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शुक्रवार, अप्रैल 22, 2016

"आओ बचाएं अपनी वसुन्धरा" (चर्चा अंक-2320)

मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

पाठकों से सम्वाद करता दोहा संग्रह 

“कदम-कदम पर घास” 

(समीक्षक-डॉ. राकेश सक्सेना) 

         यदा-कदा शास्त्री जी के दोहे फेसबुक पर पढ़ता रहता था किन्तु कदम-कदम पर घास” कृति के हाथ में आने पर अध्ययन करने पर ऐसा लगा कि शास्त्री जी के लिए दोहे लिखना बायें हाथ का खेल है। यदि मैं उनको एक कुशल की साधक की संज्ञा दूँ तो मैं समझता हूँ कि यह अतिशयोक्त नहीं होगी। क्योंकि उनका परिचय स्वयं उनके दोहे दे रहे हैं।
        भारतीय संस्कृति के अनुरूप गणेश वन्दना” व माँ वागेशवरी स्तवन” से कृति का शुभारम्भ होता है और छब्बीसवें दोहे पर कृति के नामकरण सार्थकता की सिद्धि।
मान और अपमान कानहीं मुखोटा पास।
चरणों में रहती सदाकदम-कदम पर घास।।
         दोहा साहित्य की प्राचीन विधा है। चाहे सूपी सन्त होंचाहे गोस्वामी तुलसी दासकबीरदास या महाकवि बिहारी लाल होंसभी ने अपनी भावाभियक्ति के लिए दोहों का आश्रय लिया। इसीलिए ये कविगण आमजनों के कण्ठहार बन गये।इस षय की प्रासंगिकता व महत्व को दोहाकार ने भी अनुभव किया।
दोहों के व्यामोह में गया ग़ज़ल मैं भूल।
अन्य विधाओं का अभीसमय नहीं अनकूल।।... 
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जन्मदिन हो या वैवाहिक वर्षगाँठ 

यदि भूल जाए कोई एक भी तो उसकी आफत ..   
लेकिन क्यों ?  
क्या ये सोचने का विषय नहीं... 
एक प्रयास पर vandana gupta 
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जल 


१-
बढी दुविधा 
जल बिन मीन सी 
हुई बेहाल |
२-
तपती धूप
जल कहाँ से लाऊँ
कुछ सूझे ना... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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नन्हे नन्हे से बिंदु ...... ???? 

झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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कौन किस पर गर्व करे? 

यह अभी-अभी, सप्ताह भर पहले की बात है। एक जन समारोह में एक केन्द्रीय राज्य मन्त्री ने दूसरे केन्द्रीय राज्य मन्त्री की उपस्थिति में, भारत सरकार से सम्राट अशोक की जयन्ती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की माँग की। यह माँग जाति-समाज आधारित थी। मुझे अचरज भी हुआ और पीड़ा भी। मंजूरी देनेवाला सरे बाजार माँग कर रहा है! यदि मन्त्री ही इस तरह माँग करें तो आम आदमी किससे माँगे... 
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 
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*** जो तुम्हारे पास रहा ! *** 

अपराजिता पर अमिय प्रसून मल्लिक 
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मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए saffron terror  

...आस पास की , 
मोहल्ले भर की औरतों के ताने सुनती ...  
शहर की अकेली रांड हो तो 
ये समस्या आती ही है... 
Akela Chana पर Ajit Singh  
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शोर नहीं
धीमे बोलो
ऊंची आवाज
शोभा नहीं देता तुम्हें
इतना तेज चलने की आदत
ठीक नहीं तुम्हारे लिए... 
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