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शनिवार, जुलाई 20, 2019

"गोरी का शृंगार" (चर्चा अंक- 3402)

स्नेहिल  अभिवादन  
शनिवारीय चर्चा में आप का हार्दिक स्वागत है| 
देखिये मेरी पसन्द की कुछ रचनाओं के लिंक | 
 - अनीता सैनी 
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दोहे 

"गोरी का शृंगार" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

 उच्चारण 

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चंदन का झूला.... 

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उलूक टाइम्स 
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कालजयी कवि!!! 

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एक ग़ज़ल बना दूं 

मन की वीणा - कुसुम कोठारी। 
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क्या छोडूं और क्या बांधू 

 "पलाश" 
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एहसास है मुझे 

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6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    आभार सखी..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की खूबसूरत प्रस्तुति में 'उलूक' को भी जगह देने के लिये आभार अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर चर्चा।
    आभार आपका अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंंदर प्रस्तुति है अनु..विविधापूर्ण रचनाओं का बढ़िया संकलन है मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभार, सस्नेह शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  5. सतरंगी छटाओं की आभा बिखेरता मनमोहक संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर चर्चा प्रस्तुति मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनिता जी

    जवाब देंहटाएं

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