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गुरुवार, जुलाई 25, 2019

"उम्मीद मत करना" (चर्चा अंक- 3407)

गुरुवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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चाँद के पार 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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अमरबेल  

SHANTANU SANYAL 
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नदी का ख्वाब 

हमारे यहां तो आस्था, प्रेम, विश्वास की पराकाष्ठा रही है ! प्रेम इतना कि हर जीव-जंतु से अपनत्व बना लिया ! आदर इतना कि पत्थर को भी पूजनीय बना दिया ! ममता इतनी कि नदियों को माँ मान लिया ! जल, वायु, ऋतुओं यहां तक कि राग-रागिनियों तक को एक इंसानी रूप दे दिया गया ! शायद इसलिए कि एक आम आदमी को भी सहूलियत रहे, समझने में, ध्यान लगाने और मन को एकाग्र करने में... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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हुआ यूँ कि 

 मेरी उँगलियाँ मोबाइल के की पैड पे तेज़ी से चल रहीं हैं और लिख रहीं थी एक प्रेम कविता, तुम्हारे नाम की तभी, कमरे मे चुपके चुपके से तुम आ के अपनी हथेलियों से बंद कर लेती हो मेरे आँखे मै तुम्हें तुम्हारी खुश्बू और नाज़ुक स्पर्श से पहचान लेता हूँ... 
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इश्क़ 

जब कविता शायरी से मिलती है  
तो होता है इश्क़  
जब साहिर अमृता से मिलते हैं  
तो होता है इश्क़... 
प्यार पर Rewa Tibrewal 
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मैं शोक में हूँ 

इस कायनात में हर पल  
कितने ही लोग मरते हैं  
जो मरते हैं होते हैं किसी के पिता  
होते हैं किसी की मां होते हैं  
किसी के भाई/बहिन  
किसी का बेटा भी हो सकता है... 
सरोकार पर अरुण चन्द्र रॉय  
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5 टिप्‍पणियां:

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