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गुरुवार, जून 29, 2023

"रब के नेक उसूल" (चर्चा अंक 4670)

 मित्रों!

प्रस्तुत है जून के अन्तिम गुरुवार की चर्चा!

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दोहे "मना रहा है ईद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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मेले से लाता नहींचिमटा आज हमीद।

हथियारों के साथ अबमना रहा है ईद।।

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खून-खराबे का चलारमजानों में दौर।

आयत पर कुरआन कीनहीं किसी का गौर।।

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दोहे "पड़ने लगी फुहार" 

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नभ में बादल छा गये, गाओ राग मल्हार।
मानसून अब आ गया, पड़ने लगी फुहार।।
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लोगों के अब हो गया, इन्तजार का अन्त।
आनन्दित होने लगे, निर्धन और महन्त।। 

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पेड़ लगाने का आनंद  

राजकीय मेडिकल कॉलेज परिसर में आवास मिलने के बाद इसे हरा-भरा बनाने की कोशिश कर रहा हूँ। साग-सब्जी और फूल-पत्ती उगाने के उपक्रम प्रारम्भ हो चुके हैं जो निराई-गुड़ाई की निरंतरता मांगते हैं। मेरे सहयोगी मोहनलाल इसे बखूबी कर रहे हैं। इसके साथ ही अहाते में कुछ स्थायी करने की इच्छा व्यक्त करने पर मेरे सहकर्मी सोहन बाबू आज मुझे अम्बाला रोड पर स्थित 'बगिया नर्सरी' नामक पौधशाला में लेकर गये। हमने परिसर में उपलब्ध स्थान को देखते हुए दो आम्रपाली, दो आंवले, एक नीबू और एक अमरूद का पेड़ खरीदा। घर लाकर उसे तत्काल गढ्ढा खोदकर रोप दिया। इस कार्य मे सहयोग स्वरूप बॉबी माली व वाहन चालक जावेद ने भी श्रमदान किया।

 सत्यार्थमित्र 

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सूरजमुखी 

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“सदा सर्वदा” 

शीत-घाम की राह में ,

वक़्त का पहिया चला करे ।

 बन के साहस एक दूजे का ,

सदा सर्वदा साथ चले ॥

मंथन 

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हर बार 

हर संघर्ष जन्म देता है सृजन को 

अत: भागना नहीं है उससे 

चुनौती को अवसर में बदल लेना है 

कई बार बहा ले जाती है बाढ़ 

व्यर्थ  अपने साथ 

और छोड़ जाती है 

कोमल उपजाऊ माटी की परत खेतों में 

मन पाए विश्राम जहाँ 

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जीवन के रूप अलग से दिखाई देते 

हंसना रोना खिलखिलाना
 है बहाना जिन्दगी जीने का
 यह गुण आए कहाँ से आए
 किसी ने नहीं कबूले  

Akanksha -asha.blog spot.com 

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घनेरी घटाओं का आलय – मेघालय – 9 

12 मई – शानदार शिलौंग के भव्य दर्शनीय स्थल

11 मई का दिन बहुत रोमांचक तथा शारीरिक और मानसिक थकन भरा था ! लिविंग रूट ब्रिज, जिसके बारे में आपने विस्तार से पिछली पोस्ट  में पढ़ा होगा, तक जाना और आना, फिर दूर पार्किंग में खड़ी बस तक पहुँचने की कवायद और फिर मावलिन्नोंग विलेज में पैदल घूमना कुल मिला कर शरीर पर कुछ अधिक ही अत्याचार सा हो गया ! ये डर था अगले दिन सुबह समय से उठ भी पायेंगे या नहीं, उठ गए तो ठीक से खड़े भी हो पायेंगे या नहीं 

