मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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मैं, बस इक मैं ही नहीं.....इक जीवन दर्पण हूँ.....!
मैं, बस इक मैं ही नहीं.........
इक रव हूँ, इक धुन हूँ,
सहृदय हूँ, आलिंगन हूँ, इक स्पंदन हूँ,
गीत हूँ, गीतों का सरगम हूँ
गूंजता हूँ हवाओं में,
संगीत बन यादों में बस जाता हूँ,
गुनगुनाता हूँ मन में, यूँ मन को तड़पाता हूँ.....
Purushottam kumar Sinha
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आसमान के ख़्याल,
धरा की गहराई,
रात्री का अँधेरा,
दिन की चमक,
शब्द बोलते हैं...
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लकड़ी से सहारेभीड़ भरी
फुटपाथहीन सडक पर किनारे किनारे
धीरे धीरे चलते वृद्ध से
टकराता है एक सत्रह अठारह साल का
मोबाइल पर वयस्त मार्ड्न युवक...
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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लाख जतन की हमनें इश्क़ छुपाने की
पर उनके दिए गुलाबों ने
खुश्बू चमन में ऐसी बिखरा दी
बात जो अब तलक जो
दिलों की दरम्यां थी
अब वो हर महफ़िल में
चर्चें ख़ास हो गयी यारों...
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अभी पिछले दिनों अखबारों में करोलबाग़ और झंडेवाला के बीच स्थित संकट मोचन धाम की, क़ुतुब मीनार की तरह दिल्ली की पहचान सी बन गयी, 108' ऊँची हनुमान जी की मूर्ति को हटाने की काफी चर्चा रही। तय है कि इस पर तरह-तरह के विवाद भी जन्म लेंगे ! हम ज्यादातर धर्म-भीरु लोग हैं। हमें इससे कोई मतलब नहीं कि फलाना मंदिर कहाँ बना, कैसे बना, किसने बनवाया, क्यूँ बनवाया ! वहाँ विधिवत पूजा होती भी है कि नहीं, पूजा करने वाले को इस विधा का ज्ञान है भी कि नहीं ! हमें तो सिर्फ वहाँ स्थापित मूर्ति से मतलब होता है ! फिर चाहे वह विवादित स्थल पर बनी हो, चाहे नाले पर, चाहे सड़क के किनारे, चाहे कूड़ेदान के पास या फिर किसी पेड़ के नीचे ही...
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काव्य मंच की गरिमा खोई, ऐसा आज चला है दौर
दिखती हैं चुटकुलेबाजियाँ, फूहड़ता है अब सिरमौर ।।
कहीं राजनेता पर फब्ती, कवयित्री पर होते तंज
अभिनेत्री पर कहीं निशाना, मंच हुआ है मंडी-गंज...
राहुल - मोदी जी बात बनी नहीं -हाफ़िज़ सईद रिहा हो गया ,पाक को अमरीकी सैन्य सहायत बहाल होगी -राहुल (यह सुर्खी थी एक हिंदी के अखबार की ) (गांधी तो ये व्यक्ति है नहीं ,क्योंकि पारसियों में गांधी उपनाम और वर्ण ,गोत्र आदि नहीं हैं ये नेहरू वंश का बचा खुचा उच्छिष्ट है वर्ण - संकर रूप में ),राहुल को गांधी कहना उस महात्मा की तौहीन है जिसे मोहनदास करमचंद गांधी कहा जाता था। खुद गांधी वंश के नातियों ने एतराज जताया है इन कांग्रेसियों के आरएसएस पर आक्षेपों का और इनके गांधी उपनाम बनाये रहने पर ) हम अपने मूल विषय की ओर लौटते हैं...
Virendra Kumar Sharma
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जीवन
अँधेरा ही तो है
अँधेरा न हो तो
क्या है रात का अस्तित्व
पर्वतों की गुफाओं से लेकर
पृथ्वी के गर्भ तक
नदियों के उद्गम से लेकर
समुद्र की तलहटी तक
पसरा हुआ है
अँधेरा ही अँधेरा
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यद्यपि लेखन में कविता आपकी मुख्य विधा थी। आपका समूचा स्वर भी उसी में सधा। लेकिन हिंदी में दलित साहित्य की जो धारा प्रस्फूटित हो चुकी थी उसके प्रवाह को जारी रखना और उसे हर तरह से समृद्ध करने की जिम्मेदारी भी आपके ऊपर थी। दलित चेतना के स्वर में लिखने वाले चंद लोग ही उस वक्त तक सक्रिय थे। आयुध कारखाने ओ एल एफ, जिसमें आप कार्यरत थे, बहुत से नये लोग भर्ती हुए थे। उन नये लोगों में बहुत से ऊर्जावान दलित साथी थे जिन्होंने एक संस्था बनायी थी- अस्मिता अध्ययन केन्द्र...
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अपने मन मोहने सांवले रंग में
श्याम रँग दो हमें सांवरे रंग में
मैं ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु गगन
आत्मा है अजर सब मेरे रंग में...
Digamber Naswa
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