tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post5663424369400028274..comments2024-03-27T10:08:49.186+05:30Comments on चर्चामंच: आज न कोई चर्चा, न कोई लिंक – कुछ बातें, बस!अमर भारती शास्त्रीhttp://www.blogger.com/profile/10791859282057681154noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-10751803991093758022010-10-11T14:06:22.786+05:302010-10-11T14:06:22.786+05:30मनोज जी ! आपकी भावनाये समझ सकते हैं हम जहाँ कोई मे...मनोज जी ! आपकी भावनाये समझ सकते हैं हम जहाँ कोई मेहनत करता है तो व्यर्थ की आलोचना उसे आहत करती ही है .पर बात फिर भी वही कि "कुछ तो लोग कहेंगे "<br />जहाँ तक आपके सुझाव की बात है व्यक्तिगत रूप से मुझे वो व्यावहारिक नहीं लगता ऐसे तो आपके पास अनगिनत लिंक्स आ जायेंगे .कितने लिंक्स ले पाएंगे आप और जिसका नहीं लिया वो अगली बार से भेजना बंद कर देगा :)इस तरह अच्छी पोस्ट भी रह जाएँगी ,इस बाबत संगीता जी के सुझावों से काफी हद तक सहमत हूँ मैं.<br /> लेकिन मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि चर्चा हमेशा ही चर्चाकार की अपनी पसंद होनी चाहिए .जिस तरह हम अपने ब्लॉग पर अपने पसंद की सामग्री डालते हैं ,एक चर्चाकार को भी हक है कि वो अपने पसंद के ब्लोग्स या पोस्ट की चर्चा करे.इस मामले में किसी का भी कोई भी ऑब्जेक्शन मायने नहीं रखता.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-1753021051903502142010-10-11T11:47:43.256+05:302010-10-11T11:47:43.256+05:30चर्चा ही समिक्षा हो गई!!
असंतोष पर हुई यह चर्चा भ...चर्चा ही समिक्षा हो गई!!<br /><br />असंतोष पर हुई यह चर्चा भी ब्लोग-जगत के लिये उपयोगी रहेगी।<br /><br />मंथन से ही मक्खन सम्भव है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-44014876945046118042010-10-11T11:15:26.722+05:302010-10-11T11:15:26.722+05:30.
" कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना ....<br /><br />" कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना .. "<br /><br />मनोज जी,<br /> <br />" Always listen to your heart . "<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-69846780436357689062010-10-11T09:34:56.225+05:302010-10-11T09:34:56.225+05:30जब भी कोई अच्छा कार्य करता है तब-तब विरोध भी होता ...जब भी कोई अच्छा कार्य करता है तब-तब विरोध भी होता ही है, मेरे विचार से सभी ब्लॉग चर्चा करने वालों को अपने हिसाब से चर्चा करने का पूरा हक है और सभी ब्लॉग वार्ताकार अच्छा काम कर रहें हैं. <br />अजी जिन्हें कुछ गलत लगता है, उन्हें लगता रहने दीजिये..... आप तो बस लगे रहो.... <br /><br />मेरी ओर से ढेरों शुभकामनाएँ!Shah Nawazhttps://www.blogger.com/profile/01132035956789850464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-41188704974592582022010-10-11T07:32:43.247+05:302010-10-11T07:32:43.247+05:30(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतु...(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?<br /><b>चर्चाकार वही लिंक तो पेश करेगा जो वो खुद अपनी पसंद से पढ़ता आया है. किसी बाहरी दुनिया से तो लाएगा नहीं. यदि लिंक से कोई संतुष्ट नहीं होता है, तो वो किसी और चर्चामंच, ब्लॉग-चर्चा इत्यादि इत्यादि की ओर रूख करे अथवा स्वयं का चर्चा-मंच धूम धड़ाके से शुरू करे. मैंने पहले भी कहा है कि ऐसे सैकड़ों आयोजन होने चाहिएँ.