फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, दिसंबर 31, 2009

रस्म -ए- ब्‍लॉगिंग भी है - नया साल भी है-अलविदा 2009

चर्चा मंच-अंक 15
चर्चाकार-ललित शर्मा
आज वर्ष 2009 का अंतिम दिन है. और चर्चा करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है. साल बीतने वाला है अपने साथ खट्टी-मीठी और कडवी यांदे भी लेकर. सबसे कडवी याद तो मंहगाई की रही, इसने तो खट्टी मीठी यादों को भी भुला दिया. एक आम आदमी अब इससे ही जूझ रहा है. उसके समक्ष एक यक्ष प्रश्न सा खड़ा है कि कभी यह मंहगाई भी कम होगी की नहीं . जो सुरसा की तरह नित बढ़ते ही जा रही है. यह कम हो या ना हो हमें तो पेट भरने के लिए कमाना और उपजाना पड़ेगा ही. चलिए अब चलते हैं. इस वर्ष की अंतिम चिटठा चर्चा पर.

बाबा समीरानंद बता रहे हैं 2010 में आपका भविष्य, आश्रम में आईये अपना भविष्य देखिये और प्रसाद पाईये.वर्ष २०१० में आपके चिट्ठे का भविष्य: श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी सुनें अपने चिट्ठों का वर्षफल श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी के श्री मुख से. यह आपके चिट्ठे के अंग्रेजी नाम के आरंभिक शब्द पर आधारित है: तुरंत देखें, आपका चिट्ठा किस शब्द से शुरु होता है और जानें वार्षिक फल: सर्वप्रथम हिन्दी ब्लॉगजगत का संभावित भविष्य: वर्ष २०१० मिश्रित फलकारी रहेगा. जहाँ एक ओर नये चिट्ठाकार निरंतर जुड़ते जायेंगे, कुछ पुराने चिट्ठाकार विवादों में पड़ अपने चिट्ठे बंद करने की कागार पर आ जायेंगे. गुटबाजी की संभावनाएँ बनी रहेंगी और सच होने के बाद भी नकारी जायेंगी. नये एग्रीगेटर्स आयेंगे, पुरानों में सुधार आयेगा और एक नया रुप प्रस्तुत किया जायेगा. चर्चा मंचों की बाढ़ आ जायेगी. बात बात में विवाद होंगे जिनके मुख्य विषय लिंगीय भेदभाव, धर्म और व्यक्तिगत महत्ता में कमी होंगे. अनेकों चिट्ठाकारी सम्मेलनों और मिलनों का आयोजन होगा.

आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं. राजू बिन्दास! की मार देब चोट्टा सारे.. देखिये आप भी ये क्या कह रहे हैं.
मेरे पड़ोस में एक अधिकारी रहते थे. आजमगढ़ के रहने वाले थे. छुट्टियों में कभी-कभी उनका एक भतीजा आता था नाम था बंटी. उम्र यही कोई आठ-नौ साल. खाने पीने में थोड़ा पिनपिनहा. मैं और अधिकारी का बेटा अक्सर बंटी को छेड़ते थे, कुछ यूं- बंटी, दूध पी..ब ? नाहीं.. बंटी, बिस्कुट खइब..? ना...हीं... बंटी, चाह पी ब... ना..आं... दू घूंट मार ल...मार देब चोट्टïा सारे. इतना कह बंटी पिनपिनाता हुआ उठ कर चला जाता था. कुछ दिन पहले एक वाक्या बंटी की याद दिला गया. मैंने सोचा कुछ ब्लॉगर्स जो अच्छा लिखते हैं, उनकी काबिलियत का फायदा अपने पेपर के लिए उठाया जाए. दो-तीन लोग शार्ट लिस्ट हुए. इत्तफाक से सभी हाईफाई प्रोफाइल, हाई सैलरी वाले थे. ब्लॉग में पूरा पुराण लिख मारते हैं

ताऊ डॉट इन पर पहले चलती थी गोलियां अब हो रही है गजलों की बौछार, हो जाईये होशियार, गब्बर तमाचे भर कर शेर कर रहा है प्रहार अरे ओ सांभा ! सुनता है मेरी गजल या दबाऊं घोडा? गब्बर और सांभा की डकैती का धंधा फ़िल्म मे काम करने की वजह से छुट गया था. पूरा गिरोह बिखर गया था. वापस आकर दोनों ने जैसे तैसे अपना गिरोह वापस संगठित किया और इन दोनो की मेहनत रंग लाई. दोनो ने अपना डकैती का धंधा वापस जमा लिया. अब ५० कोस तो क्या ५०० कोस तक बच्चे बूढ्ढे जावान सब इन दोनों के नाम से डरने लगे थे. दिन दूनी रात चोगुनी उन्नति करते जारहे थे. साल २००९ बीतने को है. गब्बर और सांभा बैठे हैं. गब्बर को गजल सुनाने का बडा शौक हैं. अब ऐसे शातिर डाकुओं के पास गजल सुनने कौन आये? और गब्बर को सनक सवार की वो तो गजल सुनायेगा और गजल सुनायेगा तो कोई दाद खुजली देने वाला भी चाहिये.वो देखो.कौन बैठा, किस्मतों को बांचता है, उसे कैसे बतायें, उसका घर भी कांच का है.नहीं यूँ देखकर मचलो, चमक ये चांद तारों सी,जरा सा तुम संभलना, शोला इक ये आंच का है.

ब्लॉग जगत के एक नए चिट्ठाकार से परिचय करवाते हैं.मैं शबनम हूँ..ओस की नन्हीं बूँद ये कहती हैं क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलती पर शबनम की कविता पढ़िए.

मैं शबनम हूँ....
ओस की एक नन्हीं बूँद....
एक सुकून भरा अहसास....
मैं शीशे की तरह साफ....
फूल-पत्तियाँ आशियाँ है मेरा...
मैं न किसी से दूर...
न किसी के पास...
मुझे तुम पा नहीं सकते...
बस महसूस करो मुझको...
कुछ लम्हो की ज़िन्दगी है मेरी...
न करो मुझे तनहा...
पैरों तले तुम्हारे कुचलकर...
कहती हूँ अलविदा-ए-ज़िन्दगी...

100 वीं पोस्ट और नूतन वर्षाभिनन्दन २०१० (ललित डोट कॉम) मैने इस ब्लॉग पर 15 सितम्बर 2009 मंगलवार हिंदी दिवस से लिखना प्रारंभ किया था. सामाजिक सरोकारों से संबधित विषयों पर एक अलग ब्लाग होना चाहिए. यह सोच कर ललित डाट कॉम का उदय हुआ. जिस दिन मैंने इस पर पहली पोस्ट डाली, उस दिन हिंदी दिवस था. मेरा प्रथम आलेख हिंदी दिवस को ही समर्पित था.इन १०० पोस्टो में मैंने ब्लाग जगत को बड़े करीब से साक्षी भाव से देखा है. यहाँ होती हुयी हलचलों से मैं वाकिफ हुआ. ब्लॉग के बुखार को समझने की कोशिश की. जीवन में नए ब्लॉग मित्र बने. सभी से मुझे सहयोग मिला. यह आभासी दुनिया भी वास्तविक जीवन के बड़े करीब लगी. क्योंकि सारे किरदार तो वहीं से आते हैं. कोई अलग दुनिया नहीं है. वही दुनिया की अच्छाईयाँ-बुराईयाँ, पक्ष-विपक्ष मैंने यहाँ पाए.

