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सोमवार, फ़रवरी 29, 2016

"हम देख-देख ललचाते हैं" (चर्चा अंक-2267)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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"हम देख-देख ललचाते हैं" 

मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।
बरफी-लड्डू के चित्र देखकर,
अपने मन को बहलाते हैं।।

हमने खाया मन-तन भरके,
अब शिक्षा जग को देते हैं,
खाना मीठा पर कम खाना,
हम दुनिया को समझाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।।
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कुछ और क्षणिकाएँ 

*पचहत्तर* आश्चर्यचकित हूँ जानकर कि 
कवि लोग कविता भी लिखते हैं 
मैं सोचता था थक जाते होंगे बेचारे 
पुरस्कार लेने और लौटाने के बीच... 
उमेश महादोषी 
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'' मेरे स्वप्न अहम् हारे '' नामक नवगीत , 

स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह -  

'' एक अक्षर और '' से लिया गया है - 

हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !! 
समय के धुँधलके में - ममता के चेहरे 
सब धुँधलाते चले गये 
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये... 
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स्वयं ही समाया 

समर्पण हे देवी, तुम्हें आज जीवन, 
तुम्हें पा के, जीवन में सर्वस्व पाया । 
है मन आज मोदित, यह तन आज पुलकित, 
मैं मरुजीव सौन्दर्य-रस में नहाया ।।१।।... 
प्रवीण पाण्डेय 
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"अपने आप को जानें और पहचानें" 

हमारी ज्यादा रूचि सिर्फ दूसरों को जानने और अपनी जान पहचान बढ़ाने में ही रहती है, खुद अपने को जानने में नहीं रहती। हमारी यह भी कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक लोग हमें जानें, हम लोकप्रिय हों पर यह कोशिश हम जरा भी नहीं करते कि हम खुद के बारे में जानें कि हम क्या हैं, क्यों हैं, क्यों पैदा हुए हैं, किसलिए पैदा हुए हैं.... 
भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार 
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अजब गजब संसार 

अजब गजब दुनिया है भैया, अजब गजब हैं लोग । 
रहे भागते जीवन भर ये, क्या ना करें प्रयोग ।। 
पैसों पर ही ध्यान है सबका, नहीं कहीं है चैन। 
दिन भर तो ये रहे ऊँघते, नींद बिना है रैन... 
ई. प्रदीप कुमार साहनी 
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मेरे ही कांधे पर सिर रख कर दुलराना मुझे 

फ़ोटो : अनिल रिसाल सिंह

 ग़ज़ल 
अच्छा लगा तुम्हारा इस तरह गुहराना मुझे 
मेरे ही कांधे पर सिर रख कर दुलराना मुझे   

सब कुछ भूल भाल कर चंद्रमा को निहारना
मेरी ही गोद में बैठ कर फिर ललचाना मुझे... 
सरोकारनामा पर Dayanand Pandey 
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धागों को उलझा रही हूँ.. 

कि सुलझा रही हूँ.... 

फिर उँगलियों के पोरो में,  
धागों को उलझा रही हूँ...  
कि सुलझा रही हूँ....  
उलझे तो तुम्हारे ख्याल हो,  
सुलझे तो तुम्हारे जवाब हो.....  
मैं फिर धागों में,  
हमारे एहसासों को पिरो रही हूँ... 
'आहुति' पर Sushma Verma 
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अरे क्या साँप सूँघा है सभी को 

किए बदनाम हैं सब आशिक़ी को 
मगर हासिल हुआ क्या कुछ किसी को ... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’  
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ज़िंदगी जीने की कला 

राम चरित मानस और महाभारत हमारे धर्म के दो ऐसे महान ग्रन्थ है जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते है | राम चरित मानस में जहाँ भगवान श्री राम के आदर्श चरित्र को पूजा जाता है वहाँ महाभारत में योगेश्वर श्री कृष्ण के चरित्र के भिन्न भिन्न स्वरूप दर्शाये गये हैं । यहाँ मै चर्चा करुँगी ,महाज्ञानी ,महापंडित रावण की ,हर वर्ष हम सब दशहरे को उसका पुतला जला के बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाते है ,अगर हम देखें तो उस बुराई की जड़ को पानी तो लक्ष्मण ने दिया था ,श्रूपनखा की नाक काट कर ,अपमानित व्यक्ति अपने अपमान को कैसे सहन कर सकता है । वैसे ही महाभारत में द्रौपदी ने दुर्योद्धन को अन्धे का बेटा ...  
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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यह देश कब जागृत और परिपक्व होगा ? 

अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
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खतरनाक मिसाल कायम कर रहे हैं  

पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम 

खतरनाक है ये। कितना खतरनाक इसका अंदाजा तो अभी लगाना मुश्किल है। आगे चलकर पता चलेगा। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखने, देश की बर्बादी के नारे लगाने और देश की संसद पर हमला करने की साजिश रखने वाले आतंकवादी अफजल गुरू को शहीद बताने वाले छात्रों के समर्थन की राजनीति और आगे चली गई है। हालांकि, इसे राजनीति क्यों कहा जाना चाहिए। क्योंकि, राजनीति तो सत्ता पाने के लिए, सत्ता चलाने के लिए की जाने वाली नीति है। लेकिन, शायद कांग्रेस सत्ता पाने के लिए कहीं तक भी जाने को राजनीति का हिस्सा ही मानने लगी है... 
HARSHVARDHAN TRIPATHI 
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जब एक थानेदार ने थमाई 

आईजी पुलिस के खिलाफ दर्ज की रपट 

...जी हाँ ! हम बात कर रहे है संत थानेदार के नाम से विख्यात थानेदार रामसिंह की| जिन्होंने कभी भी पराये धन को हाथ नहीं लगाया| अपने सहायकों से कोई व्यक्तिगत काम नहीं कराया, कभी मुफ्त में रेल बस यात्रा नहीं की| कभी किसी मामले की जाँच में ऊपरी दबाव में नहीं आये| बल्कि उनकी छवि के चलते उनके उच्चाधिकारी उनसे कभी किसी की सिफारिश भी नहीं करते थे| यह थानेदार रामसिंह की कर्तव्यनिष्ठा की पराकाष्ठा ही थी कि एक बार उन्होंने जयपुर राज्य के पुलिस महानिरीक्षक के खिलाफ बिना किसी खौफ के अपने थाने के रोजनामचे में रपट दर्ज कर ली| इस घटना पर संत थानेदार पुस्तक के लेखक शार्दुल सिंह कविया अपनी पुस्तक में लिखते है- "महात्मा गांधी की डांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह के फलस्वरूप समूचे देश में चेतना की एक नई लहर फैल गई थी। राजस्थान की देशी रियासतें भी इससे अछूती नहीं रही। राजस्थान में इन्हीं दिनों प्रजामण्डल की स्थापना हुई जिसने आगे चलकर जन-आन्दोलन का रूप धारण कर लिया... 
ज्ञान दर्पण पर Ratan singh shekhawat 
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रविवार, फ़रवरी 28, 2016

"प्रवर बन्धु नमस्ते! बनाओ मन को कोमल" (चर्चा अंक-2266)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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प्रवर बन्धु नमस्ते! 

नहीं विसूरते देखा तुमको,
रहते हरदम हँसते.............. 
प्रवर बन्धु नमस्ते........।
नहीं दुखी करते क्या दुख तुमको,
शूल नहीं सालते क्या मन को।
कैसे सह लेते तन मन की पीड़ा,
इसका राज बताओ हमको।
दारुण दुख में भी नयन तुम्हारे,
देखे नहीं बरसते.............. 
प्रवर बन्धु नमस्ते... 
Jayanti Prasad Sharma  
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"बनाओ मन को कोमल"

महावृक्ष है यह सेमल का,
खिली हुई है डाली-डाली।
हरे-हरे फूलों के मुँह पर,
छाई है बसन्त की लाली।।

पाई है कुन्दन कुसुमों ने
कुमुद-कमलिनी जैसी काया।
सबसे पहले सेमल ने ही 
धरती पर ऋतुराज सजाया।।
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अन्दाज-ए-वफा सूरत से, हरगिज़ न लगाया जाये। 

