फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, जनवरी 24, 2017

"होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584)

मित्रों 
चर्चा मंच पर सप्ताह में तीन दिन 
(रविवार,मंगलवार और बृहस्पतिवार) 
को ही चर्चा होगी। 
--
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

--
--
--
--

खुले में सोचें नहीं.. 

स्वछता अभियान 
Lovely life पर Sriram Roy 
--

प्रश्न बेतुका सा ... 

शोध कहाँ तक पहुँच गया है 
शायद सब को पता न हो ...  
हाँ मुझे तो बिलकुल ही नहीं पता ...  
इसलिए अनेकों बेतुके सवाल 
कौंध जाते हैं ज़हन में ...  
Digamber Naswa 
--
--
--
--

सुविधा 

पार्क की उस बेंच पर वे दो लड़के हमेशा दिखते थे मोबाइल में सिर घुसाये दीन दुनिया से बेखबर। रमेश और कमल रोज पार्क में घूमने आते उन्हें देखते और मुंह बिचकाते ये नई पीढ़ी भी एकदम बर्बाद है... 
कासे कहूँ? पर kavita verma 
--
--
--

नया क्या वास्तव मैं नया है 

नया वर्ष आ गया , 
फिर से हम अपनी अपनी दीवारों से 
कलैंडर उतार देंगे 
क्या वास्तव में कुछ नया होता है... 
--

दल बदल या दिलबदल 

बीहड़ में किसी डाकू का दिल बड़े गिरोह पर आ जाय और वह लूट में अधिक हिस्से के लोभ में अपना दल बदल कर बड़े गिरोह में शामिल हो जाय तो किसी को कोई अचरज नहीं होता। जंगल का अपना क़ानून होता है। ताकत की सत्ता होती है। अस्तित्व का संघर्ष होता है। सत्ता की छाया में अधिक माल लूटने या जान बचाने के लिये डकैत दल बदलते रहते हैं...
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
--
--

तुम भी पहले पहल ,  

हम भी पहले पहल 

दो पल को लगा परिस्तान से 
कोईं शहज़ादी उतर आयी हो,  
और मेरे फूल का भेस बदल मुस्कुरा रही हो. 
खुदाया!! दिल बेवजह खुश हो आया... 
आवारगी पर lori ali 
--

ग़ज़ल -  

जुर्म की हर इंतिहा को पार कर जाते हैं लोग 

इस तरह कुछ जोश में हद से गुज़र जाते हैं लोग। 
जुर्म की हर इन्तिहाँ को पार कर जाते हैं लोग ।। 
हर तरफ जलते मकाँ है आदमी खामोश है । 
कुछ सुकूँ के वास्ते जाने किधर जाते हैं लोग ... 
Naveen Mani Tripathi 
--
--
--

गीत  

"रबड़-छन्द भाया है" 

No automatic alt text available.
छाँव वही धूप वही 
दुल्हिन का रूप वही 
उपवन मुस्काया है! 
नया-गीत आया है!! 

सुबह वही शाम वही 
श्याम और राम वही 
रबड़-छन्द भाया है! 
नया-गीत आया है!! 

बिम्ब नये व्यथा वही 
पात्र नये कथा वही  
माथा चकराया है! 
नया-गीत आया है!! 

महकी सुगन्ध वही 
माटी की गन्ध वही 
थाल नव सजाया है! 
नया-गीत आया है!! 

सूखा आषाढ़ है 
भादों में बाढ़ है 
कुहरा गहराया है! 
नया-गीत आया है!!
--
--

तलाश 

बाजार अपना ही था 
लोग अजनबी से थे 
भीड़ कोलाहल से भरी 
कान अपने शब्द को तलाशते थे । 
मंजरों से अपनापन साफ झलकता था 
भरे भीड़ में अब खुद ही गुम 
खुद को तलाशते थे... 
--

नाराजगी 

न जाने क्यों 
आज सुबह से है नाराज बिटिया 
मना मना कर थक गई हूँ पर... 
Akanksha पर Asha Saxena 
--

फेसबुकिया स्टेटस-2 

इतनी तेजी से Whatsapp पर 
हम सुविचारों को forward करते हैं कि...  
उसपर विचार करने का अवसर ही नहीं मिलता 
यदि उतनी ही तेजी से परोसी हुई थाली को 
जरूरतमंदों की ओर खिसका सकें तो.... 
ऋता शेखर 'मधु' 
--
--

छोटी-बड़ी खुशी 

अलग़-अलग़ होता है सभी का पैमाना 
जिनसे नापते हैं लोग अपनी खुशियां... 
--
--

पतंग ! 

खुले आसमान में विहान से उड़ते रहो पतंग मत बनना कभी। 
वो पतंग जो डोर दूसरों को देकर आसमान में नचाई जाती है , 
न मर्जी से उड़ती है और न मर्जी से उतरती है। 
हाँ वह काट जरूर दी जाती है... 
hindigen पर रेखा श्रीवास्तव 
--

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत विस्तृत चर्चा आज की ... आभार मुझे भी शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सूत्र ! बढ़िया चर्चा ! सुप्रभात शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर सूत्र संयोजन आज के चर्चा मंच में |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सार्थक सूत्र संयोजन|
    मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा चर्चा...मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर चर्चा , लिंक भी अच्छे मिले. स्थान देने के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।