</b><br />(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?<br /><b>लिंक कहीं से भी ली जा सकती है और चर्चा में लिंक टिकाने में अथवा लिंक सहित चार-छः लाइनें संदर्भ में देने से किसी तरह के कॉपीराइट का कोई उल्लंघन नहीं होता. परंतु अकसर होता यही है कि जिन चिट्ठों को चिट्ठाकार ज्यादा पढ़ता है उसके लिंक रिपीट हो ही जाते हैं. लोगों को तब यहाँ गड़बड़ी नजर आती है. मगर ये बात भी तय है कि अंततः अच्छी पोस्टें निगाहें खींच ही लेती हैं.</b><br />(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए। <br /><b>1 लेंगे तो लोग बोलेंगे कि ये तो कम है. 100 लेंगे तो बोलेंगे कि ये तो बहुत है. 50 लेंगे तो आधे बोलेंगे कि थोड़ा कम रहता तो अच्छा होता. आधे बोलेंगे कि थोड़ा ज्यादा रहता तो अच्छा होता :)</b>रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-54718348423771360262010-10-11T07:32:27.719+05:302010-10-11T07:32:27.719+05:30यहाँ बहुत कम ब्लॉग हैं जो किसी मोटिव के लिए बने है...यहाँ बहुत कम ब्लॉग हैं जो किसी मोटिव के लिए बने हैं<br />मोटिव साफ़ सुथरा है तो परेशानी क्या हैएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-12776881995926491082010-10-11T07:30:58.583+05:302010-10-11T07:30:58.583+05:30(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थ...(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?<br /><b>क्यों नहीं? ऐसे तो दर्जनों, सैकड़ों होने चाहिएँ. रहा सवाल असंतुष्टों का, तो रूपचंद शास्त्री जी का कहना -मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है - यहाँ एकदम फिट बैठता है.</b><br />(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?<br /><b>आप नीला रंग रखेंगे तो लाल रंग प्रेमी दुखी होंगे. आप लाल रंग ओढ़ेंगे तो हरे रंग वाले जलेंगे. स्वरूप स्वयं तय करें जिसमें सुविधा हो. चर्चाकार को, पाठक को.</b><br />(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?<br /><b>यहाँ पर रूपचंद शास्त्री जी का कहा फिर डालना चाहूंगा - मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है.</b><br />(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?<br /><b>आप रामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो श्यामलाल को दुख पहुँचेगा और वो आपको रामलाल के गैंग का आदमी घोषित करेगा. इसके विपरीत यदि आप श्यामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो रामलाल के संगी साथी आपके पीठे लट्ठ लेकर पड़ेंगे कि यहाँ तो ढेर गुटबाजी हो रही है. इसलिए इन बातों पर ध्यान न दें.</b><br />बाकी अगले कमेंट में जारी...रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-30756725452130643562010-10-11T07:28:23.833+05:302010-10-11T07:28:23.833+05:30(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थ...(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?<br /><b>क्यों नहीं? ऐसे तो दर्जनों, सैकड़ों होने चाहिएँ. रहा सवाल असंतुष्टों का, तो रूपचंद शास्त्री जी का कहना -मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है - यहाँ एकदम फिट बैठता है.</b><br />(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?