tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post2281706788336469565..comments2024-03-27T10:08:49.186+05:30Comments on चर्चामंच: "देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)अमर भारती शास्त्रीhttp://www.blogger.com/profile/10791859282057681154noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-56509722099620126942017-06-02T05:37:44.530+05:302017-06-02T05:37:44.530+05:30*सुकरात को जहर देकर मारा गया। अदालत ने सुकरात से क...*सुकरात को जहर देकर मारा गया। अदालत ने सुकरात से कहा कि अगर तुम एक वचन दे दो कि तुम सत्य का प्रचार नहीं करोगे--जिसको तुम सत्य कहते हो,* *उसका तुम प्रचार नहीं करोगे, चुप रहोगे--तो यह मृत्यु बचाई जा सकती है। हम तुम्हें माफ कर दे सकते हैं।*<br />*सुकरात ने कहा, जीवन को तो मैं देख चुका। सब कोनों से पहचान लिया। पर्त-पर्त उघाड़ ली। और अगर मुझे जीने का मौका दिया जाए, तो मैं एक ही काम के लिए जीना चाहूंगा कि दूसरे लोगों को भी जीवन का सत्य पता चल जाए। और तो अब कोई कारण न रहा। मेरी तरफ से जीवन का काम पूरा हो गया।* पकना था, पक चुका। *मेरी तरफ से तो मृत्यु में जाने में कोई अड़चन नहीं है। वस्तुतः मैं तो जाना चाहूंगा। क्योंकि जीवन देख लिया, मृत्यु अभी अनदेखी पड़ी है। जीवन तो पहचान लिया, मृत्यु से अभी पहचान नहीं हुई। जीवन तो ज्ञात हो गया, मृत्यु अभी अज्ञात है, रहस्यमय है। उस मंदिर के द्वार भी खोल लेना चाहता हूं। मेरे लिए तो मैं मरना ही चाहूंगा, जानना चाहूंगा--मृत्यु क्या है? यह प्रश्न और हल हो जाए। जीवन क्या है, हल हो चुका। एक द्वार बंद रह गया है; उसे भी खोल लेना चाहता हूं।* और अगर मुझे छोड़ दिया जाए जीवित, तो मैं एक ही काम कर सकता हूं--और एक ही काम के लिए जीना चाहूंगा--और वह यह कि जो मैंने देखा है वह दूसरों को दिखाई पड़ जाए। *अगर इस शर्त पर आप कहते हैं कि सत्य बोलना बंद कर दूं तो जीवित रह सकता हूं, तो फिर मुझे मृत्यु स्वीकार है।*<br />*मृत्यु सुकरात ने स्वीकार कर ली।* जब उसे जहर दिया गया, वह जहर पीकर लेट गया। मित्र रोने लगे; शिष्य दहाड़ने लगे पीड़ा में; आंसुओं की धारें बह गईं। *सुकरात ने आंख खोलीं और कहा कि यह वक्त रोने का नहीं। मैं चला जाऊं, फिर रो लेना। फिर बहुत समय पड़ा है। ये क्षण बड़े कीमती हैं। कुछ रहस्य की बातें तुम्हें और बता जाऊं। जीवन के संबंध में तुम्हें बहुत बताया, अब मैं मृत्यु में गुजर रहा हूं, धीरे-धीरे प्रवेश हो रहा है। सुनो!*<br />मेरे पैर ठंडे हो गए हैं; पैर मर चुके हैं। जहर का प्रभाव हो गया। मेरी जांघें शून्य होती जा रही हैं। अब मैं पैरों का कोई अनुभव नहीं कर सकता, हिलाना चाहूं तो हिला नहीं सकता। वहां से जीवन विदा हो गया। *लेकिन आश्चर्य! मेरे भीतर जीवन में जरा भी कमी नहीं पड़ी है। मैं उतना ही जीवित हूं।* जांघें सो गईं, शून्य हो गईं।<br />सुकरात ने अपने एक शिष्य को कहा, क्रेटो, तू जरा चिउंटी लेकर देख मेरे पैर पर।<br />उसने चिउंटी ली।<br />सुकरात ने कहा, मुझे पता नहीं चलता। पैर मुर्दा हो गए। आधा शरीर मर गया। *लेकिन मैं तो भीतर अभी भी पूरा का पूरा अनुभव कर रहा हूं!