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बुधवार, अक्तूबर 30, 2019

"रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने" (चर्चा अंक- 3504)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
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आज की चर्चा में देखिए 
कुछ अद्यतन लिंक और नियमित प्रविष्टियाँ
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सबसे पहले देखिए मेरी यह ग़ज़ल
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सभी विधाओं में अपनी कलम चलाने वाली
पेशे से अंग्रेजी अध्यापिका श्रीमती राधा तिवारी ने 
हरियाली पर कुछ दोहे प्रस्तुत किये हैं।
देखिए-

दोहे,  

हरियाली "  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

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आज देखिए हिन्दी-आभा*भारत  पर 
Ravindra Singh Yadav द्वारा रची गयी
14 फरवरी प्रें दिवस पर पिरामिड संरचना में
एक रचना-

बसंत 

(वर्ण पिरामिड)  

मन  भर  हुलास
आया मधुमास 
कूकी कोकिला
कूजे  पंछी    
बसंत 
छाया 
है... 
Ravindra Singh Yadav  
--
आज देखिए- 
शशि गुप्त शशि की चार जनवरी, 2019 की
यह प्रविष्टी
जिसमें उन्होंने आवोदाना और आशियाना की तलाश की है 
आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता है 
आशियाना कभी किसी का नहीं होता है।  जिन्होंने महल बनवाये आज उसमें उनकी पहचान धुंधली पड़ चुकी है। फिर भी आशियाना है, तो जीवन है। ब्रह्माण्ड है , पृथ्वी है, तभी प्राणियों की उत्पत्ति है। हर प्राणी को ठिकाना चाहिए ।
******************************
गली के मोड़ पे, सूना सा कोई दरवाज़ा
तरसती आँखों से रस्ता किसी का देखेगा
निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी
करोगे याद तो, हर बात याद आयेगी
गुज़रते वक़्त की, हर मौज ठहर जायेगी ... 
व्याकुल पथिक 
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एक खुशखबरी यहाँ भी दी  है 
लघु कथाकार चन्द्रेश छतलानी जी ने- 

जैमिनी अकादमी द्वारा आयोजित 

अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता-2019 का परिणाम 

Chandresh
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सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ 
विजय गौड़ ने लिखो यहां वहां 
पर पाठकों के समक्ष अपनी बात रखी है- 

व्हाईट ब्लैंक पेप 

कथा संग्रह ‘’पोंचू’’ प्रकाशित हो गया है। संग्रह में कुल 12 कहानियां है। यह कहानी 2013/14 में पूरी हुई थी और उसके बाद 2015 में वर्तमान साहित्यक के एक अंक में प्रकाशित हुई। संग्रह में यह भी शामिल है... 
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़
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सुशील बाकलीवाल ने अपने ब्लॉग स्वास्थ्य-सुख में 
नीम्बू के महत्व को बताया है 
पढ़इे यह पोस्ट और लाभान्वित हों 

नींबू एक - लाभ अनेक. 

स्वास्थ्य-सुख पर Sushil Bakliwal 
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श्रीमती मीना भारद्वाज का ब्लॉग है मंथन  
जिसमें पिरामिड बनाकर शब्दों को 
करीने से सजाया गया है 

"वर्ण पिरामिड" 

है
द्वैत
अद्वैत
मतान्तर
निर्गुण ब्रह्म
घट घट व्याप्त
प्रसून सुवासित...
मंथन पर Meena Bhardwaj  
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बाल सजग बच्चों का ब्लॉग है 
जिसमें बालकों के द्वारा  ही रचित 
रचनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। 
आज देखिए कक्षा आठ के 
विक्रम कुमार की यह रचना-  
खिलता हुआ फूल
खिलता हुआ फूल चहकता हुआ लगता है,
हर रंग को बदलकर संवरना अच्छा लगता है |
खुशबू की महक से मोहित करने वह खाश अंदाज,
और सजकर गले हर बनना उसे सुहाना लगता है | 
--
देखिए समीक्षा की परिभाषा 
एक छन्द के द्वारा प्रस्तुत की है 
डॉ. हरिमोहन गुप्त ने अपने ब्लॉग में-
समीक्षा
       पढ़ कर,गुन कर, गुण दोषों की करें समीक्षा,        
समय पड़े  पर  आवश्यक  उत्तीर्ण परीक्षा,       
लेकिन इतना  धीरज  रक्खें शांत  भाव से,        
फल पाने को करना  पड़ती  सदा प्रतीक्षा l 

Dr. Hari Mohan Gupt 

--
व्यंजनों की रेसिपी में सिद्धहस्त 
श्रीमती ज्योति देहलीवाल ने
आज एक कहानी अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत की है-

कहानी-  

राज की बात 

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आदरणीय सुबोध सिन्हा अनवरतरूप से
अपने ब्लॉग बंजारा बस्ती के बाशिंदे पर
अपनी अभिव्यक्तियों को पोस्ट करते हैं।
आज देखिए उनकी यह पोस्ट-

पाई(π)-सा ...