Sudhinama 

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जिसने भेद स्वयं का जाना  

संत व शास्त्र कहते हैं, विद्यामाया  विशिष्ट चेतन के कारण ब्रह्म ईश्वर की उपाधि  ग्रहण करता है और अविद्यामाया विशिष्ट चेतन के कारण ब्रह्म जीव की उपाधि ग्रहण करता है। जीव और ईश्वर का एकत्व उनके ब्रह्म होने में है और भेद विद्या और अविद्या के कारण है। ईश्वर माया का अधिपति है और जीव माया का सेवक है। ईश्वर योगमाया  का उपयोग करके जगत का कल्याण करता है, जीव महामाया के वशीभूत होकर विकारों से ग्रस्त हो जाता है। ईश्वर सदा अपने चैतन्य स्वरूप को जानता है, जीव स्वयं को जड़ देह और मन आदि मान लेता है। जिस क्षण जीव को अपने ब्रह्म होने का भान हो जाता है, वह ईश्वर से जुड़ जाता है।  

डायरी के पन्नों से अनीता 

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प्रेम 

प्रेम वो नहीं जो तुमने किया
अपनी सुविधा के अनुसार
बल्कि प्रेम वो था 
जो तुम्हारे पास समय की 
कमी के कारण
तुम्हारे आफिस की फाइलों में बंद रहा 
और मैं दिन महीने साल दर साल प्रतीक्षारत रही 

कावेरी 

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रंग और ब्रश 

रात्रि के नौ बजने वाले हैं। आज मौसम अपेक्षाकृत गर्म है। कहीं से एक बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही है, जो सदा ही उसे विचलित कर देती है। शायद वह गिर गया हो, या उसे किसी बात पर डांट पड़ी हो। असम में कितनी बार बाहर जाकर रोते हुए बच्चों को हंसाने की कोशिश करती थी,

एक जीवन एक कहानी 

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मेरी कलम से संग्रह समीक्षा कोशिश माँ को समेटने की....संजय भास्कर 

दिगंबर जी चाहते थे जब भी उनकी पहली किताब का प्रकाशन हो माँ को समर्पित हो क्योंकि लिखने की प्रेरणा उन्ही से मिली....इसमे नासवा जी लिखते है इसे किताब कहूँ, डायरी या कुछ और जो भी नाम दूँ इसे पर ये गुफ्तगू है मेरी मेरे अपने साथ आप कहेंगे अपने साथ क्यों... माँ से क्यों नहीं? मैं कहूँगा माँ मुझसे अलग कहाँ लम्बा समय माँ के साथ रहा लम्बा समय नहीं भी रहा पर उनसे दूर तो कभी भी नहीं रहा... ये एक ऐसा अनुभव जिसको सोते जागते, हर पल मैंने महसूस किया है...  

शब्दों की मुस्कुराहट :) 

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हिन्दू संस्कृति का रहस्य और विज्ञान 

हमारे देश में ऐसी कई चीज़ें होती हैं, जिनके पीछे की वजह के बारे में हम नहीं जानते। कुछ बातों का पालन हम अपने पूर्वजों को देख कर करते चले आ रहे हैं। कुछ चीज़ें हम दूसरों की देखा-देखी करने लगते हैं। आज यहां चर्चा करेंगे हिंदू परम्पराओं के पीछे छिपे वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में। सनातन हिंदू धर्म को मानने वाले इस लेख को अवश्य पढ़ें और साथ ही विज्ञान को मानने वाले भी। हिंदू परम्पराओं पर हँसने वाले और उसे ढकोसला कहने वाले लोगों की सोच शायद यह लेख पढ़कर बदल जायेगी। क्योंकि सदियों से चली आ रही परंपरा के पीछे कितने ही वैज्ञानिक तथ्य छुपे हुए हैं। 

1. नदी में सिक्के डालना

नदी में सिक्के डालना

नदी में सिक्के क्यों फेंके जाते हैं? बस या ट्रेन से सफर करते समय जब हम नदियों से गुजरते हैं, तो लोगों को नदियों में सिक्के डालते हुए देखते हैं।  

Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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जीवन एक पहेली जैसा ! 

जीवन यह संदेश सुनहरा !

छोटा  मन  विराट हो  फैले

ज्यों बूंद बने सागर अपार,

नव कलिका से  कुसुम पल्लवित 

क्षुद्र बीज बने वृक्ष विशाल !

