फ़ॉलोअर
यह ब्लॉग खोजें
सोमवार, जनवरी 31, 2011
करिए एक विश्लेषण.......(चर्चा मंच-415)
रविवार, जनवरी 30, 2011
रविवासरीय चर्चा (30.01.2011)
नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर से चर्चा मंच पर हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा में मेरी पसंद की कुछ पोस्ट और एक लाइना के साथ।
आज महात्मा गांधी की पुण्य तिथि है। आइए सबसे पहले हम उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करें।
१. Bhushan जी की प्रस्तुति
२. राकेश 'सोहम' जी लाए हैं आक्रामक पन्नियाँ ::
ये कभी
नष्ट नहीं होतीं /
और
बना देती हैं /
हमारी मानसिक /
उर्वरा शक्ति को /
क्षीण ! अति क्षीण !!
३. पं.डी.के.शर्मा"वत्स" का कहना है
४. Vijai Mathur प्रस्तुत कर रहे हैं गाँधी जी की हत्या –साम्राज्यवादी साजिश (बलिदान दिवस ३० जनवरी पर विशेष ) :: तमाम साम्राज्यवादी सांप्रदायिक साजिशों के बावज़ूद भारत आज प्रगति पथ पर अग्रसर तो है,परन्तु इसका लाभ समान रूप से सभी देश वासियों को प्राप्त नहीं है.सामाजिक रूप से इंडिया और भारत में अंतर्द्वंद चल रहा है और यह साम्राज्यवादियों की साजिश का ही हिस्सा है.
५. बलिदान दिवस पर अरविन्द सिसोदिया,कोटा, राजस्थान प्रस्तुत कर रहे हैं गांधी जी ने गिनाए , सात सामाजिक पाप :: वे जो आज भी प्रासंगिक हैं जिनकी आज भी उपयोगिता है ..! महात्मा गांधी ही पुन्य तिथि पर इनका अनुशरण भारतीय राजनीति करे तो यह बापू को सबसे बड़ी श्रधांजलि होगी !
६. स्वप्निल कुमार 'आतिश' की घुंघराले बालों वाली शाम ::
मैंने रोका नहीं तुम्हें / और रोकना चाहता भी नहीं था, / चाहता था ले आओ तुम उसे / लगाओ बालों में अपने / (शायद उसी से तुम्हारी लटें हो जाएँ घुंघराली) / और मजबूर कर दो दिन को वहीं ढलने पर / के दिन भी घुंघराले बालों में ढलना चाहता था...
७. नवीन सी. चतुर्वेदी लाए हैं
तुम बादल मैं प्यासी धरती| तुम बिन मैं सिँगार क्या करती| बन जाते माथे पर कुमकुम| कितने अच्छे लगते हो तुम|
८. Rachana जी की
तुम्हारा सूनापन / मेरा अकेलापन / तुम्हारे सूखे होठ / मेरी खिलखिलाती हसी / तुम्हारे ठहराव
मेरे अन्तरंग भाव / तुम्हारे घाव की टीस / मैं बैठी की आँखें मीच
९.
१०. Kirtish Bhatt, Cartoonist कह रहे हैं
११. Er. सत्यम शिवम जानना चाहते हैं तुम हो अब भी……...(सत्यम शिवम) ::
राहे मुझसे पुछती है, / है कहा तेरा वो अपना, / साथ जिसके रोज था तु, / खो गया क्यों बन के सपना।
१२. बलिदान दिवस पर Kailash C Sharma कहते हैं
हर शहर के चौराहे पर / है तुम्हारी मूर्ती / ज़मी है जिस पर / उदासी की धूल. / तुम्हारा दरिद्र नारायण / तुम्हारी ही तरह लपेटे / कमर में आधी, / पर फटी धोती, / खडा है आज भी / लेकर कटोरा हाथ में.
१३. नवीन प्रकाश दे रहे हैं जानकारी
१४. संतोष त्रिवेदी याद करते हैं बीबीसी की हिंदी सेवा ! :: दो दिन पहले ख़बर आई कि हम सबको सालों-साल ख़बरदार करती आई बीबीसी की हिंदी सेवा बस चंद दिनों की मेहमान है.यह ख़बर शायद आज के ज़माने में एक हाशिये भर की ख़बर बन कर रह गयी है.प्रसारणकर्ताओं ने धन की कमी का रोना रोया है. हो सकता है की यह सेवा कमाऊ न रह गयी हो पर सार्वजनिक -हितों के लिए इसका ज़ारी रहना न केवल हिन्दुस्तान के लोगों के लिए अपितु विश्व-बिरादरी के लिए भी ज़रूरी है.
