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शनिवार, दिसंबर 31, 2016

"शीतलता ने डाला डेरा" (चर्चा अंक-2573)

मित्रों 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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गीत  

"शीतलता ने डाला डेरा"  

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 

मैदानों में कुहरा छाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
सूरज को बादल ने घेरा,
शीतलता ने डाला डेरा,
ठिठुर रही है सबकी काया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।
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नव वर्ष पर 

Akanksha पर 
Asha Saxena 
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मित्र को पत्र 

प्रिय मित्र बराक
कैसे हो? बहुत दिन हुए तुमसे गप्प सटाका नहीं कर पाया फोन पर. अब तो २०१६ खत्म होने में २ दिन का समय बचा है और उसके २० दिन बाद तुम्हारा कार्यकाल भी समाप्त हो जायेगा. जानता हूँ तुम चलते चलते समेटने में लगे होगे. मिशेल भौजी भी घर भांड़े का सामान नये घर में शिफ्ट कराने के लिए पैकिंग में जुटी होंगी. 
नमो नमो बोल देना उनसे. 
सुना है जो नया घर अलॉट हुआ है वो भी काफी बड़ा और खुला खुला सा है. 
मगर जो भी हो व्हाईट हाऊस तो नहीं ही हो सकता है. 
अगली दफा जब अमरीका आऊँगा तो कोशिश करुँगा तुम्हारे नये घर पर आने की... 
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सब जीवन बीता जाता है..... 

जयशंकर प्रसाद 

धूप छांह खेल सदृश
सब जीवन बीता जाता है

समय भागता प्रतिक्षण में,
नव-अतीत के तुषार-कण में
हमें लगाकर भविष्य-रण में
आप कहां छिप जाता है
सब जीवन बीता जाता है... 
yashoda Agrawal 
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कोई नहीं है यूँ जो तुम्हें आदमी बना दे 

मतलब नहीं है इससे अब यार मुझको क्या दे 
है बात हौसिले की वह दर्द या दवा दे 
है रास्ता ज़ुदा तो मैं अपने रास्ते हूँ 
उनके भी रास्ते का कोई उनको पता दे... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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हस्तांतरण ! 

माँ तीन दिनों से बेटी के फ़ोन का इन्तजार कर रही थी और फ़ोन नहीं आ रहा था। नवजात के साथ व्यस्त होगी सोचकर वह खुद भी नहीं कर पाती थी। एक दिन उससे नहीं रहा गया और बेटी को फ़ोन किया - 'बेटा कई दिन हो गए तेरी आवाज नहीं सुनी , कैसी हो ?' ' माँ तेरी जगह संभाली है न तो उस पर खरी उतरने का प्रयास कर रही हूँ। इसके सोने और जागने का कोई समय नहीं होता और वही मेरे लिए मुश्किल होता है। लेकिन फिक्र न करना विदा करते समय जैसे दायित्वों की डोर थामे थी न , वैसे ही उसको थामे हूँ... 
रेखा श्रीवास्तव 
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उर्दू बह्र पर एकबातचीत :  

क़िस्त 15  

[ज़िहाफ़ात] 

कुछ ज़िहाफ़ ऐसे हैं जो ’सबब-ए-सकील’  [हरकत+हरकत] पर ही लगते हैं  । [सबब-ए-सकील के बारे में पिछली क़िस्त 11 में लिखा  जा चुका है ।एक बार फिर लिख रहा हूं~
आप जानते है सबब के 2-भेद होते है
सबब-ए-ख़फ़ीफ़  : वो 2  हर्फ़ी कलमा जिसमें पहला हर्फ़ मुतहर्रिक [यानी पहले हर्फ़ पर हरकत हो] और दूसरा हर्फ़ साकिन हो
सबब-ए-सक़ील  :- वो  2 हर्फ़ी कलमा  जिसमे पहला हर्फ़ मुत्तहर्रिक हो और दूसरा हर्फ़ भी मुतहर्रिक हो
आप जानते हैंकि उर्दू जुबान में  किसी लफ़्ज़ का पहला हर्फ़ मुत्तहर्रिक तो होता है पर आख़िरी हर्फ़ [हर्फ़ उल आख़िर] मुतहर्रिक नहीं होता बल्कि साकिन होता है
तो फिर सबब-ए-सक़ील के मानी  क्या ?... 
आनन्द पाठक 
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काव्य-संग्रह - पुरुषोत्तम 
कवयित्री - मनजीतकौर मीत 
प्रकाशक - अमृत प्रकाशन, दिल्ली 
पृष्ठ - 128 ( सजिल्द ) 
कीमत - 200 /-

इतिहास और मिथिहास के अनेक पात्र कवि हृदयों को आकर्षित करते आए हैं, लेकिन जिन पर पूर्व में विस्तार से लिखा जा चुका हो, उन्हें पुन: लिखना बहुत बड़ी चुनौती होता है और जब रामचरितमानस जैसा महाकाव्य उपलब्ध हो तब वही राम कथा लिखना अत्यधिक साहस की मांग करता है | 
कवयित्री " मनजीतकौर मीत " ने अपनी पहली पुस्तक "पुरुषोत्तम " का सृजन करते हुए ये साहस दिखाया है, जिसके लिए वे बधाई की पात्र हैं | 
पुरुषोत्तम ' प्रबंध और मुक्तक काव्य का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है... 
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6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शनिवारीय अंक । नव वर्ष की मंगलकामनाएं ।

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  2. बढ़िया चर्चा आज की |
    नव वर्ष के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति। .
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  4. Thanks for sharing, nice post! Post really provice useful information!

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