मन पाए विश्राम जहाँ 

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मूँदी पलकों से ...  पर .. पगली ! .. यूँ भी युवा आँखें  इन मौकों पर तब वैसे भी तो खुली कहाँ होती थीं भला !? खुली-अधखुली-सी .. मूँदी पलकों से ही तो  पढ़ा करते थे हम 'ब्रेल लिपि' सरीखी  एक-दूजे की बेताबियाँ .. बस यूँ ही ... 

बंजारा बस्ती के बाशिंदे 

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तिल वाला लड़का उसके दायें कंधे पर तिल नहीं था मगर ये तो बस उसे पता था. मुझे इतना मालूम है कि आज लिखने की मेज पर जब बैठी तभी अचानक मेरे मन में एक रुमान उभरा...अगर प्रेमी के दायें कंधे पर तिल हो, प्रेमिका अपने होंठ उस पर रखे तो प्रेमी के मन की सिहरन मेरी कविता के पन्नों को कितना गुलाबी कर सकेगी...

फिर क्या लोगों ने आँखों के खंजर से कुरेदना शुरु किया अब उसके दायें कंधे पर तिल होने से कौन रोक सकता है. तिल काला हो, भूरा हो या लाल क्या फर्क पड़ता, गुलाबी मोहब्बत ने तो जन्म ले लिया.
वो मोहब्बत नहीं जो दिल से आँखों में उतरकर स्याही बनी बल्कि वो मोहब्बत जो क़ागज़ पर बिन आग के धुएँ सी जली. हाँ, ये और और बात है कि तुम अपनी गर्दन पर हाथ फेरकर सोच रहे होगे कि कहानियों के रुमान में भीगी पागल सी लड़की कहीं इसी तिल की बात तो नहीं कर रही! 

ज़िन्दगी, तुम्हारे लिए! 

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भ्रम का झूला 

सुखद भ्रमों का झूला टूटा।

पेंगों ने रह-रह कर लूटा॥


लटक रहा रेशम डोरी पे,

झूला था मन के आँगन में।

झूल रहा था रोम-रोम मेरा,

वो बाँधे निज आलिंगन में।

मैं झूली कुछ ऐसे झूली

भूल गई अपनी काया भी,

खुलती जाती डोर स्वयं से

बिखरा जाता बूटा-बूटा॥

जिज्ञासा की जिज्ञासा 

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अभी भी विकल्प है जब तुम स्वयं नहीं सिखाओगे तो कोई और सिखा जाएगा जब तुम खुद नहीं बताओगे तो कोई और पाठ पढ़ाएगा यही होता आया है और आगे भी यही होगा तुम्हारे बच्चो का भविष्य  दिशा 

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द्वी झण 

सैकिला द्वी पय्या

दगड़ रिंगण, दगड़ घिसण

पल-हरपल इंच-इंच खपण

जबाबदरी पर बरोबर

अग्वाड़ी-पिछवाड़ी अदला-बदली। 

उदंकार 

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डायरी - यशपाल निर्मल | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास 

डायरी - यशपाल निर्मल | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास

कहानी 

गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो गई थी और गनेश को खुश होना चाहिए था। वह खुश तो था पर इस खुशी में थोड़ी परेशानी भी घुली हुई थी क्योंकि गनेश की हिंदी शिक्षिका ने उन्हें छुट्टी की एक डायरी बनाने को कहा था।

गनेश इन गर्मियों की छुट्टियों में अपने नाना जी के घर अखनूर जाना चाहता था। 

पर अब यह डायरी का चक्कर उसे परेशान किए हुए था। गनेश को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस डायरी में क्या लिखेगा। 

एक बुक जर्नल 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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शनिवार, जून 24, 2023

"गगन में छा गये बादल" (चर्चा अंक 4669)

 मित्रों!

