मित्रों!
आज की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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उसने कहा-
मरुस्थल सरीखी आँखों में
मृगमरीचिका-सा भ्रम जाल होता है
यद्यपि बहुत पहले
मरुस्थल, मरुस्थल नहीं थे
वहाँ भी पानी के दरिया
जंगल हुआ करते थे
गिलहरियाँ ही नहीं उसमें
गौरैया के भी नीड़ हुआ करते थे
गूँगी गुड़िया अनीता सैनी 'दीप्ति'
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अंधेरों में शमां रौशन करेंगे हम ( ग़ज़ल )
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सुदूर मुहाने में हैं अप्रत्याशित
कई मधुर स्वप्न जागे,
चंचल सरिता और
जलधि मिलते
हैं दूर कहीं
जा आगे ,अग्निशिखा
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गीत "आ गया है दादुरों को गीत गाना"
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सारा जीवन बीत रहा
पर संतोष ना मिला कहीं भी
जीवन एक किराए की झोंपड़ी
मन को आराम मिला ना मिला |
कविता लिखने से मन उचटा
ना कोई नये शब्दों का काफिला मिला
चलता रहा आगे आगे
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आप सभी को योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
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छत्तीसगढ़ का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Chhattisgarh ||
वर्ष 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन उपरांत राज्य के राजकीय के राजकीय पशु, पक्षी इत्यादि चिन्हित कर घोषित किये हैं। वर्ष 2002 में “पहाड़ी मैना” को छत्तीसगढ़ का राजकीय/राज्य पक्षी घोषित किया गया। मुख्यतः यह बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है। इसे “कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान” में संरक्षित किया गया है। पहाड़ी मैना का जीवनकाल औसतन 8 वर्ष होता है।
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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. कृष्णकुमार ’नाज़’ के ग़ज़ल संग्रह ’दिये से दिया जलाते हुए’ की इंजी. राशिद हुसैन द्वारा की गई समीक्षा .…..समाज को आईना दिखाती ग़ज़लें
साहित्यिक मुरादाबाद--
कभी-कभी जी चाहता है
इतना जिऊँ इतना जिऊँ इतना जिऊँ
कि ज़िन्दगी कहे-
अब बस! थक गई! अब और नहीं जी सकती!
हरदी गुरदी! हरदी गुरदी! हरदी गुरदी!
पर सोचती हूँ
मैं ज़िन्दा भी हूँ क्या?
जो इतना जिऊँ इतना जिऊँ इतना जि
क्यों जियूँ, कैसे जियूँ, कितना जियूँ?
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भोजपुरी, मलयाली, तमिल,गुजराती
आदि,इत्यादि ज्ञात,अज्ञात
लिखने वालों की अनगिनत है जमात
कविता,लेख ,कथा,पटकथा,नाटक
विविध विधा के रचनात्मक वाचक
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बहुत सोच-समझ कर,
बहुत ध्यान से
मैंने तुम पर कविता लिखी,
जैसे कोई सामने बिठाकर
किसी का चित्र बनाये.
मैं बुरा कवि नहीं हूँ,
पर मैंने जो कविता लिखी,
उसमें तुम पूरी नहीं थी.
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फोटोग्राफी का मजा बढ़ जाएँ,
अगर कोई दृश्य दिल में उतर जाएँ
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पूरे पन्द्रह दिन बाद जब भुविका ननिहाल से लौटी तो माँ (अनुमेधा) उसे बड़े प्यार से गले लगाकर उलाहना देते हुए बोली, "उतर गया तेरा गुस्सा ? नकचढ़ी कहीं की ! इत्ते दिनों से नानी के पास बैठी है, अब कुछ ही दिनों में जॉब के लिए चली जायेगी, माँ का तो ख्याल ही नहीं है ! है न" !
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सागर लहरें उर्मिला सिंह
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भारत-अमेरिका सहयोग की लंबी छलाँग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 से 25 जून तक अमेरिका और मिस्र की यात्रा पर जा रहे हैं. यह यात्रा अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है, और उसके व्यापक राजनयिक निहितार्थ हैं. यह तीसरा मौका है, जब भारत के किसी नेता को अमेरिका की आधिकारिक-यात्रा यानी ‘स्टेट-विज़िट’ पर बुलाया गया है.
इस यात्रा को अलग-अलग नज़रियों से देखा जा रहा है. सबसे ज्यादा विवेचन सामरिक-संबंधों को लेकर किया जा रहा है. अमेरिका कुछ ऐसी सैन्य-तकनीकें भारत को देने पर सहमत हुआ है, जो वह किसी को देता नहीं है. कोई देश अपनी उच्चस्तरीय रक्षा तकनीक किसी को देता नहीं है. अमेरिका ने भी ऐसी तकनीक किसी को दी नहीं है, पर बात केवल इतनी नहीं है. यात्रा के दौरान कारोबारी रिश्तों से जुड़ी घोषणाएं भी हो सकती हैं.