<br /><b>आप नीला रंग रखेंगे तो लाल रंग प्रेमी दुखी होंगे. आप लाल रंग ओढ़ेंगे तो हरे रंग वाले जलेंगे. स्वरूप स्वयं तय करें जिसमें सुविधा हो. चर्चाकार को, पाठक को.</b><br />(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?<br /><b>यहाँ पर रूपचंद शास्त्री जी का कहा फिर डालना चाहूंगा - मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है.</b><br />(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?<br /><b>आप रामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो श्यामलाल को दुख पहुँचेगा और वो आपको रामलाल के गैंग का आदमी घोषित करेगा. इसके विपरीत यदि आप श्यामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो रामलाल के संगी साथी आपके पीठे लट्ठ लेकर पड़ेंगे कि यहाँ तो ढेर गुटबाजी हो रही है. इसलिए इन बातों पर ध्यान न दें.</b><br />(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?<br /><b>चर्चाकार वही लिंक तो पेश करेगा जो वो खुद अपनी पसंद से पढ़ता आया है. किसी बाहरी दुनिया से तो लाएगा नहीं. यदि लिंक से कोई संतुष्ट नहीं होता है, तो वो किसी और चर्चामंच, ब्लॉग-चर्चा इत्यादि इत्यादि की ओर रूख करे अथवा स्वयं का चर्चा-मंच धूम धड़ाके से शुरू करे. मैंने पहले भी कहा है कि ऐसे सैकड़ों आयोजन होने चाहिएँ.</b><br />(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?<br /><b>लिंक कहीं से भी ली जा सकती है और चर्चा में लिंक टिकाने में अथवा लिंक सहित चार-छः लाइनें संदर्भ में देने से किसी तरह के कॉपीराइट का कोई उल्लंघन नहीं होता. परंतु अकसर होता यही है कि जिन चिट्ठों को चिट्ठाकार ज्यादा पढ़ता है उसके लिंक रिपीट हो ही जाते हैं. लोगों को तब यहाँ गड़बड़ी नजर आती है. मगर ये बात भी तय है कि अंततः अच्छी पोस्टें निगाहें खींच ही लेती हैं.</b><br />(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए। <br /><b>1 लेंगे तो लोग बोलेंगे कि ये तो कम है. 100 लेंगे तो बोलेंगे कि ये तो बहुत है. 50 लेंगे तो आधे बोलेंगे कि थोड़ा कम रहता तो अच्छा होता. आधे बोलेंगे कि थोड़ा ज्यादा रहता तो अच्छा होता :)</b>रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-58961628671886880232010-10-11T07:11:43.858+05:302010-10-11T07:11:43.858+05:30आप नि:शुल्क ,नि:स्वार्थ भाव से एक चर्चा कर रहे हैं...आप नि:शुल्क ,नि:स्वार्थ भाव से एक चर्चा कर रहे हैं । हम इसके लिये शुक्रगुजार हैं । आपत्ति करने वालों से निवेदन है कि वे भी एक चर्चा करें ,सार्थक चर्चा का स्वागत है ।रही बात चर्चा के स्वरूप और सम्मिलित किये जाने वाले लिंक की तो इसका सर्वाधिकार चर्चाकार के पास ही होना चाहिये ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-26949066046700853752010-10-11T06:00:58.572+05:302010-10-11T06:00:58.572+05:30काफी अच्छे विचार आये हैं अब आप एक कार्य नीति बना स...काफी अच्छे विचार आये हैं अब आप एक कार्य नीति बना सकते हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-3142501830408350862010-10-11T01:16:35.472+05:302010-10-11T01:16:35.472+05:30चलिए पंचों का निर्णय सर माथे....चलिए पंचों का निर्णय सर माथे....Pt. D.K. Sharma "Vatsa"https://www.blogger.com/profile/05459197901771493896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-19967370731072046422010-10-10T23:42:06.090+05:302010-10-10T23:42:06.090+05:30आप तो बस लगे रहिये ।आप तो बस लगे रहिये ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-65031824671255161912010-10-10T23:05:03.131+05:302010-10-10T23:05:03.131+05:30आप सबों का आभार।
