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शुक्रवार, सितंबर 01, 2017

"सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो" (चर्चा अंक 2714)

मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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758 
1-हादसे ही हादसेडॉ शिवजी श्रीवास्तव
र दिशा में हादसे ही हादसे हैं,या खुदा हम किस शहर में आ बसे हैं।राजपथ पर ही सुरंगें फट रही हैं,और सिंहासन खड़े चुपचाप से हैं।कौन अब किससे कहे अपनी व्यथाएँ,हर किसी की पीठ में खंजर धँसे हैं।सिरफिरा उनको सियासत कह रही हैजो कि आँखें खोलकर मुट्ठी कसे हैं। 
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शर्म उसको ज़रा नहीं आयी 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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मशीन अनुवाद - 6 

मशीन अनुवाद का सफर कुछ अधिक लम्बा हो चुका है फिर भी बहुत कुछ शेष है. यह एक अंतहीन सफर ही तो है जिसको मैं अपने कार्यकारी समूह के साथ और विभिन्न संस्थानों के साथ मिल कर विगत 22 वर्षों से करती चली आ रही हूँ. इस लम्बे सफर में मैंने जिन भाषाओं को इस मशीन अनुवाद के लिए प्रयोग किया है - वे हैं, कन्नड़, तुलुगु, मलयालम, उर्दू, पंजाबी, बंगला हिंदी , इसके अतिरिक्त गुजराती, संस्कृत में भी इसको प्रयोग करके देखा गया है लेकिन इसको विस्तृत रूप में हमने नहीं किया है. इस सबमें हमारी स्रोत भाषा अंग्रेजी रही है और लक्ष्य भाषाएँ ऊपर अंकित कर ही दी गयीं है,.. 
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव  
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आकलन- 

लघुकथा 

ऋता शेखर 'मधु' 
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पूरन पूड़ी 

नन्ही कोपल पर कोपल कोकास 
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अचेतन 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar  
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शरारती नहीं, 

वह न्यायप्रिय था 

मेरा कक्षा-पाठी अर्जुन (पंजाबी) मुझे सुधारता रहता है। मुझे अच्छा लगे या बुरा, उसके ठेंगे से। उसे जो कहना होता है, कह देता है। हमारे इलाके की कहावत उसका फार्मूला है - ‘मेरी बात का बुरा लगे तो शाम को घर जाकर आधी रोटी ज्यादा खा लेना।’ आज फिर उसने मुझे सुधारा। लेकिन आज डाँटा-डपटा नहीं। आज उसने मेरी नहीं, गोपाल की चिन्ता की। दरअसल उसने अपने दो कक्षापाठियों की चिन्ता एक साथ कर ली। अर्जनु का कहना रहा कि कल मैंने गोपाल की जो छवि पेश की वह उसके एक ही पक्ष को उजागर करती है - उसके शरारती होने की। जबकि वह केवल शरारती नहीं था... 
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लावारिस देश 

Sahitya Surbhi पर Dilbag Virk  
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8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात शास्त्री जी !
    बहुत खूबसूरत सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी प्रस्तुति को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार ! कोपल कोकस का ब्लॉग खोलते ही कोई और विज्ञापन का पेज सामने आ जाता है ! पता नहीं क्या समस्या है ! पूरण पोली की सही विधि देखना चाह रही थी, नहीं देख पाई !

    जवाब देंहटाएं
  2. हमेशा की तरह सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं

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