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रविवार, नवंबर 08, 2020

"अहोई अष्टमी की शुभकामनाएँ!" (चर्चा अंक- 3879)

अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय होई का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्घ्य भी दिया जाता है। यह होई गेरु आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर होई काढकर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है।

होई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। यह व्रत पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं करती हैं। कृर्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

एक नगर में एक साहूकार रहा करता था, उसके सात लडके थे, सात बहुएँ तथा एक पुत्री थी। दीपावली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएँ अपनी इकलौती नंद के साथ जंगल में मिट्टी लेने गई। जहाँ से वे मिट्टी खोद रही थी। वही पर स्याऊ–सेहे की मांद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ सेही का बच्चा मर गया।

स्याऊ माता बोली– कि अब मैं तेरी कोख बाँधूगी।

तब ननंद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुम में से कोई मेरे बदले अपनी कोख़ बंधा लो सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इंकार कर दिया परंतु छोटी भाभी सोचने लगी, यदि मैं कोख न बँधाऊगी तो सासू जी नाराज होंगी। ऐसा विचार कर ननंद के बदले छोटी भाभी ने अपने को बंधा ली। उसके बाद जब उसे जो बच्चा होता वह सात दिन बाद मर जाता।

एक दिन साहूकार की स्त्री ने पंडित जी को बुलाकर पूछा की, क्या बात है मेरी इस बहु की संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है?

तब पंडित जी ने बहू से कहा कि तुम काली गाय की पूजा किया करो। काली गाय स्याऊ माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े तो तेरा बच्चा जियेगा।

इसके बाद से वह बहु प्रातःकाल उठ कर चुपचाप काली गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती।

एक दिन गौ माता बोली– कि आज कल कौन मेरी सेवा कर रहा है, सो आज देखूंगी। गौमाता खूब तड़के जागी तो क्या देखती है कि साहूकार की के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है।

गौ माता उससे बोली कि तुझे किस चीज की इच्छा है जो तू मेरी इतनी सेवा कर रही है ?

मांग क्या चीज मांगती है? तब साहूकार की बहू बोली की स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उन्होंने मेरी कोख बांध रखी है, उनके मेरी को खुलवा दो।

गौमाता ने कहा,– अच्छा तब गौ माता सात समुंदर पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रस्ते में कड़ी धूप थी, इसलिए दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी के बच्चे थे उनको मारने लगा। तब साहूकार की बहू ने सांप को मार कर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहां खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी।

तब साहूकारनी बोली– कि, मैंने तेरे बच्चे को मारा नहीं है बल्कि साँप तेरे बच्चे को डसने आया था। मैंने तो तेरे बच्चों की रक्षा की है।

यह सुनकर गरुड़ पंखनी खुश होकर बोली की मांग, तू क्या मांगती है?

वह बोली, सात समुंदर पार स्याऊमाता रहती है। मुझे तू उसके पास पहुंचा दें। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठा कर स्याऊ माता के पास पहुंचा दिया।

स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली की आ बहन बहुत दिनों बाद आई। फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूं पड़ गई है। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सिलाई से उसकी जुएँ निकाल दी। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न होकर बोली कि तेरे सात बेटे और सात बहुएँ हो।

सहुकारनी बोली– कि मेरा तो एक भी बेटा नहीं, सात कहाँ से होंगे ?

स्याऊ माता बोली– वचन दिया वचन से फिरूँ तो धोबी के कुंड पर कंकरी होऊँ।

तब साहूकार की बहू बोली माता बोली कि मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी है ।

यह सुनकर स्याऊ माता बोली तूने तो मुझे ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं परंतु अब खोलनी पड़ेगी। जा, तेरे घर में तेरे घर में तुझे सात बेटे और सात बहुएँ मिलेंगी। तू जा कर उजमान करना। सात अहोई बनाकर सात कड़ाई करना। वह घर लौट कर आई तो देखा सात बेटे और सात बहुएँ बैठी हैं । वह खुश हो गई। उसने सात अहोई बनाई, सात उजमान किये, सात कड़ाई की। दिवाली के दिन जेठानियाँ आपस में कहने लगी कि जल्दी जल्दी पूजा कर लो, कहीं छोटी बहू बच्चों को याद करके रोने न लगे।

थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा–अपनी चाची के घर जाकर देख आओ की वह अभी तक रोई क्यों नहीं?