१५. Navin C. Chaturvedi की माने, न माने .. पसंद अपनी अपनी ::
किसी को ये सुहाता है, किसी को वो सुहाता है |
ज़माने में सभी को, अपना - अपना रंग भाता है |
किसी को सुर्ख साड़ी में सजी दुल्हन लुभाती है |
किसी को दुस्साशन का कारनामा गुदगुदाता है ||
१६. chavanni chap की
१७.
त्रिपुरारि कुमार शर्मा की
बेबस ज़िन्दगी ::भीग गये अब तो आँसू भी रोते-रोते /
एक सदी का सा एहसास देता है पल /
घाव-सा कुछ है सितारों के बदन पर /
आँखं छिल जायेंगी देखोगे अगर चाँद
१८. RAJEEV KUMAR KULSHRESTHA का आह्वान -
१९. गुस्ताख़ मंजीत की
खोजता रहा कहीं गरमाहट, /
उम्मीद की... / लाल सूरज भी सिकुड़ता-सा लगा..
२०. सलीम ख़ान का कहना है
किस्मत की दास्ताँ कुछ इस तरह हुई /
ग़म-ख्वार ने ही 'सलीम' हर ग़म बढाया है
२१. लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`की प्रस्तुति
२२. देवेन्द्र पाण्डेय ने लगाया है चंदन ::
कितनी चतुराई जान लेते हो
चंदन शीतल लेप....!
२३. संगीता पुरी बता रही हैं
२४. वाणी गीत की भैंस पसरी पगुराय ..... ::
भैंस ने जुगाली करने के बाद एक जोर की डकार ली ...डकारने की आवाज़ के साथ गालियों की बौछार से हतप्रभ रह गए .... ये क्या भैंस , तेरे मुंह से ऐसी गालियाँ ...
२५. खुशदीप सहगल की
२६. अर्कजेश के लिए नए साल में नया क्या है :: कविता अधूरी जैसी है । साल भी अभी बहुत बाकी है।
२७. मनोज कुमार हैं फ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (चौथा भाग) :: ओह! क्या अद्भुत नज़ारा था हमारे लिए! एक ९५ साल का शख्स हमारे लिए, हमारे अनुरोध पर फिर से अपना यौवन जी रहा था। न सिर्फ़ उनकी बल्कि हमारी आंखों से भी अविरल अश्रु की धार बह चली!!!
२८. वन्दना ढूंढ रही हैं अर्थ ::
इतना मुश्किल है क्या / हँसी का अर्थ ढूंढना / अभी तो सिर्फ एक ही / अर्थ कहा है ढूँढने को / गर रोने के अर्थ
ढूँढने पड़ते / तो शायद सदियाँ / गुजर जातीं
२९. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" की पेशकश
३०. शिक्षामित्र की चिंता
३१. महेन्द्र मिश्र का मानना है चाणक्य जैसे लोकसेवी और सृजन शिल्पी की देश को जरुरत है ... :: ऐसे राष्ट्रसेवी गढ़ना होंगें ... जो अतीत का गौरव स्थापित कर सके जिससे देश और समाज उन्नति कर सकें .
३२. प्रवीण पाण्डेय की प्रस्तुति चोला माटी के हे रे :: कुछ विषय ऐसे हैं जिनसे हम भागना चाहते हैं, इसलिये नहीं कि उसमें चिंतन की सम्भावना नहीं हैं या वे पूरी तरह व्यर्थ हैं। संभवतः भय इस बात का होता है कि उस पर विचार करने से हमारे उस विश्वास को चोट पहुँचेगी जिस पर हमारा पूरा का पूरा अस्तित्व टिका है।
आज बस इतना ही! अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
शनिवार, जनवरी 29, 2011
आपका नया चर्चाकार:- Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)-----स्वागतम्----
1.)साधना जी "वटवृक्ष" की छावँ में कहती है:-
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं
2.)संजु जी के "मेरे जज्बात" से निकलती आवाज
13.)निवेदीता जी के "संकलन" से मीना कुमारी की एक प्यारी गजल
14.)केवल राम जी "चलते -चलते" .... समझ गये अब
उदास ना हो....