tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post4441739344621756532..comments2024-03-27T10:08:49.186+05:30Comments on चर्चामंच: "प्रभू पंख दे देना सुन्दर" (चर्चा मंच-1045)अमर भारती शास्त्रीhttp://www.blogger.com/profile/10791859282057681154noreply@blogger.comBlogger47125tag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-63149835180728590082012-10-30T17:12:44.788+05:302012-10-30T17:12:44.788+05:30बढ़िया चर्चा...बढ़िया चर्चा...DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-53953952264631690252012-10-28T07:43:40.671+05:302012-10-28T07:43:40.671+05:30बहुत ही सुन्दर और रोचक चर्चा।बहुत ही सुन्दर और रोचक चर्चा।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-55667844445436289442012-10-28T01:13:35.037+05:302012-10-28T01:13:35.037+05:3035) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पा...35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने <br /><br />ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी<br /><br /> टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर <br /><br />भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..<br /><br />एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई <br /><br />ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो <br /><br />एक <br /><br />के मन को आह्लादित करे ,दूसरे <br /><br />के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .<br /><br />भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच <br /><br />का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .<br /><br />इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .<br /><br />गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,<br /><br />कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .<br /><br />जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?<br /><br />बतलादें उनको -<br /><br />मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .<br /><br />बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .<br /><br />अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -<br /><br />लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -<br /><br />तर्क की मीनार <br /><br />मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -<br /><br />तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,<br /><br />पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -<br /><br />इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,<br /><br />क्योंकि मैं जानता हूँ -<br /><br />क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,<br /><br />क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -<br /><br />क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .<br /><br />अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,<br /><br />जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -<br /><br />चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,<br /><br />कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,<br /><br />जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,<br /><br />और बाकी सबको आज़ादी है .<br /><br />(समाप्त )<br /><br />वीरुभाई :<br /><br />इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।<br /><br />नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में . virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-20570795095677189042012-10-28T01:11:23.559+05:302012-10-28T01:11:23.559+05:3035) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पा...35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने <br /><br />ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी<br /><br /> टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर <br /><br />भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..<br /><br />एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई <br /><br />ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो <br /><br />एक <br /><br />के मन को आह्लादित करे ,दूसरे <br /><br />के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .<br /><br />भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच <br /><br />का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .<br /><br />इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .<br /><br />गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,<br /><br />कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .<br /><br />जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?<br /><br />बतलादें उनको -<br /><br />मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .<br /><br />बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .<br /><br />अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -<br /><br />लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -<br /><br />तर्क की मीनार <br /><br />मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -<br /><br />तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,<br /><br />पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -<br /><br />इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,<br /><br />क्योंकि मैं जानता हूँ -<br /><br />क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,<br /><br />क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -<br /><br />क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .<br /><br />अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,<br /><br />जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -<br /><br />चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,<br /><br />कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,<br /><br />जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,<br /><br />और बाकी सबको आज़ादी है .<br /><br />(समाप्त )<br /><br />वीरुभाई :<br /><br />इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।<br /><br />नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में . virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-92093382403498529342012-10-28T01:06:22.871+05:302012-10-28T01:06:22.871+05:30चुनी हुई लिंक्स ,इत्मीनान से पढ़ी जायँ ऐसी .