आज की चर्चा में आपका स्वागत है।

देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

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मरुस्थल सरीखी आँखें 

उसने कहा-

मरुस्थल सरीखी आँखों में 

मृगमरीचिका-सा भ्रम जाल होता है

यद्यपि बहुत पहले

मरुस्थल, मरुस्थल नहीं थे 

वहाँ भी पानी के दरिया 

 जंगल हुआ करते थे 

 गिलहरियाँ ही नहीं उसमें 

गौरैया के भी नीड़ हुआ करते थे  

गूँगी गुड़िया अनीता सैनी 'दीप्ति'

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अंधेरों में शमां रौशन करेंगे हम ( ग़ज़ल ) 

अंधेरों में शमां रौशन करेंगे हम 
चढ़ा दो आप सूली पर चढ़ेंगे हम । 
 
बड़ा ही बेरहम बेदर्द ज़ालिम है 
जो है क़ातिल मसीहा क्यों कहेंगे हम ।   

डॉ लोक सेतिया ' तनहा ' 

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कई मधुर स्वप्न जागे 

सुदूर मुहाने में हैं अप्रत्याशित
कई  मधुर स्वप्न जागे,
चंचल सरिता और
जलधि मिलते
हैं दूर कहीं
जा आगे ,
अग्निशिखा 

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गीत  "आ गया है दादुरों को गीत गाना" 

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आज नभ पर बादलों का है ठिकाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
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कल तलक लू चल रही थी,
धूप से भू जल रही थी,
आज हैं रिमझिम फुहारें,
लौट आयी हैं बहारें,
बुन लिया है पंछियों ने आशियाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।

उच्चारण 

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सारा जीवन बीत रहा 

सारा जीवन बीत रहा

 पर संतोष ना  मिला कहीं भी

जीवन एक किराए की झोंपड़ी

मन को आराम मिला ना मिला |

कविता लिखने से मन उचटा

ना कोई नये शब्दों का काफिला मिला

चलता रहा आगे आगे 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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सीख लें योग 

 आप सभी को योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

सीख लें योग

योग दिवस
सिखलाता है हमें
जीने का ढंग

योग साधना
हमारे जीवन की
हो आराधना

Sudhinama 

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छत्तीसगढ़ का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Chhattisgarh || 

छत्तीसगढ़ का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Chhattisgarh ||

वर्ष 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन उपरांत राज्य के राजकीय के राजकीय पशु, पक्षी इत्यादि चिन्हित कर घोषित किये हैं। वर्ष 2002 में  “पहाड़ी मैना” को छत्तीसगढ़ का राजकीय/राज्य पक्षी घोषित किया गया। मुख्यतः यह बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है। इसे “कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान” में संरक्षित किया गया है। पहाड़ी मैना का जीवनकाल औसतन 8 वर्ष होता है।   

Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. कृष्णकुमार ’नाज़’ के ग़ज़ल संग्रह ’दिये से दिया जलाते हुए’ की इंजी. राशिद हुसैन द्वारा की गई समीक्षा .…..समाज को आईना दिखाती ग़ज़लें 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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हरदी गुरदी 

कभी-कभी जी चाहता है   

इतना जिऊँ इतना जिऊँ इतना जिऊँ

कि ज़िन्दगी कहे-

अब बस! थक गई! अब और नहीं जी सकती! 

हरदी गुरदी! हरदी गुरदी! हरदी गुरदी!

पर सोचती हूँ

मैं ज़िन्दा भी हूँ क्या?

जो इतना जिऊँ इतना जिऊँ इतना जिऊँ

क्यों जियूँ, कैसे जियूँ, कितना जियूँ? 

लम्हों का सफ़र जेन्नी शबनम

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आसान है शायद... 

हिंदी,अंग्रेजी, उर्दू,बंग्ला, उड़िया,मराठी
भोजपुरी, मलयाली, तमिल,गुजराती
आदि,इत्यादि ज्ञात,अज्ञात
लिखने वालों की अनगिनत है जमात
कविता,लेख ,कथा,पटकथा,नाटक
विविध विधा के रचनात्मक वाचक 

मन के पाखी 

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सीमा 

बहुत सोच-समझ कर,

बहुत ध्यान से 

मैंने तुम पर कविता लिखी,

जैसे कोई सामने बिठाकर 

किसी का चित्र बनाये. 