अजय झा जी आ गए हैं गांव से, कई दिनों नए नहीं खुली थी इनकी फाईला, लेकर आयें हैं चर्चा दो लाईना सिर्फ़ दो पंक्तियां ,,,हमेशा की तरह (चिट्ठी चर्चा ) अब तो मुझे यकीन हो गया है कि अभी भी हमारे बीच कुछ मित्र /शत्रु हैं जिनका मकसद यहां लिखने/पढने .......हिंदी की सेवा से इतर भी की उद्देश्यों की पूर्ति में लगे हैं । और न हो तो बस कुछ भी कह सुन कर , अपनी वजह बेवजह की आपत्तियां दर्ज़ करा के माहौल को अशांत करने का प्रयास करते हैं । मैं ये तो नहीं कहूंगा कि आप अपना ये काम छोड दें ......क्योंकि चाहे अनचाहे आप उसे नहीं छोड पाएंगे........आखिरकार वो आपका चरित्र जो ठहरा । मगर ......हां , मगर .......गौर से सुन लें कि ......कहीं ऐसा न हो कि शराफ़त आखिरकार अपनी शराफ़त का आवरण हटा दे .......तो वो दिन , वो पल आपके लिए आखिर होगा ...कम से कम ब्लोग्गिंग के लिए तो अवश्य ही ...।उम्मीद है कि ईशारा काफ़ी होगा ....और विश्वास है कि पहले की तरह आप मानेंगे नहीं ॥

पढ़िए हो जाएगी पेट में हलचलें, महेंद्र मिश्रा जी लाये हैं आपके लिए हंसी के गुलगुले हंसी के गुलगुले ताउजी के नाम... साल 2009 अपने जाने की घडियों का इंतज़ार कर रहा है . सन 2010 आने को बेताब है उसके आगमन की ख़ुशी में हम क्यों न थोडा हंस ले मुस्कुरा लें . आज के चुटकुले ताउजी के नाम है .

एक नए बाबा जी से मिलवाते हैं, सभी समस्या का समाधान लाये हैं. अपने को असली बाबाजी बतलाएं हैं. समस्या बताइए..समाधान पाइए ! सुनिए लंगोटा नंद महामठ वाणी ब्लागवाणी के सभी भक्तों का कल्याण हो..क्या आपके ब्लॉग पर टिप्पणियां कम आ रही हैं? क्या आपकी प्रेमिका नही पट रही है? क्या आपकी पत्नी आपकी रोज पिटाई कर रही है? क्या आपकी उपरी आमदनी कम हो रही है ? क्या भ्रस्टाचार में लिप्त होकर भी आप कमाई नही कर पा रहें हैं? तो देर किस बात की है ..आइये लंगोटा नंदजी महाराज जी के पास ..अपनी टिपण्णी द्वारा अपनी समस्या बतावें और समस्याओं से मुक्ति पावें !

ठीक दस साल पहले मिली थी वो मुझे ! दिल के चमन में एक कली खिली थी.कब न जाने यु ही पलक झपकते दस साल गुजर गये, पता ही न चला। अचानक मुझसे मिलना और फिर कुछ ही लम्हों मे सदा के लिये मेरे साथ ही ठहर जाने का घडी भर मे लिया उसका वो फैसला आज भी वक्त बे-वक्त मुझे उन लम्हों के बारे मे सोचने पर मजबूर कर देता है। मैं समझता हूं कि इतनी जल्दी फैसला कोई भी प्राणि दो ही परिस्थितियों मे लेता है, एक तो तब जबकि उसे जो मिला है

इस तरफ भी देखिये मचा हुआ है युद्ध. ब्लोगर है या ब्लागरा कौन शब्द है शुद्ध, बात आगे बढ़ गई, कहाँ थी और कहाँ तक पहुँच गई,वर्ष बीतते बीतते मुझे मिली यौनिक और लैंगिक उत्पीडन करने की धमकियां! ओह! मैं ब्लागजगत में असहमतियों के मुद्दों को यही सार्वजनिक मंच पर निपटा लिया जाना उचित समझता हूँ . मुझे धमकाया जा रहा है कि मैं अपने वकील /विधि परामर्शी से मिल कर एक मामले में मुतमईन हो लूं -सो मामला यहाँ महा पंचायत में रख रहा हूँ,बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो ,ज़बाने ख़ल्क़ को नक़्क़ारा ए ख़ुदा समझो.


कीमत बता रहे हैं दीपक मशाल -रमा के मामा रमेश के घर में कदम रखते ही रमा के पिताजी को लगा कि जैसे उनकी सारी समस्याओं का निराकरण हो गया.रमेश फ्रेश होने के पश्चात, चाय की चुस्कियां लेने अपने जीजाजी के साथ कमरे के बाहर बरामदे में आ गया. ठंडी हवा चल रही थी.. जिससे शाम का मज़ा दोगुना हो गया. पश्चिम में सूर्य उनींदा सा बिस्तर में घुसने कि तैयारी में लगा था.. कि चुस्कियों के बीच में ही जीजाजी ने अपने आपातकालीन संकट का कालीन खोल दिया-


दिनेश राय दिवेदी जी के साथ खाते हैं पराठे और करते हैं लाल किले की सैर.मेट्रो, पराठा-गली, शीशगंज गुरुद्वारा और लाल-किलासीट पर बैठी बंगाली युवती की मेरी तरफ पीठ थी लेकिन जो लड़का उस से बात करने में मशगूल था उस का चेहरा मेरी तरफ था। वे दोनों मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली आदि नगरों की बातें करते हुए कलकत्ता की उन से तुलना कर रहे थे। मुद्दा था नगरों की सफाई। युवक कुछ ही देर में समझ गया कि मैं उन की बातों में रुचि ले रहा हूँ।


राजीव तनेजा जी दे रहे हैं लाफ्टर का झटका वड्डा खोद लिया हैं उन्होंने अब चौथा खड्डा बंता : संता सिंह जी... ये खड्डा किसलिए खोदा जा रहा है?"संता: ओ...कुछ नहीं जी मुझे अमेरिका जाना है ना...इसलिए" बंता: अमेरिका जाना है?"संता: हां जी!.." बंता: अमेरिका जाने के लिए खड्डा खोदना जरूरी है?संता: ओए...कर दी ना तूने अनाड़ियों वाली गल्ल, बेवकूफ!...पासपोर्ट बनवाने के लिए फोटो चाहिए होती है कि नहीं?