यह मुद्दा बहुत दिनों से साल रहा थ...आप सबों का आभार।<br />यह मुद्दा बहुत दिनों से साल रहा था। सोचता था कब इसे सार्वजनिक करूं। आज आपलोगों ने मेरी आधी से अधिक अधिक दुविधा दूर कर दी।<br />एक तो मुझे ये बड़ा अटपटा लगता था कि लोग यह कहते थे आप मुझसे पूछे बगैर चर्चा में शामिल नहीं कर सकते। कहीं तो ये भी पढा था कि कॉपी राइट उल्लंघन का मामला बनता है, कोर्ट में घसीट दिया जाएगा।<br />तब तो मैं बहुत डर गया था। हालाकि वो चर्चा मेरी नहीं थी, पर कोर्ट कचहरी के नाम पर डर तो लगता ही है।<br />फिर और भी बातें थीं। उन पर कभी और विस्तार में चर्चा करेंगे।<br />इस मंच के और साथियो के बारे में मैं नहीं जानता, कुछ ने तो यहां आकर अपनी राय दे दी है।<br />पर मैं इस बात से एक बार फिर डर गया हूं कि अगर बगैर पूछे कोई चर्चा कर दी और किसी को नहीं भाई तो हम तो गये काम से। तो मेरा निर्णय तो यही बनता है कि <br />१. जो मित्र आज यहां आकर अपनी सहमति और इस मंच की सर्थकता, और हमारे चर्चा करने के स्वरूप में विश्वास जताया है उन्हें प्राथमिकता दूंगा (आखिर अब वो मेरे गुट के हो गए हैं)।<br />२.इसके अलावा अगर कोई मित्र मेरे ई-मेल आई.डी. (जो इस पोस्ट में लिखा है, रिडिफ़ वाला) पर लिंक भेजेंगे तो उनकी पोस्ट को भी लूंगा चर्चा में।<br />३. सब से पूछने तो जा नहीं पाऊंगा सब ब्लोग पर ... तो मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि बांक़ी जो नहीं आए कोई टिप्पणी देने, उनके बारे में यह मान कर चलूंगा कि वे हमसे खफ़ा हैं और नहीं चाहते कि उनकी पोस्ट की कोई चर्चा हो।<br /><br />इसके अलावे मैं यह तो फिर भी मानता ही हूं कि कोई आचार संहिता तो बननी ही चाहिए। कहीं कोई सीमा रेखा तो होनी ही चाहिए। <br /><br />मैंने अपने लिए खींच ली है। अब और हवन करके अपने हाथ नहीं जला पाऊंगा।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-41613979600589048532010-10-10T23:01:15.754+05:302010-10-10T23:01:15.754+05:30आप सबों का आभार।
यह मुद्दा बहुत दिनों से साल रहा थ...आप सबों का आभार।<br />यह मुद्दा बहुत दिनों से साल रहा था। सोचता था कब इसे सार्वजनिक करूं। आज आपलोगों ने मेरी आधी से अधिक अधिक दुविधा दूर कर दी।<br />एक तो मुझे ये बड़ा अटपटा लगता था कि लोग यह कहते थे आप मुझसे पूछे बगैर चर्चा में शामिल नहीं कर सकते। कहीं तो ये भी पढा था कि कॉपी राइट उल्लंघन का मामला बनता है, कोर्ट में घसीट दिया जाएगा।<br />तब तो मैं बहुत डर गया था। हालाकि वो चर्चा मेरी नहीं थी, पर कोर्ट कचहरी के नाम पर डर तो लगता ही है।<br />फिर और भी बातें थीं। उन पर कभी और विस्तार में चर्चा करेंगे।<br />इस मंच के और साथियो के बारे में मैं नहीं जानता, कुछ ने तो यहां आकर अपनी राय दे दी है।<br />पर मैं इस बात से एक बार फिर डर गया हूं कि अगर बगैर पूछे कोई चर्चा कर दी और किसी को नहीं भाई तो हम तो गये काम से। तो मेरा निर्णय तो यही बनता है कि <br />१. जो मित्र आज यहां आकर अपनी सहमति और इस मंच की सर्थकता, और हमारे चर्चा करने के स्वरूप में विश्वास जताया है उन्हें प्राथमिकता दूंगा (आखिर अब वो मेरे गुट के हो गए हैं)।<br />२.इसके अलावा अगर लोई मित्र मेरे ई-मेल आई.