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गुरुवार, जनवरी 04, 2018

"देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री फुले" (चर्चा अंक-2838)

मित्रों!
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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उम्र के छलावे ... 

सभी मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएं ... २०१८ सबके लिए शुभ हो. नव वर्ष की शुरुआत एक रचना के साथ ... जाने क्यों अभी तक ब्लॉग पे नहीं डाली ... अगर आपके दिल को भी छू सके तो लिखना सार्थक होगा ...
तेरे चले जाने के बाद
पतझड़ की तरह कुछ पत्ते डाल से झड़ने लगे थे  
गमले में लगी तुलसी भी सूखने लगी थी
हालांकि वो आत्महत्या नहीं थी... 
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa 
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'आए भी वो गए भी वो'  

शमशेर बहादुर सिंह 

गीत है यह, गिला नहीं  
हमने ये कब कहा भला,  
हमसे कोई मिला नहीं... 
कविता मंच पर kuldeep thakur 
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ग़ज़ल 

मित्रो. से एक निवेदन : 
मित्रों की टिप्पणी का मैं शुक्रिया अदा नहीं कर पा रहा हूँ क्योंकि नीचे कुछ विकल्प होते हैं जैसे गुगुलअकाउंट ,लाइव जोर्नल .वर्ड प्रेस ओपन id ,URL Anonimous, इत्यादि .इसमें मैं गुगुल चुनकर भेजता हूँ पर पब्लिश नहीं होता | कोई मित्र मुझे बताएं क्या चुनना है 
ताकि प्रतिक्रिया पब्लिश हो |या कोई और सेटिंग ठीक करना है | 
सुन्दर खुशबू फूलों से ही मोहक मंजर लगता है | 
फागुन के आने के पहले होली अवसर लगता है | 
मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा 
सोलह श्रृंगार सेधरती दुल्हन, गुल जेवर लगता है ... 
कालीपद "प्रसाद" 
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दीवारें 

उनके घर की बात क्या करें
जिनके घर में दीवारें हैं।
खंड-खंड में सभी बँटे हैं
धुरी ध्वस्त है
आँगन त्रस्त है
सबके अपने-अपने किनारे हैं।
उनके घर की बात क्या करें
जिनके घर में दीवारें हैं... 
अभिनव रचना पर Mamta Tripathi  
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नए साल पर.... 

मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु' 
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वर्ष तो बीत गया 

वर्ष तो बीत गया पर हमारे अन्दर न जाने कितने एहसासों को भर गया कितने पन्ने हवा मे फडफडाते बदल गए कली नीली और सुनहरी स्याही मैं लिखी गई कलेंडर बदल गया कील नहीं बदली जिया है जिसने हर दिन को अपने साथ पर हमारे अन्दर कितने अहसासों को भर गया... 
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मैं तुम्हे भूल नहीं पाता हूँ। 

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सूरज चाँद तारों को भी तोड़ देते हैं  

सब की सुबह और शाम को 

लगता है अब साथ होना नहीं है 

उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी  
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भावानुवाद  

“DEATH IS A FISHERMAN"  

By-BENJAMIN FRANKLIN" 

दुनिया एक सरोवर है,
और मृत्यु इक मछुआरा है!
हम मछली हैं अवश-विवश सी,
हमें जाल ने मारा है... 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चर्चा । आभार 'उलूक' के सूरज तोड़ने के प्रयास की बात को जगह देने के लिये शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी चर्चा ...
    आभार मेरी रचना का जगह देने का ...

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्‍यवाद शास्‍त्री जी, मेरे ब्‍लॉग को इस संकलन में शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सबकी प्रस्तुतियां लाजबाब है धन्यवाद शास्त्री जी सावित्री जी जन्मदिन पर लिखी पोस्ट को स्थान देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  5. शास्त्री जी हिंदी के उन्नयन में चिठ्ठों और मुखचिठ्ठों के चलते हिंदी सारी दुनिया में प्रचार प्रसार पा रही है। यह आकस्मिक नहीं है निरंतर दीर्घकालिक प्रयासों का परिणाम है। सूचना प्रौद्योगिकी ,गूगलिंग ,ट्वीटरिंग के इस दौर में ऐसे निरंतर प्रयास आइंदा भी इसी विध ज़ारी रहें यह बेहद ज़रूरी है।

    हमने देखा है विज्ञान आलेखों के शीर्षक अंग्रेजी में प्राथमिक स्रोत पे चस्पा शीर्षक ही बने रहें तब उस की स्वीकार्यता और लोकप्रियता और भी बढ़ जाती है। अपने स्तर पर मैंने यह आज़माइशें की हैं और सफलता मिली है। आपके इस दिशा में इस प्रकार के आयोजन करना अति सराहनीय है। शुभेच्छु

    वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ),

    ५१ ,१३१ ,अपलैंड व्यू स्ट्रीट ,कैन्टन(मिशिगन )

    ४८८ १८८

    दूरध्वनी :००१ ७३४ ४४६ ५४५१

    वाट्सअप : ८५ ८८ ९८ ७१५०

    विशेष :चर्चा मंच आज भी जब चिठ्ठों की विनिंग का दौर है अपने उद्देश्य पर अडिग है बेहतरीन सेवा भाव सभी चिठ्ठाकारों का श्लाघनीय है। मैं आप सभी के दिव्यांश को प्रणाम करता हूँ।

    जवाब देंहटाएं

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