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बुधवार, जुलाई 19, 2017

"ब्लॉगरों की खबरें" (चर्चा अंक 2671)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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क्यों लड़ते हैं लोग घरों में ? 

उसके घर का आने -जाने का रास्ता घर के पिछले हिस्से से होकर है ,मेरे और उसके ,दोनों घर के बीच में सामान्य अन्तर है .. बातचीत, नोक-झोंक ...सब सुनाई देता है ... कामकाजी बहू है ..... सास और बहू दोनों ताने देने में मास्टर हैं ... 
अर्चना चावजी Archana Chaoji 
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दिल न रोशन हुआ ,लौ लगी भी नही, 
फिर इबादत का ये सिलसिला किस लिए 
फिर ये चन्दन ,ये टीका,जबीं पे निशां 
और  तस्बीह  माला  लिया किस लिए ... 
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DEKHIYE EK NAJAR IDHAR BHI 
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ये तू मुझसे क्या चाहता है ! 

ये तू मुझसे क्या चाहता है ! 
दर्द देकर दवा चाहता है... 
हालात आजकल पर प्रवेश कुमार सिंह 
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मुल्कों की रीत है... 

कैसा अजब सियासी खेल है, 
होती मात न जीत है 
नफ़रत का कारोबार करना, 
हर मुल्कों की रीत है... 
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम 
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एक सिपाही का खुला खत 

palash "पलाश" पर डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 
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लड़ना क्या इतना आसान होता है? 

हिन्दी_ब्लागिंग लड़ना क्या इतना आसान होता है? पिताजी जब डांटते थे तब बहुत देर तक भुनभुनाते रहते थे, दूसरों के कंधे का सहारा लेकर रो भी लेते थे लेकिन हिम्मत नहीं होती थी कि पिताजी से झगड़ा कर लें या उनसे कुछ बोल दें। माँ भी कभी ऊंच-नीच बताती थी तो भी मन मानता नहीं था, माँ को जवाब भी दे देते थे लेकिन बात-बात में झगड़ा नहीं किया जा सकता था.... 
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9 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा में सिपाही के खत को स्थान देने के लिये आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया लिंक लगाए हैं .......आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर लिंक्स, आभार.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

    जवाब देंहटाएं
  4. आज की सुन्दर चर्चा में 'उलूक' की खबर को भी जगह देने के लिये आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. शुक्रिया सर फुलबगिया को भी आपने यहाँ स्थान दिया ----बहुत सी नयी पोस्ट्स से भी परिचित हुआ .....आभार ....
    डा० हेमंत कुमार

    जवाब देंहटाएं

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