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गुरुवार, जुलाई 21, 2016

"खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410)

मित्रों 
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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लुत्फ़ आए जो थोड़ी फ़ज़ीहत भी हो 

हो कभी तो वही अपनी ज़िल्लत भी हो 
या ख़ुदा इश्क़ ही मेरी ताक़त भी हो 
मंज़िले इश्क़ हासिल तो हो जाए गर 
उससे इज़्हार की थोड़ी हिम्मत भी हो ... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल 
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मोती शब्दों के 

सागर में सीपी के लिए चित्र परिणाम
सागर की सीपी  में मोती
हैं अनमोल अद्भुद दिखाई देते 
है भण्डार अपार  उनका 
उनसे शब्द मोती से झरते... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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निगाहे-मोहसिन ... 

जो आशिक़ों की क़दर न होगी 
क़ज़ा से पहले मेहर न होगी 
रहें अगर वो: क़रीब दिल के 
ख़ुशी कभी मुख़्तसर न होगी... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil  
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महसूस कीजिये - 

दर्द कितना कहेगा दर्द को महसूस कीजिये  
कुछ फर्ज हैं हमारे ,फर्ज महसूस कीजिये... 
udaya veer singh 
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दर्द की भाषा-परिभाषा (२) 

क्या दर्द वही जो छलक पडे? 
क्या दर्द वही जो लोचन बहे... 
pragyan-vigyan पर Dr.J.P.Tiwari 
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मेरे मन की 

मेरी पहली पुस्तक "मेरे मन की" की प्रिंटींग का काम पूरा हो चुका है | 
और यह पुस्तक बुक स्टोर पर आ चुकी है| आप सब ऑनलाइन गाथा के द्वारा बुक कर सकते है| 
मेरी पहली बुक कविताओ और कहानीओ का अनुपम संकलन है... 
Rushabh Shukla 
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पहाड़ियों पर खेलना चाहता हूँ 

अक्सर देखता हूँ उन्हें पहाड़ों पर 
जो तोड़ते है पत्थर और बनाते है घोसले की तरह घर 
ढाबों पर काम करते हुए उन्हें नहीं फ़िक्र बारिश की बूंदों की 
न फ़िक्र सरकारी लाभों की स्कूल जाने की 
बिलकुल नहीं बेवजह मुस्कराने और रोने की आदत 
नहीं मंज़िल पाने की फ़िक्र हो या न हो 
वे कहते नहीं कभी 
पहाड़ियों पर खेलना चाहता हूँ... 
प्रभात 
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आजा साथी, मेघा आये...... 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 
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मन तड़पत गुरु दर्शन को आज 

महिला का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही होता है। उसकी महिला पहचान इतनी बड़ी है कि उसे इससे अधिक की पहचान के लिये गुरु मिलना कठिन हो जाता है। कहीं वह बहन-बेटी के रूप में देखी जाती है तो कहीं भोग्या के रूप में। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें -  
smt. Ajit Gupta 
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पता नहीं... 

Sneha Rahul Choudhary 
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ताटंक छन्द  
हरा पेड़ जो रहा खड़ा तो, गरमी हरा नहीं पाई | 
गड़ा पड़ा बिजली का खम्भा, बिजली किन्तु कहाँ आई | 
चला बवंडर मचा तहलका, रहा बड़ा ही दुखदाई... 
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गले हमेशा दाल, टांग चापे मुर्गे की- 
मुर्गे की इक टांग पे, कंठी-माला टांग | 
उटपटांग हरकत करो, कूदो दो फर्लांग | 
कूदो दो फर्लांग, बाँग मुर्गा जब देता | 
चमचे धूर्त दलाल, विषय के पंडित नेता... 
दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी 
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नीति-नियम-आदर्श, हवा के ताजे झोंके  
प्रश्नों के उत्तर कठिन, नहीं आ रहे याद | 
स्वार्थ-सिद्ध मद-मोह-सुख, भोगवाद-उन्माद | 
भोगवाद-उन्माद , नशे में बहके बहके | 
लेते रहते स्वाद, अनैतिक चीजें गहके... 
नीम-निम्बौरी 
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“हिन्दी व्यञ्जनावली-तवर्ग”  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

patti1[3]"त"  
से तकली और तलवार! 
बच्चों को तख्ती से प्यार! 
तरु का अर्थ पेड़ होता है, 
तरुवर जीवन का आधार!!... 

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