कोई है वो अपना सा जो कानों में कुछ कह जाता है काव्य मञ्जूषा पर पढ़िए अदा जी की गजल
जब ख़्वाब उठ कर हक़ीकत की दीवार में ख़ुद चुन जाता है
तब सात समंदर पार का सपना, सपना ही बस रह जाता है

हर दिन आईने के सामने, अब और ठहरना मुश्किल है
अक्स देखते ही ख़्वाबों का, ताजमहल ही ढह जाता है

रस्म -ए- ब्‍लॉगिंग भी है - नया साल भी है एक साल पूरा होने संबंधित कुछ ब्‍लॉग पोस्‍टों को देखकर याद आया कि हमने भी पिछले वर्ष दिसंबर महीने से ही हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग शुरु की थी । पिछली पोस्‍ट की पिछली पोस्‍ट में हमने इसका जिक्र भी किया था । इस पेशकश के साथ कि इस पोस्‍ट की साइज को नियंत्रित करने के लिए हम ब्‍लॉगरी के साल पुजने की गप्‍प किसी अगली पोस्‍ट में देंगे । निश्चित रूप से वह अगली पोस्‍ट यही है

चलते चलते-एक नजर

मुरारी पारीक जी की मिष्टी महफ़िल सजी हुयी है, रेडियों मिष्टी 95 ऍफ़ एम् पे धडाधड रचनाएँ पढ़ी जा रही है. आप भी सुने महफ़िल में नीरज जी गोस्वामी, समीर लाल जी "समीर", राजेश कुमार "राजेशा",


लोग माथा पीट रहे हैं और तुम लिंग पकड़ कर बैठी हो अलबेला खत्री जी कह रहे हैं

भूख....मजबूरी....और नया साल.. मयंक बता रहे हैं संचार पर

बहू की ताकत...खुशदीप खुशियों के दीप जला रहे हैं, तेल देखो और तेल की धार बहा रहे हैं,


नए वर्ष के पहले ये संकल्प कर लें डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
पिता जी को एक अंजुली श्रद्धा की सफ़र के सजदे में पर शारदा अरोरा जी

ऐ मालिक तेरे बंदे हम गुनगुनाती धुप पर सुनते हैं अल्पना वर्मा जी की प्रस्तुति
आज का कार्टून

*आइये चलें 2010 में* *--------------------* *--------------------*
आज की चर्चा यहीं तक, मिलते हैं नए वर्ष २०१० में, स्वागत करते हैं नव वर्ष का,
आप सभी को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ!
अलविदा 2009

बुधवार, दिसंबर 30, 2009

"साल 2009 की मेगा पहेली (158) : आयोजक उडनतश्तरी": (चर्चा मंच)

चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
ब्लॉगिस्तान की इस खबर के साथ आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-

“ताऊजी डॉट कॉम

ने सारे रिकार्ड तोड़े!

साल 2009 की मेगा पहेली (158) : आयोजक उडनतश्तरी
आज सुबह 5 बजे तक 1139 COMMENTS:

बहनों और भाईयों,
मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल की मेगा पहेली में आप सबका
हार्दिक स्वागत करता हूं.
आज की पहेली कई मायनों मे खास है. ये पहेली इस साल की अंतिम पहेली होगी! इसमे जवाब देने का समय निर्धारित किया गया है ३१ दिसम्बर २००९ की रात १२ :०० तक. यानि नया साल २०१० शुरु होने तक.
रोज शाम को इस पहेली से संबंधित अपडेट और हिंट रोजाना शाम को 6:00 एक पोस्ट द्वारा दिये जायेंगे और इस पहेली के दो पार्ट हैं.
पार्ट A में आपको बताना है कि इसमे कुल कितने चेहरे हैं. पार्ट एक के सही जवाब देने वाले विजेताओं को पहेली चेंपियन - २००९ का प्रमाण पत्र दिया जायेगा.
पार्ट B में आपको इस चित्र में शामिल सभी चेहरों के नाम बताना है. इसका सही जवाब देने वाले प्रथम तीन विजेताओं को मिलेगा पहेली चेंपियन आफ़ चेंपियंस अवार्ड - २००९ का प्रमाण पत्र.
यदि दोनों पार्ट में एक ही व्यक्ति सर्वप्रथम है तो उसे पहेली ’ग्रेण्ड चैम्पियन, २००९’ का एक अवार्ड अलग से दिया जायेगा, जिसमें सर्टीफिकेट के साथसमीर लाल ’समीर’ की बिखरे मोती की एक प्रति भेंट की जायेगी.

तो आईये अब आज की पहेली शुरु करते हैं.
नीचे का चित्र देखिये और फ़टाफ़ट PART - A और PART - B का जवाब दिजिये! पार्ट B का सही जवाब दिया जाने पर पार्ट A का जवाब स्वत: ही मिल जायेगा!


इस चित्र में कुल कितने चेहरे हैं? सभी के नाम बताईये!

तो अब फ़टाफ़ट जवाब दिजिये. इसका जवाब नये साल २०१० में यानि पहली जनवरी २०१० की पोस्ट मे दिया जायेगा और उसी दिन से रोजाना शाम को पुर्ववत 6:00 बजे पहेली का प्रकाशन शुरु हो जायेगा. आज से खेल के दौरान मेरे और डाक्टर झटका के अलावा रामप्यारी मैम भी आपके साथ रहेंगी. तो आप सबको बहुत शुभकामनाएं.
गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

2012 में इस दुनिया के अंत की संभावना हकीकत है या भ्रम ?? - 2012 में इस दुनिया के अंत की संभावना हकीकत है या भ्रम ? इसकी पहली कडी को लिखने के बाद दूसरे कार्यों में व्‍यस्‍तता ऐसी बढी कि आगे लिखना संभव ही न पाया। 201...

वन्दना गुप्ता

ज़िन्दगी

"कैसा होता है वो प्रेम ?"

ना वादा किया
ना वादा लिया
मगर फिर भी
साथ चले
ना इंतज़ार किया
ना इंतज़ार लिया
मगर फिर भी
हमेशा साथ रहे…..