बच्चों ने देखा और वापस जाकर कहा कि चाची तो कुछ मांड रही है, खूब उजमान हो रहा है। यह सुनते ही जेठानीयाँ दौड़ी-दौड़ी उसके घर गई और जाकर पूछने लगी कि तुमने कोख कैसे छुड़ाई?

वह बोली तुमने तो कोख बंधाई नही मैंने बंधा ली अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी को खोल दी है। स्याऊ माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी खोलियो, सबकी खोलियो। कहने वाले की तथा हुंकार भरने वाले तथा परिवार की कोख खोलिए।।

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अब देखिए रविवार की चर्चा में

मेरी पसन्द के कुछ लिंक!
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दोहे  "पर्व अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास" 

पर्व अहोई-अष्टमीदिन है कितना खास।

जिसमें पुत्रों के लिएहोते हैं उपवास।।
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कुलदीपक के है लिएपर्व अहोई खास।
होती अपने तनय परमाताओं को आस।
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माताएँ इस दिवस परकरती हैं अरदास।
उनके सुत का हो नहींमुखड़ा कभी उदास।।
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उच्चारण  

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अहोई अष्टमी और बहुला अष्टमी की  हार्दिक शुभकामनाएँ… 
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जथा(धन)
अवृथा
साम्यावस्था
अजहत्स्वार्था
मिट जाए व्यथा
माता अहोई कथा।{01.}
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विभा रानी श्रीवास्तव, "सोच का सृजन"  

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जीवन  गीत  डॉ. वर्षा सिंह
हंसी-खुशी, दुख-आंसू तब तक
जब तक भी यह जीवन है ।।
फिर अनंत तक का सफर अनवरत
टूटा हर एक बंधन है ।। 

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व्रतों और मौसम के बीच सन्तुलन 
सभी धर्मावलम्बी, किसी न किसी रूप में वर्ष में कभी न कभी उपवास अवश्य रखते हैं। इससे भले ही उनकी जीवनी-शक्ति का जागरण न होता होगा किन्तु धार्मिक विश्वास के साथ वैज्ञानिक आधार पर विचार कर हम कह सकते हैं कि इससे लाभ ही मिलता है। उपवास का वास्तविक एवं आध्यात्मिक अभिप्राय भगवान की निकटता प्राप्त कर जीवन में रोग और थकावट का अंत कर अंग-प्रत्यंग में नया उत्साह भर मन की शिथिलता और कमजोरी को दूर करना होता है ... 
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उज्जवल भविष्य निर्माण का मार्ग तलाश करना  ( आलेख )  डॉ लोक सेतिया आशावादी ढंग से पिछले समय के अनुभव से सबक लेकर हमें विचार विमर्श करते हुए देश समाज और विश्व को तथा मानवता को ध्यान में रखकर भविष्य में कैसे सही दिशा का चयन और सामाजिक मूल्यों का निर्धारण करना है सिलसिलेवार ढंग से चिंतन करने का समय है। 
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समिधा बने यह जीवन अपना अनंत युगों से सृष्टि का यह यज्ञ अनवरत चल रहा है। समय-समय पर न जाने कितने अवतार, संत, महापुरुष, ऋषि व जन सामान्य ने भी इस यज्ञ में अपनी आहुति प्रदान की है, वर्तमान में भी कर रहे हैं। कोई लेखक जब कष्ट उठाकर भी समाज के उत्थान के लिए साहित्य का सृजन करता है, अथवा कोई संगीतकार या गायक जब घंटों अभ्यास करता है, वे अपनी प्रतिभा की हवि का अर्पण ही कर रहे हैं। जन कल्याण का कोई भी अभियान हो उसमें अनेक जन अपने जीवन को ही समिधा बनाकर अर्पित कर देते हैं। वर्तमान में भी एक यज्ञ चल रहा है, कोरोना से बचाव का, इसके प्रभाव से स्वयं को व अन्यों को भी मुक्त रखने का। हम सभी को सजगता पूर्वक अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखकर इसमें अपनी समिधा डालनी है। सकारात्मक सोच, नियमित योग साधना, ध्यान का अभ्यास, प्रकृति का सम्मान तथा सात्विक आहार के द्वारा हम सहज ही अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। ये सभी उपाय हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ा देते हैं। 
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शेरो शायरी , तब तुम क्या करोगे जब तुम्हारी सरकार चली जाएगी 

