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बुधवार, जुलाई 27, 2016

कह के जो कभी बात को जुठलाएँगे नहीं ...चर्चा मंच 2416

गीत  

"रिश्ते-नाते प्यार के"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

ढंग निराले होते जग में,  मिले जुले परिवार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।

चमन एक हो किन्तु वहाँ पर, रंग-विरंगे फूल खिलें,
मधु से मिश्रित वाणी बोलें, इक दूजे से लोग मिलें,
ग्रीष्म-शीत-बरसात सुनाये, नगमें सुखद बहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।

पंचम सुर में गाये कोयल, कलिका खुश होकर चहके,
नाती-पोतों की खुशबू से, घर की फुलवारी महके,
माटी के कण-कण में गूँजें, अभिनव राग सितार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के... 
उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

खाली पड़ा कैनवास --  

शिवनाथ कुमार :) 

उस खाली पड़े कैनवास पर 
हर रोज सोचता हूँ एक तस्वीर 
उकेरूँ कुछ ऐसे रंग भरूँ 
जो अद्वितीय हो 
पर कौन सी तस्वीर बनाऊँ 
जो हो अलग सबसे हटकर... 
कविता मंच पर संजय भास्‍कर 

सावन बहका है...........रजनी मोरवाल  

yashoda Agrawal 

मुफ़लिसी पर रोने वालों के जवाब में - 

Gopesh Jaswal 

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