tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post8212220982505277457..comments2024-03-17T16:48:49.459+05:30Comments on चर्चामंच: "बेफ़िक्र हो, ज़िन्दगी उसके - नाम कर दी" (चर्चा मंच-1575)अमर भारती शास्त्रीhttp://www.blogger.com/profile/10791859282057681154noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-22522174790457206292014-04-07T22:19:30.004+05:302014-04-07T22:19:30.004+05:30मोदी जीते न ,
जनता हर्षे (हरखे )न ,
भारत पनपे न ...मोदी जीते न ,<br /><br />जनता हर्षे (हरखे )न ,<br /><br />भारत पनपे न -<br /><br />तो कोई मतलब नहीं। <br /><br />बढ़िया भाव बोध की रचना :<br /><br />बादल बरसे ना <br />धरती तरसे ना <br />बिजली चमके ना..... तो…… <br /> कोई मतलब नहीं। <br />मन बहके ना <br />दिल हर्षे ना <br />आँखें छलके ना …तो….... <br /> कोई मतलब नहीं। <br /><br />उपवन महके ना <br />कोयल कुहूके ना <br />चिड़ियाँ चहके ना.…तो….... <br /> कोई मतलब नहीं। <br />सब्जी में नमक ज्यादा हो <br />रिश्तों में मर्यादा ना हो <br />शतरंज में प्यादा ना हो.…तो…… <br /> कोई मतलब नहीं। <br /><br />*बादल बरसे ना * <br />*धरती तरसे ना * <br />*बिजली चमके ना..... <br />तो…… <br />My Expression पर <br />Dr.NISHA MAHARANA <br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-36670130042451742452014-04-07T22:14:23.351+05:302014-04-07T22:14:23.351+05:30
उच्चारण
छोड़ दो शिकवों-गिलों की डगर को,
मुल्क पर...<br />उच्चारण<br /><br />छोड़ दो शिकवों-गिलों की डगर को,<br />मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो।<br /><br />बहुत बढ़िया बात कही हैvirendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-37830565309193551572014-04-07T22:12:51.303+05:302014-04-07T22:12:51.303+05:30लोकतंत्र में विचारधारा का महत्त्व
लेखक क्या है विच...लोकतंत्र में विचारधारा का महत्त्व<br />लेखक क्या है विचारों के बिना। अलबत्ता मुझे ये गलतफहमी कभी नहीं रही कि मै लेखक हूँ। पर गाहे-बगाहे कुछ इष्ट-मित्र मेरी पोस्टों पर अपनी टिप्पणियाँ दे कर मुझे अनुग्रहित करते रहते हैं। मै सदैव उनका ह्रदय से कृतज्ञ रहता हूँ और रहूँगा भी। ये बात अलग है कि मै बिना पढ़े उनके ब्लॉग पर 'वाह -वाह क्या बात है' टाइप की टिप्पणी नहीं करता। इसलिए चार सालों में मेरी टी आर पी (फॉलोवर लिस्ट) अभी तक बमुश्किल ५७ ही पहुंची है। अन्य दिग्गज ब्लॉगरों की तीन-चार सौ से ऊपर देख के रश्क होना स्वाभाविक है। कई गुरुघंटालों को साधने की कोशिश भी की कि गुरु ये बताओ टी आर पी बढ़ाने के लिए तुमने कौन सी जुगत लगाई। तो गुरु लोग संजीदा हो जाते हैं कहते हैं अपनी लेखनी में जादू लाओ लोग खुद-बखुद तुम्हारे फॉलोअर बन जायेंगे। हाल ही में टॉप ३०० पठनीय हिंदी ब्लॉगरों की लिस्ट का कहीं से आविर्भाव हुआ है। एक स्वनाम धन्य ब्लॉगर महोदय ने लड़-भिड़ के अपना नाम इस फेहरिस्त में घुसेड़वा भी लिया है। लिखा-पढ़ी करके कुछ ब्लॉग के महारथियों से सिफारिश से बंदा लिस्ट को शुभ अंक ३०१ करवा भी लेता। किन्तु ऐसा करने से मेरे महान गुरु बाणभट्ट, खुदा उन्हें जन्नत बख्शे, की आत्मा को असीम कष्ट होता। जिस गुरु ने अपने जीते जी राजा-महाराजाओं के ज़माने में चाटुकारिता का साथ देने से इंकार कर दिया हो, उसका ये कलयुगी चेला वाणभट्ट सिर्फ टी आर पी के लिए इतना गिर जाये, ये शर्म की बात है। आजकल तो बेशर्मी हद के पार हो गयी है और भाई लोगों ने तो मुहावरा ही गढ़ डाला कि जिसने की शरम उसके फूटे करम। तो भाइयों और बहनों अपनी फूटी किस्मत को लेकर अपने महान गुरु का नाम ख़राब करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। एकलव्य टाइप का चेला हूँ। गुरु की स्वतः प्रेरणा से आज मै कुछ ऐसा लिखने पर आमादा हूँ जिसे इस बार ५-१० से कुछ ज्यादा टिप्पणियां मिल जाएँ। २-४ लोग टी आर पी में जुड़ जायें। गुरु मुझ पर ऐसे ही कृपा बनाये रक्खें। इससे ज्यादा वाणभट्ट को और क्या आकांक्षा रखनी चाहिये। इस आशय से मैंने सामायिक विषय भारत के लोकतंत्र में चल रही महाभारत को मुद्दा बनाने का फैसला लिया है...