जाने कब से सफ़र में हूँ..."अदा”

जाने कब से मैं इस सफ़र में हूँ
मंज़िल मिली नहीं डगर में हूँ
बहलाते रहे मुझे अँधेरे हर सू
मुझे ये गुमाँ रहा सहर में हूँ……

अब काहे की चिंता…..आ गया है ना गूगल आईएमई (IME) (आफलाइन) इंडिक ट्रांसलिटरेसन टूल
ऐसे लोगों को जो कि पहली बार हिन्दी में टाइप कर रहे होते थे, उन्हें सबसे अधिक गूगल इंडिक ट्रांसलिटरेसन टूल ही पसंद आता था। जो लोग अब तक गूगल ट्रांसलिटरेसन टूल से अब तक ऑनलाइन लिख रहे थे …..अब वह सीधे अपने कंप्यूटर पर आफ-लाइन भी फोनेटिक हिंदी टाइपिंग कर सकते हैं| गूगल ने अपना इंडिक ट्रांसलिटरेशन आईएमई टूल ज़ारी कर दिया है। गूगल ने यह टूल एक साथ 14 भाषाओं (अरबी, फ़ारसी, ग्रीक, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, नेपाली, पंजाबी, तमिल, तेलगू और ऊर्दू) में टाइप करने के लिए ज़ारी किया है।

शायद, आज मैं मिलूँगा तुमसे !
(हिमांशु)
आज सुबह धूप जल्दी आ गयी
नन्दू चच्चा को
महीने भर का काम मिल गया
छप्पर दुरुस्त हो गया
आज बगल वाली शकुन्तला का
"सर्दी नहीं पड़ेगी" की भविष्यवाणी
फेल हो गयी - पन्ना बाबा चहक उठे

जो देखा भूलने से पहले : मोहन राणा :

अंतिम दिन
भीगती शाम ठिठुरती सर्द पानी में
दरवाजे के बाहर ही है अब नया साल
समय को बाँचता दस्तक देने से पहले
कुछ छुट्टे पैसे ही बचे हैं उसकी जेब में
ये कुछ दिन,
…..

यू.के. से प्राण शर्मा की दो लघुकथाएं


लघुकथा
दुष्कर्मी
- प्राण शर्मा
पंद्रह वर्षीय दीपिका रोते-चिल्लाते घर पहुँची. माँ ने बेटी को अस्तव्यस्त देखा तो गुस्से में पागल हो गयी– ” बोल ,तेरे साथ दुष्कर्म किस पापी ने किया है?”
” तनु के पिता मदन लाल ने. ” सुबकते हुए दीपिका ने उत्तर दिया …..
भगवान का इंटरव्यू (अविनाश वाचस्‍पति)
आप भगवान को जानते हैं
उससे भी बड़ा प्रश्‍न है मानते हैं
या अपनी जिद को ही ठानते हैं
न मानते हैं
न मानने देते हैं
पर अब तो आपको मानना ही पड़ेगा
यूं ही अब तक तो चलता रहा
पर अब यूं ही नहीं चलेगा…….

मगजपच्ची से भेजा-फ्राई तक - [image: brain] ज ब किसी मसले पर अत्यधिक सोच-विचार होता है तब अक्सर इसे *मगजपच्ची *या * मगजमारी* कहा जाता है यानी यानी बहुत ज्यादा दिमाग लगाना। स्पष्ट है कि ...



अरे ओ सांभा ! सुनता है मेरी गजल या दबाऊं घोडा?
ताऊ रामपुरिया

जैसा कि आप पहले पढ चुके हैं कि ताऊ की शोले फ़िल्म बनना रुक गयी तो गब्बर और सांभा वहां से भाग कर वापस जंगल की और पलायन कर गये थे. रास्ते मे गांव के बच्चों ने सांभा को पत्थर मार दिये थे तो सांभा तुतलाने लग गया था. गब्बर ने उसका इलाज जैसे तैसे करवाया और सांभा ठीक होगया.

गब्बर और सांभा की डकैती का धंधा फ़िल्म मे काम करने की वजह से छुट गया था. पूरा गिरोह बिखर गया था. वापस आकर दोनों ने जैसे तैसे अपना गिरोह वापस संगठित किया और इन दोनो की मेहनत रंग लाई. दोनो ने अपना डकैती का धंधा वापस जमा लिया. अब ५० कोस तो क्या ५०० कोस तक बच्चे बूढ्ढे जावान सब इन दोनों के नाम से डरने लगे थे. दिन दूनी रात चोगुनी उन्नति करते जारहे थे.
बिछोह से खुलते हैं मोह के नए मानी

पतझर
पील़ा पड़ गया पत्ता
झरने को है वृक्ष से
समय - समुद्र में
विलीन होने को विकल है एक बूँद।
बीते वक्त पर खीझना भी है रीझना भी
ऐसे ही चलना है जीवन को
सोचें क्या किया ? करना है क्या ?
मेरा फोटो
साहित्य-सहवास

नव वर्ष आ रहा है - नव वर्ष आ रहा है उत्कर्ष आ रहा है सबके हृदय में जैसे नव हर्ष आ रहा है आओ फिर सपने देखें कुछ औरों के कुछ अपने देखें ये जानते हुए कि सपने टूट...

मर्यादा/ लघु कथा

Posted by Shabdsudha
'' दादी, पापा रोज़ शराब पी कर, माँ को पीटते हैं. आप राम -राम
करती रहती हैं, उन्हें रोकती क्यों नहीं?''पोती ने नाराज़गी से पूछा.
'' अरे तेरा बाप किसी की सुनता है?, जो वह मेरे कहने पर बहू पर
हाथ उठाने से रुक जायेगा और फिर पति -पत्नी का मामला है,
मैं बीच में कैसे बोल सकती हूँ? ''
''आप जब अपने कमरे में माँ की शिकायतें लगाती हैं,
तब तो वे आपकी सारी बातें सुनते हैं, और फिर पति -पत्नी
की बात कहाँ रह गई ? रोज़ तमाशा होता है ''………………..
भारतीय सभ्यता की इतिहासगाथा

कहते हैं कि हिन्दी पट्टी में हर कोई जन्मजात इतिहासकार और डाक्टर होता है। किसी भी रोग की चर्चा कीजिए हर किसी के पास उस रोग के दो-चार उपचार होते हैं। हर किसी के पास इतिहास का निजी संस्करण उपलब्ध रहता है। प्रमाणिक इतिहास केे प्रति उदासी या लापारवाही हिन्दी समाज की आम प्रवृत्ती प्रतीत होती है। ऐसे समाज में सहज भाषा में प्रमाणिक इतिहास को प्रस्तुत करना बुद्धिजीवियों का जरूरी दायित्व है। प्रो. नयनजोत लाहिड़ी की चर्चित पुस्तक फाइडिंग फारगाटेन सिटीज का हिन्दी में अनुदित होना इस दिशा में एक सरहानीय प्रयास है। प्रोफेसर लाहिड़ी प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व की आधिकारिक विद्वान है। प्रो. लाहिड़ी ने पुस्तक की भूमिका में ही स्पष्ट किया है कि वह यह पुस्तक पुरातत्वविदों के साथ ही आम पाठकों को भी ध्यान में रख कर लिख रही हैं…………..
बिल्लियों जैसी होती हैं भाषाएं
येहूदा आमीखाई की ये कविता पहले भी लगा चुका हूं. आज पुनः लगा रहा हूं. इसलिए लगा रहा हूं कि इसकी प्रासंगिकता कभी ख़त्म नहीं होती:

येहूदा आमीखाई (१९२४-२०००) इज़राइल में पैदा हुए बीसवीं सदी के बहुत बड़े कवि थे. तीस से अधिक भाषाओं में अनूदित हो चुके येहूदा की कविता युद्ध और नफ़रत से जूझ रहे संसार की ख़ामोश पुकार है. उनके बग़ैर बीसवीं सदी की विश्व कविता ने अधूरा रह जाना था. ज़्यादा लिखने से बेहतर है उनकी आख़िरी रचनाओं में से एक आप के सम्मुख रख दी जाए.
मेरे समय की अस्थाई कविता
हिब्रू और अरबी भाषाएं लिखी जाती हैं पूर्व से पश्चिम की तरफ़
लैटिन लिखी जाती है पश्चिम से पूर्व की तरफ़
बिल्लियों जैसी होती हैं भाषाएं

प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह
'एक्सक्लूसिव' खबर

कल भूख से मर गए कुछ गरीब बच्चे मेरे शहर में
यह हृदय-विदारक खबर जब किसी चैनल पर न आई
इक नए युवा पत्रकार का दिल की धड़कन घबराई
होकर परेशान उसने यह बात अपने संपादक से उठाई
संपादक ने कहा - बड़े नौसिखिया हो यार !
किसने बना दिया हैं तुमको आज का पत्रकार?
जो मरे वो तो बच्चे थे, बस भूखे लाचार
इसमें इन्वोल्व न कोई नेता, भाई या तडीपार
मोबाइल कनेक्शन मिसमैच होने पर बिना अवसर प्रदान किए कनेक्शन विच्छेद करना उपभोक्ता विवाद है
अजीत कुमार मिश्रा ने पूछा है - - - -
मैं ने वोडाफोन कनेक्शन अप्रेल 2009 में लिया था नबम्बर 2009 में 7 माह बाद यह कहकर बंद कर दिया कि डाटा मिस मैच है। जब बिना सही तरह से जांच किया बिना फोन कनेक्शन जारी नहीं किया जा सकता है तो 7 माह बाद कनेक्शन को बंद करना क्या वैधानिक है? यदि नहीं तो इसके खिलाफ कहा जाया जा सकता है?
कानूनी सलाह - - - -

मिश्रा जी,

यदि डाटा मिस मैच है तो कनेक्शन को बंद करना अनुचित नहीं है और वैधानिक भी नहीं है। लेकिन आप के द्वारा दी गई सूचनाओं को आप की सेवा प्रदाता कंपनी को आप को कनेक्शन देने के पहले ही जाँच लेना चाहिए था। उस से त्रुटि यह हुई कि उस ने आप को गलत पाई गई सूचनाओं के आधार पर कनेक्शन दे दिया। ……
ये बदनुमा धब्बे (वर्ग-वार्ता)

मेरे शुभचिंतक
जुटे हैं दिलोजान से
मिटाने
बदनुमा धब्बों को
मेरे चेहरे से
शुभचिंतक जो ठहरे
लहूलुहान हूँ मैं
कुछ भी
देख नहीं सकता
समझा नहीं पाता हूँ
किसी को कि
ये धब्बे
मेरी आँखें हैं!
(अनुराग शर्मा)
अमरलता
अमरलता
--- --- मनोज कुमार
हे अमरलता !
हे अमरबेल !
दिखने में कोमल पर क्रूर,
चूसे पादप को भरपूर,
टहनी-टहनी, डाली-डाली,
छिछल रही है तू मतवाली,
कविता टुकड़ों में - 3
कविता टुकड़ों में 3
1. अवसाद से भीगी आत्मा का बोझ लिये
अंधी आस्था का सुर
गूंगे स्वरों के सहारे
काठ की घंटियाँ बजाने की कोशिश में है,
कुछ और नहीं
हमारी कमजोर सोच के कंधो पर सवार
ये हमारा बौना अहं है.
अच्छी पत्नियां कहां मिलती हैं...खुशदीप
बताऊंगा, बताऊंगा...इतनी जल्दी भी क्या है...जिसे जल्दी है वो पोस्ट के आखिर में स्लॉग ओवर में अच्छी पत्नियों को ढूंढ सकता है...अब ढूंढते ही रह जाओ तो भइया मेरा कोई कसूर नहीं है...लेकिन पहले थोड़ी गंभीर बात कर ली जाए...बात एक बार फिर रुचिका की...क्या रुचिका के गुनहगार को सज़ा दिलाना इतना आसान है जितना कि शोर मच रहा है...
रुचिका गिरहोत्रा केस में घटनाक्रम तेज़ी से होने लगा है...उन्नीस साल तक जांच में जो नहीं हुआ वो पिछले नौ दिन से हो रहा है...देश के केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली कह रहे हैं कि रुचिका के गुनहगार को फांसी या उम्र कैद भी हो सकती है...लेकिन क्या ये इतना आसान है...अदालतें हमारी-आपकी सोच से नहीं चलतीं...अदालतों को ठोस सबूत चाहिए होता है....

आज रुचिका केस में दो अहम बातें हुईं...
नक्कार खाने में तूती बजाते है ब्लागर है लिख कर भूल जाते है
.
.
नक्कार खाने में तूती बजाते है
ब्लागर है लिख कर भूल जाते है
एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी....और संवारा अमरेन्द्र ने..: महफूज़"
"नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी........और संवारा अमरेन्द्र ने देख कर बताइयेगा...: महफूज़"
'' टूट जाऊँगा मैं तुमने सोचा यही ,
फिर भी देखो मैं पूरा नजर आ रहा |
मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा …
व्यंग्य - चिटठा नगरिया जहाँ कूकर भौंके घुरके शूकर
ये देश कलमबाजो का देश है जहाँ पुन्य आत्माए जन्म लेती है . भगवान ने इन्हें चिटठा नगरिया में रहने जगह क्या दे दी ये अब कलमबाजो के अघोषित भगवान बन गए है .
यहाँ के हर जीव एक दूसरे को अपनी पोस्टो से जोड़ लेते है .
ये जीव प्रेम प्रसंगों से लेकर घुड़का बाजी तक पोस्ट लिखने में माहिर है और समय समय पर अपनी टीप उलीचकर अपने प्रेम का इजहार करते रहते है .
लोकतंत्र की सार्थकता के लिए पहल करे चुनाव आयोग
प्रस्तुतकर्ता डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
लेबल: चुनाव, राजनीति, लोकतंत्र
उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के स्थानीय निकाय के लिए चुनावी प्रक्रिया चल रही है। प्रत्याशियों का चयन हो चुका है, नामांकन प्रक्रिया हो चुकी है अब बस मतदान का इंतजार है। इसी इन्तजार के बीच मतदाताओं के खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया आसानी से चल रही है। (इसे एक आरोप कहा जा सकता है किन्तु यही सत्य है)

टिकट का वितरण हुआ और कुछ दलों के बारे में यहाँ तक सुनने में आया कि धन का सहारा लेकर प्रत्याशियों का चयन किया गया। बहरहाल यह मुद्दा नहीं है, मुद्दा तो यह है कि………….
जठे देखूं छोरी कमली खड़ी..