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मनोज मुन्तशिर का लेखन सीमा में बंधे
"कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की और जलेगी भी तेरे बाप की" भक्त शिरोमणि हनुमानजी के मुख से इस तरह के सड़क छाप डायलाग कहलाती "आदिपुरुष" के डायलाग राइटर "मनोज मुन्तशिर" शायद लंकेश रावण के पश्चात दूसरे ब्राह्मण होंगे जिन्होंने श्री राम के चरित्र के साथ खिलवाड़ करने का असहनीय कृत्य किया है. जिस दिन से" आदिपुरुष" सनातन धर्मावलंबियों के सामने आई है शायद ही कोई सच्चा सनातनी होगा जो मनोज मुन्तशिर के अनोखे ज्ञान को लेकर कम से कम दो शब्द विरोध में न बोला हो और जिस तरह से हमेशा होता आया है गलत अपनी गलतियों को कभी स्वीकार नहीं करता अपितु और नई गलतियां करना आरंभ कर देता है. पहले तो असभ्यता, अश्लीलता की सीमाएं पार कर "आदिपुरुष" ने हिन्दू धर्म को कलंकित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी थी, अब मनोज मुन्तशिर और कहने के लिए आगे बढ़े हैं, रामायण के गहरे जानकार मनोज मुन्तशिर कहते हैं - "बजरंग बली ने भगवान राम की तरह से संवाद नहीं किए हैं। क्योंकि वे भगवान नहीं भक्त हैं, भगवान हमने उन्हें बनाया है, उनकी भक्ति में वह शक्ति थी।"
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एक स्त्री हर हाल में रहकर भी अन्याय के विरुद्ध लड़ना नहीं छोड़ती
फिल्म हो या टीवी सीरियल उन्हें देख मुझे कभी भी वह आत्मतृप्ति नहीं मिलती, जितनी किसी थिएटर में मंचित नाटक को देखकर मिलती है। कारण स्पष्ट है नाटक जैसा जीवंत मंचीय संवाद किसी अन्य मंच में कहाँ देखने को मिलता है? इसमें अपनी आँखों के सामने मंच पर आकर जब नाटक के पात्र अपने प्रभावशाली अभिनय कला का प्रयत्क्ष प्रदर्शन कर किरदारों को जीवंत करते हैं तो ऐसा अनुभव होता है जैसे सब कुछ हमारी आँखों के सामने एक के बाद एक घटित हो रहा हो। ऐसा ही एक अवसर मुझे सोमवार शाम को मिला, जब हम शहीद भवन, भोपाल में आदर्श शर्मा द्वारा निर्देशित नाटक 'पुरुष ' का मंचन देखने गए। Kavita Rawat Blog
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चले योग की राह पर जो भी आज के समय में लोग बाहर इतना उलझ गये हैं कि अपने भीतर जाने की राह नहीं मिलती। कहीं कोई प्रकाश का स्रोत मिल जाये तो वे उसके पास जमा हो जाना चाहते हैं। आश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। कथाओं, मंदिरों, सत्संगों में भी भीड़ ज्यादा है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है यह कारण तो है ही, पर सामान्य जीवन में इतना दुख, इतनी अशांति है कि लोग कुछ और पाना चाहते हैं। संत कहते हैं, साधना करो, भीतर जाओ, अंतर्मुखी बनो, पर ऐसा कोई-कोई ही करते हैं। अधिकतर तो भगवान को भी बाहर ही पाना चाहते हैं।डायरी के पन्नों से अनीता
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आओ नित ही योग करें,
तन मन सदा नीरोग करें।
खुली जगह में योग करें,
जीवन का सुख भोग करें।।
-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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#टुकड़े टुकड़े में होना #खतम नहीं ....
#Abhivyakti Deep - #अभिव्यक्ति दीप
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गीत "भा गये बादल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
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सुहानी चल रही पुरवा, सभी को भा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
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आज के लिए बस इतना ही...!
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति.आभार.
वन्दन के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
शानदार लिंको का संग्रह। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुति में मेरा लिंक शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।
उम्दा लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति... मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए ,आदर आभार एवं धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंमेरी प्रविष्टि् के लिंक "टुकड़े टुकड़े में होना खतम नहीं" की चर्चा इस गरिमामय मंच में करने के लिए बहुत धन्यवाद ।
सभी संकलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां ।
सादर ।
सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरे सृजन को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही समृद्ध अंक।
जवाब देंहटाएंविषय और विधा का संगम।
बहुत आभार आदरणीय सर।
सुप्रभात! देर से आने के लिए खेद है, दरअसल टिप्पणी स्पैम में चली गई थी, सदा की तरह विविधारंगी रचनाओं से सजा सराहनीय अंक, बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
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