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सोमवार, नवंबर 21, 2016

"कांधे कुत्ता ....बेबस बच्चा" (चर्चा अंक-2533)

मित्रों 
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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आल्हा (वीरछन्द)  

"मोदी का फरमान" 

काले धन को रखने वालो,
सुनो खोलकर अपने कान।
ना खाया ना खाने दूँगा,
ये है मोदी का फरमान।।
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बड़े नोट सब बन्द कर दिये,
किया अचानक यह ऐलान।
सन्न रह गयी पूरी दुनिया,
आपस में है खींचातान।।
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माया और मुलायम बोले,
लग जायेगी तुझको हाय।।
राजनीति के कुशल खिलाड़ी,
मोदी तेरा बुरा हो जाय।
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सड़कों पर अब लगे घूमने,
राहुल और केजरीवाल।
क्या होगा काले धन का अब,
मन में है बस यही मलाल।।
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कलकत्ता से दिल्ली तक अब,
ममता बैनर्जी चिल्लाय।
कोस रहे हैं आज विरोधी,
सुर में सुर सब रहे मिलाय।।
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सही दिशा में ठोस पहल है,
लेकिन जनता है हलकान।
पैसा सबको मिले बैंक में,
नियम करो कुछ तो आसान।।
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बहुत दुखी करते जनता को,
अफरा-तफरी के कानून।
बैंकों में हैं लगीं कतारें,
आपाधापी और जुनून।।
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आम जरूरत के नोटों को,
छपवा लेते पहले आप।
दूरदर्शिता की शासक के,
तभी दिखाई देती छाप।।
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मशीन की व्यथा कथा: 

इस दुनिया में बहुत सारे ऐसे काम होते हैं जो कितनी भी अच्छी तरह से सम्पन्न किये जायें वो थैन्कलेस ही होते हैं. उनकी किस्मत में कभी यशगान नहीं होता. ऐसा ही हाल एटीएम का भी है. कई बार तो एटीएम की हालत देखकर लगता है कि जिस तरह से मौत को यह वरदान प्राप्त है कि उस पर कभी कोई दोष नहीं आयेगा..दोषी कभी एक्सीडॆन्ट, कभी बीमारी तो कभी वक्त का खत्म हो जाना ही कहलायेगा जिसकी वजह से मौत आई...वैसे ही एटीएम को यह शाप मिला होगा कि चाहे गल्ती किसी की भी हो- बिजली चली जाये, नोट खत्म हो जायें, चूहा तार कुतर जाये..दोष एटीएम पर ही मढ़ा जायेगा. नोट निकालने वाला हमेशा यही कहेगा..धत्त तेरी की...ये एटीएम भी न... 
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डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण
आइए कुछ प्यार की बातें करें।
बेवजह क्यों मौत से पहले मरें।
हौंसले  मन में सलामत हैं अगर,
आइए,क्यों मुश्किलों से हम डरें... 

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महंगी रात...  

मीना कुमारी 

जलती-बुझती-सी रोशनी के परे 
हमने एक रात ऐसे पाई थी 
रूह को दांत से जिसने काटा था 
जिस्म से प्यार करने आई थी... 
yashoda Agrawal 
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फिर....!! 

चलो मुस्कुरा ले समंदर चुरा ले! 
फिर यूँ ही भीगे किनारे छुपा ले... 
Parul Kanani 
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खुद से मुलाकात.. 

कल मैं खुद ही खुद से मिली, 
खुद को समझाया, 
खुद को ही डाँटा, 
खुद ही परेशान रही. 
खुद से बातें की, 
पर खुद को न बदल पाई... 
संजय भास्‍कर 
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नोट बंदी के फैसले के बाद लोहे के घर में बदहवास 500 के पुराने नोट लिये यात्री अब नहीं दिखते। 8 तारीख के बाद तो यह स्थिति थी कि लालच देकर यात्री भिखारी/वेंडरों से छुट्टा मांग रहे थे। एक भिखारी ने तो झटक ही दिया था-हमको बेवकूफ समझे हो क्या... 
देवेन्द्र पाण्डेय 
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उन्हे पूजता है तभी संसार... 

नानक के इस धरा पर, हैं गुरु आज, कई हजार, 
पर नानक सा नहीं है कोई, इसीलिये है अंधकार...  
kuldeep thakur 
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मूक बनोगे आज जब, हो जाएगी चूक 

दो पहलू हर बात के, सहमति और विरोध 
कह दो मन के भाव को,नहीं कहीं अवरोध... 
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु 
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नोट बंदी से निकले दोहे 

उजला काला हो गया, बंद हुआ जब नोट. 
झटके में जाहिर हुआ, सबके मन का खोट.. 
चलते-चलते रुक गया, अचल हुआ धन खान. 
हाय! अचल धन पर गड़ा, मोदी जी का ध्यान.. . 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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तू भी इल्ज़ाम लगाना तो ख़बर कर देना 

जब तसव्वुर से हो जाना तो ख़बर कर देना 
या के मुझको हो भुलाना तो ख़बर कर देना... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 

2 टिप्‍पणियां:

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