साल 2009 ने ग़मों को भुलाने का हौसला दिया, कई कहानियां लिखने का सामर्थ्य दिया, रूठ जाने जितने करीब के दोस्त दिए, जाते हुए इन पलों में आपके लिए ये एक छोटी सी कहानी. इसमें ओडी शब्द का अर्थ है बांस या खींप से बनाई गयी बड़ी जालीदार टोकरी जिसमें जानवरों को चारा डाला जाता है, पड़वा घर के बड़े कमरे को कहते हैं और जठे शब्द का अर्थ है जिस जगह.
रात जब जागने लगती तो रेत के धोरे सोने चले जाते.
दिन भर की थकी अल्हड़ जवान देह जैसे बेसुध सोयी हों ज़मीं के बिछावन पर. चाँद की रोशनी में रेत का अंग प्रत्यंग खिल जाता. मांसल देह अनंत लम्बाई तक फ़ैल जाती, चमकती गोरी सुडौल पिंडलियों को हवा धीमे धीमे बहती चूमती और संवारती जाती. वक्ष के तीक्ष्ण कटाव के हर बल को छू कर चांदनी किरचें बन बिखर जाती. उन्नत उरोज...
सुविधाशुल्क लेने का एक नायाब तरीका
मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि उनके एक अधिकारी ने उन्हें दो टिकिट कैंसिल कराने को दिये. चार लोगों की रिटर्न जर्नी के टिकट थे, दिल्ली से चेन्नई तक के एसी - द्वितीय के. उन्होंने टिकिट कैंसिल कराये और पैसे वापस कर दिये जो कई हजारों में बनते थे. एक साधारण सी प्रक्रिया थी यह. अगले वर्ष अपनी एल०टी०सी० हेतु उन्हें रेलवे टिकिट के नम्बरों की आवश्यकता थी,……….
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
देशी एंटी वायरस- इस्तेमाल करके देखें
का बताएं भैया! हम तो ठेठ गंवईहा ठहरे. कछु कहत हैं तो लोग मजाक समझत हैं. अरे भाई हमको मजाक आती ही नहीं है. लेकिन जो बात दिल से कह देत हैं (बिना दिमाग लगाये) वो मजाक बन जात है ससुरी. अगर हम बात दिमाग लगा के करत हैं तो लोगन का रोवे का परत है, का बताएं बड़ी समस्या हो गई है. अभी हम देखत रहे समस्या चहुँ ओर ठाडी है. टरने को नांव ही नहीं लेत है. लेकिन हम ठहरे गंवईहा बिना समस्या टारे हम ना टरे………..
ललित शर्मा

दूरदर्शन से पहले का शक्तिमान मधु-मुस्कान में

posted under Madhu-Muskan , PD by PD
जो भी कामिक्स के शौकीन रह चुके हैं वे अच्छे से जानते हैं कि दूरदर्शन पर आने वाले "शक्तिमान" धारावाहिक से कई साल पहले मधु-मुस्कान में शक्तिमान नामक एक चरित्र प्रकाशित हुआ करता था.. एक झलक आप उसके एक पन्ने पर देखें..

इस मधु-मुस्कान के पृष्ठ के लिये मैं इस ब्लौग को धन्यवाद देता हूं और चलते-चलते बताता चलता हूं कि आप इस ब्लौग पर कई अतीत के बिखरे हुये कामिक्स का खजाना भी मिलेगा..
अधूरे सपने
ना जाने क्यों इन बाँवरे सपनो के पीछे भागता हे ये
चंचल मन ,
हर समय , या दिन के आठों पहर
करता है जुगत इन्हें हकीकत में बदलने की
चाहता है की इस दुनिया को अपने हिसाब से बदल दे,
पर मुमकिन नहीं ,
……
वृंदा

नदिया बहती जाए

गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन- हार के पडिगा फन्दा. घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अन्धा..

नए साल की शुभकामनाएं

by Geetashree

कविता--
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
नए साल की शुभकामनाएं !
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं !
जांते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएं !
रेल यात्रा ,, कुछ चित्र और ,ग्राम प्रवास (एक )

आखिरकार लगभग एक सप्ताह के ग्राम प्रवासके बाद वापसी हो ही गई । आजही दोपहर कोवापसी हुई है । अभी तो उंगलियों में गांव कीमीठी मीठी ठंड कास्वाद भी नहीं उतरा हैइसलिए ज्यादा तो शायद नहीं लिखा जाएगा ।मगर एकब्लोग्गर के सामने कंप्यूटर हो औरवो पोस्ट न लिख मारे तो फ़िर काहे काब्लोगरजी । और हम तो घोषित ब्लोग्गर हैं जी ...
आज के लिए तो इतना ही……..
कैसा लगा आपको “चर्चा-मंच” का यह अंक?……
नमस्कार!!

मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

“चिट्ठा-जगत लौट आया है” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-13

चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
इस खुशखबरी के साथ आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-
जाल-जगत के सभी हिन्दी चिट्ठाकारों को यह जानकर हर्ष होगा कि
चिट्ठा-जगत अब फिर से वापिस आ गया है और
इसके सभी विजेट विल्कुल सही काम करने लगे हैं।
चिट्ठाजगत
सबसे पहले आज का चुटकुला
बेलन महिमा –7

घरवाला बोला, - “पता नहीं इस घर में शांति कब होगी

तुम मुझे चैन से मरने भी नहीं दोगी”।

रवाली बोलीं, - “कोई भी काम ढ़ंग से तो करते नहीं

उल्टे मुझ पर अकड़ रहे हो…

अविनाश वाचस्पति को मिल गई यमुना

अविनाश वाचस्पति

मिल गई मुझे यमुना, यमुनानगर में : आप भी मिलिए (अविनाश वाचस्‍पति) -यमुनानगर से पहुंचा दिल्‍ली दिल्‍ली से चला आगरा पर वापिस आऊंगा दिल्‍ली तब सभी दूंगा समाचार द्वितीय हरियाणा अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह के है जिनका इंतजार आ...

राज कुमार ग्वालानी जी बता रहे हैं एक टोटका
गुस्सा आए तो जाने राज पिछले जन्म का

एक महिला राह में जा रही है, उसको लोग गंदी नजरों से देख रहे हैं, उसको बहुत गुस्सा आ रहा है। यह कोई नई बात नहीं है, अपने देश में हर दूसरी महिला के साथ ऐसा होता है। लेकिन क्या ऐसा होने का मतलब यह है कि आपके साथ जरूर पिछले जन्म में ऐसा कुछ हुआ है जिसकी वजह से आपको गुस्सा आता है। अगर यह सच है तो जरूर हर दूसरी महिला के साथ पिछले जन्म में ऐसी कोई घटना हुई होगी जिसका लावा इस जन्म में फूट रहा है।

My Photo

Dhiraj Shah

तोता राम

तोता राम भाई तोता राम
पंख हरे चोंच है लाल
गले मे पहने गहरी कंठी माला


ज़रा अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो...


