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मंगलवार, जुलाई 31, 2018

"सावन आया रे.... मस्ती लाया रे...." (चर्चा अंक-3049)

मित्रों! 
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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गीत  

"सावन आया रे...."  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

सावन आया रे.... मस्ती लाया रे....!
सावन आया रे.... मस्ती लाया रे....!

साजन ला दो चोटी-बिन्दीकाजल काली-काली,
क्रीम-पाउडर के संग मेंला दो होठों की लाली,
सावन आया रे.... मस्ती लाया रे.... 

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हम धुंए के बीच तेरे अक्स को तकते रहे ... 

हम उदासी के परों पे दूर तक उड़ते रहे  
बादलों पे दर्द की तन्हाइयाँ लिखते रहे... 
Digamber Naswa 
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किताबों की दुनिया - 

188 


नीरज पर नीरज गोस्वामी  
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सावन 


Akanksha पर Asha Saxena 
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काश नगर में बगुले ना होते 

उनको अपनी दूकान की पडी है वे यह नहीं जानना चाहते है कि इस शहर में गरीब कितने है हालांकि वे गरीबी से ही बाहर आये है सम्पूर्ण सफ़ेद और सम्पूर्ण स्याह अपनी जगह तलाश रही है क्योंकि लोगो को श्वेत श्याम पर यकीन नही रहा और उनकी नज़रे टीकी है सिर्फ़ धूसर पर... 
हमसफ़र शब्द पर संध्या आर्य  
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ग़ज़ल 

हाथों में गुब्बारे थामे शादमां हो जाएँगे।  
खिलखिलाएँगे ये बच्चे तितलियाँ हो जाएँगे... 
Vandana Ramasingh  
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कैसे गले लगाओगे.... 

कैसे गले लगाओगे , इन पत्थरबाजी के सांपों को।  
वीर जवानों का जो खून बहा, खुश करते हैं अपने बापों को... 
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बड़प्पन की चादर उतार दीजिए ना 

लोग अंहकार की चादर ओढ़कर खुशियाँ ढूंढ रहे हैं, हमने भी कभी यही किया था लेकिन जैसे ही चादर को उठाकर फेंका, खुशियाँ झोली में आकर गिर पड़ीं। जैसे ही चादर भूले-भटके हमारे शरीर पर आ जाती है, खुशियाँ न जाने कहाँ चले जाती हैं! अहंकार भी किसका! बड़प्पन का। 
हम बड़े हैं तो हमें सम्मान मिलना ही चाहिये। 
smt. Ajit Gupta 
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तू पत्थर सी मूरत बन जा 

कली कभी तू मत घबराना,  
बन के सुमन तुझे है आना,  
कोई आंसू देख सके ना,  
तू पत्थर सी मूरत बन जा... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन  
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सोमवार, जुलाई 30, 2018

"झड़ी लगी बरसात की" (चर्चा अंक-3048)

सुधि पाठकों!
सावन के प्रथम सोमवार  की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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अब तो आजा पिया 

​ये धड़के मेरा, यह नाजुक जिया  
आया सावन यह आया , 
आया मस्ती भरा । 
ओ रे पिया ,आजा रे पिया... 
Hindi Kavita Manch पर  
ऋषभ शुक्ला  

निजाम का स्वर्ण दान ! 

अभी पिछले दिनों फिर एक बार 65 के युद्ध के बाद भारत सरकार को हैदराबाद के निजाम द्वारा स्वर्ण दिए जाने की बात चर्चा में रही थी। बात ठीक थी, समय पर देश को आर्थिक सहारा भी मिला था पर सारे घटनाक्रम पर एक सवाल भी अपना सर उठाता है कि अचानक भारत विरोधी, पाक परस्त, अत्यंत कजूंस माने जाने वाले निजाम में ऐसा बदलाव कैसे आ गया ? उसकी सोच कैसे बदल गयी ? कौन सी ऐसी परिस्थितियां थीं, कैसे हालात थे जो उसे देश की भलाई की याद आई ?
#हिन्दी_ब्लागिंगइतिहास के पन्ने पल्टे जाएं तो पता चलता है कि  जिस समय भारत में ब्रिटिश शासन ख़त्म हुआ, उस समय यहाँ के 562 रजवाड़ों में से सिर्फ़ तीन को छोड़कर सभी ने भारत में विलय का फ़ैसला कर लिया था। ये तीन रजवाड़े थे कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद। कश्मीर और जूनागढ़ देश की सीमाओं पर स्थित थे, उनकी सरहदें पहाड़ों और समुद्र तट को छूती थीं पर हैदराबाद, जो एक विशाल और सम्पन्न रियासत थी, चारों ओर से भारत से घिरा हुआ था। उसका स्वतंत्र रहना या पकिस्तान में मिलना, देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता था। पहले दो का तो कुछ जद्दोजहद के बाद भारत में विलय हो गया पर हैदराबाद मुसीबतें खड़ी करता रहा। उस समय हैदराबाद की आबादी का अस्सी फ़ीसदी हिंदू लोग थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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अविश्वास प्रस्ताव का शब्दकोशीय मतलब 

