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रविवार, मार्च 31, 2013

सुर-ताल पे ला : चर्चा मंच-1200

"जय माता दी" अरुन की ओर से आप सबको सादर प्रणाम. बिना विलम्ब किये चलते हैं आज की चर्चा की ओर
शारदा अरोरा
चीज कीमती टूटती है तो दुख होता है
काँच का सामान खरीदा है तो
उसकी टूटन भी साथ खरीद के ला
जरुरी नहीं कि हर चमकती चीज वफ़ा ही हो
काँच भी हीरा होने का भरम देता है
तराशने के लिये पहले उसे आँच पे ला
सदा
कभी मन के खिलाफ़
चली है आँधी तुम्‍हारे शब्दों की
कभी नहीं चाहते हो जो लिखना वह भी
लिख डालती है कलम एक ही झटके में
वर्जनाओं के घेरे में करती परिक्रमा
शब्दों की तोड़ती है अहम् की सरहदों के पार
कुछ तिनके उड़कर दूर तलक़ जाते हैं
कुछ घोसलों में सजाये जाते हैं
कुछ कदमों तले रौंदे जाते हैं
Vandana Gupta
सुना था
लाइफ़ आफ़्टर डैथ के बारे में
मगर आज रु-ब-रु हो गया ………तुम्हारे जाने के बाद
ज़िन्दगी जैसे मज़ाक
और मौत जैसे उसकी खिलखिलाती आवाज़
गूँज रही है अब भी कानों में
भेद रही है परदों को
Nidhi Tandon
स्याह सी खामोशियों के
इस मीलों लंबे सफ़र में
तन्हाइयों के अलावा ..
साथ देने को दूर-दूर तक
कोई भी नज़र नहीं आता .
Anita
जब तक हमारे जीवन में राग-द्वेष हैं, तब तक हमें कर्म करने ही पड़ेंगे, साधना करते-करते जब मन खाली हो जायेगा, तब अस्तित्त्व हमारे द्वारा काम कराएगा. जैसे मैले कपड़े को तब तक धोया जाता है जब तक उसमें मैल रहता है ताकि वह स्वच्छ होकर पुनः इस्तेमाल किया जा सके, वैसे ही मन जो विषादग्रस्त हो गया है,
NAVIN C. CHATURVEDI
हमने गर हुस्न और ख़ुशबू ही को तोला होता
फिर तो हर पेड़ गुलाबों से भी हल्का होता
रब किसी शय में उतर कर ही मदद करता है
काश मैं भी किसी रहमत का ज़रीया होता
रहमत - ईश्वरीय कृपा ज़रीया - माध्यम
Rajendra Kumar
खुबसूरत कोई लम्हा नही मिलने वाला,
एक हँसता हुआ चेहरा नही मिलने वाला।
तेरे हसीन चेहरे को नींद में भी नहीं भूलता,
यूं ही रेतो पर चलने से नही मिलने वाला.
तब मेरे दर्द को महसूस करेगें लेकिन,
मेरी खातिर मसीहा तो नही मिलने वाला।
Brijesh Singh
माथे पर सलवटें
आसमान पर जैसे
बादल का टुकड़ा थम गया हो
समुद्र में
लहरें चलते रूक गयीं हों
कोई ख्याल आकर अटक गया
प्रतिभा सक्सेना
जान रही हूँ तुम्हें ,समझ रही हूँ ,
तुम वह नहीं जो दिखते हो!
वह भी नहीं -
ऊपर से जो लगते रूखे ,तीखे,खिन्न!
चढ़ती-उतरती लहरों के आलोड़न ,
आवेग-आवेश के अथिर अंकन
अंतर झाँकने नहीं देते !
अल्पना वर्मा
मैं ढूँढती हूँ तुम्हारे भेजे पन्नों पर उन शब्दों को जिनसे तुमने मुझे खरीदा था।
हाँ,खरीदा ही तो था तुमने मुझे उन शब्दों से ,
किश्त दर किश्त मेरा मन उन शब्दों के बदले बिकता चला गया था ।
हार गयी थी मैं खुद को तुम्हारी बिछायी शब्दों की बिसात पर।
Prritiy----Sneh
आज भी तुझे याद करते ही पलकें भीग जाती हैं
तेरी बातों को याद कर आज भी आंखें मुस्काती हैं
आज भी तेरे होठों पर आह देखकर तड़प उठता है दिल
तुझसे दूरी रख कर तेरी आवाज को आज भी तरसता है दिल
आज भी तुझे हँसते मुसकाते देख हम मुस्कुरा पाते हैं
