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शुक्रवार, अप्रैल 20, 2018

"कहीं बहार तो कहीं चाँद" (चर्चा अंक-2946)

मित्रों! 
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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सूर्य का प्रकाश 

राधा तिवारी (राधे गोपाल)
सूर्य का प्रकाश जब भी मेरे आँगन आता है
सूर्य की  चटक किरणों से घर मेरा जगमगाता है

 अंधेरे को दूर भगा उजियारा वह करता है
 दुख दर्द की पीड़ा हर कर गीत खुशी के गाता है... 
RADHA TIWARI 
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जादू 

जाने क्या क्या सपने बुनने लगता है मन 
तुमसे बतियाऊं तो महकने लगता है मन 
बुझा हुआ अलाव था मेरा मन 
तुमसे मिल जाने क्यूँ 
हौले- हौले दहकने लगता है मन 
Mukesh Srivastava  
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सोच के चौराहेपर खड़ा 

चौराहे पर खडा है 
सोच में डूबा हुआ सा 
खल रहा अकेलापन 
उसे दुविधा में है कहाँ खोजे उसे 
जो कदम से कदम मिला कर चले ... 
Akanksha पर Asha Saxena  
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ग़ज़ल 

गाली गलौच में’ सभी बेबाक हो गए  
धोये जो’ राजनीति से’, तो पाक हो गए |  
कर लो सभी कुकर्म, हो’ चाहे बतात्कार  
सत्ता शरण गए है’ अगर, पाक हो गए... 
कालीपद "प्रसाद" 
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4 टिप्‍पणियां:

  1. आज चर्चा मंच ने अपनी छठा बिखेरी है |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद| |

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  2. सुन्दर चर्चा। आभार आदरणीय नौटंकी 'उलूक' के नाटक को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं

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