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शुक्रवार, जुलाई 29, 2016

"हास्य रिश्तों को मजबूत करता है" (चर्चा अंक-2418)

मित्रों 
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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नन्हा मित्र 

नन्हा पौधा हाथों में के लिए चित्र परिणाम
- बहुत व्यस्त हूँ 
मुझे एक नन्हां मित्र मिला है 
छोटे से पौधे के रूप में 
उसे ही हाथों में लिए हूँ 
सहेज रही हूँ ... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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किसी ने न दिया था आशीर्वाद  

पुत्रीवती भव: 

"वो बेटी ही तो होती है कुलों को जोड़ लेती है
अगर अवसर मिले तो वो मुहाने मोड़ देती है
युगों से बेटियों को तुम परखते हो न जाने क्यूं..?
जनम लेने तो दो उसको जनम-लेने से डर कैसा..?
और
#अमेया वो हमारे कुल की बेटी जो पहली US नागरिक है..... 
मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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तलाश-ए-मुकाम 

तलाश-ए-मुकाम के लिए, 
यूँही हर रोज सफ़र करता हूँ  
हाँ भटकता हूँ कभी-कभी,  
पर कोशिश अक्सर करता हूँ... 
मेरी कविताएँ... पर anupam choubey  
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क्या सिर्फ इसलिए कि बूढ़े , 
जितने बुजुर्ग थे तुम्हारे 
बरसों से करते आये है , 
ये आडम्बर सारे ... 
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आँखों की भाषा 
पढाई नहीं जाती कहीं भी 
मुस्कराहटों के अर्थ 
मिलते नहीं 
किसी शब्दकोश में... 
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कारण 

दर्द नहीं है कोई मौका किसी को युहीं जो मिल जाये
फूल नदी या हवा का झोंका बस युहीं जो चल जाये
फूलों के बिस्तर वाले इसकी कीमत क्या जानेंगे
दर्द उसी को मिलता है जो मरते मरते भी जी जाये... 
Pushpendra Gangwar 
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हास्य रिश्तों को मजबूत करता है 

 ...हास्य बोध मस्ति क की उर्वरता का द्योतक है। वह डर मुक्त बनाता है जीवन में साहस का संचार होता है। हंसी रिष्तों को मजबूत बनाती है साथ साथ हंसना खिलखिलाना, मुरझाऐं चेहरों पर ताजगी ला देता है। हास्य बोध के लिये गांधीजी ने कहा है‘ ‘आज मैं महात्मा बन बैठा हॅूं लककिन जिनदगी में हमेषा कठिनाइयों से लड़ना पड़ा है कदम कदम पर निराष होना पड़ा है उस वक्त मुझमें विनोद न होता तो मैंने कब की आत्महत्या कर ली होती। मेरी विनोद षक्ति ने मुझे निराषा से बचाये रखा है ।’ अतः हास्यम्ष्षरणम् गच्छामि । 
Shashi Goyal पर shashi goyal 
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आनंद मंत्रालय

आनंद मंत्रालय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की पहल से प्रेरित हो कर एक अन्य राज्य के मुख्यमंत्री ने भी अपनी सरकार में ‘आनंद मंत्रालय’ बनाने का विचार किया... 
आपका ब्लॉग पर i b arora 
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भूल जाओ घर बनाना रह गया 

क्या बताऊँ? क्या बताना रह गया 
सोचता बस यह, ज़माना रह गया 
क्या यही चारागरी है चारागर! 
जख़्म जो था, वो पुराना...! रह गया... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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उदासीनता की तरफ, बढ़ते जाते पैर । 
रोको रविकर रोक लो, जीवन से क्या बैर । 
जीवन से क्या बैर, व्यर्थ ही जीवन त्यागा । 
कर अपनों को गैर, अभागा जग से भागा... 
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कलाम को सलाम 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 
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आरएसएस और गांधी हत्या !! 

PITAMBER DUTT SHARMA  
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वक़्त कभी नहीं ठहरता 

पता नहीं तुम्हें अब भी पता है कि नहीं 
कि ज़िंदगी की मुश्किलें 
मुझे तुम्हारे और क़रीब ले जातीं है... 
पथ का राही पर musafir 
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किसी को दर्द हो सहती नहीं 
मैं हो खुद को दर्द पर कहती नहीं 
मैं थपेडे ज़िन्दगी के तोड़ देते 
नहीं इतनी भी तो कच्ची नहीं... 
वीर बहुटी पर निर्मला कपिला 
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रखे बुद्धि पर किन्तु, बचा जो पत्थर पहले- 

पहले तो करते रहे, अब होती तकलीफ | 
बीबी बोली प्यार से, करिये जी तारीफ़ | 
करिये जी तारीफ़, संगमरमर सी काया | 
पत्थर दिया तराश, अजब भगवन की माया | 
दिया प्राण फिर फूंक, अंत में रविकर कह ले | 
रखे बुद्धि पर किन्तु, बचा जो पत्थर पहले ।।
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विद्वानों से डाँट, सुने रविकर की मंशा 

सुने प्रशंसा मूर्ख से, यह दुनिया खुश होय | 
डाँट खाय विद्वान की, रोष करे दे रोय | 
रोष करे दे रोय, सहे ना समालोचना | 
शुभचिंतक दे खोय, करे फिर बंद सोचना | 
विद्वानों से डाँट, सुने रविकर की मंशा | 
करता रहे सुधार, और फिर सुने प्रशंसा || 
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर 
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