तुझे गैरों के साथ आज भी मचलते देख सिमट जाते हैं
Rajesh Kumari
उड़ती हुई
उन्मुक्त गगन में
भिगोये पंख
डूबे सप्त रंगों में
हुई नारंगी
मरीचि मिलन में
बिखेरी छटा
प्रकृति आँगन में
हर्षित धरा
Munkir
अहसासात--- टुकड़े टुकड़े
तेज़ तर तीर की तरह तुम हो,
नसलो! तुम को निशाना पाना है।
हम हैं बूढे कमान की मानिंद,
बोलो कितना हमें झुकाना है?
***
सुल्हा कर लूँ कि ऐ अदू १ तुझ से,
मैं ने तदबीर ही बदल डाली,
तेरे जैसा ही क्यूं न बन जाऊं,
अपने जैसा ही क्यों बनाना है।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
देखो कितना भिन्न है, आभासी संसार।
शब्दों से लड़ते सभी, लेकर क़लम-कटार।।
ज़ालजगत पर हो रही, चिट्ठों की भरमार।
गीत, कहानी-हास्य की, महिमा अपरम्पार।।
पण्डे-जोशी को नहीं, खोज रहा यजमान।
जालजगत पर हो रहा, ग्रह-नक्षत्र मिलान।।
इसकी झोली में भरा, सभी तरह का माल।।
स्वाभिमान के साथ में, रहो सदा आनन्द।
अपने बूते पर लिखो, सभी विधा सानन्द।।
Ayodhya Prasad
एक नदी के किनारे बरगद का एक वृक्ष था| उस वृक्ष पर घोंसला बनाकर एक कौआ रहता था| वृक्ष की कोटर में एक सर्प रहता था| जब भी मादा कौआ अन्डे देती थी , वह सर्प उन्हें खा जाता था| कौआ बड़ा दुखी था| वह सर्प की दुष्टता के लिए उसे दण्ड देना चाहता था| वह सोचता रहता था कि उस काले भयंकर सर्प से कैसे छुटकारा पाया जाये|
मन्टू कुमार
"हम जैसा चाहते हैं,ज़िंदगी उसी तरह आगे बढ़ती चली जाती है" पर यह बात शायद हर वक्त,हर जगह लागू न हों | कभी-कभी हमें अपने हिसाब से न चलाकर ज़िंदगी,जिस राह पर ले जाना चाहती है उसी तरफ चलना पड़ता है...पर कहीं न कहीं उस सही या गलत राह के लिए हम खुद ही जिम्मेदार होते हैं,यह बात हम खुद समझ जाए तो बेहतर वरना वक्त तो समझा ही देता है |
संजीव शर्मा
कुछ साल पहले की ही बात होगी जब उसने राष्ट्रपति भवन से सटे और आम लोगों के लिए लगभग निषिद्ध हमारे कार्यालय परिसर में कदम रखा था और सरकारी दफ़्तर के विशुद्ध औपचारिक वातावरण में पायल की रुनझुन सुनकर हम सभी चौंक गए थे.चौकना लाजमी था क्योंकि सहकर्मी महिला साथियों के लिए खनकती पायल गुजरे जमाने की बात हो गयी थी और बाहर से पायल की छनछन के साथ किसी महिला का ‘प्रवेश निषेध’ वाले क्षेत्र में आना लगभग नामुमकिन था.
Ravishankar Shrivastava
यदि नहीं तो संघर्ष के साथ हिंदी लिखते होंगे। :)
Virendra Kumar Sharma
Jyoti Khare
दर्द में लिपटी एक पाकीज़ा की शायरी
मीना कुमारी की पुन्य तिथि पर
इसी के साथ आप सबको शुभविदा मिलते हैं अगले रविवार को . आप सब चर्चामंच पर गुरुजनों एवं मित्रों के साथ बने रहें. आपका दिन मंगलमय हो
जारी है ..... मयंक का कोना
(1)
"अरुण की जीवनसंगिनी मनीषा का जन्मदिन"
आज अपने पुत्रतुल्य शिष्य
अरुण शर्मा से फेसबुक पर बात हो रही थी
बातों-बातों में राज़ खुल ही गया कि
आज उनकी जीवन संगिनी 
श्रीमती मनीषा का जन्म दिन है।
आशीर्वाद के रूप में कुछ पंक्तियाँ बन गयीं हैं!
प्यार से खाओ-खिलाओ अब मिठाई।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।..
(2)
मुहब्बत की राहों पे चलना संभल के |

