फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, नवंबर 03, 2016

"मुद्दई सुस्‍त, गवाह चुस्‍त" (चर्चा मंच अकं-2515)

मित्रों 
बृहस्पतिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

--

गीत 

"चंचल “रूप” सँवारा" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

बलखाती-लहराती उमड़ीपर्वत से जल धारा।
मैदानों पर आकर, उसने चंचल रूप” सँवारा।।

बहती है उन्मुक्त भाव से, अपनी राह बनाती,
कलकल-छलछल करती, सबको मधुरिम राग सुनाती,
नदिया ने सिखलाया जग को, चरैवेति का नारा।
मैदानों पर आकर, उसने चंचल रूप” सँवारा... 
--
--
--
--
--
--
--
--

Don’t transfer 

the cow’s load to the bull. 

मुल्ला नसरुद्दीन बादशाह के दरबार में,बादशाह को कोई किस्सा सुना रहे थे. किस्सा ऐसा कि बादशाह को कुछ समझ ना आया, वाकई-किस्सा, किस्सा भी ना था सिवाय बे-फिजूली के- सो,बादशाह ने एक झापड रसीदी कर दी-मुल्ला की ओर. बेचारा-नसरुद्दीन क्या करता? गुस्सा तो उसे भी बहुत आया कि इतने जतन से एक किस्सा गढा था-और उसका हश्र यह हुआ. बादशाह पर तो अपना गुस्सा निकाल नहीं सकता था, पीछे खडे सख्श के गाल पर एक चांटा रसीद कर दिया. वह सक्श भी समझ नहीं पाया कि यह माजरा क्या है... 
--
--

काँची 

ए जिंदगी बिन धड़कन तूने जीना सीख लिया 
दर्द को ही तूने धड़कन बना लिया 
रूबरू ए जिंदगी तू जब काँची दिल से हुई 
खो धड़कनों को जिन्दा लाश तू बन गयी 
और उन बिलखती साँसों को 
सजा ए ऐतबार मौत से भी महरूम कर गयी 
मौत से भी महरूम कर गयी 
RAAGDEVRAN पर 
MANOJ KAYAL 
--
--
--

अपने-अपने रुह अफजा 

देवेन्द्र दीपावली मिलने आया तो शिकायत की - ‘आपका ब्लॉग ध्यान ये देख रहा हूँ। महीनों बीत गए, आपने मेरावाला लेख नहीं छापा।’ मैं तो भूल ही गया था। देवेन्द्र ने याद दिलाया तो याद आया। मैंने सस्मित कहा-‘लेकिन उसमें तो तुम्हारा मजाक उड़ाया गया है!’ देवेन्द्र ने संजीदा होकर जवाब दिया-‘अव्वल तो मेरा मजाक नहीं है। लेकिन अगर है भी तो बात आपने सही कही थी... 
विष्णु बैरागी 
--

मंजिल देखा केवल हमने 

कहाँ से पूरे होंगे वे सपने, 
कहाँ से आएंगे वे अपने? 
थके-थके नैनों से अबतक, 
राह निहारी केवल हमने... 
Lovely life पर 
Sriram Roy 
--
--
--
--

अब हम तो दोस्त हो गये ना भाई! 

अपने साहित्यिक और सामाजिक जीवन को जीते-जीते अपना आस-पड़ोस कब दूर चले गया पता ही नहीं चला। लेकिन भगवान ने रास्ता दिखाया और कहा कि इस आनन्द को अनुभूत करो, यह भी विलक्षण है। जैसे ही घर ही चौखट से पैर बाहर पड़े और कोई चेहरा आपके सामने होता है, आप धीरे से मुस्करा देते हैं, छोटी-छोटी बाते होने लगती हैं। कभी घर में आलू-प्याज समाप्त हो जायें तो यही चेहरा याद आता है और आपकी दरकार पूरी हो जाती है। बस इसे ही आस-पड़ोस कहते हैं... 
smt. Ajit Gupta 
--

दीवाली कैसे मनाएं 

ताकि प्रदुषण से बच पाएं  

पिछले एक सप्ताह से हम दीवाली पर ही लिखे जा रहे हैं। बेशक दीवाली एक ऐसा हर्ष उल्लास का पर्व है जिसे छोटे बड़े , गरीब अमीर और हर जाति और धर्म के लोग बड़े शौक और चाव से मनाते हैं। दशहरा से लेकर दीवाली तक बाज़ारों की रौनक , घरों की साफ़ सफाई और लोगों का आपस में मिलना और मिलकर उपहारों का आदान प्रदान जीवन में एक नया उत्साह और स्फूर्ति भर देता है। दीवाली पर सारा जहाँ रौशन हो जाता है और बहुत खूबसूरत लगता है , भले ही बिजली की लड़ियाँ चाइनीज ही क्यों न हों। आखिर रात भर रंग बिरंगी लाइट्स की रिम झिम देखते ही बनती है। दीये और मोमबत्ती तो पल दो पल की रौशनी देते हैं , फिर अमावस्य का घनघोर अंधकार। इसलिए... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
--
--

गड्ढे में ... 

मौत ने कैसा रंग जमाया गड्ढे में 
मिट्टी को मिट्टी से मिलाया गड्ढे में 
नेकी कर गड्ढे में डालो अच्छा है 
वर्ना जितना साथ निभाया गड्ढे में... 
Digamber Naswa 
--

लुटाया भी जी आदमी आदमी पर

अंदाज़े ग़ाफ़िलपरचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर गुरुवारीय अंक्। आभार 'उलूक' का सूत्र 'मुठभेड़ प्रश्नों की जवाब हो जाये
    कोई कुछ पूछ भी ना पाये' को चर्चा में जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।