अविश्वास प्रस्ताव का शब्दकोशीय मतलब यह एक ऐसा कथन या वोट है जो किसी व्यक्ति ,व्यक्ति समूह के खिलाफ इस बिना पर लाया जाता है के वह अपने निर्धारित कर्तव्य कर्म को अंजाम नहीं दे रहा है/रहें हैं, के उसके फैसले समूह के शेष सदस्यों के अनुसार बेहद की नुकसानी पैदा कर रहे हैं। सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का गंभीर अर्थ होता है यह एक गंभीर मसला होता है जो खुलासा करता है के सरकार पूरी तरह नाकारा हो गई है उसके तमाम फैसले देश को नुक्सान पहुंचा रहे हैं... 
Virendra Kumar Sharma  
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दुनिया की नज़रों में...। 

दुनिया की नज़रों में ,शराफ़त का लबादा ओढ़ लेते हैं।  
बड़ी सफ़ाई से अपनी ,हक़ीक़त से मुंह मोड़ लेते हैं... 
kamlesh chander verma 
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आदत..  

श्यामल सुमन 

मेरी यही इबादत है।  
सच कहने की आदत है।।  
मुश्क़िल होता सच सहना तो।  
कहते इसे बग़ावत है... 
yashoda Agrawal  
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"पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

पूज्य पिता जी आपको श्रद्धापूर्वक नमन।
2014 में आज ही के दिन आप विदा हुए थे।
पूज्य पिता जी आपकावन्दन शत्-शत् बार।
बिना आपके हो गयाजीवन मुझ पर भार।।
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एक साल बीता नहींमाँ भी गयी सिधार।
बिना आपके हो रहादुखी बहुत परिवार।।
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बचपन मेरा खो गयाहुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।
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जब तक मेरे शीश पररहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष काछूट गया है साथ।।
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प्रभु मुझको बल दीजिएउठा सकूँ मैं भार।
एक-नेक बनकर रहेमेरा ये परिवार।।

रविवार, जुलाई 29, 2018

"चाँद पीले से लाल होना चाह रहा है" (चर्चा अंक-3047)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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आदमी  

(ग़ज़ल) 

आदमी यह आम है बस इसलिये नाकाम है  
कामना मिटती नहीं, कहने को निष्काम है... 
Smart Indian  
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ग़ज़ल- 

हौसलों को परखना बुरा तो नहीं  
टिमटिमाता दिया मैं बुझा तो नहीं  
बादलों में छुपा चंद्रमा तो नहीं... 
Vandana Ramasingh 
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जरूरत का फूल 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 
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580.  

गुमसुम प्रकृति  

(प्रकृति पर 10 सेदोका) 

1.   
अपनी व्यथा   
गुमसुम प्रकृति   
किससे वो कहती   
बेपरवाह   
कौन समझे दर्द   
सब स्वयं में व्यस्त... 
डॉ. जेन्नी शबनम  
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बातें हैं तो हम-तुम हैं 

बातें – बातें और बातें, बस यही है जिन्दगी। चुप तो एक दिन होना ही है। उस अन्तिम चुप के आने तक जो बातें हैं वे ही हमें जीवित रखती हैं। महिलाओं के बीच बैठ जाइए, जीवन की टंकार सुनायी देगी। टंकार क्यों? टंकार तलवारों के खड़कने से भी होती है और मन के टन्न बोलने से भी होती है। झगड़े में भी जीवन है और प्रेम में भी जीवन है। मैं जब महिलाओं के समूह को पढ़ती हूँ तो वहाँ मुझे जीवन की दस्तक सुनायी देती है, कहीं चुलबुली हँसी बिखर रही होती है तो कहीं शिकायत का दौर, लेकिन लगता है कि हम सब खुद को अभिव्यक्त कर रहे हैं। जहाँ अभिव्यक्ति नहीं वहाँ मानो जीवन ही नहीं है... 
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