मेरे गले को इतना जोर से न दबाओ सुनलो

मेरी आवाज में सारा भारत बोलता है

ऐ हुक्मरानों यू तलवार न चलाओ मुझपर

मेरी कलम की धार तुम्हारी तलवार से बेहतर है

सितमगरों एक दिन तो ये जुल्म की धार चली जाएगी

तब तुम क्या करोगे जब तुम्हारी सरकार चली जाएगी 

Harinarayan Tanha, साहित्यमठ  
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आज का उद्धरण 
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल  
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पहला सफ़र - - 
ज़िन्दगी का सिक्का उछलता रहा
नियति के हाथ, कभी हम
खड़े थे, वृद्ध शिरीष के
नीचे एक साथ,
और कभी
थे हम
बंदी, छद्मवेशी समय के हाथ, 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा 
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फरवरी नोट्स ऐसे ही एक बहाव की कहानी है,  जो बुरी हो कर भी मीठी लगती है 

 बहुत कम किताबें ऐसी होती हैं जो एक बैठक में ही समाप्त हो जाती हैं। मतलब एक बार पढ़ना शुरू किये तो आप बिना खत्म किये उठ नहीं सकते। फरवरी नोट्स एक ऐसा ही उपन्यास है।

प्रेम सृष्टि की सबसे मीठी अनुभूति का नाम है। कातिक के नए गुड़ की तरह, जेठ में पेंड़ पर पके पहले आम की तरह... यह व्यक्ति को किसी भी उम्र में छुए तो प्यारा ही लगता है। कभी कभी अपने बुरे स्वरूप में आ कर सामाजिक मर्यादा को तोड़ता है, तब भी मीठा ही लगता है। व्यक्ति समझता है कि गलत हो रहा है, पर रुक नहीं पाता। बहता जाता है... फरवरी नोट्स ऐसे ही एक बहाव की कहानी है, जो बुरी हो कर भी मीठी लगती है।कहते हैं फरवरी का महीना प्रेम का महीना होता है। सबके जीवन में कोई न कोई फरवरी ऐसी जरूर होती है जिसे याद कर के वह बुढ़ापे तक मुस्कुरा उठता है। फरवरी नोट्स ऐसी ही कुछ यादों का संकलन है।
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आज के लिए बस इतना ही...!
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8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय शास्त्री जी,
    हमारे हिन्दू रीति-रिवाजों पर इस तरह बहुत कम लोगों ने लेखनी चलाई है। बड़े त्यौहारों पर तो अधिकांश लिखा जाता है किन्तु ऐसे महत्वपूर्ण व्रतों पर कवियों की दृष्टि नहीं पहुंच पाती। आपके दोहे महत्वपूर्ण हैं। आपने अहोई अष्टमी पर व्रत कथा दे कर अभिनव चर्चा की है। हमारे धार्मिक साहित्य को अक्सर गौण मान कर उसकी उपेक्षा कर दी जाती है, जबकि वह लोकजीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है।
    आपकी यशस्विनी लेखनी को प्रणाम 🙏

    चर्चा की सभी लिंक्स उत्म कोटि की पठन सामग्रीयुक्त हैं ।
    साथ ही मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏

    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  2. अभिनव चर्चा भूमिका के साथ बहुत सुन्दर सूत्रों से सजी प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।

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  3. अहोई व्रत की रोचक कथा पढ़वाने के लिए शुक्रिया, पठनीय लिंक्स से सजी चर्चा में मुझे भी स्थाने देने हेतु आभार !

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  4. मुझे भी बहुत अच्छा लगा पढ़कर पहली बार सुना अहोई व्रत भी होता है।सभी को बहुत बहुत बधाई।
    बेहतरीन प्रस्तुति।
    सादर

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  5. यथावत मंत्रमुग्ध करता, विविध रंगों से सरोबार सुन्दर अंक, मुझे जगह प्रदान करने हेतु आभार - - नमन सह।

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  6. मेरे मायके में अहोई का व्रत किया जाता है। बचपन से लेकर विवाह तक माँ के मुँह से यही कथा राजस्थानी भाषा में सुनती आई। इस व्रत से जुड़ा एक रिवाज और है कि माँएँ चाँदी का एक चौकोर पैंडेंट सा बनाकर रक्षासूत्र में पिरोकर गले में पहनती हैं और जितने पुत्र होते हैं उतने चाँदी के मोती उसमें पिरोते जाते हैं। यह सिर्फ व्रत के दिन पहनती हैं फिर सँभालकर रख दिया जाता है।
    सुंदर अंक, सुंदर सांस्कृतिक झलक देती उत्तम प्रस्तुति।

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  7. रोचक भूमिका के साथ रोचक लिंक्स का संस्करण। मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

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  8. मेरी रचनाओ को स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार सर
    धन्यवाद

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