फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

रविवार, जुलाई 31, 2016

"कुछ मर्म छिपे उर में मेरे" (चर्चा अंक-2420)

मित्रों 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

--

शुतुरमुर्ग और शुतुरमुर्ग 

कम नहीं हैं
बहुत हैं
चारों तरफ हैं
 फिर भी
मानते नहीं हैं
कि हैं
हो सकता है
नहीं भी होते हों
उनकी सोच में वो ... 
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
--

ग़ज़ल  

"छन्द और मुक्तक, बनाना भी नहीं आता"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

मुझे तो छन्द और मुक्तक, बनाना भी नहीं आता।
सही मतला, सही मक़्ता, लगाना भी नहीं आता।।

दिलों के बलबलों को मैं, भला अल्फ़ाज़ कैसे दूँ,  
मुझे लफ्ज़ों का गुलदस्ता, सजाना भी नहीं आता... 
--
--

आईने में तेरी सूरत 

आईने में तेरी सूरत तुझसे जब पूछेगी 
कल बिन मेरे सजने सम्बरने क्या मजा श्रृंगार का है 
वो कहाँ है दे गया जो रूप का अभिमान ये 
ये बताओ उसके बिन अब क्या मजा संसार का है.  
anupam choubey  
--
--

लोहे का घर -17 

बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय  
--
--

लोग अपनी नजरों में 

लोग अपनी नजरों में गिरतें नही है। 
गुनाह करते है हया करते नहीं है।। 
वतन ने शहादत मॉगी घरों में छुप गए। 
कल तो कहते थे मौत से डरते नहीं हैं... 
Sanjay kumar maurya 
--

गुलाम बन रहे हैं हम 

आज दुनिया का अधिकांश व्यक्ति गुलामी का जीवन जी रहा है, वह किसी भी दिन सड़क पर आ सकता है। इसमें खुद को राजा समझने वाले लोग भी हैं और सामान्य प्रजा भी। आज राजा भी तो वोट के सहारे ही जिन्दा है! वोट के लिये उसे क्या-क्या नहीं करना पड़ता! अपना धर्म तक गिरवी रखना पड़ता है। जिस कलाकार को हम मरजी का मालिक मानते थे आज वह भी गुलामी का जीवन जीने लगा है। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें... 
smt. Ajit Gupta 
--

तन्हाई मेरी ... 

तन्हा तन्हा सी रहती है तन्हाई मेरी 
रात भर जागती रहती है तन्हाई मेरी 
खुद में हंसती है कभी, कभी रो लेती है 
ख्वाब कुछ बुनती, रहती है तन्हाई मेरी... 
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी  
--

एक समन्दर तन्हा-तन्हा 

एक समन्दर तन्हा-तन्हा 
बाहर-भीतर तन्हा-तन्हा 
आगन्तुक का शोर-शराबा 
फिर भी दिनभर तन्हा-तन्हा... 
तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी  
--

क्या गलत किया है 

शर्तों पर अवश्य टिका है 
पर मैंने तेरे नाम 
पूरा जीवन लिख दिया... 
Akanksha पर Asha Saxena 
--

एक चिंकारे की आत्महत्या 

भई, सुलतान छूट गए। 
क़ातिल नहीं मिले। 
गवाह गायब हो गए। 
न्याय-व्यवस्था साफ कहती है, 
सौ दोषी छूट जाएं 
लेकिन किसी निर्दोष को 
सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। 
तो इस बिनाह पर, 
मियां सलमान निर्दोष साबित भये। 
हिरण बेचारा मारा गया... 
गुस्ताख़ पर Manjit Thakur 
--
--
--
--
...... दरिंदा !! -  
सभी साथियों को मेरा नमस्कार 
आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ 
प्रसिद्ध कवि भवानीप्रसाद मिश्र जी की रचना......  
दरिंदा के के साथ 
उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी... 
म्हारा हरियाणा 
--
--
--

नामवर सिंह और साहित्य का तकाज़ा 

हमारी आवाज़परशशिभूषण 
--
--

ये अंतिम सांस .... 