(3)
हम हैं दबंग The Dictatorial का First Promo.....

(4)
लव जिहाद -आज का सच या झूठ ?

(5)

कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ 

(6)
भांति भांति के रंग ....

(7)
लंगडा़ दौड़ता है दो टाँग वाला कमेंट्री करता है !
My Photo
(8)
‘उजले चाँद की बेचैनी’- भावों की सरिता

(9)
हसरतों की बारिशें

शनिवार, मार्च 30, 2013

वन्दना की गीतमाला-ए-चर्चा

वन्दना की गीतमाला -ए-चर्चा में आप सबका स्वागत है 

होली के रंगों से सराबोर 
आपका तन मन झूम ही रहा होगा 
तो उसे कुछ मस्ती भरे नगमों से 
और खुशगवार बनाया जाये 
वैसे भी दिल्ली में मौसम भी मेहरबान है 
आजकल बिन मौसम बरसात हो रही है 
तो कैसे ना दिल की कली खिलेगी 
और आपके मन की बगिया महकेगी 




"बादल हुआ शराबी" (डॉ.रूपचन्द्र शास

खोया खोया चाँद खुला आसमान 
आँखों में सारी रात जायेगी 
तुमको भी कैसे नींद आएगी 




पल भर के लिए कोई हम से प्यार कर ले झूठा ही सही 
दो दिन के लिए कोई इकरार कर ले झूठा ही सही 



मैं----एक खारा समुंदर बन जाऊं

दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है 
आवाज़ दे तू कौन सी नगरी में छुपा है 


जाइये आप कहाँ जायेंगे 
ये नज़र लौट के फिर आएगी 


ज़ुल्म होने न दें ग़रीबों पर..........

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवन 
कितना बदल गया इंसान 



इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल 
जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल 



अपनी पसंद के भजन या सोंग अपने पीसी में सेव करे चुटकियो में

बजाये जा तू प्यारे हनुमान चुटकी 
तेरे प्रभु जानते हैं बात घट घट की 


नरेन्द्र मोदी से अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल मिला तो उनके पीए ने उनसे सबसे पहले क्या पूछा?


आगे भी जाने न तू पीछे भी जाने न तू 
जो भी है बस यही इक पल है 


तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है बांध लिया है 
तेरे जुल्मो सितम सर आँखों पर 


मेरा प्यार भी तू है ये बहार भी तू है 
तू ही नज़रों में जाने तमन्ना तू ही नज़ारों में 



क्षणिका ..प्रेम (२)

इतना  है तुमसे प्यार मुझे मेरे राजदार
जितने के आसमान पर तारे हैं बेशुमार 




जो हर बेरंग को रँग दें , वो दुनिया जीत लाते हैं '

हाल कैसा है जनाब का क्या ख्याल है आपका 
तुम तो मचल गए हो हो हो यूं ही फिसल गए हा हा हा 



मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम 
तुम भी कुछ अच्छा सा रख दो अपने दीवाने का नाम 



दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा
 जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा 


पिया संग खेलूँ होली फागुन आयो रे 



रेशमी सलवार कुरता जाली  का 
रूप सहा न जाए नखरे वाली का 


इन्तहा हो गयी इंतज़ार की 
आई न कुछ खबर मेरे प्यार की 



मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं 
तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता 



ये चाँद सा रोशन चेहरा जुल्फों का रंग सुनहरा 
ये झील सी नीली आँखें कोई राज़ है इनमे गहरा 
तारीफ करूँ क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया 


अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं 


अगर बेवफा तुझको पहचान जाते 
खुदा की कसम हम मोहब्बत न करते 

तुम्हारी नज़र क्यूँ खफा हो गयी 
खता बख्श दो गर खता हो गयी 



अच्छा जी मैं हारी  अब तो मान जाओ ना 
छोड़ी सब की यारी मेरा दिल जलाओ ना 



ये कौन आया है रोशन हो गयी महफ़िल किसके नाम से 
मेरे घर में जैसे सूरज निकला है शाम से 



पंछी बनूँ उडती फिरूँ मस्त गगन में 
आज मैं आज़ाद हूँ दुनिया के चमन में 


होठों में ऐसी बात मैं छुपा के चली आई 
खुल जाये वो ही बात तो दुहाई है दुहाई 


तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई 
यूं ही नहीं दिल लुभाता कोई 
जाने तू या जाने ना माने तू या माने ना


हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के 
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के 


तुमको देखा तो ये ख्याल आया 
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया 





कहो सच है न ...:)

ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें 
तसव्वुर में कोई जँचता नहीं हम क्या करें 


हुण हुण दबंग दबंग़ दबंग 
मन परवान लागे चट्टान रहे मैदान मे आगे
हुण हुण दबंग दबंग़ दबंग 






तो दोस्तों वन्दना की गीतमाला को आज यहीं विश्राम देती हूँ …………कहो कैसी लगी ? :) 

अगले हफ़्ते फिर मिलते हैं फिर किसी अन्दाज़ में 
आगे देखिए "मयंक का कोना"
(1)
होली की हुडदंग ( भाग -२ )

शुक्रवार, मार्च 29, 2013

"अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते...!" (चर्चा मंच-1198)

मित्रों!

