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मंगलवार, नवंबर 29, 2016

"देश का कालाधन देश में" (चर्चा अंक-2541)

मित्रों 
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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सुबह की बातें- 

देवेन्द्र पाण्डेय 

देश का कालाधन देश में : 

एक आर्थिक विमर्श 

करेंसी के बंद होने या कहें सरकार द्वारा बंद करने के बाद की परिस्थियां ऐसी क्यों हैं कि जनता कष्ट भोगने के बावजूद भी सरकार के साथ कड़ी है. ?
ऐसा लगता है जनता को बेहद भरोसा है और  उम्मीद भी है कि सरकार का हर कदम जनोन्मुख है. सरकार की यह कोशिश आर्थिक विषमता को दूर करेगी. प्रथम दृष्टया दिख भी यही रहा है. अपने बिस्तर के नीचे नोट बिछा कर गर्वीली नींद सोने वालों के लिए- “मेरे प्यारे देशवाषियों” से प्रारम्भ होने वाला भाषण भयावह लग रहा होगा पर गरीब व्यक्ति निम्न और उच्च मध्यवर्ग का व्यक्ति दाल-रोटी के साथ  बिना सलाद खाए चैन की नींद सो रहा है.  चिल्लर के अभाव में  जाड़े के दिनों में मूली-अमरूद के सलाद का जुगाड़ जो नहीं हो पा रहा ... जब स्व. राजीव जी ने कहा था – “हम एक रुपये भेजते हैं आप तक पंद्रह पैसे पहुंचाते हैं तो बड़ा प्रभावित थी जनता तो एक दिन का उपवास भी तो रखा था स्व. शास्त्री जी की सलाह पर... !”
यानी इस देश की जनता जब किसी को प्रधान-मंत्री जी बनाती है तो विश्वास की डोर से खुद-ब-खुद बांध जाती है उस व्यक्तित्व से ..! 
इसी तंतु के सहारे देश का प्रजातंत्र बेहद शक्तिशाली नज़र आता है.... 
गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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चीन यात्रा - १८ 

...व्यक्तिगत रूप से जितना सीखने को मिला, वह संभवतः पढ़कर सीख पाना संभव नहीं था। संस्कृतियाँ सोचने का ढंग बदल देती हैं। जब सब एक सा सोचते हैं तभी शक्ति का उद्भव होता है... 
Praveen Pandey 
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मानव नाग... 

सुनो   
अगर सुन सको तो   
ओ मानव केंचुल में छुपे नाग   
डँसने की आज़ादी तो मिल गई तुम्हें   
पर जीत ही जाओगे   
यह भ्रम क्यों   
केंचुल की ओट में छुपकर   
नाग जाति का अपमान   
करते हो क्यों   
नाग बेवजह नहीं डँसता... 
डॉ. जेन्नी शबनम 
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परिवर्तन रैली के बहाने 

प्रधानमंत्री ने कुशीनगर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि "हम भ्रष्टाचार और कालाधन बंद करने का काम कर रहे हैं, विपक्ष भारत बंद करने का।" उनके कहने का आशय यह है कि विपक्ष उनके साथ सर्जिकल स्ट्राइक कर रहा है। नोटबंदी जैसा बड़ा परिवर्तन लाने के बाद अब मोदी जी उत्तर प्रदेश में परिवर्तन यात्रा पर हैं। वैसे भी सबसे ज्यादा परिवर्तन की जरूरत यहीं है। देखने वाली बात ये होगी कि यूपी की जनता भाजपा के विरुद्ध बाक़ी पार्टियों के साथ मिलकर सर्जिकल स्ट्राइक करती है या अपने देश भक्ति के प्रमाण पत्र को रद्द होने से बचाती है। प्रधानमंत्री आधुनिक लेनिन हैं पूंजीपतियों को कंगाल करके मानेंगे... 
abhishek shukla 
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टिकाऊ विकास से 

बचेंगी भावी पीढ़ियां 

यह समझना ज़रूरी कि हम सारे संसाधन खुद ही खर्च कर देंगे या कुछ बचाकर भी रखेंगे। * मंजीत ठाकुर इस वक्त जब पूरी दुनिया में पर्यावरण को लेकर खास चिंताएं हैं, और हाल ही में दुनिया भर ने दिल्ली में फैले दमघोंटू धुएं का कहर देखा, एक दफा फिर से आबो-हवा की देखभाल और उसकी चिंताएं और उससे जुड़े कारोबार पर गौर करना बेहद महत्वपूर्ण लगने लगा है। सबसे बड़ी बात कि हम लोग अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या संसाधन छोड़कर जाने वाले हैं? क्या हम उनको प्रदूषित पानी, बंजर ज़मीन और सांस न लेने लायक हवा की सौगात विरासत के रूप में देने वाले हैं... 
Manjit Thakur 
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मानव धर्म 

नहीं आवश्यक परिक्रमा देवालयों के स्वर्णिम विग्रह की। 
नहीं आवश्यक भक्ति साधना किसी कुपित क्रोधी ग्रह की। 
नहीं आवश्यक है कि तुम तीर्थ यात्रा करते घूमो। 
नहीं आवश्यक है कि तुम मस्जिदों की चौखट चूमो... 
Laxman Bishnoi Lakshya  
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वक़्त गुज़रा तो नहीं लौट कर आने वाला 

बात क्या है के बना प्यार जताने वाला 
घाव सीने में कभी था जो लगाने वाला 
अब मेरे दिल में जो आता है चला जाता है क्यूँ 
काश जाता न कभी याँ से हर आने वाला... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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तुम्हें कुत्तों का भौंकना सुनाई नहीं दिया ? 

विजय गौड़  
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"मैं कौन हूँ"  

बहुत पहले एक मलयालमी कहानी पढ़ी थी, यह मेरे जेहन में हमेशा बनी रहती है। आप भी सुनिए – एक चींटा था, उसे यह जानने की धुन सवार हो गयी कि "मैं कौन हूँ"। उसे सभी ने राय दी कि तुम गुरुजी के पास जाओ वे तुम्हारी समस्या का निदान कर देंगे। वह गुरुजी के पास गया, उनसे वही प्रश्न किया कि "मैं कौन हूँ"। गुरुजी ने कहा कि यह जानने के लिये तुम्हें शिक्षा लेनी होगी। वह चींटा गुरुजी की पाठशाला में भर्ती हो गया, अब वह वहाँ अक्षर ज्ञान सीखने लगा लेकिन कुछ दिन ही बीते थे कि उसने फिर वही प्रश्न किया - "मैं कौन हूँ"... 
smt. Ajit Gupta 
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वक्त के साथ हर सोच बदल जाती है...

मेरी एक गज़ल का शेर है: 
कैसे जीना है किसी को ये बताना कैसा, 
वक्त के साथ हर सोच बदल जाती है... ..  
जाने क्या बात है जो तुमसे बदल जाती है...  
वाकई इन १५ दिनों के भीतर पूरी की पूरी सोच ही बदल गई. शब्दों और मुहावरों के मायने बदल गये हैं..जहाँ एक ओर लोग विमुद्रीकरण जैसे किलिष्ट शब्द का अर्थ समझ गये.. वहीं इसे एक नया ’नोटबंदी’ जैसा नाम मिला..मानों कि काले धन की बढ़ती आबादी को रोकने हेतु नोटों की नसबन्दी कर दी गई हो... 
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5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर मंगलवारीय चर्चा । 'उलूक' का आभार सूत्र 'पूछने में लगा है जमाना वही सब
    जिसे अच्छी तरह से सबने समझ लिया है' को स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर चर्चा ,मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत आभार .

    जवाब देंहटाएं

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