मैं बुरा कवि नहीं हूँ,

पर मैंने जो कविता लिखी,

उसमें तुम पूरी नहीं थी. 

कविताएँ 

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जैसी दिशा वैसी दशा 

"कोई कार्य शुरू करने से पहले हमें मेहनत बहुत करनी पड़ती है। अपना और आपके दिल-दिमागों की धुलाई करनी पड़ती है।और साथ ही नजरों से धुँध छाँटनी पड़ती है। जी हाँ, मित्रों! वैद्युतकशास्त्र संचार माध्यम (इलेक्ट्रानिक मीडिया) से मैं आपकी पत्रकार मित्र मानवी और मेरे संग हैं चलचित्रकार चेतन

फोटोग्राफी का मजा बढ़ जाएँ,

अगर कोई दृश्य दिल में उतर जाएँ 

"सोच का सृजन" 

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पुनर्जन्म 

Rebirth story

पूरे पन्द्रह दिन बाद जब भुविका ननिहाल से लौटी तो  माँ (अनुमेधा) उसे बड़े प्यार से गले लगाकर उलाहना देते हुए बोली,  "उतर गया तेरा गुस्सा ? नकचढ़ी कहीं की ! इत्ते दिनों से नानी के पास बैठी है, अब कुछ ही दिनों में जॉब के लिए चली जायेगी, माँ का तो ख्याल ही नहीं है ! है न" ! 

Nayisoch 

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योग दिवस 

परिचय भला क्या दूं सभी को अपना
देश की सभ्यता संस्कृति,कर्तव्य अपना
देशभक्ति में डूबा देश का एक रक्षक हूं
मौन गरीबों,क्षुधा पीड़ितों का हुंकार हूं।। 

सागर लहरें उर्मिला सिंह 

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भारत-अमेरिका सहयोग की लंबी छलाँग 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 से 25 जून तक अमेरिका और मिस्र की यात्रा पर जा रहे हैं. यह यात्रा अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है, और उसके व्यापक राजनयिक निहितार्थ हैं. यह तीसरा मौका है, जब भारत के किसी नेता को अमेरिका की आधिकारिक-यात्रा यानी स्टेट-विज़िट’ पर बुलाया गया है.

इस यात्रा को अलग-अलग नज़रियों से देखा जा रहा है. सबसे ज्यादा विवेचन सामरिक-संबंधों को लेकर किया जा रहा है. अमेरिका कुछ ऐसी सैन्य-तकनीकें भारत को देने पर सहमत हुआ है, जो वह किसी को देता नहीं है. कोई देश अपनी उच्चस्तरीय रक्षा तकनीक किसी को देता नहीं है. अमेरिका ने भी ऐसी तकनीक किसी को दी नहीं है, पर बात केवल इतनी नहीं है. यात्रा के दौरान कारोबारी रिश्तों से जुड़ी घोषणाएं भी हो सकती हैं.

जिज्ञासा 

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मनोज मुन्तशिर का लेखन सीमा में बंधे 

"कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की  और जलेगी भी तेरे बाप की"  भक्त शिरोमणि हनुमानजी के मुख से इस तरह के सड़क छाप डायलाग कहलाती "आदिपुरुष" के डायलाग राइटर "मनोज मुन्तशिर" शायद लंकेश रावण के पश्चात दूसरे ब्राह्मण होंगे जिन्होंने श्री राम के चरित्र के साथ खिलवाड़ करने का असहनीय कृत्य किया है. जिस दिन से" आदिपुरुष" सनातन धर्मावलंबियों के सामने आई है शायद ही कोई सच्चा सनातनी होगा जो मनोज मुन्तशिर के अनोखे ज्ञान को लेकर कम से कम दो शब्द विरोध में न बोला हो और जिस तरह से हमेशा होता आया है गलत अपनी गलतियों को कभी स्वीकार नहीं करता अपितु और नई गलतियां करना आरंभ कर देता है. पहले तो असभ्यता, अश्लीलता की सीमाएं पार कर "आदिपुरुष" ने हिन्दू धर्म को कलंकित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी थी, अब मनोज मुन्तशिर और कहने के लिए आगे बढ़े हैं, रामायण के गहरे जानकार मनोज मुन्तशिर कहते हैं - "बजरंग बली ने भगवान राम की तरह से संवाद नहीं किए हैं। क्योंकि वे भगवान नहीं भक्त हैं, भगवान हमने उन्हें बनाया है, उनकी भक्ति में वह शक्ति थी।"