पिछले कई पोस्ट्स में मैंने अपने बच्चों के साथ हुई गुफ्तगू को शामिल किया...वजह कई थे मसलन, मुझे समय नहीं मिल रहा था कुछ नया सोचने का ....उनसे बात-चीत में ही कुछ विषय निकल आते थे ...जिन्हें मैं आप सबसे बाँट कर सुख का अनुभव करती हूँ....साथ ही अपने बच्चों से आपका तार्रुफ़ कराना,

आपके समक्ष नई पीढ़ी के कुछ खयालातों को लाना, बच्चों को हिंदी ब्लॉग की दुनिया से मिलवाना, और उनकी अपनी सोच में कुछ इजाफा या फिर कुछ बदलाव लाना....बढ़ते बच्चे कच्ची मिटटी के घड़े होते हैं....अभी ही उन्हें सही दिशा मिल सकती है...इतने सारे अंकल-आंटीज कहाँ मिलेंगे उन्हें....वो भी खालिस हिन्दुस्तानी.....आप लोगों का हृदय से आभार कि आपने उनकी बातें सुनी और अपने विचार दिए.....मुझे पूरा विश्वास है आपकी बातों से मेरे बच्चे लाभान्वित होंगे....

आज एक बात फिर एक पुरानी ग़ज़ल आपको समर्पित..
मैंने धुन भी दी है इसे कामचलाऊ सा सुनियेगा..

कबीर के श्लोक –३
कबीर ऐसा एक आधु,जो जीवत मिरतकु होइ॥
निरभै होइ के गुन रवै,जत पेखऊ तत सोइ॥५॥

कबीर जी कहते है कि इस संसार मे कोई बिरला ही होता है जो अपने जीवन को इस तरह जीए जैसे कोई जीवत व्यक्ति किसी मरे हुए के समान इस संसार से संबध रखता है।निरभय हो कर सुख और दुख से ऊपर उठ जाए।अर्थात सुख और दुख को एक समान महसूस करे और उस परम पिता परमात्मा को ही हर जगह देखे।…..

विनोद कुमार पांडेय

[Image072.jpg]

"अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-2"

दौर आज का उल्टा-पुल्टा,उल्टा बहे समीर|
रांझा आवारा फिरे,हुई बेवफा हीर||
रक्षक ही भक्षक बनें,किसे सुनाएँ पीर|
कुछ घर में भूखे मरे,गटक रहे कुछ खीर||.....

शांति का दूत


लघुकथा शांति का दूत

--- --- मनोज कुमार

साइबेरिया के प्रदेशों में इस बार काफी बर्फ पड़ रही थी। उस नर सारस की कुछ ही दिनों पहले एक मादा सारस से दोस्ती हुई थी। दोस्ती क्या हुई, बात थोड़ी आगे भी बढ़ गई। इतनी बर्फ पड़ती देख नर सारस ने मादा सारस को अपनी चिंता जताई हमारी दोस्ती का अंकुर पल्लवित-पुष्पित होने का समय आया तो इतनी जोरों की बर्फबारी शुरू हो गई है यहां .. क्या करें ?”

इस एहसास को कोई नाम न दो...

अबयज़ ख़ान

इस प्यार को कोई नाम न दो.. इस एहसास को कोई नाम न दो.. इस जज़्बात को कोई नाम न दो... मगर ये कैसे मुमकिन है... जब एक ज़िंदगी दूसरी ज़िंदगी से मुकम्मल तरीके से जुड़ी हो... आंखो में लाखों सपने हों... दिल में हज़ारों अरमान हों... हज़ार ख्वाहिशें हों... फिर कैसे कोई नाम न दें...


मेरा फोटो

राजीव रंजन
दिल्ली, दिल्ली, India
जन्म तेंतीस साल पहले बिहार के आरा में हुआ. पैतृक घर बिहार के रोहतास जिले के एक छोटे से गांव में है,जहाँ आज भी बिजली, पानी और सड़क नहीं है. गांव जाने के लिए कम से कम एक कोस पैदल चलना पड़ता है या कच्चे रस्ते पर निजी साधन से जाना पड़ता है. गांव वाले बाजार जाने के लिए ज्यादातर साइकिल का प्रयोग करते है.मातृक निवास यानी ननिहाल आरा में है. यहीं के महाराजा कॉलेज से संस्कृत में स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की है, दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से संस्कृत में स्नातकोत्तर की पढाई की है. पिछले दस सालों से दिल्ली में हूँ और करीब आठ सालों से पत्रकारिता में हाथ-पैर मार रहा हूँ.
साहिर लुधियानवी की नज्‍म 'कल और आज'


आज भी बूंदें बरसेंगी
आज भी बादल छाये हैं
और कवि इस सोच में है
बस्‍ती पे बादल छाये हैं, पर ये बस्‍ती किसकी है
धरती पर अमृत बरसेगा, लेकिन धरती किसकी है


"हैप्पी अभिनंदन" में मिथिलेष दुबे

आज आप जिस ब्लॉगर हस्ती को मिलने जा रहे हैं, वो पेशे तो इंजीनियर हैं, लेकिन शौक शायराना रखते हैं। इस बात का पता तो उनकी ब्लॉगर प्रोफाइल देखने से ही लगाया जा सकता है, इस हस्ती ने अपना परिचय कुछ इस तरह दिया है "कभी यूं गुमसुम रहना अच्छा लगता है, कभी कोरे पन्नों को सजाना अच्छा लगता है, कभी जब दर्द से दहकता है ये दिल तो, शब्दों में तुझको उकेरना अच्छा लगता है"। इससे आप कई दफा मिले होंगे, पर ब्लॉग की जरिए, कविताएं लिखते हैं, लेकिन उससे ज्यादा वस्तुओं, शब्दों एवं अन्य चीजों के उत्थान पर कलम घसीटते हुए ही मिलते हैं, जो उनके गंभीर व्यक्तित्व एवं एक स्पष्ट व्यक्ति होने की पुष्टि करता है। निजी जीवन में क्रिकेट देखने व खेलने, लोगों से मिलने, घूमने एवं साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने में विशेष रुचि लेने वाले गायत्री एवं रामायण जैसी पवित्र किताबों से बेहद प्रभावित हिन्दी पुराने एवं दर्द भरे गीत सुनने के शौकीन मिथिलेश दुबे जी आज हमारे बीच हैं।


मेरा फोटो

aradhana chaturvedi "mukti"
कुछ ख़ास नहीं,बस नारी होने के नाते जो झेला और महसूस किया ,उसे शब्दों में ढालने का प्रयास कर रही हूँ.चाह है, दुनिया औरतों के लिए बेहतर और सुरक्षित बने .

