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रविवार, मई 28, 2023

"कविता का आधार" (चर्चा अंक-4666)

 मित्रों!

मई के अन्तिम रविवार की चर्चा में 

आपका स्वागत है।

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दोहे "सूरज से हैं धूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

होते गीत-अगीत हैं, कविता का आधार।
असली लेखन है वही, जिसमें हों उदगार।।
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पुस्तक समीक्षा 

"मृग-मरीचिका" डॉ.राज

विमोचित पुस्तक

"मृग-मरीचिका"

(राज सक्सेना)

   सबसे पहले तो मैं हमारे बीच के ही खटीमा के साहित्यगौरव राजकिशोर सक्सेना डॉ. राज को उनकी प्रकाशित पुस्तक "मृग-मरीचिका" के विमोचन के अवसर पर बधाई देता हूँ। अब तक जिन्हें हम लोग मात्र एक कवि के रूप में जानते थे, किन्तु "मृग-मरीचिका" के लोकार्पण से आज उन्हें सम्पूर्ण समाज एक विश्लेषक और गद्यकार के रूप में पहचानेगा।

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प्रतीक्षारत 

बँधी भावना निबाहते 

हाथ से मिट्टी झाड़ते हुए

 खुरपी से उठी निगाहों ने 

 क्षणभर वार्तालाप के बाद 

अंबर से

गहरे विश्वास को दर्शाया

 चातक पक्षी की तरह 

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मेरी ही बर्बादी का जश्न क्यों हो रहा है?

 कौन जानता है सच और झूठ के बीच का फासला, 

किसने गढ़े हैं इन दीवारों पर एक विरहन की व्यथा। 

कौन मेरे अरमानो की अर्थी को कंधा दे गया, 

किसने मेरे दुख को अपना दुख समझा है? 

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है कोई अनुबंध अनकहा 

अंक लिए संपूर्ण  सृष्टि को 
वह असीम यूँ डोल रहा है,
ह्रदय गुहा का वासी भी है 

निज रहस्य को खोल रहा है !  

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कल को जीना है!  सुनो मुझे कल को जीना है  कोई चलेगा क्या कल में? मत चलो कोई,  फिर भी मुझे वापस जीना है, 

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साँसों की ओलती ...  पूछ भर लिया क्या एक बार, मंच पर सामने से रूमानी अंदाज़ में 'स्टैंड-अप कॉमेडियन' जाकिर खान ने  कि - "लड़कियाँ इतनी महकती क्यों हैं ?" 

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हाईकू 

कितने स्वप्न

देखे हैं दिन ही मैं

समझ आई 

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मुलाक़ात हसीन लोगों से 

प्रवास के दौरान एक वरिष्ठ साहित्यकार(मंझे हुए ग़ज़लकार)श्री एमo श्रीराम जी से मिलने उनके घर भी जाना हुआ।पत्नी,बेटी और मैं आदरणीय एमoश्रीराम जी और उनके परिजनों की आत्मीयता देखकर गदगद हो गए।उन लोगों से मिलकर लगा ही नहीं कि  हम उनसे पहली बार मिले हों।इस विशुद्ध दक्षिण भारतीय परिवार के धारा प्रवाह हिंदी वार्तालाप से हम लोग बहुत प्रभावित हुए।आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी मूल रूप से आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं तथा डिफेंस विभाग से सेवानिवृत्ति के उपरांत कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू में स्थाई रूप से रहने लगे हैं।आप एक अच्छे योगा ट्रेनर भी हैं और कॉल्स पर विभिन्न विभागों और कंपनियों में योग की क्लासेज़ लेते हैं।पारिवारिक और साहित्यिक विमर्श के साथ ही मैंने उन्हें अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रति भी भेंट की।मेरे इसरार/आग्रह पर उन्होंने अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल भी सुनाई। मैंने आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी से उनकी साहित्यिक गतिविधियों पर कुछ वार्तालाप करके उनके ग़ज़ल पाठ का वीडियो भी रिकॉर्ड किया जिसे अपने यूट्यूब चैनल पर शीघ्र ही अपलोड करके आपके साथ साझा करूंगा।