डी. (जो इस पोस्ट में लिखा है, रिडिफ़ वाला) पर लिंक भेजेंगे तो उनकी पोस्ट को भी लूंगा चर्चा में।<br />३. सब से पूछने तो जा नहीं पाऊंगा सब ब्लोग पर ... तो मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि बांक़ी जो नहीं आए कोई टिप्पणी देने, उनके बारे में यह मान कर चलूंगा कि वे हमसे खफ़ा हैं और नहीं चाहते कि उनकी पोस्ट की कोई चर्चा हो।<br /><br />इसके अलावे मैं यह तो फिर भी मानता ही हूं कि कोई आचार संहिता तो बननी ही चाहिए। कहीं कोई सीमा रेखा तो होनी ही चाहिए। <br /><br />मैंने अपने लिए खींच ली है। अब और हवन करके अपने हाथ नहीं जला पाऊंगा।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-34838908591131034622010-10-10T22:41:09.932+05:302010-10-10T22:41:09.932+05:30इस मंच की सर्थकता तो है इतने लिंक यहां एकसाथ मिल ...इस मंच की सर्थकता तो है इतने लिंक यहां एकसाथ मिल जाते है जिन्हे हम पूरे दिन ढूढे तो भी आसानी से न मिलें. स्वरूप चर्चाकार ही तय करें. रही बात पक्षपातपूर्ण रवैया की तो अगर पोस्ट लगाने से खुश होने वाली बात है तो हर पोस्ट को स्थान देकर सबको खुश तो नहीं किया जा सकता . हर सभी की सोंच अलग अलग होती है कुछ ना कुछ तो लोग कहेंगें बस आप लो चर्चा जारी रखे रहे.उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-85922685857072708582010-10-10T21:54:21.987+05:302010-10-10T21:54:21.987+05:30आप्के प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता हूँ.....आप्के प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता हूँ... वैसे एक उत्तर जो तत्काल सूझ रहा है,वह है <br />कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना..<br />वो दो बेटे और बाप के घोड़े वाली कहानी याद ही होगी!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-28564735222125041172010-10-10T20:22:39.126+05:302010-10-10T20:22:39.126+05:30मनोज जी हिंदी ब्लॉग्गिंग अभी भी अपने शैशावा अवस्था...मनोज जी हिंदी ब्लॉग्गिंग अभी भी अपने शैशावा अवस्था में है.. सो इस तरह के सवाल आरोप उठते रहेंगे.. जो लोग गंभीर साहित्य से परिचित हैं उन्होंने दो प्रतिष्टित पत्रिका(नाम नहीं लेना चाहंगा) के बीच दशको तक आरोप प्रत्यारोप देखा और पढ़ा है.. जब दुनिया ही खेमे में बटी है.. कोई खेमेबाजी से अलग कैसे रह सकता है.. यदि खेमे नहीं बने होते.. गाँव, शहर, देश नहीं बना होता. सो यह प्राकृतिक है.. इसमें गंभीर होने वाली कोई बात नहीं है.. आप आपके सवालों का जवाब अपनी संक्षिप्त ब्लॉग्गिंग अनुभव के आधार पर: <br />(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है? <br />मुझे कुछ पाठक इसी तरह के मंच से मिले हैं.. सो कुछ ना कुछ लाभ तो ब्लोगेर को मिल ही रहा है ऐसे मंचो से.. ब्लॉगर को पाठक और पाठक को ब्लॉगर दे रहा है मंच. इसलिए सार्थकता है. <br />(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो? <br />यह चर्चाकार पर छोड़ दीजिये. वैसे हिंदी में अभी भी बहुत गंभीर लेखन नहीं हो रहा है.. विविध विषयों, जैसे पर्यावरण, चिकित्सा, विज्ञान अदि पर कम ही लिखा जा रहा है.. सो चाहिए की साहित्य के इतर के विषयों के ब्लॉग को शामिल करें.. ताकि केवल लेखक/कवि ही ना पढ़ें इसे. <br />(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं? <br />जहाँ तक मेरा निजी अनुभव है मुझे कोइ २०-२५ लिंक एक जगह मिल्जाते