जिंदा लोगों को ,न फिर से, लाशों मे सुमारा जाये।
ऐ खुदा खैर करो ,  वो लम्हा  न  दुवारा आये।।

जलाए है आशियाने , दो पल के उजाले ने,
मेरे  अंधेरों में कोई दीपक, फिर से न जलाया जाये... 
अभिव्यक्ति मेरी पर मनीष प्रताप 
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घर फूँक तमाशा 

देश में कहीं कुछ हो जाये हमारे मुस्तैद उपद्रवकारी हमेशा बड़े जोश खरोश के साथ हिंसा फैलाने में, तोड़ फोड़ करने में और जन सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाने में सबसे आगे नज़र आते हैं । अब तो इन लोगों ने अपना दायरा और भी बढ़ा लिया है । वियना में कोई दुर्घटना घटे या ऑस्ट्रेलिया में, अमेरिका में कोई हादसा हो या इंग्लैंड में, हमारे ये ‘जाँबाज़’ अपने देश की रेलगाड़ियाँ या बसें जलाने में ज़रा सी भी देर नहीं लगाते... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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२०४. नींद 

मेरी आँखें खुली हैं,  
पर मैं नींद में हूँ,  
चल रहा हूँ,  
मंज़िल से भटक रहा हूँ,  
पर नींद है कि टूटती नहीं... 
कविताएँ पर Onkar 
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शीशे जो सच दिखाते .... 

शीशे जो सच दिखाते पत्थर उठाते हो  
सितम जो बयां हुये तो शातिर बताते हो... 
udaya veer singh 
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अपशब्द 

aankho se aansu bahe के लिए चित्र परिणाम
अपशब्दों का प्रहार
इतना गहरा होता 
घाव प्रगाढ़ कर जाता 
घावों से रिसाव जब होता 
अपशब्द कर्णभेदी हो जाते
मन मस्तिष्क पर
बादल से मडराते ... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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हमें चलना था 

जो ठीक लगता है कह देते हो 
जैसे शतरंज हो ,और शह देते हो 
क्यों छीन लेते हो तुम रात को 
जब रोशनी तुम सुबह देते हो... 
कविता-एक कोशिश पर नीलांश 
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तो स्मृति ईरानी आप ने ग़लत बयाना ले लिया है 

इन दिनों संसद में जो कुछ भी हो रहा है उस सब को देख कर एक पुराना लतीफ़ा याद आता है। आप भी इस लतीफ़े का लुत्फ़ लीजिए : एक लड़का था। एक शाम स्कूल से लौटा तो अपनी मम्मी से पूछने लगा कि, 'मम्मी, मम्मी ! दूध का रंग काला होता है कि सफ़ेद? ' ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?' मम्मी ने उत्सुकता वश पूछा। ' कुछ नहीं मम्मी, तुम बस मुझे बता दो ... 
सरोकारनामा पर Dayanand Pandey 
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परम विदुषी बहन मृणाल-पांडे जी ने हाल ही एक लेख में वेदों का उदाहरण देते हुए लिखा की हर समस्या का समाधान चर्चा करने से ही हो सकता है ! मैं भी इस वाक्य से शब्दशः सहमत हूँ , लेकिन चर्चा किस विषय पर कौन और किन नियमों के तहत होनी चाहिए , ये नियम भी तो वेदों ने बताये हैं ! उनका ज़िक्र करना शायद वो भूल गयीं , या फिर किसी विशेष "विचारधारा"के प्रति अपना पक्ष दिखने के चक्कर में उन्होंने चर्चा की शर्तों को बताना उचित नहीं समझा... 
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कल भी हमारे आज पर होगा.... 

हम आए थे जब याद करो दुनियां में 
ईश्वर की तरह निश्छल आए थे 
न जानते थे कुछ न कुछ पाने की इच्छा थी... 
ये भी जानते हैं हम 
जब दुनियां से जाएंगे कोई साथ न चलेगा 
छूट जाएगा सब कुछ यहीं, 
साथ न कुछ ले जा पाएंगे... 
kuldeep thakur 
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