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गुरुवार, फ़रवरी 01, 2018

"बदल गये हैं ढंग" (चर्चा अंक-2866)

मित्रों!
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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छत्‍तीसगढ़ी हाना –  

भांजरा :  

सूक्ष्‍म भेद 

छत्तीसगढ़ी मुहावरे, कहावतें एवं लोकोक्तियों पर कुछ महत्वपूर्ण किताबें प्रकाशित हैं। इन किताबों में मुहावरे,कहावतें और लोकोक्तियां संग्रहित हैं। मुहावरे, कहावतें और लोकोक्तियां समानार्थी से प्रतीत होते हैं, बहुधा इसे एक मान लिया जाता है। विद्वान इनके बीच अंतर को स्‍वीकार करते हैं, इसमें जो महीन अंतर है, उसे इस पर चर्चा करने के पूर्व ही समझना आवश्यक है। इस उद्देश्‍य से हम यहां पूर्व प्रकाशित किताबों में इस संबंध में उल्लिखित बातों को अपनी भाषा में विश्‍लेषित करने का प्रयत्‍न करते हैं ताकि इसके बीच के साम्‍य एवं विभेद को समझा जा सके... 
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उलझन 

अभी तक समझ नहीं पाई कि 
भोर की हर उजली किरन के दर्पण में
मैं तुम्हारे ही चेहरे का
प्रतिबिम्ब क्यों ढूँढने लगती हूँ ?
हवा के हर सहलाते दुलराते
स्नेहिल स्पर्श में
मुझे तुम्हारी उँगलियों की
चिर परिचित सी छुअन
क्यों याद आ जाती है.... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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शायद प्रेम में... 

तुम्हारे पुलकित प्रेम में,
वैसे तो मैं
हर प्रश्न का उत्तर दे पाता हूँ।
लेकिन ना जाने क्यों
तुम्हारे प्रश्नों के सामने
मैं निरुत्तर हो जाता हूँ।
शायद प्रेम में कुछ ऐसा ही होता होगा... 
Nitish Tiwary 
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डस्टबिन - 

लघुकथा 

Anita Lalit (अनिता ललित ) 
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चाँद का मुँह लाल 

कोपल कोकास  
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मरघट 

रिश्तों के मरघट में चिता है नातों की  
जीवन के संग्राम में दौड़ है साँसों की  
कब कौन बढ़े कब कौन थमे  
कोलाहल बढ़ती फ़सादों की,  
ऐ उम्र! अब चली भी जाओ  
बदल न पाओगी दास्ताँ जीवन की।  
डॉ. जेन्नी शबनम  
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एटिकेटेड बहू 

यह काल्पनिक कहानी नहीं है, बल्कि यथार्थ में घटित प्रकरण से प्रेरित एक सत्य कथा है जो हसने की बजाय  सोचने पर ज्यादा मजबूर करती है ! आज की पीढ़ी का आभासी संसार से लगाव उन्हें जानकारी से तो भरपूर करता है पर ज्ञान के रूप में सब शून्य बटे सन्नाटा ही नजर आता है......  
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर चर्चा ! आज के अंक में मेरी 'उलझन' को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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