
परDigamber Naswa --------  
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s200/IMG_20160324_111742  
ख़त ध्यान से पढ़ने की जरूरत ही नहीं थी  
हर शब्द के मनचाहे से, अनुवाद  हो गए ! 
क्यों दर पे तेरे आके ही सर झुक गया मेरा  
काफिर न जाने क्यों यहाँ सज़्ज़ाद हो गए !  
मेरे गीत ! परSatish Saxena  
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आपका ब्लॉग  पर- आनन्द.पाठक  
Ocean of Bliss  पर Rekha Joshi

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आज की चर्चा यहीं तक... फिर मिलते हैं। 
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