होली अब हो ली हुई, बीत गया त्यौहार।
एक बरस के बाद में, बरसेगी रसधार।१।..
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
     अब अपनी पसंद के लिंकों के साथ...शुक्रवार की चर्चा का शुभारम्भ करता हूँ..!
       सब कहते हैं भूलने की कोशिश करो पर किसे … ? यह राज तो स्वप्न मेरे...........पर यादे के अन्तर्गत ही मिलेगा। पाँच दोहे देखिए...होली अब हो ली हुई..दास्ताँने - दिल ये दुनिया है दिलवालों की.. सही तो है..जिन्दग़ी जिन्दादिली का ही तो नाम है। देखिए ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक - ३३ के अंतर्गत शामिल  दो गज़लें....! 
       अबके इस होली में ! अंधड़  पर पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने अपनी "छवि" बदलनी चाही, लेकिन नतीजा क्या रहा यह तो ब्लॉग पर जाने पर ही ज्ञात होगा। मगर व्यक्ति अनजान रहा अक्सर....! प्रतिभा जी बता रहीं हैं...ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते, सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते, आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते, अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते...! हालात आजकल पर प्रवेश कुमार सिंह बता रहे हैं कि अचम्भित ना होवें , यदि आपको काट ले कभी या पीछा करे आपकी गाड़ी का बड़े दाँतों और लम्बी जीभ वाला कोई भेड़ का पिल्ला या कहीं रास्ते में मिल जाय कोई झुण्ड से बिछड़ा हुआ कुतिया का मेमना तो कतई भी हैरान ना हों...! वन्दना गुप्ता बता रहीं है हाथ मे चाबु्क लेकर तो कोई भी मदारी बन सकता है …… पानी व्यर्थ खर्च मत करो  जल सरंक्षण और प्रदुषण के बहाने उमंगों को दबाने कि कोशिश मत करो...!
     भाईयों...!  हर आदमी आज टकाटक, फटाफट अमीर बनना चाहता है, इसके लिए कोई पूजा करता है, कोई नमाज पढता है और कुछ बिदेशी धन से अपनी डाक्टरीयत झाड़ते हैं. कुछ हम जैसे भी है जो सुबह सुबह उठ के पार्क में जा के सेहत चूसते है, धन के लिए आफिस जाना होता है, अक्ल के लिए अच्छे अक्लमंद लोगो के साथ कुछ अक्लमंद लोगो के लेख पढ़ते है, और यही हमें बचपन से सिखाया भी गया, "जिसका जैसा संग, वैसा होगा मन". यदि पूजा पाठ और नमाज से लोग आमिर बनते तो मंदिर का पंडा और मस्जिद के मुल्ला धीरुभाई के साथ उठाना बैठना होता, अलबत्ता मैं तो यही जाना है कि सेहतमंद, दौलतमंद और अक़्लमंद बनने का साइंटिफिक मैथड को सभी अपनाने में लगे हैं मगर नजीजा वही ढाक के तीन पात! होली त्यौहार है मौज मस्ती का , खाने खिलाने का , पीने पिलाने का , हंसने हंसाने का और सबको प्यार से गले लगाने का। इस अवसर पर डॉ.दराल जी के यहाँ यहाँ पता चला वो पड़ोसी नहीं , पड़ोसन थी...! परन्तु मेरे दिल से सीधा कनेक्शन.....है दुआ... का...! और वो मिलेगी...विश्व के सबसे उंचाई पर स्थित शिव मंदिर पर क्योंकि वहीं तो भोले बाबा निवास करते हैं! लेकिन सीढ़ी घाट की खतरनाक चढ़ाई पर तो चढ़ना ही होगा। 
      डॉ.,जेन्नी शबनम लेकर आयीं हैं..होली के रंग *******हाइकुओं के संग.. 1. रंग में डूबी खेले होरी दुल्हिन नई नवेली ! 2. मन चितेरा अब तक न आया फगुआ बीता ! 3. धरती रँगी सूरज नटखट गुलाल फेंके ! 4. खिलखिलाया रंग और अबीर वसंत आया ! 5. उड़ती हवा बिखेरती अबीर रंग बिरंगा ! 6. तन पे चढ़ा फागुनी रंग जब मन भी रँगा ! 7. ओ मेरे पिया करके बरजोरी रंग ही दिया ! 8. फागुनी हवा उड़-उड़ बौराती रंग रंगीली !
       काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा शैल बता रहीं हैं...कुछ इधर-उधर की...! फिर भी हम खुद से बाहर कहाँ तक जायेंगे..थक जायेंगे तो यहीं लौटकर आयेंगे...! लेकिन फिर भी इनके हौसले को सलाम ...!  " होली के बहाने अश्लीलता मत परोसो यारो " !! हर कोई अपना दृष्टि कोण रखने के लिए स्वतंत्र है हिन्दू आराध्यों की आलोचना करना उचित नहीं है।     
      मै तो दर दर भटक रहा था गिरता पड़ता अटक रहा था इधर झांकता, उधर झांकता सड़कों पर था धूल फांकता गाँव गाँव द्वारे द्वारे मगर फिर भी  तलाश  पूरी नहीं हुई,,,! तब फागुन ,फागुन लगता था  चौपाल फाग से सजते थे नित ढोल -नंगाड़े बजते थे तब फागुन-फागुन लगता था यह मौसम कितना चंचल था...! क्योंकि प्यार का रंग कभी तोते सा हरा तो कभी उसकी लाल चोंच सा तीखा मन को लुभाता है सच में प्यार हर रंग में ढल जाता है किसी को बैंगनी रंग में भी आसमाँ दिख जाता है...! मुझे थाम लेना । जब पतझड़ सी वीरानगी नस - नस में भर जाती तो नवसृजन की आस है तुमसे तुम वसंत बन जाना दिल से.. । घने बादलों से जब -जब सूरज सुनहरा ढंकता है विकल मन बारम्बार पुकारता तुम संबल बन जाना । दुबिया पर पड़ी ओस की निरह बूंद ही सही आत्मसात करने मुझ को तुम दिवास्पति बन जाना । जीवन राग सुरीला शब्दों की लड़ियाँ गर तुम्हे पिरोये मैं रागिनी बावरी सी गुनगुनाऊं वैसा गीत बन जाना । अटूट बंधन, अमर प्रेम हमारा जीवन साथी हम रिश्ता जन्मों का शिखा बन सुबहो शाम जलूं तुम मेरे दीप बन जाना । दिल से तुम काया मैं साया तुम धूप मैं ताप मैं बहती धारा तुम कलकल निनाद बन जाना । बिन तुहारे मेरा वजूद नहीं.....! किन्तु पहले  मैं का त्याग एवं अहम् का नाश .तो करो...! कहाँ गई होली...! मन फिर मचल गया जरा मुड कर तो देख कोई है शायद अभी भी तेरे इंतज़ार में ... नज़र आया दूर तक वीराना ही कोई तो पुकारेगा इस वीराने में ...अब तू क्यूँ मचलता है मन .....अब किस बहार का इंतज़ार है तुझे ...। सच में , दुनिया देखिये कितनी छोटी हो गई !...Virendra Kumar Sharma  No lame excuse:You can be 'allergic'to exercise पर सेहत दुरुस्त करने के उपाय बता रहे हैं!आरोग्य प्रहरी (1)एक मुठ्ठी बादाम न सिर्फ बढिया नाश्ता है , भरपूर विटामिन E मुहैया करवाते हैं ,कोलेस्ट्रोल कम करने में भी सहायक सिद्ध होते हैं  मास्टर्स टेक टिप्स पर Aamir Dubai से बैठे हुए भारत में मोबाइल के दाम बताने में मशगूल है और अशोक सलूजा जी बता रहे हैं मेरा बचपन ......में चलिए आज आपको अपने बचपन के सैर कराता हूँ ....... और ख़ुद आप को सुनाता हूँ ! होली की याद में इतना तो बनता ही है न ???
अन्त में ताऊडॉट इन पर देखिए- एक रंग बिरंगी होली मय "चिठ्ठा चर्चा"

