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रविवार, दिसंबर 17, 2017

"लाचार हुआ सारा समाज" (चर्चा अंक-2820)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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काव्य पाठ २८ जनवरी 
सोते सोते भी सतत्, रहो हिलाते पैर।
दफना देंगे अन्यथा, क्या अपने क्या गैर।।
दौड़ लगाती जिन्दगी, सचमुच तू बेजोड़  
यद्यपि मंजिल मौत है, फिर भी करती होड़                          
रस्सी जैसी जिंदगी, तने-तने हालात.
एक सिरे पर ख्वाहिशें, दूजे पे औकात... 
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न्यु इयर 

ऋता शेखर 'मधु'
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु'  
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कुत्तों ने "शोले" देखी. 

कलकत्ता के सामने हुगली नदी के पार “बांधाघाट” का इलाका। उस कस्बाई इलाके के एक साधारण से सिनेमाघर “अशोक” में कई दिनों से शोले बदस्तूर चल रही थी। सिनेमाघर बहुत साधारण सा था। सड़क के किनारे बने उस हाल की एक छोटी सी लाबी थी। उसी में टिकट घर, उसी में प्रतिक्षालय, उसी में उपर जाने की सीढियां। वहीं अंदर जाने के लिये दो दरवाजे थे। जिसमें एक हाल के अंदर की पिछली कतारों के लिये था तथा दूसरा पर्दे के स्टेज के पास ले जाता था। उन पर मोटे काले रंग के पर्दे टंगे रहते थे। गर्मी से बचने के लिये अंदर सिर्फ पंखों का ही सहारा था। शाम को अंधेरा घिरने पर हाल के दरवाजे खुले छोड़ दिये जाते थे जिससे दिन भर बंद हाल में शाम को बाहर की ठंड़ी हवा से कुछ राहत मिल सके।
दोपहर में गर्मी से बचने के लिये दो-चार “रोड़ेशियन" कुत्ते लाबी में आ कर सीढियों के निचे दुबके रहते थे। लोगों के आने-जाने से, शाम को दरवाजे खुले होने से वे भी गानों इत्यादि को सुनने के आदी हो गये थे। पर दैवयोग से उन्होंने अपने से सम्बंधित संवाद नहीं सुना था... 

कुछ अलग सा पर गगन शर्मा  
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राक्षस 

कभी अपने अन्दर का 
राक्षस देखना हो,
तो उग्र भीड़ में 
शामिल हो जाना... 
कविताएँ पर Onkar  
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जय हो हिंदी मातृ-भाषा की .... 

हिन्दी से सबको सबसे, हिन्दी को है पूरी आशा ,
फले-फूले दिन-रात चौगुनी ,जन-मानस की भाषा ।
इसमें निहित है हमारे पूरे , देश राष्ट्र -धर्म की मर्यादा ,
जितना इसका मंथन होता ,बढ़े ज्ञान अमृत और ज्यादा ।
बदल रहें इसके कार्य -क्षेत्र ,बदल रही सीमा परिभाषा,
आभाषी मन मचल रहे हैं ,ले एक नयी उर में जिज्ञाषा... 
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...और मैंने असल से पहले नकल कर ली 

सोमवार, ग्यारह दिसम्बर की सुबह। थक कर चूर था। एक दिन पहले, दस दिसम्बर को छोटे बेटे तथागत का पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ था। कुछ रस्में बाकी थीं। घर में उन्हीं की तैयारी चल रही थीं। थक कर बैठने की छूट नहीं थी। मुझ जैसे आलसी आदमी को सामान्य से तनिक भी अधिक कामकाज झुंझलाहट और चिढ़ से भर देता है। मैं इसी दशा और मनोदशा में था। तभी फोन घनघनाया। चिढ़ और झुंझलाहट और बढ़ गई। बेमन से फोन उठाया। उधरसे भाई अनिल ठाकुर बोल रहे थे। वे रतलाम से हैं और इन दिनों पुणे में हैं। वे क्षुब्ध और आवेशित थे। उन्होंने जो खबर दी उससे मेरी थकान, झुंझलाहट, चिढ़, सब की सब हवा हो गई। मैं ताजादम हो, हँसने लगा। मेरी इस प्रतिक्रिया ने अनिल भाई को चिढ़ा दिया। बोले - ‘मेरी इस बात पर आपको गुस्सा आना चाहिए था। नाराज होना चाहिए था। लेकिन आप हैं कि हँस रहे हैं! यह क्या बात हुई?’ मैंने कहा - ‘क्यों न हँसू भला? आपको नहीं पता, आपने इस जर्रे को हीरे में तब्दील हो जाने की खबर दी है।’ फिर मैंने उन्हें कवि रहीम का यह दोहा सुनाया -
रहीमन यों सुख होत है, बढ़त देख निज गोत।ज्यों बढ़री अँखियन लखिन, अँखियन को सुख होत।।’... 
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चूहे के न्याय से  

बिल्ली का अत्याचार भला 

चूहे के न्याय से बिल्ली का अत्याचार भला
अन्यायपूर्ण शान्ति से न्यायपूर्ण युद्ध भला... 
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कितने आसमान ! 

समुद्र, पाषाण, बादल, उड़ान--

एक ही दृश्य में
कितनों के
कितने आसमान... 
अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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गौरी, एक प्रेम कहानी 

गौरी के लव मैरिज का पांचवां साल हुआ है। तीन बच्चों को वह आज अकेले चौका-बर्तन कर संभाल रही है। पति ने छोड़ दिया है। उसी पति ने छोड़ दिया जिसके लिए गौरी लोक-लाज छोड़ा, माय-बाप छोड़ा, गांव-समाज छोड़ा। उसी पति को पाने के लिए आजकल वह थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगा रही है। इसी चक्कर में उसे आज फिर वकील साहब डांट रहे है... 
चौथाखंभा पर ARUN SATHI 
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62 किताबें 47 mb में 

सन्तमत और महाभारत आदि धार्मिक ग्रन्थों की सरल सहज भाषा में जानकारी।
63 किताबें, कुल 100 mb साइज में।
सिर्फ़ अभिलाष साहब की जीवनी 42.1 mb में है, 
ये जीवन दर्पन (राम साहब) के नाम से पेज में सबसे नीचे 11 नम्बर पर है।
यानी बाकी 62 किताबें 47 mb में।
rajeev Kulshrestha 
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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

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  2. बढ़िया ब्लॉग चर्चा है, मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए शुक्रिया...

    जवाब देंहटाएं

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