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ककड़ी चोरी वाले बचपन के दिन आज सोचती हूँ कि हमारी तरह ही गांव से शहर आने के बाद कई लोग वर्षों बरस बीत जाने पर गांव नहीं जा पाते हैं, लेकिन जो गांव आते-जाते रहते हैं, उन्हें जरूर ककड़ी दिखने पर उसे चुराकर आज भी खाने का मन करता होगा। क्योंकि मैं समझती हूँ शहर में भले ही कई तरह की ककड़ी खाने को मिले, लेकिन वह चोरी कर खाई ककड़ी का स्वाद और उसके बदले मिली गाली और कभी-कभी मार शायद ही कोई भूल पाया हो, या भूला हो। क्या कहा आपने भूल गए?   अरे, न भई न..  भूलो मत ...यादें ताज़ी करो . चलिए हमारे साथ हमारे यूट्यूब चैनल "रावत कविता" में  जहाँ मैं लाई हूँ  "गांव से ककड़ी चोरों के लिए काकी-बोडी की ताज़ी-ताज़ी गालियां" ... . . याद करो बचपन और लिखो अपनी-अपनी दिल की बातें कमेंट बॉक्स में। . 

.... कविता रावत 

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धर बल, अगले पल चल जीवन 

सब सहसा एकान्त लग रहा,

ठहरा रुद्ध नितान्त लग रहा,

बने हुये आकार ढह रहे,

सिमटा सब कुछ शान्त लग रहा।


सज्जन-मन निर्जन-वन भटके,

पूछे जग सेप्रश्न सहज थे,

कपटपूर्ण उत्तर पाये नित,

हर उत्तरहर भाव पृथक थे।

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आम के बाग की साइकिल से सैर 

रास्ते में मुझे अनेक अमराइयाँ मिली जिसमें कच्चे टिकोरे दूर से ही चमक रहे थे। कुछ खेतों पर कटींले तारों की बाड़ लगी थी। पता नहीं मनुष्य या जानवर से रक्षा के लिए। एक मोड़ पर मैं रुक कर तस्वीरें लेने लगा तबतक पीछे से उस बाग के मालिक अजय शर्मा जी आ गए। उनकी उत्सुकता को शांत करते हुए मैंने अपना परिचय दिया और आश्वस्त किया कि मैं कोई रेकी नहीं कर रहा।

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हम फल नहीं खायेंगे 

A boy eating fruit

आज बाबा जब अपने लाये थोड़े से फलों को बार - बार देखकर बड़े जतन से टोकरी में रख रहे थे तब रीना ने अपने छोटे भाई रवि को बुलाकर धीमी आवाज में समझाया कि बाबा जब माँ को फल काटकर देंगे और माँ हमेशा की तरह हमें  खिलायेगी तो हम फल नहीं खायेंगे !

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हर रोज़ हमने देखा घुलती है चाँदनी 

हर रोज़ हमने देखा घुलती है चाँदनी 

हर पल जहां हसीन है, हर पल है ताज़गी 

आँखों में आओ रंग भरें, जन्नत है सामने

कैसे कहाँ छूटेगा कोई, सब कुछ है आप में 

अपनी ही कोई कमी है हमें दूसरों में दिखती

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आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे-  Suraj-Sanim आज लौटा हूँ तो हँसन की अदा भूल गया ये शहर भूला मुझे मैँ भी इसे भूल गया मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगें आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे 

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जीवन घट 

देख रही हूँ

जीवन घट रीतता ही जाता है

सुख का कोई भी पल

कहाँ थोड़ी देर भी टिकता है

वक्त के हलके से झोंके के साथ

बीतता ही जाता है ! 

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ओ गगन के जगमगाते दीप 

ओ गगन के जगमगाते दीप

"ख़ुशी किसी भी बाहरी स्थितियों पर निर्भर नही करती !
      यह हमारे मानसिक द्रष्टिकोण पर निर्भर करती है ..!!" 

ओ गगन के जगमगाते दीप!

दीन जीवन के दुलारे

खो गये जो स्वप्न सारे,

ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप?

ओ गगन के जगमगाते दीप! 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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बुधवार, मई 24, 2023

"निम्बौरी अब आयीं है नीम पर" (चर्चा अंक-4665)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

टिप्पणियाँ सभी पोस्टों पर दी गयी हैं।

आप अपना स्पैम चैक तो कीजिए! 