180° कोण पर
 अनवरत फैली
  बेताब तुम्हारी
   बाँहों का व्यास
    मुझे अंकवारी
     भरने की लिए
      एक अनबुझी प्यास ... 
Subodh Sinha  
--
अन्त में देखिए
हीरालाल प्रजापति का एक मुक्तक

दीर्घ मुक्तक : 931 -  

शिकंजा 

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मंगलवार, अक्तूबर 29, 2019

"भइया-दोयज पर्व" (चर्चा अंक- 3503)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
--
आज की चर्चा में देखिए दिवाली से जुड़े 
कुछ लिंक और नियमित प्रविष्टियाँ
सबसे पहले भइयादूज पर मेरे कुछ दोहे
--
दोहे  
"पावन प्यार-दुलार" 
--
प्रकृति के सुकुमार कवि पं. सुमित्रानन्दन पन्त ने कहा है
"वियोगी होगा पहला कवि,
हृदय से उपजा होगा गान।
निकलकर नयनों से चुपचाप, 
बही होगी कविता अनजान।।" 
Anita Laguri "Anu" की भी रचनाओं में भी 
ऐसा ही कुछ मिलता है। देखिए उनकी यह प्रस्तुति-
उसकी उदासियाँ.., ...
उसकी उदासियों में
जज़्ब थी
कहानियों से
बने किरदार,
उसकी उदासियां
उसका हमसाया थी
वह तन्हा रही
अपनी ही जिंदगी में
एक चरित्र बनकर
--
दीपावली प्रकाश का उत्सव है, 
व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर आद. सुशील कुमार जोशी 
की यह रचना इस सन्द्रभ में समीचीन है।
--

शुभकामनाएं पर्व  दीपावली 

पटाखे फुलझड़ी भी नहीं 

उलूक टाइम्सपरसुशील कुमार जोशी 
--
बहन अलकनन्दा सिंह ने दीपावली के पावन अवसर पर
महीयशी महादेवी जी की सामयिक रचना को पोस्ट किया है।

दीपावली की शुभकामनाओं के साथ .... 

बुझे दीपक जला लूँ-  

महादेवी वर्मा 

--
ब्लॉगर पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा  एक ऐसे शायर हैं,
जो प्रतिदिन अपने ब्लॉग कविता "जीवन कलश" पर
रचनाएँ पोस्ट करते हैं। 
देखिए दीपावली पर यउनकी यह प्रस्तुति-

दीप मेरा 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा  
--
स्वप्न मेरे ...पर ग़ज़लों के बेताज बादशाह 
आद. दिगंबर नासवा ने अपने निराले अन्दाज में 
एक गीत प्रस्तुत किया है-

रात की काली स्याही ढल गई ... 

दिन उगा सूरज की बत्ती जल गई
रात की काली स्याही ढल गई

सो रहे थे बेच कर घोड़ेबड़े
और छोटे थे उनींदे से खड़े
ज़ोर से टन-टन बजी कानों में जब 
धड-धड़ाते बूटबस्तेचल पड़े  
हर सवारी आठ तक निकल गई
रात की काली ... 
स्वप्न मेरे ...पर दिगंबर नासवा 
--
शब्दों के माध्यम से पर शेखर मल्लिक  ने चीन के 
भविष्य का स्वप्न प्रस्तुत किया है-

ग़रीबी मुक्त भविष्य का स्वप्न 

शब्दों के माध्यम से पर शेखर मल्लिक  
--
डॉ. जेन्नी शबनम को अतुकान्त काव्य खासी महारत है 
और हाइकु तो यह चुटकियों में रच देतीं हैं।
आज देखिए इनके सात हाइकु-

636.  

दिवाली  

(दिवाली पर 7 हाइकु) 

1.   
सुख समृद्धि   
हर घर पहुँचे   
दीये कहते।   

2.   
मन से देता   
सकारात्मक ऊर्जा   
माटी का दीया.. 
--
कविता-एक कोशिश पर नीलांश  जी ने
एक दीपक की अभिव्यक्ति को 
अपने अनोखे अन्दाज में प्रस्तुत किया है-

जीवंत दीपक 

कविता-एक कोशिश पर नीलांश  
--
मेरी जुबानी पर~Sudha Singh  ने
उल्लास के पावन पर्व को पोस्ट किया है-

खुशियांँ अनलॉक करो 

(दिवाली गीत ) 

