​झनन झनन बारिश की बूँद सी , मैं बरसत जाऊँ ।
पैर में बाँध के पाजनियाँ घुघरू ,ठुमक – ठुमकत जाऊँ ।।
हे प्रभो बारिश दे हर बार ऐसी , हो जाए धरा हरी-भरी  ।
अंग -अंग सब मेरा भीग जाए, ऐसी में फिर हुलसत जाऊँ ।। 
डॉ मधु त्रिवेदी
प्राचार्य
शान्ति निकेतन कॉलेज ऑफ बिज़नेस
मैनेजमेन्ट एण्ड कम्प्यूटर साइन्स आगरा।