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गीत "निम्बौरी आयीं है अब नीम पर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

पहले छाया बौर, निम्बौरी अब आयीं है नीम पर।
शाखाओं पर गुच्छे बनकर, अब छायीं हैं नीम पर।। 
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दोहे "दो हजार का नोट"

-1-

धनवानों के कोष पर, हुई करारी चोट।

फिर से गच्चा दे गया, दो हजार का नोट।।

-2-

निर्धन तो खुश हो रहे, जमाखोर हैं सन्न।

पलभर में ही हो गये, इनके कोष विपन्न।।

उच्चारण 

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जीवन जब उपहार बनेगा हम ध्यान अर्थात् भीतर जाकर विचार करने से घबराते हैं, ऐसे विचारों से जो हमारे भीतर की कमियों को उजागर करते हैं. हम उस दर्पण में देखना नहीं चाहते जो हमें कुरूप दिखलाये तभी कठिन विषयों से भी हम घबराते हैं, जो हम जानते हैं वह सरल है पर उसी को पढ़ते-गुनते रहना ही तो हमें आगे बढ़ने से रोकता है. जब कोई हमें अपमानित करता है तब वह हमारा निकष होता है, प्रभु से प्रार्थना है कि वह उसे हमारे निकट रखे ताकि हम वही न रहते रहें जो हैं बल्कि बेहतर बनें. स्वयं की प्रगति ही जगत की प्रगति का आधार है, हम भी तो इस जगत का ही भाग हैं. हम यानि, देह, मन, बुद्धि। आत्मा तो पूर्ण है उसी को लक्ष्य करके आगे बढ़ना है.  उसी की ओर चलना है चलने की शक्ति भी उसी से लेनी है. आत्मा हमारी निकटतम है हमारी बुद्धि यदि उसका आश्रय ले तो वह उसे सक्षम बनाती है अन्यथा उद्दंड हो जाती है. आत्मा का आश्रित होने से मन भी फलता फूलता है, प्रफ्फुलित मन जब जगत के साथ व्यवहार करता है तो कृपणता नहीं दिखाता समृद्धि फैलाता है. जीवन तब एक शांत जलधारा की तरह आगे बढ़ता जाता है. तटों को हर-भरा करता हुआ, प्यासों की प्यास बुझाता हुआ, शीतलता प्रदान करता हुआ, जीवन स्वयं में एक बेशकीमती उपहार है, उपहार को सहेजना भी तो है.    डायरी के पन्नों से अनीता

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शादी में तोरण क्यों मारा जाता है और तोरण पर चिड़िया क्यों होती है? 

हिन्दू समाज में शादी में तोरण मारने की एक आवश्यक रस्म है। जो सदियों से चली आ रही है। लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते कि यह रस्म कैसे शुरू हुई। दंत कथानुसार कहा जाता है कि एक तोरण नामक राक्षस था जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था तथा दूल्हा जब द्वार पर आता तो उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था।  एक बार एक राजकुमार जो विद्वान एवं बुद्धिमान था शादी करने जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की।  बताया जाता है कि तब से ही तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई अब इस रस्म में दुल्हन के घर के दरवाजे पर लकड़ी का तोरण लगाया जाता है, जिस पर राक्षस के प्रतीक के रूप में एक तोता होता है। बगल में दोनों तरफ छोटे तोते होते हैं। दूल्हा शादी के समय तलवार से उस लकड़ी के बने राक्षस रूपी तोते को मारने की रस्म पूर्ण करता है। 

 
गांवों में तोरण का निर्माण खाती करता है, लेकिन आजकल बाजार में बने बनाए सुंदर तोरण मिलते हैं, जिन पर गणेशजी व स्वास्तिक जैसे धार्मिक चिह्न अंकित होते हैं और दूल्हा उन पर तलवार से वार कर तोरण नाम के राक्षस को मारने की रस्म पूर्ण करता है। यानी दूल्हा राक्षस की जगह गणेशजी या धार्मिक चिन्हों पर वार करता है जो कि भारतीय परंपरा और धार्मिक दृष्टि से उचित नहीं है। 

आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल 

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चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh) 

चतुर्भुज मंदिर (Chaturbhuj Temple) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ओरछा नगर में एक भगवान विष्णु का मन्दिर है। ओरछा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित है। यह मंदिर जटिल बहुमंजिला संरचना वाला है तथा मंदिर, दुर्ग एवं राजमहल की वास्तुगत विशेषताओं से युक्त है। यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। चतुर्भुज मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है जो अपनी वह अद्भुत वास्तुकला के लिए जाना जाता है।