<br />वाणभट्ट<br /><br /> सुन्दर व्यंग्योक्तियाँ virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-84177222523195052502014-04-07T22:11:21.019+05:302014-04-07T22:11:21.019+05:30बेहतरीन अन्वेषी लेखन राष्ट्रीय एकता के तत्वों का स...बेहतरीन अन्वेषी लेखन राष्ट्रीय एकता के तत्वों का सर्वग्राही समायोजन लिए है यह रचना सुंदर मनोहर विचार <br />१२१. लौ <br />इस लौ में सबकी चमक है. <br />किसी मुस्लिम कुम्हार ने इस मिट्टी को गूंधा है, <br />फिर चाक पर चढ़ाकर दिए का आकार दिया है...<br />कविताएँपरOnkar<br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-33959236614560650162014-04-07T19:26:00.904+05:302014-04-07T19:26:00.904+05:30सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता को स्थान देने के लिए आभा...सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता को स्थान देने के लिए आभार Onkarhttps://www.blogger.com/profile/15549012098621516316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-57583057355910909622014-04-07T17:46:37.500+05:302014-04-07T17:46:37.500+05:30बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-53778203113279797152014-04-07T16:49:27.208+05:302014-04-07T16:49:27.208+05:30नीतू सिंघल जी।
आपकी बात गले नहीं उतर रही है।
कहाँ ...नीतू सिंघल जी।<br />आपकी बात गले नहीं उतर रही है।<br />कहाँ है चर्चा मंच में विज्ञापन।<br />--<br />यह बात अलग है कि आपकी पोस्ट कभी-कभार ही ली जाती है।<br />--<br />वैसे भी आपका अपना सृजन तो कुछ भी नहीं है।<br />पुस्तक से नकल मार कर आप चट-पट पोस्ट लगाती हो।<br />हम केवल स्वरचित सृजन को ही चर्चा मंच पर स्थान देना पसंद करते हैं।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-54992683909903874612014-04-07T16:27:07.466+05:302014-04-07T16:27:07.466+05:30यदि यह मंच है तो इसे मंच ही रहने दें, विज्ञापन पटल...यदि यह मंच है तो इसे मंच ही रहने दें, विज्ञापन पटल न बनाएं.....Neetu Singhalhttps://www.blogger.com/profile/14843330374912315760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-84520262602498188022014-04-07T12:59:29.720+05:302014-04-07T12:59:29.720+05:30सम्मानित अभिषेक कुमार अभी जी।
एक फोन भी तो कर सकते...सम्मानित अभिषेक कुमार अभी जी।<br />एक फोन भी तो कर सकते थे।<br />अचानक सुबह देखा तो मन आहत हुआ।<br />इसीलिए मैं अपने फोन नम्बर सभी चर्चाकारों को देता हूँ <br />कि वो किसी मजबूरी में चर्चा न लगा सकें तो सूचित कर दें।<br />रही बात शाबाशी की ...<br />तो किस बात की शाबाशी...<br />यहाँ न वेतन मिलता है और न ही कोई मालिक नौकर है।<br />यह तो सेवा है...<br />सेवा का भाव है तो सेवा कीजिए...।<br />अपनी बात लिखना किसी को आहत करने के समान कहाँ है?<br />बताइए मैं कहाँ पर गलत था।<br />रही बात चर्चा मंच से हटाने की <br />तो मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि <br />मैं अपने किसी सहयोगी चर्चाकार को हटाता नहीं हूँ।<br />आप हमारे साथ चलिए इस अहर्निश सेवा में।<br />आपका हमेशा स्वागत है।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-31866823239288798402014-04-07T12:05:49.395+05:302014-04-07T12:05:49.395+05:30चर्चामंच में शामिल होने पर दो-चार कमेंट एक्स्ट्रा ...चर्चामंच में शामिल होने पर दो-चार कमेंट एक्स्ट्रा मिल जाते हैं ...लेखनी को जाग्रत रखने के लिए ये खुराक ज़रूरी है...धन्यवाद इसे शामिल करने के लिये...Vaanbhatthttps://www.blogger.com/profile/12696036905764868427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-3492268958868386582014-04-07T11:14:14.894+05:302014-04-07T11:14:14.894+05:30फटाफट चर्चा भी कमाल की है,सभी चयनित सूत्र सुन्दर औ...