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सोमवार, सितंबर 10, 2018

"हिमाकत में निजामत है" (चर्चा अंक- 3090)

सुधि पाठकों!
 सोमवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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" यही मेरी शिकायत है"  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

मेरी ही बात मेरा दिल कभी  मानता
गर तुम्हारी मान ले तो आओ
तुम्हें यह इजाजत है... 
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झूठ का जब धुआँ ये घना हो गया
सच  यहाँ बोलना अब मना हो गया... 

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 ज़िंदगी का तर्जुमा  
बुलबुल

रोज़ नही गाती

शजर की नरम छांव मे
वसन्त नही ठहरता

सदा के लिए... 
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डायनिंग टेबल पर फीड-बैक रजिस्टर 

मेरा मन कर रहा है कि मैं भी अपनी डायनिंग टेबल पर एक फीड-बैक रजिस्टर रख लूं। जब भी कोई मेहमान आए, झट मैं उसे आगे कर दूँ, कहूँ – फीड बैक प्लीज। दुनिया में सबसे बड़ी सेवा क्या है? किसी का पेट भरना ही ना! हम तो रोज भरते हैं अपनों का भी और कभी परायों का भी। इस बेशकामती सेवा के लिये कभी फीड-बैक मांगा ही नहीं, जबकि हर आदमी पैसा भी लेता है और फीड-बैक भी मांग लेता है। होटल में खाना खाने जाओ तो फीड-बैक, घर में कुछ भी काम कराओ तो फीड-बैक, होटल में रूक जाओ तो फीड-बैक! अब देखिये जैसे ही मेहमान आने की सूचना मिलती है, हम फटाफट शुरू हो जाते हैं... 
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नई उड़ान 

रश्मि प्रभा...  
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खमोशी :  

हलचल 

कितना खमोश है मेरा कुछ  
आस-पास कितनी बेख्वाब हैं सारी चीजें 
उदास दरवाज़े खुले हुए सुनते कुछ,  
बिना कहे बेवकूफ नज़रों से मुँह बाये देख रहे ... 
Dr.jagdish vyom  at  
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सखी री मैं उनकी दिवानी 

सखी री मैं तो उनकी दिवानी, 
नहीं आवै उन बिन चैन।  
मन तड़पत घायल पंछी सौ,  
विरह करै बेचैन....... 
सखी री.... 
Jayanti Prasad Sharma 
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61.  

समझ 

जैसे ही मैंने अपना कम्प्यूटर खोल पासवर्ड टाइप किया उसने अपना कम्प्यूटर बंद किया और ग़ैर ज़रूरी बातें करनी शुरू कर दी। मैंने कम्प्यूटर बंद कर दिया और उसकी बातें सुनने लगी कि उसने अपना कम्प्यूटर खोल कर कुछ लिखना शुरू कर दिया और बोलना बंद कर दिया। आधे घंटे बीत गए। मुझे लगा बातें ख़त्म हुईं। मैंने फिर कम्प्यूटर खोला और दूसरी पंक्ति लिखना शुरू ही किया कि उसने अपना कम्प्यूटर बंद कर दिया और इस तरह मुझे घूरने लगा मानो मैं कम्प्यूटर पर अपने ब्वायफ्रेंड से चाट कर रही होऊँ। मैंने धीरे से कहा कि किसी पत्रिका के लिए एक लेख भेजना है। वो ऐसे देखा मानो मुझ जैसे मंदबुद्धि को लिखना आएगा भला। उसने पूछा कि टॉपिक क्या है। मैंने बता दिया। उसने कहा ''ठीक है मैं लिख देता हूँ, तुम अपने नाम से भेज दो। यूँ ही कुछ भी लिखा नहीं जाता समझ हो तो ही लिखनी चाहिए।'' मैंने कहा कि जब आप ही लिखेंगे तो अपने नाम से भेज दीजिए। फिर मैंने कम्प्यूटर बंद कर दिया। रात्रि में मैंने लेख पूरा कर भेज दिया। लेख पत्रिका में प्रकाशित हुआ। मैंने पत्रिका छुपाकर अलमीरा में रख दी।  
डॉ. जेन्नी शबनम 
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तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे-- 

मीत कहूं ,मितवा कहूं ,  
क्या कहूं तुम्हे मनमीत मेरे ?  
नाम तुम्हारे हर शब्द मेरा  
तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे... 
क्षितिज पर Renu  
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5 टिप्‍पणियां:

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