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रविवार, नवंबर 21, 2010

" एकल चर्चा " (चर्चा मंच-345)

आज की एकल चर्चा में प्रस्तुत कर रहा हूँ
हिन्दी और अंग्रेजी में समान अधिकार रखने वाली

श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना 'किरण'

श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना \

और

श्री बृजभूषण लाल जी सक्सेना की सुपुत्री

श्री बृजभूषण लाल जी सक्सेना-मेरे बाबूजी

श्रीमती आशा जी की

मेरा फोटो
ये अपने बारे में लिखती हैं-
  • व्यवसाय: lecturer,in plus two
  • स्थान: Ujjain : M.P. : भारत
  • I am M.A. in Economics& English.

    Though I was a science student and wanted to become a doctor,

    I could not. I joined education department as a lecturer in English.

    I have a little literary taste .

    इनका ब्लॉग है
इनकी पहली रचना 6 नवम्बर, 2009 को प्रकाशित हुई थी

Don't worry about failure

Don't worry about failure
Don't show your vigor to others.
Be brave as your grand parents were.
Show your ability to others,
And face the world with eyes open.
Asha

20 NOVEMBER, 2010 को प्रकाशित हुई

इनकी अद्यतन पोस्ट को भी देख लीजिए-

ना जाना ऐसे ऑफिस में
ना जाना ऐसे ऑफिस में ,
जिसमे बिना 'मनी',
कुछ काम ना हो ,
चक्कर लगाते रह जाओगे ,
था काम क्या ?
यह भी भूल जाओगे |
वहां हर मेज पर ,
बड़े २ झमेले हें ,
सब आस लगाए बैठे हें ,
हें ऐसे गिद्ध भी ,
जो ताक लगाए बैठे हें |
नोटों की एक झलक भी ,
यदि जेबों में दिखाई दी
आख़िरी पैसा,
तक छुडा लेंगे,
तभी चैन की सांस लेंगे |
आदर्श अगर बघारा तुमने ,
और ना ढीली अंटी की ,
लगाते रहोगे,
चक्कर पर चक्कर ,
फिर भी काम ,
ना करवा पाओगे |
वहां कोई भी सगा नहींहै ,
दो मेजों में दूरी नहीं है ,
जब मेजों के नीचे से ,
मोटी रकम पहुंचती है ,
सिलसिला काम का ,
तभी शुरू होता है |
यदि है इतनी जानकारी ,
और दिलेरी दिल दिमाग में ,
तभी वहाँ का रुख करना ,,
बरना भूले से भी कभी ,
उधर की ओर मुंह नहीं करना |
लगे मुखौटे चेहरे पर ,
असलियत कोई नहीं जानता ,
कथनी और करनी की दूरी ,
भी ना पहचान पाता ,
भूले से यदि फंस जाओ,
नोट साथ लेते जाना ,
तभी होगा कुछ हासिल ,
नहीं तो दीमक के बमीटे से,
कुछ भी हाथ न आएगा |
है महिमा रिश्वत की अनोखी ,
जो भी इसे जान पाया ,
बहती गंगा में हाथ धो ,
मजा जिंदगी का लूट पाया ,
अंत चाहे जो भी हो ,
वह वर्तमान में जीता है ,
घूस खोरी को भी ,
अपनी आय समझ लेता है |
आशा

5 टिप्‍पणियां:

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