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शनिवार, सितंबर 23, 2017

"अहसासों की शैतानियाँ" (चर्चा अंक 2736)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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नव रात्रि में प्रार्थना 

शैल की पुत्री शैलजा तू, सारे जग की यशस्विनी माँ, 
योगिनी रूप, करती है तप है तू ही ब्रह्मचारिणी माँ... 
कालीपद "प्रसाद"  
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मुझ तक पहुँच जाओगे... 

मैं आज किसी सुकून की तलाश में, 
उन जगहों पर जा कर, 
पहरों बिता आती हूँ, 
जिस जगह तुम घंटो बैठा करते थे.. 
तुम्हारी खुशबू हर तरफ महसूस करती हूं, 
ना जाने क्यों तुम्हारे ना होने में भी... 
'आहुति' पर Sushma Verma  
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अपराधबोध से मुक्ति दिलाने 

’कानूनी मान्यता’ 

मंत्री बनने के बाद ’सामाजिक व्यवस्था एवं उसके प्रभाव’ विषय पर संगोष्ठी में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने कनाडा का दौरा किया. आख्यान सुन कर पता चला कि समाज में कोई अपराध भावना से न ग्रसित हो इस हेतु कुछ बरस पहले सरकार ने राजमार्गों पर स्पीड लिमिट को १०० से बढ़ाकर १२० किमी प्रति घंटा करने का प्रस्ताव रखा. सरकार ने अपने सर्वेक्षण से जाना था कि ९० प्रतिशत लोग १२० पर गाड़ी चलाते हैं और पुलिस भी उस सीमा तक उनको नजर अंदाज कर जुर्माना नहीं लगाती. आम जन के बीच जब यह प्रस्ताव आया तो आमजन ने इसे नहीं स्वीकारा. उनका मानना था कि अगर स्पीड लिमिट बढ़ा कर १२० कर दी गई तो लोग १४० पर गाड़ी चलाने लगेंगे.... 
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6 टिप्‍पणियां:

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