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रविवार, अगस्त 06, 2017

"जीवन में है मित्रता, पावन और पवित्र" (चर्चा अंक 2688

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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शीर्षकहीन 

किसी को अपना बनाने में वक़्त लगता है। 
इश्क बड़ा मर्ज है, दवा बनाने में वक़्त लगता है... 
प्रवेश कुमार सिंह 
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----- || दोहा-एकादश || ----- 

बसति बसति बसबासता मिलिअब पर समुदाय | 
बसे बसेरा आपुना केहि हेतु कर दाए || १ || 
भावार्थ... 
NEET-NEET पर Neetu Singhal 
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कमियां 

ऐसा सुना है मैंने 
कमियां ही इन्सान को 
इन्सान बनाती हैं... 
प्यार पर Rewa tibrewal 
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मशीन अनुवाद - 2 

 मशीन अनुवाद के प्रारंभिक स्वरूप के बारे में मैं पहले बता चुकी हूँ. इसके द्वारा हम विस्तृत सोच को जन्म दे चुके हैं. जीवन के हर क्षेत्र में इसकी भूमिका तो वही है लेकिन उसके स्वरूप अलग अलग हो जाते हैं. हम एक सामान्य अनुवाद प्रणाली का प्रयोग करते हैं तो इसको अनुवाद करने वाली एक प्रणाली समझ लेते हैं लेकिन इस प्रणाली को किस स्वरूप में प्रयोग करना आवश्यक होता है, इस ओर भी हम दृष्टि डालेंगे... 
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव 
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गठबंधन- 

लघुकथा 

मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु' 
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बच्चों का दोस्त बनना ठीक है ... 

पर उनके के माँ-बाप भी बने रहिये 

साइबर दुनिया के किसी गेम के कारण जान दे देने की बात हो या बच्चों की अपराध की दुनिया में दस्तक | नेगेटिव बिहेवियर का मामला हो या लाख समझाने पर भी कुछ ना समझने की ज़िद | परवरिश के हालात मानो बेकाबू होते दिख रहे हैं | जितना मैं समझ पाई हूँ हम समय के साथ बच्चों के दोस्त तो बने पर घर के बड़े और उनके अभिभावक होने के नाते जो मर्यादित सख़्ती (जी मैं सोच-समझकर सख़्ती ही कह रही हूँ ) बरतनी चाहिए थी वो भूल गए हैं... 
परिसंवाद पर डॉ. मोनिका शर्मा 
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ये बेहया बेशर्म औरतों का ज़माना है 

कल तक बात की जाती थी फलानी को पुरस्कार मिला तो वो पुरस्कार देने वाले के साथ सोयी होगी .....आज जब किसी फलाने को मिला तो कहा जा रहा है उसे तब मिला जब वो देने वाली के साथ सोया होगा ........ये किस तरफ धकेला जा रहा है साहित्य को ? क्या एक स्त्री को कभी सेक्स से अलग कर देखा ही नहीं जा सकता? क्या स्त्री सिवाय सेक्स मटेरियल के और कुछ नहीं ? और तब कहते हैं खुद को साहित्य के खैर ख्वाह......अरे बात करनी थी किसी को भी तो सिर्फ कविता पर करते लेकिन स्त्री को निशाना बनाकर अपनी कुत्सित मानसिकता के कौन से झंडे गाड़ रहे हैं ये लोग? छि: , धिक्कार है ऐसी जड़ सोच के पुरोधाओं पर .... 
vandana gupta  
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मुसाफ़िर से 

तुम समझ रहे हो न 
कि यह रेलगाड़ी है, 
जो चल रही है, 
तुम ख़ुद नहीं चल रहे. 
मुसाफ़िर, यह रेलगाड़ी है, 
जो तुम्हें मंजिल तक पहुंचाएगी... 
कविताएँ पर Onkar 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

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  2. उम्दा लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन लिंक संयोजन ....आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया लिनक्स ...मेरी पोस्ट शामिल की हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर रविवारीय चर्चा। आभार 'उलूक' के सूत्र को स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं

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