! कौशल ! 

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घुमक्कड़ी 

कहते है ना कि 'उसकी' मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। इस बात से मैं पुरा सरोकार रखती हूँ ।
       इस बार हमने स्पिति वैली की ट्रिप प्लान की थी, सब बहुत अच्छे से प्रीप्लान्ड था। जैसा कि हम अक्सर सोचते है कि सब कुछ हमारी प्लानिंग से होगा और प्लानिंग थोड़ा भी बिगड़ती है तो हम इरीटेट हो जाते है ।  भूल जाते है कि.....
       होइहि सोइ जो राम रचि राखा। 
     को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ 

मेरे मन का एक कोना 

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एक स्त्री हर हाल में रहकर भी अन्याय के विरुद्ध लड़ना नहीं छोड़ती 

          फिल्म हो या टीवी सीरियल उन्हें देख मुझे कभी भी वह आत्मतृप्ति नहीं मिलती, जितनी किसी थिएटर में मंचित नाटक को देखकर मिलती है।  कारण स्पष्ट है नाटक जैसा जीवंत मंचीय संवाद किसी अन्य मंच में कहाँ देखने को मिलता है?  इसमें अपनी आँखों के सामने मंच पर आकर जब नाटक के पात्र अपने प्रभावशाली अभिनय कला का प्रयत्क्ष प्रदर्शन कर किरदारों को जीवंत करते हैं तो ऐसा अनुभव होता है जैसे सब कुछ हमारी आँखों के सामने एक के बाद एक घटित हो रहा हो। ऐसा ही एक अवसर मुझे सोमवार शाम को मिला, जब हम शहीद भवन, भोपाल में आदर्श शर्मा द्वारा निर्देशित नाटक 'पुरुष ' का मंचन देखने गए। Kavita Rawat Blog 

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चले योग की राह पर जो भी आज के समय में लोग बाहर इतना उलझ गये हैं कि अपने भीतर जाने की राह नहीं मिलती। कहीं कोई प्रकाश का स्रोत मिल जाये तो वे उसके पास जमा हो जाना चाहते हैं। आश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। कथाओं, मंदिरों, सत्संगों में भी भीड़ ज्यादा है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है यह कारण तो है ही, पर सामान्य जीवन में इतना दुख, इतनी अशांति है कि लोग कुछ और पाना चाहते हैं। संत कहते हैं, साधना करो, भीतर जाओ, अंतर्मुखी बनो, पर ऐसा कोई-कोई ही करते हैं। अधिकतर तो भगवान को भी बाहर ही पाना चाहते हैं।डायरी के पन्नों से अनीता 

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आओ नित ही योग करें 

आओ नित ही योग करें,

तन मन सदा नीरोग करें।

खुली जगह  में योग करें,

जीवन का सुख भोग करें।। 

-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

काव्य दर्पण 

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#टुकड़े टुकड़े में होना #खतम नहीं .... 

मत मानो इतनी आसानी से #हार ,

#Abhivyakti Deep - #अभिव्यक्ति दीप 

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गीत "भा गये बादल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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बड़ी हसरत दिलों में थी, गगन में छा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
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गरज के साथ आयें हैं, बरस कर आज जायेंगे,
सुहानी चल रही पुरवा, सभी को भा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।। 

उच्चारण 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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