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

चतुर्भुज मंदिर का निर्माण ओरछा के राजा मधुकर शाह ने 1558 और 1573 के बीच बनवाया था। मधुकर शाह ने अपनी पत्नी रानी गणेश कुमारी के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था, जो भगवान राम की भक्त थीं।

इस भव्य मंदिर को ओरछा के छोटे शहर के लगभग किसी भी कोने से देखा जा सकता है। मंदिर एक विशाल पत्थर के मंच पर बनाया गया है और दीवारों में जटिल डिजाइन और धार्मिक प्रतीक, विशेष रूप से कमल हैं। यह बड़ा पत्थर का मंच है जो इसे अतिरिक्त ऊंचाई प्रदान करता है और इसलिए यह एक बड़े टॉवर की तरह दिखाई देता है। मंदिर के तहखानों के भीतर विष्णु की एक रत्न और रेशम से सजी मूर्ति है। चतुर्भुज का अर्थ है चार भुजाओं वाला और कोई इसे मूर्ति में चित्रित देख सकता है। सर्पिल गुंबदों को न केवल बाहर से जटिल रूप से उकेरा गया है, बल्कि आंतरिक नक्काशी भी उतनी ही उत्तम है। मंदिर का निर्माण राजा मधुकर शाह ने शुरू किया था और उनके बेटे बीर सिंह देव ने पूरा किया था।

Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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जीवन एक वृक्ष जैसा 

जीवन एक पेड़ जैसा

पहले पत्ते निकलते

फिर डालियाँ हरी  भरी होतीं

वायु के संग खेलतीं

धीरे धीरे कक्ष से

 कलियाँ निकलतीं

पहले तो वे हरी होतीं

फिर समय पा कर

खिलने लगतीं तितली आती 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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अमर धन 

"उगता नहीं तपा, तो डूबता क्या तपेगा! अपने युवराज को समझाओ पुत्र तुम्हारे कार्यालय जाने के बाद दिनभर उनके दरवाजे, खटिया पर पड़ा रहता है जिनके बाप-दादा जी हजूरी करते रहे। किसी घर का बड़ा बेटा चोरों का सरदार है। किसी घर की औरत डायन है,"

"जी उससे बात करता हूँ।"

"उसे समझाना पंक भाल पर नहीं लगाया जा सकता।"

"कहाँ खो गये पापा?" 

"अतीत में! तुम्हारे देह पर वकील का कोट और तुम्हारे मित्र की वर्दी तथा तुम्हारे स्वागत में आस-पास के कई गाँवों की उमड़ी भीड़ को देखकर लगा, पंक में पद्म खिलते हैं।"

"फूलों की गन्ध क्यारी की मिट्टी से आती ही है।" 

"सोच का सृजन" 

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बदनसीब को बद्दुआ लग गई ( हास-परिहास ) 

किस का कल्याण कैसे होगा शाहंशाह खूब जानते हैं 
बस उनको क्या करना है ये कोई नहीं जानता भगवान भी नहीं । 
 
शिकवा तकदीर का करें कैसे
हो खफा मौत तो मरें कैसे ।

बागबां ही अगर उन्हें मसले
फूल फिर आरज़ू करें कैसे । 

डॉ लोक सेतिया 

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न रहो यूँ बेहर्फ़ न रहो यूँ बेहर्फ़, सहमे सहमे, फ़ासलों में तुम, 
नूर महताब वादियों में यूँ ही ठहर न जाए कहीं,

हम कब से हैं खड़े, अपनी साँसों को थामे हुए -
ये गुलदां ए ज़िन्दगी, यूँ ही बिखर न जाए कहीं,
अग्निशिखा 

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पवित्रता का विकास दूषण 

रविवार, 21 मई को फिर से रामघाट में क्षिप्रा के पवित्र नर्मदा जल में उज्जैन शहर के नालों का सबसे गंदा काला ज़हरीला बदबूदार पानी मिल गया। उज्जैन में पवित्र क्षिप्रा नदी दशकों से अत्यंत खर्चीले असफल शुद्धिकरण और सदियों से सफल सिंहस्थ कुंभ का केंद्र है। उज्जैन में क्षिप्रा में ऐसा होता ही रहता है।