अरे ! तुम आ गए  
पर अब क्यों आये  
अब इस सांसों के  
थमने की घड़ी में  
तुम्हारा आना भी 
बड़ा ही बेसबब है...  
झरोख़ापरनिवेदिता श्रीवास्तव   

शनिवार, जुलाई 30, 2016

"ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419)

मित्रों 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

--

शिक्षा का सफर 

और सफर में शिक्षा 

एक पूरा दिन स्कूल में बिताने की योजना आखिर पूरी हुई। देहरादून से पहाड़ी रास्तों पर होते हुए करीब 18 किलोमीटर की दूरी तय करके मैं सीआरसी मंजू नेगी के साथ ठीक साढ़े सात बजे राजकीय प्राथमिक विद्यालय व राजकीय माध्यमिक विद्यालय सरखेत पहुंच चुकी थी। सारे रास्ते बादलों की आंखमिचैली चलती रही। जगह-जगह रास्ते टूटे मिले, चारों ओर से पानी की कलकल की आवाजें थीे। ये वही रास्ते थे जो एक समय में आग में जलते और सूखे मिला करते थे। पहाड़ों पर जीवन सिर्फ मनोरम नहीं होता, मुश्किल भी बहुत होता है... 
Pratibha Katiyar 
--

आलेख 

"काव्य को जानिए" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

 शब्दों को गेयता के अनुसार सही स्थान पर रखने से कविता बनती है। अर्थात् जिसे स्वर भरकर गाया जा सके वो काव्य कहलाता है। इसीलिए काव्य गद्य की अपेक्षा जल्दी कण्ठस्थ हो जाता है।

      गद्य में जिस बात को बड़ा सा आलेख लिखकर कहा जाता है, पद्य में उसी बात को कुछ पंक्तियों में सरलता के साथ कह दिया जाता है। यही तो पद्य की विशेषता होती है।
     काव्य में गीत, ग़ज़ल, आदि ऐसी विधाएँ हैं। जिनमें गति-यति, तुक और लय का ध्यान रखना जरूरी होता है। लेकिन दोहा-चौपाई, रोला आदि मात्रिक छन्द हैं। जिनमें मात्राओं के साथ-साथ गणों का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है। तभी इन छन्दों में गेयता आती है।
   अन्तर्जाल पर मैंने यह अनुभव किया है कि नौसिखिए लोग दोहा छन्द में मात्राएँ तो पूरी कर देते हैं मगर छन्दशास्त्र के अनुसार गणों का ध्यान नहीं रखते हैं। इसीलिए उनके दोहों में प्रवाह नहीं आ पाता है और लय भंग हो जाती है... 
--

शुभप्रभात,मित्रों.बात आज के अखबार की. 

शुभप्रभात,मित्रों.बात आज के अखबार की. ’मित्र’ एक बेहद खूबसूरत शब्द,यदि महसूस किया जा सके? आज की बात— सुबह-सुबह,अखबार हाथ में है,बीच-बीच में,चाय की चुस्कियां भी, दो मेरीगोल्ड के बिस्कुटों के साथ,और शुरूआत जिंदगी की एक और सुबह से-- धन्यवाद ’तुझे’ कि एक दिन और दे दिया-रात सोई थी,सुबह जगा दिया,आमीन!! अब ,देने वाले ने अपना काम कर ही दिया— क्या हम इस दिन की खूबसूरती बरकरार रख पाएंगे... 
--
--

अजब ये दुनिया (चोका) 

यह दुनिया  
ज्यों अजायबघर  
अनोखे दृश्य  
अद्भुत संकलन  
विस्मयकारी  
देख होते हत्प्रभ... 
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम 
--

चिट्टे चमकते चोले ओढ़ आए हैं 

माई तेरे गाँव में कुछ लोग आए हैं 
हाथों में नगाड़े और ढ़ोल लाये हैं -  
जिह्वा पर मिश्री और आँखों में सनेह है 
चिट्टे चमकते चोले ओढ़ आए हैं... 
udaya veer singh 
--
--

