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बुधवार, मई 01, 2019

"संस्कारों का गहना" (चर्चा अंक-3322)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

वो अब मुस्कुराने लगी 

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संस्कारों का पहन गहना 
बड़ी  शान  से चलने लगी 
समेटे होठों की मुस्कान
 गीत प्रीत के गाने लगी 

इंतज़ार में सिमटते दिन
 वही रात गुजरने लगी 
पहरेदार वह देश का 
यही सोच मंद - मंद  मुस्कुराने लगी... 
Anita saini   
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बांधो न उसको  

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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सुरों के सहारे -  

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 

दूर दूर तक 
सोयी पड़ी थीं पहाड़ियाँ 
अचानक टीले करवट बदलने लगे 
जैसे नींद में उठ चलने लगे।
एक अदृश्य विराट हाथ बादलों-सा बढ़ा 
पत्थरों को निचोड़ने लगा
निर्झर फूट पड़े 
फिर घूम कर सबकुछ  
रेगिस्तान में बदल गया... 
रवीन्द्र भारद्वाज  
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रफूगिरी 

सारी ज़िंदगी
मरम्मत करती रही हूँ
फटे कपड़ों की
कभी बखिया करके
तो कभी पैबंद लगा के
कभी तुरप के
तो कभी छेदों को रफू करके... 
Sudhinama पर 
Sadhana Vaid 
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ईंट प्यार की तब घर बनता 

जो करना है झटपट करना  
मगर नहीं कुछ अटपट करना  
ईंट प्यार की तब घर बनता... 
श्यामल सुमन 
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घृणा 

घृणा से उपजी  
ऊर्जा से पिघला कर  
इस्पात बनती हैं तलवारें,  
बंदूकें बम्ब और बारूदें... 
अरुण चन्द्र रॉय  
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10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर लिंक्स का बेहतरीन समायोजन।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर परिपाटी की अद्भुत मिशाल है चर्चामंच बहुत समय बाद इस ब्लॉग पर आ रहा हूँ। लेख और कलम को एक कटिबधन मे रख कर चलने वाला बेहतरीन ब्लॉग है चर्चामंच। बहुत से ब्लॉगों को पहिचान दिलाते हुये यह ब्लॉग निरंतर आगे बढ़ रहा है। ब्लॉग के संरक्षकों को कोटि कोटि नमन।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहतरीन चर्चा प्रस्तुति 👌
    मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!खूबसूरत प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा प्रस्तुति |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  6. इतने सुंदर मंच पर पथिक को स्थान देने के लिये ध्यान शास्त्री सर जी।
    विलंब से उपस्थित के लिये क्षमा चाहता हूँ।
    प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे!

    जवाब देंहटाएं

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