मेरी जुबानी पर~Sudha Singh 
--
चर्चा मंच के चर्चाकार आदर. रवीन्द्र सिंह यादव ने
10 महीने पूर्व निम्न अभिव्यक्ति को अपने ब्लॉग पर
अपनी वेदना के रूप में निम्नवत् प्रस्तुत किया था।
--
चाहा था एक दिन ...
माँगी थीं
जब बिजलियाँ,
उमड़कर
काली घटाएँ आ गयीं।
देखे क्या जन्नत के
दिलकश ख़्वाब,
सज-धजकर
गर्दिश की बारातें आ गयीं...
Ravindra Singh Yadav 
--
आदरणीय शशि गुप्ता जी 
अपने ब्लॉग व्याकुल पथिक पर 
सदैव अपने सार्थक दृष्टिकोण को 
को प्रस्तुत करते हैं जो पाठकों को 
सोचने पर विवश कर देता है-
कच्ची मिट्टी के ये पक्के दिए ,
भूल न जाना लेना तुम...
--
बहन अरुणा ने दीपावली के रंगों को 
अपने ब्लॉग पर साझा करते हुए अपनी चित्रमयी 
बधाई कुछ इस प्रकार दी है-
--
आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल व्यंग्य के 
ऐसे हस्ताक्षर हैं जो अपनी कलम से 
कुछ ऐसा लिख देते हैं जो पाठकों को  
सोचने को बाध्य कर देता है।
मजबूरियां - 2
 कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, 
 यूँ कोई बेवफ़ा, नहीं होता. 
 बशीर बद्र 
 तिरछी नज़र पर
 गोपेश मोहन जैसवाल  
--
अक्सर छन्दबद्ध कविता करने वाले
आदरणीय अरुण कुमार निगम ने
विष्णु पद छन्द में एक सन्देश देते हुए लिखा है-

अब की बार दीवाली में........  

अब की बार दीवाली में हम, कुछ नूतन कर लें  
किसी दीन के घर में जाकर, उसका दुख हर लें ... 
--
प्रो. अरुण देव का ब्लॉग समालोचन
सदैव स्तरीय सामग्री को पाठकों को प्रदान करता है।
--
श्रीमती Asha Lata Saxena नियमितरूप से
अपने ब्लॉग पर रचनाएँ पोस्ट करती हैं।
देखिए दीपमालिका पर उनकी शुभकामनाएँ-

दीपावली की शुभ कामनाएं 

--
श्री देवेन्द्र पाण्डेय जी की रचना का लिंक मैं हमेशा
चर्चा मंच पर लगाता हूँ, 
लेकिन वह कभी 
चर्चा मंच पर झाँकने भी नहीं आते हैं

दिवाली की सफाई में.... 

पत्नी की रहनुमाई में,  
दिवाली की सफाई में,  
दृश्य एक दिखलाता हूँ  
क्या पाया, बतलाता हूँ... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
--
राधे गोपाल उर्फ श्रीमती राधा तिवारी
एक आशु कवयित्री हैं।
देखिए उनके कुछ दोहे-

दोहे,  

कर सोलह श्रँगार "  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

--
हिन्दी के सशक्त आयाम विष्णु वैरागी को
लेखन विरासत में मिला है।
देखिए इनकी यह पोस्ट-

विभीषण बने बिना  

न रामराज आएगा न दीपावली 

‘दीपावली का पर्व उपलब्ध कराने के लिए किसे धन्यवाद दिया जाना चाहिए?’ सबको प्रभु राम ही याद आएँगे। कुछ लोग रावण को श्रेय दे सकते हैं - उसने सीता हरण नहीं किया होता तो राम किसका वध करते? कैसे सीता सहित अयोध्या लौट पाते? वनवास से राम की सीता सहित वापसी पर ही तो अयोध्यावासियों ने दीपावली मनाई थी! लेकिन मेरे मन में बार-बार विभीषण का नाम उभर रहा है... 
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 
--
सुबीर संवाद सेवा पर आदरणीय पंकज सुबीर 
हमेशा मुशायरा प्रस्तुत करते हैं।
इस बार भी ग़ज़लकारों के साथ 
उनकी यह प्रस्तुति विचारणीय है।

आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ।  

आज राकेश खण्डेलवाल जी, तिलक राज कपूर जी,  

गिरीश पंकज जी, नीरज गोस्वामी जी  

और सौरभ पाण्डेय जी के साथ मनाते हैं  

दीपावली का यह त्यौहार। 

सुबीर संवाद सेवा पर पंकज सुबीर 
--

आद. कालीपद "प्रसाद" जी 
गीत-गज़ल के माध्यम से निरन्तर अपनी बात रखते हैं-

गीत 

दीपों का उत्सव,  
घर घर झिलमिल  
अब दीप जले इस दिवाली में,  
एक दीप झोपडी में जले... 
कालीपद "प्रसाद" 

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आज के लिए बस इतना ही-
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