हमारी आवाज़ 

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इस दिन की कमाई 

सुबह उठे जब
अपने हाथों को देखा
प्रभाते कर दर्शनम
दिन शुरू हुआ
कमाई करने निकला 
खाली हाथ जो था । 

नमस्ते namaste 

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पापसंकट 

केजरीवाल पापसंकट में फंस गए हैं (अब 'धर्मसंकट' शब्द उनके मामले में तो रुचता नहीं 😊)। गुजरात में चुनाव के वक्त उनके द्वारा जनता को कहे गये शब्द 'कॉन्ग्रेस को वोट मत देना। वह पार्टी तो अब ख़त्म हो गई है। आपका वोट बेकार चला जाएगा। हमें वोट देना, गुजरात में हम बहुमत से आ रहे हैं', कॉन्ग्रेस अब तक भूली नहीं है।  सम्भवतः कॉन्ग्रेस ने हर अवसर पर अपना विरोध देख कर ही कर्नाटक-विजय के बाद किये गये शपथ-गृहण समारोह में केजरीवाल को नहीं बुलाया था। 

Gajendra Bhatt 

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मेरा सफर 

अगस्त ९८
यूँ ही नहीं हो जायेगा,
मेरे सफ़र का खात्मा।
मैं कोई चिराग नहीं जो बुझा 
तो अँधेरा हो जायेगा। 

मेरी दुनिया 

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चाय की वो चुस्कियाँ 

वो खड़े थे मैं खड़ी थी,

आँख धरती पर गड़ी थी।

भाव अधरों पर थिरककर,

काढ़ते थे मुस्कियाँ।

याद अब भी आ ही जातीं

चाय की वो चुस्कियाँ॥

जिज्ञासा की जिज्ञासा 

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फ़रमाइशी कविता 

मैंने जो कविता लिखी है,

उसे अभी पैना कर रहा हूँ.

जो सुनना नहीं चाहते,

कान बंद कर लें अपने,

पर जो सुनना चाहते हैं,

वे भी सावधान रहें,

अच्छी तरह सोच लें, 

क्या ऐसी कविता सुन सकेंगे, 

जो दिल में चुभ जाय 

तीर की तरह? 

 कविताएँ 

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जिंदगी विथ ऋचा 

एक दिन पहले "ऋचा विथ जिंदगी" का एक ऐपिसोड देखा , जिसमे वो पंकज त्रिपाठी से मुख़ातिब है । मुझे ऋचा अपनी सौम्यता के लिये हमेशा से पसंद रही है , इसी वजह से उनका ये कार्यक्रम देखती हूँ और हर बार पहले से अधिक उनकी प्रशंसक हो जाती हूँ। इसके अलावा सोने पर सुहागा ये होता है कि जिस किसी भी व्यक्तित्व को वे इस कार्यक्रम में लेकर आती है , वो इतने बेहतरीन होते है कि मैं अवाक् रह जाती हूँ।
     ऋचा, आपके हर ऐपिसोड से मैं कुछ न कुछ जरुर सिखती हूँ।
     अब आते है अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर, जिनके बारे में मैं बस इतना ही जानती थी कि वो एक मंजे हुए कलाकार है और गाँव की पृष्ठभूमि से है। 

मेरे मन का एक कोना 

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विषकन्या | राज कॉमिक्स | अनुपम सिन्हा , तरुण कुमार वाही 

विषकन्या | राज कॉमिक्स | अनुपम सिन्हा , तरुण कुमार वाही

कहानी 

नागमणि द्वीप के राजतांत्रिक विषंधर ने अपने यज्ञ से यक्ष राक्षस गरलगंट को खुश कर दिया था। उसका मकसद था गरलकंट को खुश कर के ऐसी ताकत हासिल करना जो कि नागराज को मौत का ग्रास बना देती।
और इसी तपस्या का परिणाम था कि गरलगंट द्वारा विषंधर को विषकन्या के रूप में वह शक्ति दी गई थी जो कि गरल गंट के अनुसार नागराज को मौत के घाट उतार सकती थी।  

एक बुक जर्नल 

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एक ग़ज़ल - जिसकी गीता वही अदालत में यह देश का दुर्भाग्य है की सनातन धर्म सबसे प्राचीन होते हुए भी प्रभु श्रीराम, शिव. भगवान श्री कृष्ण पर अदालतों में मुक़दमे चल रहे हैँ. यूरोप अमेरिका में कभी अदालत में ईसा मसीह को सबूत नहीं देना पड़ता. आजादी के समय ही यह तय हो जाना चाहिए था कि भारत का आदर्श बाबर होगा या श्री राम. भारत का विभाजन ज़ब धर्म के आधार पर हुआ तो भारत हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं संविधान और विभाजन दोनों हिन्दुओं के साथ षड्यंत्र था जिसके कारण आज शिव और कृष्ण का अस्तित्व संकट में है. क्या ऐसा कोई देश है जहाँ ईश्वर अदालत में हो जिसकी गीता की शपथ राष्ट्रपति और न्यायधीश भी लेते हैँ. संविधान का पुनरलेखन होना चाहिए हमारा अधिकार है हिन्दू राष्ट्र होना. ताकि ईश्वर को देश की अदालतों में जलील न होना पड़े. केंद्र सरकार कड़ा क़ानून बनाकर मुगलों द्वारा ध्वस्त मंदिरों का अधिग्रहण करे और उनका नव निर्माण.हर हर महादेव.

नीम के घर में पाम है साहब

क्या ये मौसम का काम है साहब


जिसकी गीता वही अदालत में

अब तो अपना निज़ाम है साहब छान्दसिक अनुगायन 

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उठे वे तो जबरन गिराने चले 

Falling

उठे वे तो जबरन गिराने चले 

कुछ अपने ही रिश्ते मिटाने चले 

अपनों की नजर में गिराकर उन्हें

गैरों में अपना बताने चले ।। 

Nayisoch 

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शाख 

उम्मीदों-नाउम्मीदों के, साए तले,
बह चली इक सदी....

पतझड़ों के मध्य, पाले उम्मीदें कई,
चुप थी, कोई शाख,
उन रास्तों पे,
बह रही थी, जिधर इक सदी....

मध्य कहीं, सपनों सी, बहती बयार,
ले आई इक बहार,
वो भी झूमी,
झूम रही थी, जिधर इक सदी.... 

कविता "जीवन कलश" 

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अश्लीलता के बहाने .. बस यूँ ही ... 

आज के शीर्षक से आप भ्रमित ना हों, हम अपनी बतकही में आपके समक्ष कुछ भी ऐसा-वैसा अश्लील नहीं परोसने वाले .. शायद ...

गत दिनों मैंने "बस यूँ ही ..." नामक अपनी एक कहानी प्रसार भारती के तहत आकाशवाणी, देहरादून के माध्यम से पढ़ी थी। जिसे बहुत से अपने शुभचिन्तक लोग अपने-अपने मोबाइल में उनके भिन्न 'Android' होने के कारण 'App' - "Newsonair" को नहीं 'Download' कर पाने की वजह से उस कहानी का प्रसारण नहीं सुन पाए थे। अफ़सोस भी हुआ था, दुःख भी। तो आज उसकी 'रिकॉर्डिंग' यहाँ साझा कर रहे हैं। पर यह कहानी केवल और केवल आर्थिक रूप से मध्य या निम्न-मध्य वर्ग के लोगों को सुनने के लिए है और .. आर्थिक रूप से उच्च वर्ग के लोगों के लिए सुनना पूर्णरूपेण निषेध है .. बस यूँ ही ... सोच रहा हूँ कि .. उन्हें बुरी लग जाए कहानी की बातें .. शायद ... 

बंजारा बस्ती के बाशिंदे 

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सुनो न ... 

जीवन हर पल बहता जाता 

गुनता रहता खुद को 

अलबेली नदी सरीखा

पर सुनो न ...

तटबंधों की पुकार भूल जाती हूँ! 

झरोख़ा 

निवेदिता श्रीवास्तव निवी 

लखनऊ 

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गद्दी के दावेदार 

कोई बनता जाति शिरोमणि,

कहता हम  गद्दी के हकदार ।

कोई  गाये  यश  पुरखों  का ,

बन   जाये   गद्दी   दावेदार।। 

अशर्फी लाल मिश्र 

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एक गीत - बंजारन बाँसुरी बजाना 


मद्धम सुर हो या हो पंचम 
बंजारन  बाँसुरी बजाती जा.
राजा अब गीत कहाँ सुनता
तू अपनी बस्ती में गाती जा. 

सुनहरी कलम से 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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