फटाफट चर्चा भी कमाल की है,सभी चयनित सूत्र सुन्दर और पठनीय हैं। सुबह सुबह लिंकों के चुनाव क़र चर्चा लगाना श्रमसाध्य और परेशानी भरा हुआ ही होगा। चर्चा मंच एक प्रतिष्ठित मंच है ,जो आपके पूर्ण लगन और सहयोग से ही इस मुकाम पर पहुँचा है। चर्चाकारों के सहयोग को भी नाकारा नही जा सकता जिन्होंने अपना कीमती समय देकर चर्चा को आगे बढाने का यथासम्भव प्रयास करते ही हैं। कभी कभी हमारे सामने ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती है की हम चाह कर भी आगे के कार्यक्रम को नही कर पाते हैं। हो सकता है अभिषेक जी सही कह रहें हो, उनकी मज़बूरी होगी, फिर भी कहना चाहूँगा समय रहते आपको सूचित करना भी हमारा नैतिक कर्तव्य है, जिससे चर्चा निरंतर चलती रहे। मेरे को ही ले लीजिये मैं UAE में हूँ मेरा कार्य भी व्यस्ततता भरा है। कभी कभी २-३ दिन बाहर के ट्रिप पर ही रहना पड़ता है। आपसी सम्पर्क और सहयोग बनाये रखना ही लाभप्रद है। क्षमाप्रार्थी हैं इन उद्गारों के लिए। Rajendra kumarhttps://www.blogger.com/profile/00010996779605572611noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-5411127043498889892014-04-07T11:02:14.336+05:302014-04-07T11:02:14.336+05:30सुंदर व सार्थक सूत्रों से सुसज्जित चर्चा मंच ! मेर...सुंदर व सार्थक सूत्रों से सुसज्जित चर्चा मंच ! मेरी प्रस्तुति 'जगह ही जगह हो गयी' को भी स्थान दिया बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका ! Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-76100635083524632892014-04-07T10:58:16.119+05:302014-04-07T10:58:16.119+05:30अच्छी प्रस्तुति व सूत्र , आ. शास्त्री जी व मंच को ...अच्छी प्रस्तुति व सूत्र , आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !<br />नवीन प्रकाशन -: <a href="http://ab-hamara-time-hai.blogspot.in/2014/04/blog-post_5.html?m=1/" rel="nofollow"> साथी हाँथ बढ़ाना !</a><br />नवीन प्रकाशन -: <a href="http://www.samadhaaninhindi.blogspot.in/2014/04/how-search-engine-works.html?m=1/" rel="nofollow"> सर्च इन्जिन कैसे कार्य करता है ? { How the search engine works ? }</a>आशीष अवस्थीhttps://www.blogger.com/profile/05326902845770449131noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-7218376631855369522014-04-07T10:03:05.697+05:302014-04-07T10:03:05.697+05:30फटाफट चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'नहीं ...फटाफट चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'नहीं पढ़ना ठीक होता है जहाँ कोई किसी और के आलू बो रहा होता है' को जगह देने के लिये आभार ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-86459237429595844452014-04-07T08:55:13.996+05:302014-04-07T08:55:13.996+05:30आदरणीय सर ''मयंक'' जी
कभी कभी इंस...आदरणीय सर ''मयंक'' जी <br />कभी कभी इंसान इतना असमर्थ हो जाता है कि चाह कर भी किसी जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर पाता है। <br />आज कल के दौर में जहाँ नौकरी करना एक तरह कि गुलामी करना है। आपने जब हमसे पूछा था कल की चर्चा तैयार करने के लिए तो मुझे लगा कि मैं रात-भर में तैयार कर लूंगा। जबकि मैं सुबह ६ बजे पहुंचा। पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वालों का ''जाने का तो समय निर्धारित है, परन्तु आने का नहीं''<br /><br />आपने जिस आदर सूचक शब्द का यहाँ प्रयोग किया है, पढ़के मन बहुत आहत हुआ। कि आप जैसे अनुभवी इंसान किसी कि मज़बूरी को नहीं समझ पाए। <br />ये तो वही बात हुयी कि महीने भर दफ्तर समय से पहुँचो कोई शाबासी नहीं देता, पर एक दिन लेट हो जाओ, गली के आलावा कुछ नहीं मिलता। <br />खैर मैंने आपको धोखा दिया और वो भी जान बुझ के <br />इसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूँ। और अगर आप चाहे तो चर्चाकार से नाम हटा सकते हैं। व्यक्तिगत कोई गिला-शिकवा मुझे नहीं रहेगा। <br />सादर <br />--अभिषेक कुमार ''अभी Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06050233256281686905noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-89480934956502778842014-04-07T08:50:49.907+05:302014-04-07T08:50:49.907+05:30शानदार और पठनीय सूत्रशानदार और पठनीय सूत्रGyan Darpanhttps://www.blogger.com/profile/01835516927366814316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-47231121479015770402014-04-07T08:45:01.650+05:302014-04-07T08:45:01.650+05:30बड़े ही सुन्दर और पठनीय सूत्र।बड़े ही सुन्दर और पठनीय सूत्र।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com