'...चुनी हुई लिंक्स ,इत्मीनान से पढ़ी जायँ ऐसी .<br /><br />'कहाँ हो' चुनने हेतु आभार !प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-90063087546842047332012-10-27T23:33:45.127+05:302012-10-27T23:33:45.127+05:30बहुत शानदार लिंक्स का संयोजन किया है आपने मेरी प्र...बहुत शानदार लिंक्स का संयोजन किया है आपने मेरी प्रस्तुति को स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद् Shalini kaushikhttps://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-57966238168751311432012-10-27T23:30:22.625+05:302012-10-27T23:30:22.625+05:3035) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पा...35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने <br /><br />ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी<br /><br /> टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर <br /><br />भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..<br /><br />एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई <br /><br />ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो <br /><br />एक <br /><br />के मन को आह्लादित करे ,दूसरे <br /><br />के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .<br /><br />भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच <br /><br />का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .<br /><br />इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .<br /><br />गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,<br /><br />कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .<br /><br />जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?<br /><br />बतलादें उनको -<br /><br />मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .<br /><br />बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .<br /><br />अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -<br /><br />लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -<br /><br />तर्क की मीनार <br /><br />मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -<br /><br />तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,<br /><br />पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -<br /><br />इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,<br /><br />क्योंकि मैं जानता हूँ -<br /><br />क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,<br /><br />क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -<br /><br />क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .<br /><br />अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,<br /><br />जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -<br /><br />चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,<br /><br />कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,<br /><br />जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,<br /><br />और बाकी सबको आज़ादी है .<br /><br />(समाप्त )<br /><br />वीरुभाई :<br /><br />इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।<br /><br />नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में . virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-76042343238290512092012-10-27T23:02:17.846+05:302012-10-27T23:02:17.846+05:30बहुत बढ़िया और विस्तृत चर्चा | मेरी रचना शामिल करन...बहुत बढ़िया और विस्तृत चर्चा | मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |<br />आभार |Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12634209491911135236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-61329023182144484222012-10-27T22:34:32.805+05:302012-10-27T22:34:32.805+05:30सबसे पहले देर से आने की माफ़ी चाहती हूँ | चर्चा मं...सबसे पहले देर से आने की माफ़ी चाहती हूँ | चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने का बहुत २ शुक्रिया |Minakshi Panthttps://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-20004956366340937432012-10-27T22:25:20.994+05:302012-10-27T22:25:20.994+05:30बहुत अच्छे लिनक्स संजोये हैं आपने .व्यवस्थित व्...बहुत अच्छे लिनक्स संजोये हैं आपने .व्यवस्थित व् रोचक प्रस्तुति हेतु आभार Shikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-56647261542898203732012-10-27T22:06:12.407+05:302012-10-27T22:06:12.407+05:30बहुत बढ़िया चर्चा..बहुत बढ़िया चर्चा..Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-37482597048185364232012-10-27T21:56:38.720+05:302012-10-27T21:56:38.720+05:30
पीठ पर घर बांधे वे हर जगह मौजूद होती हैं
