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शुक्रवार, नवंबर 30, 2018

"धर्म रहा दम तोड़" (चर्चा अंक-3171)

मित्रों! 
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।  
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहे  

"धर्म रहा दम तोड़"  

दिल के दर्द की, किसने दवा दी है 

क्यों बेमतलब शोलों को हवा दी है 
दिल के दर्द की, किसने दवा दी है। 

मैं दोस्त कहूँ उसे या फिर दुश्मन 
जिसने रातों की नींद उड़ा दी है... 
Sahitya Surbhi पर 
Dilbag Virk 
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ख़ामोशी की आवाज... 

नेहा दुबे 

yashoda Agrawal  
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बेहिसाब उम्मीदें  

SADA 
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तेज़ बारिस थी धूप मुह दिखाने लगी.... 

tHe Missed Beat पर 
dr.zafar 
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पानी जैसा खून 

पानी जैसा हो गया, संबंधों में खून  
धड़कन पर लिखने लगे, स्वारथ का कानून... 
shashi purwar 
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आवाज 

Akanksha पर 
Asha Saxena 
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अब इससे अच्छे और क्या दिन आएंगे ? 

Virendra Kumar Sharma  
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आवाज़..... 

दीप्ति शर्मा 

yashoda Agrawal  
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मूत्र से गोत्र तक :  

एक कहानी ,राहुल गांधी  

( विडीओ ) 

AAWAZ पर SACCHAI  
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साहित्यिकी प्रकाशन 

बालकुंज पर सुधाकल्प 
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कार्टून:-  

हनुमान जी की भी जात‍ि पता चल गई 

शीर्षकहीन 

Anjana Dayal de Prewitt  
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पदचाप 

deepshikha70 
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चाँद !!  

तुम सो रहे हो 

लोहे का घर  

{ककरी/पेहटा} 

देवेन्द्र पाण्डेय  
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साहित्य, वकालत और समाज  

मिलाकर बने थे काजमी 

आम आदमी के जज़्बातों की आवाज  

मोहम्मद अज़ीज़:  

एक दौर का गुजर जाना...

DHAROHAR पर 
अभिषेक मिश्र  

बुधवार, नवंबर 28, 2018

"नारी की कथा-व्यथा" (चर्चा अंक-3169)

सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

संस्कृत पर दोहे  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

थोड़े शब्दों में बने,  संस्कृत के सब वाक्य। घर में जाकर कीजिएआप सदा शालाक्य ।।
फोर्ब्स मैगजिन बोलतेसंस्कृत को उपयुक्त। बोलचाल में कीजिएइसको भी प्रयुक्त... 
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नवम्बर 

सु-मन (Suman Kapoor) 
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सजाई महफिलें  

जो प्रेम की  

खामोश पायल ने ...  

सजाई महफिलें जो प्रेम की खामोश पायल ने
मधुर वंशी बजा दी नेह की फिर श्याम श्यामल ने... 
Digamber Naswa  
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हुस्न का इश्क़ पे  

बे तर्ह फ़िदा हो जाना 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’  
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नीले आसमान पर 

लिखता मन पढता तन  
सफ़र में एक परिंदा  
पेड की शाख पर बैठा  
इंतजार करता भोर की... 
संध्या आर्य  
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"एक फुट के मजनूमियाँ"  

आदरणीया रश्मि प्रभा जी की नज़र से 

Sudhinama पर sadhana vaid  
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विधाता की अनमोल कृति 

हंसती मुस्कुराती चंचल सी मन को भाती मनमोहिनी सी यह प्रकृति का अनुपम उपहार बेटियां हैं घर का श्रृंगार अपने कोमल निर्मल मन से करती शोभित दो-दो घर माँ-बाप के दिल का यह टुकड़ा सुंदर इनका चाँद सा मुखड़ा करती शोभित घर पिया का करती रोशन नाम पिता का प्रभू की यह अनमोल कृति है ... 
anuradha chauhan  at  
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कविता :  

मनुष्यता की आशा 

बढ़ती इस दुनियां में कुछ ढूँढ रहा हूँ, लोक मनुष्यता का कुछ आश | सरल से स्वभाव को, मन का आज़ाद हो | दिल का हो स्नेह बहार, हौशलों से उड़े आसमान से परे, कुछ कर जाए वे ऐसा | किसी को भी मालूम न हो, उस कारनामा का पता न हो ... 
BAL SAJAG  at  बाल सजग