हैं और मैं संतुष्ट हो जाता हूँ. <br />(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं? <br />चर्चाकार की अपनी सीमा है. यह कोई प्रोफेसनल चर्चा तो हैं नहीं जो कोई फुल टाइम देगा. ऐसे में चर्चाकार के पास भी समय और संसाधन की कमी है.. इसे नजर में रखना होगा. ऐसे में चर्चाकार जहाँ तक जिन ब्लोगों तक पहुँच पायेगा.. उन्ही ही शामिल कर पायेगा ना.. सो यह आरोप यदि है भी तो व्यावहारिक दिक्कतों को देखते हुए बहुत गंभीर नहीं है.. क्योंकि मैं मानता हूँ की मैं किसी गुट में नहीं हूँ..मैं किसी को नहीं जानता... लेकिन मेरी पोस्ट शामिल की गई है.. कई मौके पर.. <br />(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं? <br />प्रशन ४ के उत्तर में इसका उत्तर भी है.. यदि किसी को लगता है तो उसे टिप्पणी कालम में उसी दिन कह देना चाहिए और नए लिनक्स भी दे देना चाहिए ताकि अगली बार उन्हें शामिल किया जा सके.. यह सकारात्मक योगदान होगा चर्चा और हिंदी ब्लॉग्गिंग दोनों के लिए.. <br />(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए? <br />अपने संसाधन से .. अग्रीगेटर से.. <br />(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए। <br />१०-१५ से अधिक पोस्ट नहीं पढी जाती.. सो मंच की रोचकता को देकते हुए.. संक्षिप्त रखना ठीक रहेगा.. क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से एअक पाठक अधिक से अधिक आधे घंटे में १०-१५ पेज से अधिक नहीं पढ़ सकता .. ऐसे में हमे पाठक का आधा घंटा से अधिक समय नहीं लेना चाहिए.. <br /><br />मनोज जी मंच सार्थक है.. इसे बनाये रखें .अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-70546346411754128472010-10-10T20:22:18.675+05:302010-10-10T20:22:18.675+05:30मनोज जी हिंदी ब्लॉग्गिंग अभी भी अपने शैशावा अवस्था...मनोज जी हिंदी ब्लॉग्गिंग अभी भी अपने शैशावा अवस्था में है.. सो इस तरह के सवाल आरोप उठते रहेंगे.. जो लोग गंभीर साहित्य से परिचित हैं उन्होंने दो प्रतिष्टित पत्रिका(नाम नहीं लेना चाहंगा) के बीच दशको तक आरोप प्रत्यारोप देखा और पढ़ा है.. जब दुनिया ही खेमे में बटी है.. कोई खेमेबाजी से अलग कैसे रह सकता है.. यदि खेमे नहीं बने होते.. गाँव, शहर, देश नहीं बना होता. सो यह प्राकृतिक है.. इसमें गंभीर होने वाली कोई बात नहीं है.. आप आपके सवालों का जवाब अपनी संक्षिप्त ब्लॉग्गिंग अनुभव के आधार पर: <br />(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है? <br />मुझे कुछ पाठक इसी तरह के मंच से मिले हैं.. सो कुछ ना कुछ लाभ तो ब्लोगेर को मिल ही रहा है ऐसे मंचो से.. ब्लॉगर को पाठक और पाठक को ब्लॉगर दे रहा है मंच. इसलिए सार्थकता है. <br />(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो? <br />यह चर्चाकार पर छोड़ दीजिये. वैसे हिंदी में अभी भी बहुत गंभीर लेखन नहीं हो रहा है.. विविध विषयों, जैसे पर्यावरण, चिकित्सा, विज्ञान अदि पर कम ही लिखा जा रहा है.. सो चाहिए की साहित्य के इतर के विषयों के ब्लॉग को शामिल करें.. ताकि केवल लेखक/कवि ही ना पढ़ें इसे. <br />(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं? <br />जहाँ तक मेरा निजी अनुभव है मुझे कोइ २०-२५ लिंक एक जगह मिल्जाते हैं और मैं संतुष्ट हो जाता हूँ. <br />(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं? <br />चर्चाकार की अपनी सीमा है. यह कोई प्रोफेसनल चर्चा तो हैं नहीं जो कोई फुल टाइम देगा. ऐसे में चर्चाकार के पास भी समय और संसाधन की कमी है.. इसे नजर में रखना होगा. ऐसे में चर्चाकार जहाँ तक जिन ब्लोगों तक पहुँच पायेगा.. उन्ही ही शामिल कर पायेगा ना.. सो यह आरोप यदि है भी तो व्यावहारिक दिक्कतों को देखते हुए बहुत गंभीर नहीं है.. क्योंकि मैं मानता हूँ की मैं किसी गुट में नहीं हूँ..मैं किसी को नहीं जानता... लेकिन मेरी पोस्ट शामिल की गई है.. कई मौके पर.. <br />(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं? <br />प्रशन ४ के उत्तर में इसका उत्तर भी है.. यदि किसी को लगता है तो उसे टिप्पणी कालम में उसी दिन कह देना चाहिए और नए लिनक्स भी दे देना चाहिए ताकि अगली बार उन्हें शामिल किया जा सके.. यह सकारात्मक योगदान होगा चर्चा और हिंदी ब्लॉग्गिंग दोनों के लिए.. <br />(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए? <br />अपने संसाधन से .. अग्रीगेटर से.. <br />(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए। <br />१०-१५ से अधिक पोस्ट नहीं पढी जाती.. सो मंच की रोचकता को देकते हुए.. संक्षिप्त रखना ठीक रहेगा.. क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से एअक पाठक अधिक से अधिक आधे घंटे में १०-१५ पेज से अधिक नहीं पढ़ सकता .. ऐसे में हमे पाठक का आधा घंटा से अधिक समय नहीं लेना चाहिए.. <br /><br />मनोज जी मंच सार्थक है.. इसे बनाये रखें .अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-52604009700715944732010-10-10T19:16:06.980+05:302010-10-10T19:16:06.980+05:30मनोज जी, आज आपने वह सवाल पूछ लिया है जो मेरे मन मे...मनोज जी, आज आपने वह सवाल पूछ लिया है जो मेरे मन में कई दिनों से उठ रहा था। मैंने बहुत तो नहीं हां दो-तीन बार चर्चामंच देखा है। मुझे लगता है कि चर्चामंच का स्वरूप आपको बदलना चाहिए। अभी जहां तक मैं समझ पाया हूं कि केवल किसी भी पोस्ट का एक परिचय मात्र होता है। वह पोस्ट चर्चामंच पर क्यों ली गई है और उसकी क्या विशेषताएं हैं इनकी चर्चा कम ही होती है। इसी से यह भ्रम पैदा होता है कि केवल अपनी पसंद की पोस्टों की चर्चा हो रही है। उससे पाठक को कुछ मिलता नहीं है। मुझे भी लगता है कि आप लोगों को इसके स्वरूप के बारे में कुछ सोचना चाहिए।<br />एक और बात चर्चाकारों की संख्या भी बढ़ानी चाहिए। ताकि उन पर से बोझ कम हो और नई दृष्टि भी आए। हर हफ्ते की बजाय महीने मे एक या दो बार ही बारी आए तो बेहतर है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-44021221662019510562010-10-10T18:57:05.836+05:302010-10-10T18:57:05.836+05:30अभी तक जो प्रारूप है चर्चा मंच का, ब्लॉग जगत ने उस...अभी तक जो प्रारूप है चर्चा मंच का, ब्लॉग जगत ने उसे स्वीकारा है, हाँ ऐसे मंचों में, छिट-पुट विरोध तो होते ही रहते हैं...और एक तरह से देखा जाए...विरोध भी लोकप्रियता की निशानी है....आप स्वयं प्रबुद्ध हैं और ये भी जानते ही हैं, कोई भी सबको ख़ुश नहीं रख सकता...<br /><br /><br />आपलोगों का प्रयास सराहनीय है....हमलोग सब बहुत ख़ुश हैं..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-74593101166244613952010-10-10T16:21:39.809+05:302010-10-10T16:21:39.809+05:30चर्चा में चर्चा!
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चर्चा नं.-302
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ओह!