रागिनी मिश्रा की नजर में  

कांच के शामियाने 

तुमने तो निःशब्द कर दिया ।सुबह चार बजे उठ कर घर का काम खत्म करने के बाद स्कूल की प्रिंसिपल का जिम्मेवारी भरा कर्तव्य निभा, फिर एक ही सिटिंग पूरा उपन्यास भी पढ़ लिया ।पाठकों का यही प्यार बस मेरी पूँजी है और गहरी जिम्मेवारी का भी आभास करवाती है ।'शिवानी' जैसी प्रसिद्ध लेखिका का जिक्र पढ़कर तो कानों को हाथ लगा लिया , उन जैसा शतांश भी लिख पाऊं तो धन्य समझूँ खुद को । तुम्हें बहुत शुक्रिया और स्नेह *:) * * कांच के शामियाने * आदरणीय रश्मि दी... 
rashmi ravija 
--

बरबस तुम्हारी याद आ जाती है... 

जब ना तब ये बारिश बरस जाती है...  
इसका क्या ये तो.....  
बरस के गुजर जाती है.  
पर बारिश के साथ ही...  
बरबस तुम्हारी याद आ जाती है...  
'आहुति' पर Sushma Verma 
--

मौसम की मार ,  

डेंगू बुखार : 

जब काली घटायें छाती हैं ,  
और टिप टिप बारिश आती है।  
मौसम भीगा भीगा होता है ,  
सब गीला गीला सा होता है।  
जब भोर के उजाले होते हैं , 
कुछ नन्हे शेर निकलते हैं। 
जो नंगे हाथों की चमड़ी में , 
अपना तीखा डंक घुसेड़ते हैं। 
फिर वो खून तुम्हारा पीते हैं , 
और गिफ्ट में वायरस देते हैं। 
जब ये रक्त का दौरा करता है ,  
तब सारा बदन कंपकपाता है। 
आप बदन दर्द से कराहते हैं ,  
इसी को डेंगू बुखार कहते हैं... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल  
--
--

वो खुदा को इस जहाँ में देखता है.. 

वो खुदा को इस जहाँ में देखता है 
और फिर वो आसमाँ भी देखता है 
जो मसीहा बन रहा था दिन में वो 
अब रात में कुछ क़त्ल होते देखता है... 
SB's Blog पर Sonit Bopche 
--
जिसको हो जान-ओ-दिल अज़ीज़.. कहावत है-  
अफसर की अगाड़ी और गधे की पिछाड़ी से बचो |  
भारत एक हजार वर्षों तक गुलाम रहा है 
इसलिए इस देश के लोगों को अफसरों के... 
आये जब वे भाव से, दो स्वभाव से नेह- 
आये जब वे भाव से, दो स्वभाव से नेह । 
करो मदद यदि आ रहे, वे अभाव वश गेह।
वे अभाव वश गेह, देह अब नहीं चुराओ।
यदि प्रभाव से आय, ख़ुशी से झूमो-गाओ।
प्रभु की कृपा अपार, और क्षमता बढ़ जाये।
करो मदद दो नेह, द्वार जब रविकर आये। 
--
--

करेंगे याद हम तुमको सदा अपने फसानों में 

सभी वो तोड़ बन्धन अब उड़े हैं आसमानों में 
परिंदे कब रहा करते हैं हर दम आशियानों में ...  
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi  
--

सूखा आषाढ़ 

दोहे 

ईश्वर की लीला अगम , कैसा यह आषाढ़ 
सूखा देखा है कहीं, और कहीं है बाढ़... 
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया 
--

सावन आया 

सावन आया, बर्षा लाया 
जल में डूबा सारा संसार 
हर तरफ है खुशहाली 
झूम रही है डाली डाली 
ऐसे में आती तुम्हारी याद 
वो बरसात की रात 
हर तरफ थी बरसात 
उस में तेरा साथ 
थी कितनी प्यारी बरसात... 
aashaye पर garima 
--
--
--
--

Sad Demise of Mahashweta Devi 

श्रद्धाजंलि 1084 की माँ
आप हमेशा भारतीय साहित्य की अन्तरात्मा बनी रहेंगी।
महाश्वेता देवी को नमन ।
लाल सलाम और जोहार, आदिवासियों की सच्ची हमदम चली गई।
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik