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सोमवार, अगस्त 07, 2017

"निश्छल पावन प्यार" (चर्चा अंक 2698

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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दोस्ती का बंधन भी !!! 

कुछ रिश्ते होते हैं प्रगाढ़ 
जिनकी रगों में नहीं दौड़ता रक्त 
आपसी सम्बन्धों का बस बन्धन होता है 
मन का मन से ! ... 
SADA पर सदा  
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मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा.... 

हिन्दी साहित्य मंच से 

दर्द कागज़ पर मेरा बिकता रहा..!! 
मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा... 
मेरी धरोहर पर Digvijay Agrawal  
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मेरे घर न आना भैया 

रक्षा बंधन का त्यौहार है हर बहन का अपने भाई पर अटूट विश्वास और अकथनीय प्यार है ! आरती का थाल सजा भैया की कलाई पर अरमान भरी राखी बाँधने का उसे जाने कब से इंतज़ार है ! लेकिन वर्षों की यह पुनीत परम्परा इस बहना के घर में अब टूटती दिखाई देती है अपने दुलारे भैया के लिए इसके दिल में घोर अविश्वास और आँखों में नफरत साफ़ दिखाई देती है ! ज़मानत पर छूटे अपने भाई से उसने साफ़ लफ़्ज़ों में रक्षा बंधन पर अपने घर न आने की ताकीद कर दी है, ससुराल में सबके सामने किस मुँह से वह अपने ऐसे दुष्कर्मी भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधेगी जो उसकी रक्षा का तो दम भरता है किन्तु किसी अन्य लड़की पर ... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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सच्चाई की राह 

एकांकी  
"सच्चाई की राह" 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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अफवाह उड़ाओ तो ऐसी 

कि पकड़ न आये 

अपने दिल की किसी हसरत का पता देते हैं 
मेरे बारे में जो अफवाह उड़ा देते हैं... 
कृष्ण बिहारी नूर को यह शेर कहते सुनता हूँ, 
तो मन में ख्याल आता है कि 
’अफवाह वह अनोखा सच है 
जो तब तक सच रहता है 
जब तक झूठ न साबित हो जाये’... 
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भाई-बहिन का प्यारा बंधन रक्षाबंधन 

रिमझिम सावनी फुहार-संग 
पावन पर्व रक्षाबंधन आया है 
घर-संसार खोई बहिना को 
मायके वालों ने बुलाया है... 
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बदमाश औरत 

कल से इक विवादास्पद लेखक की 
अपने किसी कमेंट में कही 
इक बात बार बार हथौड़े सी चोट कर रही थी .... 
" कुछ बदमाश औरतों ने बात का बतंगड़ बना दिया ...."  
बस वहीं इस कविता का जन्म हुआ ... 
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आज रायता दिवस है यारो... 

अफ़वाह की कोशिश मुकम्मल की जाये.. 

आज संटू भिया के कबाडखाने में उनको फ़्रेंडशिप बैंड बांधने पहुंचे ही थे कि सामने एक अनिंध्य सुंदरी को बैठे पाया. उसे देखते ही हमारे मन में संटू भिया के प्रति, आज मित्रता दिवस होने के बावजूद भी अमित्रता दिवस वाली फ़ीलींग आने लगी…..हमारे सामने ही बैठी सुंदरी ने शायद हमारे मन के भावों को पढ लिया था….वो कहने लगी – ज्यादा उल्टा सीधा दिमाग मत दौडावो, तुम जो सोच रहे हो वैसा कुछ नही है. उसके कहने के ढंग में एक बेबाकी और सच्चाई सी लगी हमको सो हमने उससे परिचय पूछ लिया. वो कहने लगी – मेरा नाम है कुमारी अफ़वाह “विश्व”… 
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया 
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तुम मेरे साथ हो 

बस यही मेरा है 

ओह! आज मित्रता दिवस है! 
मित्र याने मीत, अपने मन का गीत। 
मन रोज भर जाता है, 
उसे रीतना ही होता है, 
लेकिन रीते कैसे? 
रीतने के लिये कोई मीत तो चाहिये... 
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भूखा मुँहनोचवा.... 