कभी-क...<br /><br />पीठ पर घर बांधे वे हर जगह मौजूद होती हैं <br /><br />कभी-कभी उसे उतारकर कमर सीधी करती <br />हंसती हैं खिलखिलाती हैं बोलती बतियाती हैं <br />लेकिन जल्द ही घेर लेता है अपराधबोध <br /><br />उसी क्षण झुकती हैं वे <br />घर को उठाती हैं पीठ पर हो जाती हैं फिर से दोहरी <br /><br />इक्कीसवीं सदी में उनकी दुनिया का विस्तार हुआ है <br />वे सभाओं मीटिंगों प्रदर्शनों में भाग लेती हैं <br />वे मंच से भाषण देती हैं, उडती हैं अंतरिक्ष में <br />हर जगह सवार होता है <br />घर उनकी पीठ पर <br /><br />इस बोझ की इस कदर आदत हो गयी है उन्हें <br />इसे उतारते ही पाती हैं खुद को अधूरी <br /><br />कभी कभार बिरले ही मिलती है कोई <br />खाली होती है जिसकी पीठ <br />तन जाती हैं न जाने कितनी भृकुटियाँ <br /><br />खाली पीठ स्त्री <br />अक्सर स्त्रियों को भी नहीं सुहातीं <br />आती है उनके चरित्र से संदेह की बू <br />कभी-कभी वे दे जाती हैं घनी ईर्ष्या भी <br /><br />इस बोझ को उठाये उठाये <br />कब झुक जाती है उनकी रीढ़ <br />उन्हें इल्म ही नहीं होता <br />वे भूल जाती हैं तन कर खड़ी होना <br />जब कभी ऐसी इच्छा जगती भी है <br />रीढ़ की हड्डी दे जाती है जवाब <br />या पीठ पर पड़ा बोझ <br />चिपक जाता है विक्रम के बेताल की तरह <br /><br />और इसे अपनी नियति मान <br />झुक जाती हैं सदा के लिए<br /><br />स्त्री विमर्श पर इस दौर की मर्म स्पर्शी रचना .घर के लिए जीती औरत ,घर में कहीं नहीं होती .अस्तित्व हीन यही उसकी नियति .सहर्ष स्वीकार ,निर्विकार भाव .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-32204881892876029672012-10-27T21:47:12.568+05:302012-10-27T21:47:12.568+05:30उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबं...उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था। उन्होंने <br /><br />इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में लगभग तीन साल तक कटाक्ष नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा। <br /><br />बहुत बहुत बधाई इस नाम चीन साहित्यिक हस्ती के जन्म दिन पर .हमारा सौभाग्य :चित्त कोबरा हमने भी पढ़ा था उस दौर में .विवादास्पद अंश तो याद भी है .चूचुक शब्द पहली मर्तबा यहीं पढ़ा था virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-78593930541016003292012-10-27T21:17:48.599+05:302012-10-27T21:17:48.599+05:3035) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पा...35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने <br /><br />ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी<br /><br /> टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर <br /><br />भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..<br /><br />एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई <br /><br />ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो <br /><br />एक <br /><br />के मन को आह्लादित करे ,दूसरे <br /><br />के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .<br /><br />भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच <br /><br />का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .<br /><br />इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .<br /><br />गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,<br /><br />कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .<br /><br />जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?<br /><br />बतलादें उनको -<br /><br />मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .<br /><br />बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .<br /><br />अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -<br /><br />लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -<br /><br />तर्क की मीनार <br /><br />मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -<br /><br />तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,<br /><br />पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -<br /><br />इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,<br /><br />क्योंकि मैं जानता हूँ -<br /><br />क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,<br /><br />क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -<br /><br />क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .<br /><br />अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,<br /><br />जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -<br /><br />चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,<br /><br />कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,<br /><br />जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,<br /><br />और बाकी सबको आज़ादी है .<br /><br />(समाप्त )<br /><br />वीरुभाई :<br /><br />इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।<br /><br />नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-36697120398376969302012-10-27T21:11:10.747+05:302012-10-27T21:11:10.747+05:30बहुत बढ़िया चर्चाबहुत बढ़िया चर्चाvandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-49253710362371378462012-10-27T20:34:57.767+05:302012-10-27T20:34:57.767+05:30मेरे कार्टून को भी सम्मिलित करने के लिए आपका आ...मेरे कार्टून को भी सम्मिलित करने के लिए आपका आभारKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-23874070632742110752012-10-27T20:06:26.017+05:302012-10-27T20:06:26.017+05:30बढ़िया व्यंजना .बढ़िया रूपक चूहे का .
ठनी लड़ाई...बढ़िया व्यंजना .बढ़िया रूपक चूहे का .<br /><br /><br />ठनी लड़ाई<br /><br />आज मेरी गणपति की सवारी के साथ ठन गई| गणपति के सामने लड्डुओं से भरा थाल रखा था| उन लड्डुओं पर भक्त होने के नाते मैं अपना अधिकार समझ रही थी और वह मूषक अपना...आखिर गणेश का प्रिय जो था| मेहनत की कमाई से लाए लड्डुओं को लुचकने के लिए वह तैयार बैठा था| चूहों की तरह कान खडे करके गोल-गोल आँखें मटकाता दूर से ही वह सतर्क था कि मैं कब अपनी आँखें बन्द करके ध्यान में डूबूँ और वह लड्डुओं पर हाथ साफ करे| मैं भी कब दोनों आँखें बन्द करने वाली थी| एक आँख बन्द करके गणेश जी को खुश किया और दूसरी आँख खुली रखकर चूहे पर नजर रखी| किन्तु ये भी कोई पूजा हुई भला...देवता से ज्यादा ध्यान चूहे पर!<br />पल भर के लिए सीन बदल गया| थाल में लड्डुओं की जगह मेहनत की कमाई दिख रही थी और चूहे में वह भ्रष्टाचारी जो एरियर का बिल बनाने के लिए पैसों पर नजर जमाए बैठा था| फिर तो मैंने भी ठान लिया...उस चूहे को एक भी लड्डू नहीं लेने दूँगी|virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-48221040019992384332012-10-27T20:01:27.088+05:302012-10-27T20:01:27.088+05:30यही विश्वास बाकी है
किसी का ख्वाब मत तोड़ो, मेरी ...यही विश्वास बाकी है<br /><br />किसी का ख्वाब मत तोड़ो, मेरी इतनी गुजारिश है<br />दिलों को दिल से जोड़ें हम, यही दिल की सिफारिश है<br />जहाँ पे ख्वाब टूटेंगे, क़यामत भी वहीं लाजिम<br />इधर दिल सूख जाते हैं, उधर नैनों से बारिश है<br /><br />हकीकत से कोई उलझा, कोई उलझा बहाने में<br />बहुत कम जूझते सच से, लगे हैं आजमाने में<br />कहीं पर गाँव बिखरे हैं, कहीं परिवार टूटा है<br />दिलों को जोड़ने वाले, नहीं मिलते जमाने में<br /><br />निराशा ही मिली अबतक, मगर कुछ आस बाकी है<br />जमीनें छिन रहीं हैं पर, अभी आकाश बाकी है<br />भले हँसकर या रो कर अब, हमे तो जागना होगा<br />उठेंगे हाथ मिलकर के, यही विश्वास बाकी है<br /><br />पलट कर देख लें खुद को, नहीं फुरसत अभी मिलती<br />मुहब्बत बाँटने पर क्यों, यहाँ नफरत अभी मिलती<br />मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है<br />सुमन हों एक उपवन के, वही फितरत अभी मिलती<br /><br />Posted by श्यामल सुमन at 8:05 PM <br />Labels: मुक्तक<br />सुमन जी श्यामल मुक्तक नहीं यह तो पूरा प्रबंध काव्य है दास्ताने हिन्द है .<br />मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है<br />सुमन हों एक उपवन के, वही फितरत अभी मिलतीvirendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-73926896953179154272012-10-27T18:26:22.204+05:302012-10-27T18:26:22.204+05:30बहुत बढ़िया विवरण पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को सम...बहुत बढ़िया विवरण पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को समेटे हुए .<br /><br />चश्में चौदह चक्षु चढ़, चटचेतक चमकार ।<br />रेगिस्तानी रेणुका, मरीचिका व्यवहार ।<br />मरीचिका व्यवहार, मरुत चढ़ चौदह तल्ले ।<br />मृग छल-छल जल देख, पड़े पर छल ही पल्ले ।<br />मरुद्वेग खा जाय, स्वत: हों अन्तिम रस्में ।<br />फँस जाए इन्सान, ढूँढ़ नहिं पाए चश्में ।।<br /><br />मरुकांतर में जिन्दगी, लगती बड़ी दुरूह ।<br />लेकिन जैविक विविधता, पलें अनगिनत जूह ।<br />पलें अनगिनत जूह, रूह रविकर की काँपे।<br />पादप-जंतु अनेक, परिस्थिति बढ़िया भाँपे ।<br />अनुकूलन में दक्ष, मिटा लेते कुल आँतर ।<br />उच्च-ताप दिन सहे, रात शीतल मरुकांतर ।।<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />रविकर फ़ैज़ाबादी की कुण्डलिया<br /><br />सबसे पहले मुबारक बाद .(कुंडलियां )द्वितीय पुरस्कार - रविकर<br /><br />दोहे<br />हवा-हवाई रेत-रज, भामा भूमि विपन्न ।<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />रेतोधा वो हो नहीं, इत उपजै नहिं अन्न ।।<br />रेत=बालू / वीर्य<br />उड़ती गरम हवाइयाँ, चेहरे बने जमीन ।<br />शीश घुटाले धनहरा, कुल सुकून ले छीन ।।<br />(शीश घुटाले = सिर मुड़वाले / शीर्ष घुटाले धनहरा = धन का हरण करने वाला )<br />भ्रष्टाचारी काइयाँ, अरावली चट्टान ।<br />रेत क्षरण नियमित करे, हारे हिन्दुस्तान ।।<br />कंचन-मृग मारीचिका, विस्मृत जीवन लक्ष्य ।<br />जोड़-तोड़ की कोशिशें, साधे भक्ष्याभक्ष्य ।|<br /><br />चाहत के अशआर virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-47785957669462093042012-10-27T18:25:17.419+05:302012-10-27T18:25:17.419+05:30
बहुत खूब कहा है जो भी कहा है यारा .
Friday, ...<br />बहुत खूब कहा है जो भी कहा है यारा .<br /><br /><br />Friday, October 26, 2012<br /><br />एहसास तेरी नज़दीकियों का<br /><br /><br />एहसास तेरी नज़दीकियों का सबसे जुड़ा है यारा,<br />तेरा ये निश्छल प्रेम ही तो मेरा खुदा है यारा |<br /><br />ज़ुल्फों के तले तेरे ही तो मेरा आसमां है यारा,<br />आलिंगन में ही तेरे अब तो मेरा जहां है यारा |<br /><br />तेरे इन सुर्ख लबों पे मेरा मधु प्याला है यारा,<br />मेरे सीने में तेरे ही मिलन की ज्वाला है यारा |<br /><br />समा जाऊँ तुझमे, मैं सर्प हूँ तू चन्दन है यारा,<br />तेरे सानिध्य के हर पल को मेरा वंदन है यारा |<br /><br />आ जाओ करीब कि ये दूरी न अब गंवारा है यारा,<br />गिरफ्त में तेरी मादकता के ये मन हमारा है यारा,<br /><br />समेट लूँ अंग-अंग की खुशबू ये इरादा है यारा,<br />नशा नस-नस में अब तो कुछ ज्यादा है यारा |<br /><br />कर दूँ मदहोश तुझे, आ मेरी ये पुकार है यारा,<br />तने में लता-सा लिपट जाओ ये स्वीकार है यारा |<br /><br />पास बुलाती मादक नैनों में अब डूब जाना है यारा,<br />खोकर तुझमे न फिर होश में अब आना है यारा |<br /><br />एहसास तेरी नज़दीकियों का एक अभिन्न हिस्सा है यारा,<br />एहसास तेरी नज़दीकियों का अवर्णनीय किस्सा है यारा |virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-39411266009234311462012-10-27T18:20:48.207+05:302012-10-27T18:20:48.207+05:30चाहत के अशआर
जानती थी नहीं आओगे ,
ले जाना उस चौ...चाहत के अशआर <br /><br />जानती थी नहीं आओगे ,<br /> ले जाना उस चौराहे पे खड़े ,<br /><br />गुलमोहर के तने पर लिखे ,<br />चाहत के अशआर और दीवानगी के निशाँ .<br /><br />खूब सूरत प्रयोग धर्मी भाव कणिका .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-89626467920576003032012-10-27T18:15:54.998+05:302012-10-27T18:15:54.998+05:30वाह !
सतरंगी हो रहा है आज तो चर्चा मंच
मृदुला जी ...वाह ! <br />सतरंगी हो रहा है आज तो चर्चा मंच<br />मृदुला जी को जन्मदिन की बधाई<br />और साथ में आभार लिंक चुनने के लिये <br />वीरू वीरू छा रहे हैं टिप्पणी की बौछारों के साथ <br />क्या स्टेमिना है भाई वीरू लगे रहिये :))सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-13903952469930399232012-10-27T18:13:16.927+05:302012-10-27T18:13:16.927+05:30बहुत बढ़िया विवरण पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को सम...बहुत बढ़िया विवरण पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को समेटे हुए .<br /><br />चश्में चौदह चक्षु चढ़, चटचेतक चमकार ।<br />रेगिस्तानी रेणुका, मरीचिका व्यवहार ।<br />मरीचिका व्यवहार, मरुत चढ़ चौदह तल्ले ।<br />मृग छल-छल जल देख, पड़े पर छल ही पल्ले ।<br />मरुद्वेग खा जाय, स्वत: हों अन्तिम रस्में ।<br />फँस जाए इन्सान, ढूँढ़ नहिं पाए चश्में ।।<br /><br />मरुकांतर में जिन्दगी, लगती बड़ी दुरूह ।<br />लेकिन जैविक विविधता, पलें अनगिनत जूह ।<br />पलें अनगिनत जूह, रूह रविकर की काँपे।<br />पादप-जंतु अनेक, परिस्थिति बढ़िया भाँपे ।<br />अनुकूलन में दक्ष, मिटा लेते कुल आँतर ।<br />उच्च-ताप दिन सहे, रात शीतल मरुकांतर ।।<br /><br /><br /><br />रविकर फ़ैज़ाबादी की कुण्डलिया<br /><br />सबसे पहले मुबारक बाद .(कुंडलियां )द्वितीय पुरस्कार - रविकर<br /><br />दोहे<br />हवा-हवाई रेत-रज, भामा भूमि विपन्न ।<br />रेतोधा वो हो नहीं, इत उपजै नहिं अन्न ।।<br />रेत=बालू / वीर्य<br />उड़ती गरम हवाइयाँ, चेहरे बने जमीन ।<br />शीश घुटाले धनहरा, कुल सुकून ले छीन ।।<br />(शीश घुटाले = सिर मुड़वाले / शीर्ष घुटाले धनहरा = धन का हरण करने वाला )<br />भ्रष्टाचारी काइयाँ, अरावली चट्टान ।<br />रेत क्षरण नियमित करे, हारे हिन्दुस्तान ।।<br />कंचन-मृग मारीचिका, विस्मृत जीवन लक्ष्य ।<br />जोड़-तोड़ की कोशिशें, साधे भक्ष्याभक्ष्य ।|<br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-8253879589959797082012-10-27T17:59:45.713+05:302012-10-27T17:59:45.713+05:30Thanks for Beautiful Links
Make Blog Index: All P...Thanks for Beautiful Links<br /><br /><a href="http://techprevue.blogspot.in/2012/10/create-blog-index-for-blogger-blogs.html" title="Tech Prévue · तकनीक दृष्टा « Blogging, SEO, Make money, Computer technology, tutorials, tips and tricks" rel="nofollow">Make Blog Index: All Posts at 1 Page</a>Vinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137307154008006972.post-19797287345559738152012-10-27T12:07:00.634+05:302012-10-27T12:07:00.634+05:30badhiya charcha badhiya charcha travel ufohttps://www.blogger.com/profile/15497528924349586702noreply@blogger.com