अरे जनाब आप देखिए तो सही ताऊ की कलाकारी..हँसते-हँसते लोट-पोट हो जायेंगे आप..!

गुरुवार, मार्च 28, 2013

"प्यार के रंग, होली के संग" ( चर्चा - 1197 )

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 
उम्मीद है कि होली का दिन मौज मस्ती का रहा होगा | महाराष्ट्र में सूखे को देखते हुए पानी बर्बाद न करने की सलाहें तो गई थी मगर इस दिन किसको याद रहते हैं ये उपदेश | लोगों ने आपस में भी होली खेली तो श्रद्धालुओं ने अपने धर्मगुरुओं के साथ भी पानी बहाया | कुछ ने सूखे रंग मसले यह सोचकर कि पानी की बचत होगी लेकिन लाल-पीले चेहरे को पहले-सा करना के लिए अतिरिक्त पानी तो बहाना ही पड़ा | फिर भी कुछ जश्न तो जरूरी था ही क्योंकि ये सिर्फ रंग नहीं थे प्यार की सौगातें थी और प्यार शब्द यहाँ आ जाता है वहां तौल-मोल , नफा-नुक्सान सब गायब हो जाता है |
चलते हैं चर्चा की ओर 
 
जाले
Kamlesh Kumar Diwan
मेरा फोटो
फुरसत के पल........
 
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आज की होलीमय चर्चा में बस इतना ही 
धन्यवाद