* हाथ ढीले पड़ गए। हाथ उठते नहीं। गर्दन लटक गई। आखिरी क्षण में भी, आंख जब बंद होने लगी, तब भी उसने कहा कि मैं तुम्हें एक बात कहे जाता हूं, याद रखना: करीब-करीब सब मर चुका है, आखिरी किनारा रह गया है हाथ में, लेकिन *मैं पूरा का पूरा जिंदा हूं, मृत्यु मुझे छू नहीं पाई है।*<br />*जिसने जीवन को जान लिया, वह मृत्यु को जानने को उत्सुक होगा।* क्योंकि मृत्यु जीवन का दूसरा पहलू है; छिपा हुआ हिस्सा है। चांद की दूसरी बाजू है, जो कभी दिखाई नहीं पड़ती।<br />*गुरु को मैं मृत्यु कहता हूं, क्योंकि वह तुम्हें मरना सिखाएगा। सारा शिक्षण धर्म का, मृत्यु का शिक्षण है। ध्यान को भी मैं मृत्यु कहता हूं, क्योंकि वह विधि है मरने की। समाधि को भी मृत्यु कहता हूं, क्योंकि वह पूर्णाहुति है। गुरु सिखाने वाला है; ध्यान सीखना है; समाधि पानी है। वे तीनों ही मृत्यु हैं। और मृत्यु बड़ा प्यारा शब्द है। जिस दिन भी तुम इसके भय से छूट जाओगे, मुक्त हो जाओगे; जिस क्षण भी तुम्हारी महत्वाकांक्षा तुम्हें डराएगी न; और तुम आंख खोल कर देखोगे भर, आंख मृत्यु में झांकोगे, उस दिन तुम पाओगे--तुमने अपने भीतर ही झांक लिया।*<br />*जीवन आधा है। जीवन से ही जिसने अपने को जाना उसने आधा जाना। उसका आत्मज्ञान पूर्ण नहीं है। मृत्यु आधा है।* दिन ही जिसने जाना और रात न जानी उसका ज्ञान अधूरा है। दिन सुंदर है माना; सूरज है, प्रकाश है, फूल हैं, पक्षी हैं। पर रात और भी सुंदर है; तारे हैं, चांद है, विराट आकाश है। प्रकाश की तो सीमा भी मालूम पड़ती है, रात के अंधेरे की कोई सीमा नहीं। प्रकाश में तो थोड़ी उत्तेजना भी है, जलन भी है; रात महाशांति है; कोई उत्तेजना नहीं; परम शून्यता है। प्रकाश में तो वस्तुओं के भेद दिखाई पड़ते हैं; *प्रकाश में तो आकृतियां समझ में आती हैं। रात्रि निराकार है; सब आकार खो जाते हैं। एक महाशून्य, एक महाविराट रह जाता है।*हरि: शरणम्https://www.blogger.com/profile/04332104987970473419noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-40148477485141454622017-06-01T22:08:20.644+05:302017-06-01T22:08:20.644+05:30बहुत रोचक और विस्तृत चर्चा... आभार...बहुत रोचक और विस्तृत चर्चा... आभार...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-32069324816636856212017-06-01T18:49:35.520+05:302017-06-01T18:49:35.520+05:30aabhaar ...meri post shamil karne ke lie....aabhaar ...meri post shamil karne ke lie....शेफाली पाण्डेhttps://www.blogger.com/profile/14124428213096352833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-72068610552553813942017-06-01T11:58:58.183+05:302017-06-01T11:58:58.183+05:30बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शा...बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-76469765820484019232017-06-01T10:48:10.706+05:302017-06-01T10:48:10.706+05:30शुभ प्रभात
उम्दा
आभार
सादरशुभ प्रभात<br />उम्दा<br />आभार<br />सादरyashoda Agrawalhttps://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-46461080687954903892017-06-01T06:35:22.291+05:302017-06-01T06:35:22.291+05:30बढ़िया गुरुवारीय अंक। आभार 'उलूक' के सूत्र ...बढ़िया गुरुवारीय अंक। आभार 'उलूक' के सूत्र को स्थान देने के लिये।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com