यह तो बह...चर्चा में चर्चा!<br />--<br />चर्चा नं.-302<br />--<br />ओह! <br />यह तो बहुत ही संगीन धारा है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-27393888060459419852010-10-10T16:05:57.636+05:302010-10-10T16:05:57.636+05:30अच्छी पोस्ट पर अच्छा विमर्श हुआ है। मेरे ख़्याल से ...अच्छी पोस्ट पर अच्छा विमर्श हुआ है। मेरे ख़्याल से ऐसे जितने भी मंच होंगे सबके अपने-अपने पूर्वाग्रह और अपनी-अपनी पसंद ज़रुर होगी। फिर भी इससे बचा जा सके तो चर्चा में और निखार आ सकता है और नए लोग भी ज़्यादा मात्रा में जुड़ने लगेंगे। इस दृष्टि से मुझे यहां दीपक मशाल का प्रस्तुतिकरण बेहतर लगता है (हांलांकि उन्होंने कभी मेरी पोस्ट नहीं शामिल की फिर भी :)। चर्चाकारों की मेहनत तो काफ़ी बढ़ जाएगी फ़िर भी थोड़े-बहुत फेर-बदल के साथ संगीता स्वरुप जी का फॉर्मूला अपनाया जा सकता है।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-14239071696123548482010-10-10T15:37:20.455+05:302010-10-10T15:37:20.455+05:30हर किसी का अपना अपना निजी विचार कुछ भी हो सकता है ...हर किसी का अपना अपना निजी विचार कुछ भी हो सकता है .... मेरा तो मानना है जो आपको उचित लगे वो करते जाएँ ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-69869065633025077912010-10-10T15:17:48.576+05:302010-10-10T15:17:48.576+05:30(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतु...(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?<br /><br /><b> उत्तर - ई तो चर्चा कार की मर्जी पर है कि उ हमरा लिंक देता है या नाही? जिसका लिंक नाही दोगे ऊ त नाराज होबे ही करेगा ना?</b><br /><br />(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?<br /><br /><b>उत्तर - हमरी समझ से जहां आफ़बीट मसाला मिले ऊंहा से लेना चाहिये।</b><br /><br />(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।<br /><br /><b>उत्तर - कम से कम इतने लिंक त अवश्य होने चाहिये जिसमे अपने अपने वालों के लिंक आजाये भले ही उन्होने पोस्ट ना लिखी हो। किसी भी बहाने उनका जिक्र हो जाये कि आज हमरे चमचवा की तबियत हराब है या आज बाहर गये हैं या आज जुकाम हुई गवा या आज उनके बिलारी कुता को छींक आगई इत्यादि इत्यादि...अधिकतम की कोई सीमा नाही है।</b><br /><br />प्रश्न और भी हो सकते हैं। फिलहाल मुझे इतना ही सूझ रहा। अगर आप कोई और सुझा सकते हों तो बताइए।<br /><br /><b>उत्तर - इस सवाल का जवाब हम इंहा नाही दे सकत हैं, इसका लिये आपको हमरे नखलेऊ आकर हमसे मुलाकात करनी पडेगी।</b>अम्मा जीhttps://www.blogger.com/profile/03059703402344341811noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-9460353146901131542010-10-10T15:16:44.983+05:302010-10-10T15:16:44.983+05:30मेरे कुछ प्रश्न हैं, जिसका उत्तर मुझे नहीं मिल रहा...मेरे कुछ प्रश्न हैं, जिसका उत्तर मुझे नहीं मिल रहा। आप मदद करें तो एक बेहतर और प्रभावशाली चर्चा प्रस्तुत की जा सके।<br /><br />(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?<br /><br /><b>उत्तर - इस तरह का स्वयम भू प्रथम मंच शुकुल अपने आपको कहता है अऊर इस तरह के दुसरे मंचों ने उसकी चिठ्ठा चर्चा की धुंआ निकाल दी जिसकी पीडा शुकुल को अभी तक है, लिहाजा हम उम्मीद करेंगी कि इसका जवाब भी उसी से मांगा जाये।</b><br /><br />(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?<br /><br /><b> उत्तर - स्वरूप शुकुल चर्चा जैसा तो कतई नाही होना चाहिये कि दूसरों की इज्जत खराब करो, उंहा पर सिवाय लोगों का अपमान के अलावा और क्या हुआ? हमरी समझ से आपका वर्तमान स्वरूप सही है।</b><br /><br />(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?<br /><br /><b>उत्तर - हमरी चर्चा आपने कबःई नाही की अऊर ना ही हमें कबहुं नमस्ते की त हम कैसे संतुष्ट हुई सकत हैं?</b><br /> <br />(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?<br /><br /><b> उत्तर - आपका हमको नाही मालूम पर शुकुल चर्चा में यही सब होत है। उंहा ऊ सब आपने लोगन का ही चर्चा करत रहा इसीलिये उसका चर्चा का दिवाला निकल गया अगर आप भी ऐसन ही करेंगे त ऐसा ही होगा ई पक्का है।</b><br /><br />जारी....अम्मा जीhttps://www.blogger.com/profile/03059703402344341811noreply@blogger.com