शहर में खौफ पसरा था, अखबार के दफ्तर के फ़ोन घनघनाने का सिलसिला थमता ही नही था। मुँह नोचने के अनवरत होते हमलों की खबरें अखबार में छायी थी। सूरज ढलते ही लोग दहलीज जे भीतर शरणागत होते, कुछ रंगबाजी करने के चक्कर मे छतों पर मंडराते। विशाल, इस मुद्दे पर स्टोरी लिख रहा था। कलम मुँह में दबाये सोचता उन लोगो के बारे में जो शिकार हुये, आखिर मुँह नोचवा केवल उन्ही इलाकों में क्यों नोचता है, जहाँ कम पढ़े लिखे लोग रहते है, कभी रईसों की बस्ती में क्यों नही जाता... 
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साहित्य के टुच्चे - 

बहुत कोसते थे फेसबुक पर लिखने वालों को - फेसबुकिया, उच्छृंखल, उजबक, फालतू, टाईम पास और ना जाने क्या क्या !!! बड़े बड़े लेखक बनते थे, अकादमिक और सिर्फ पत्रिकाओं में छपने वाले, प्रकाशकों को तेल लगाने वाले और बड़ी अकादमियों और भारत भवनों में मुफ्त की दारू और आयोजक के मुर्गे चबाकर हमेशा घटियापन की साहित्यिक राजनीति करने वाले बनते थे ना। सबकी असलियत सामने है - औलादों से, नए नवेलों से, नाती पोतों से ई मेल, ट्वीटर, फेसबुक सीख रहे है , मोबाइल में हिंदी फॉन्ट डालकर अब 70- 75 की उम्र में टाइपिंग सीख रहे है पोपले मुंह के फोटो या कि खपी जवानी के फोटो चैंपकर लुभाने की आदतें फिर जवां हो रही है इन ...  
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik  
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महिलाओं की "पोस्ट" पर न्यौछावर 

लोगों की मानसिकता 

मेरा मानना है कि सार्वजनिक स्थान पर कटुता नहीं होनी चाहिए। ब्लागिंग में तो कतई भी नहीं ! कोशिश भी यही रही है,  इतने सालों से, पर आज क्षमा चाहता हूँ यदि अति हो गयी हो तो।  वैसे बोलने की इतनी आजादी तो शायद ही अपने देश में कभी मिली हो ! फिर वह चाहे आम इंसान हो, बुद्धिजीवी हो, कलाकार हो, फिल्म निर्देशक हो या फिर नेता ही क्यों ना हो ! हर जगह हद पार की जा रही है। ना शर्म है, ना लिहाज है, ना किसी पद की मर्यादा है नाहीं किसी की उम्र की गरिमा की फ़िक्र ! पक्ष-विपक्ष में पहले भी नोक-झोंक होती थी। वाद-विवाद होता था। झड़पें होती थीं। पर आपस में  आदर-सम्मान भी था। नैतिकता थी। नेहरू जी के क्या कम विरोधी थे पर तब किसी ने हल्की भाषा का प्रयोग नहीं किया। कठिन समय में सारा देश उनके साथ था। इंदिरा जी के तो शायद सर्वाधिक विरोधी होंगे पर उनके साहस, निडरता तथा देश हित में उठाए गए कदमों की सबने एक स्वर में सराहना की। विरोधी पक्ष के श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने तो उन्हें दुर्गा तक कह डाला था । जहां देश की बात आती थी तो पक्ष-विपक्ष नहीं देखा जाता था लायक आदमी को ही जिम्मेदारी सौंपी जाती थी जैसा इंदिरा जी ने बाजपेयी जी को नेता बना बाहर भेजा था। अच्छे काम की सभी तरफदारी करते थे आज की तरह नहीं कि देश हित में कुछ हो रहा हो तो भी धरना दे कर बैठ जाएं या फिर उसका श्रेय लेने के लिए जनता को बर्गलाएँ... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात मित्रों !
    रक्षा बंधन के पावन पर्व पर सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं !
    आज की भावभीनी सूत्रों से सुसज्जित चर्चा में मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

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