सृजन के बीज

(नये साल की पूर्व संध्या पर वर्ष की अन्तिम पोस्ट)
तुझमें जो आग है
उस आग को तू जलने दे
अपने सीने में उसे
धीरे-धीरे पलने दे...
भभक कर जलेगी
तो राख बन जायेगी
धुयें के साथ यूँ ही
आप से सुलगने दे...

गीतों और गज़लों से सजी हिन्दी चित्रपट की दुनिया का सुरीला सफ़र

हिन्दी फिल्मों में अपनी दर्दभरी , दिल को छु लेनेवाली आवाज़ , दिलकश अदाकारी और गंभीर हुस्न के लिए पहचानी जानेवाली मशहूर अदाकारा स्व. मीना कुमारी जी ने कई सुमधुर और अविस्मरनीय गीतों में अपने सशक्त अभिनय से जान फूंक दी .........

बोले तू कौनसी बोली ? ४: सहपरिवार ...!

काफ़ी साल हो गए इस घटनाको...बच्चे छोटे थे...हमारे एक मित्र का तबादला किसी अन्य शेहेर मे हो गया। हमारा घर मेहमानों से भरा हुआ था, इसलिए मेरे पतीने उस परिवार को किसी होटल मे भोजन के लिए ले जाने की बात सोची।
एक दिन पूर्व उसके साथ सब तय हो चुका था... पतीने उससे इतना ज़रूर कहा था, कि, निकलने से पहले, शाम ७ बजेके क़रीब वो एकबार फोन कर ले। घरसे होटल दूर था...बच्चे छोटे होने के कारण हमलोग जल्दी वापस भी लौटना चाह रहे थे।
उन दिनों मोबाईल की सुविधा नही थी। शाम ७ बजे से पहलेही हमारी land लाइन डेड हो गयी...! मेरे पती, चूंकी पुलिस मेहेकमे मे कार्यरत थे, उन्हों ने अपने वायरलेसऑपरेटर को, एक मेसेज देके उस मित्र के पास भेजा," आप लोगों का सहपरिवार इंतज़ार है..."

अंतर्मन

अपने विचार

ग़ज़ल

फर्क क्या पड़ता है तुम आओगे के न आओगे
ये तेरा नाम फिज़ाओं में लिखा रक्खा है
है ये मुमकिन नहीं यादों को तेरी मिट जाना
तेरे उन ख़तो को किताबों में छुपा रक्खा है

तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख....खुशदीप

नब्बे के दशक में एक फिल्म आई थी- दामिनी...फिल्म में सनी देओल वकील की भूमिका में थे...सनी देओल का फिल्म में एक डॉयलॉग बड़ा हिट हुआ था...मी लॉर्ड, मुवक्किल को अदालत के चक्कर काट-काट कर भी मिलता क्या है...तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख...लेकिन इंसाफ़ नहीं मिलता...ख़ैर ये तो फिल्म की बात थी...लेकिन हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था का कड़वा सच भी यही है..रुचिका गिरहोत्रा के केस में ही सबने देखा...दस साल बाद मुकदमा दर्ज हुआ...नौ साल मुकदमा चलने के बाद नतीजा आया...गुनहगार को 6 महीने कैद और एक हज़ार रुपये जुर्माना...

आंसुओं के नाम

इन आंसुओं को नाम क्या दूं दोस्तों
जिन्होंने धोखा हर बार दिया है
वक्त को पल में बदल देते हैं जो
इन्होंने अपना रूप हजार किया है।
अछूता नहीं कोई इनसे जहां में
सभी का इनसे पड़ता है वास्ता
कहीं खुशी के इजहार में छलके आंसू
तो कभी गम में भी बरसात किया है।

बातचीत : भगवान से - रावेंद्रकुमार रवि का एक बालगीत

रावेंद्रकुमार रवि

हम शोभा बन जाएँ

हे ईश! तुम्हारा हर पल हम गुण गाएँ!

हमको ऐसे ज्ञान-दीप दो, कभी न जो बुझ पाएँ !

हे ईश! तुम्हारा ... ... ... ... ... ... ...

पोस्टर छाप पोलटिक्स

कुल जमा तीन जन थे। रात कमर तक घनी हो चुकी थी और ठंड की ठिठुरन में उनका हाल बहुत बुरा नहीं तो बुरा तो कहा ही जाएगा। एक आदमी सीढ़ी लगाकर डिवाइडर पर बने पोस्ट लैंप पर पोस्टर टांगने की कोशिश कर रहा था, दूसरा सीढ़ी संभाले हुए था और तीसरा इधर-उधर छिटके पोस्टरों को समेट रहा था। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पोस्टर थे, जिन पर काफी बड़े आकार में राहुल गांधी मुस्कुरा रहे थे। इधर उधर छिटके पोस्टरों में राहुल बाबा का एक पोस्टर डिवाइडर से नीचे सड़क पर आ गया था, जिसपर चिपकाने वाले की नजर शायद गयी नहीं। कांग्रेस का भविष्य तो इस देश की जनता बांचेगी

एक 'मर्द' शीला बाकी सब...?

सुना आपने, बाल ठाकरे के ज्ञान-चक्षु की नई खोज के विषय में, नहीं तो सुन लीजिए। बाल ठाकरे की ताजा शोध के अनुसार, पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी में सिर्फ एक 'मर्द' है और वह है दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित। अर्थात, कांग्रेस पार्टी में शेष सभी 'नामर्द' हैं। सचमुच अद्वितीय खोज है यह- चाहें तो अद्भुत भी कह लें। अब कांग्रेस की इस पर क्या प्रतिक्रिया है, इसकी जानकारी फिलहाल नहीं मिली है किंतु यह तो तय है कि कांग्रेस अपनी झेंप मिटाने के लिए इसे मंद-बुद्धि खोज बताकर खारिज कर देगी। हाल के दिनों में अपने दड़बे से बाहर निकल राजनीतिक सक्रियता प्रदर्शित करने वाले बाल ठाकरे दुखद रूप से अब तक अर्जित अपनी प्रतिष्ठा, गरिमा, आभा खोते जा रहे हैं। वह भी किसलिए? अपने भतीजे राज ठाकरे की बढ़ती राजनीतिक ताकत को रोकने के लिए! ताकि उनके वारिस उद्धव ठाकरे को चुनौती देने वाला कोई न रहे। दूसरे शब्दों में भतीजे राज ठाकरे इतने ताकतवर न बनें कि पुत्र उद्धव ठाकरे को चुनौती दे सकें। राजनीतिक विरासत का यह नाटक सचमुच दिलचस्प है।

रवि सिंह

क्या ये जिन्दगी है! कैसी बेबसी है…



किससे बात करें

alok


एक काम जो बरसों से होता रहा है, पर इधर कुछ ठप सा पड़ा हुआ है, वह है भारत पाकिस्तान की शांति वार्ता। जितनी भी हुई, उसमें शांति कम थी, वार्ता अधिक थी। पर अब वह भी नहीं है। सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान में वार्ता किससे की जाये ।

1- क्या राष्ट्रपति जरदारीजी से बात की जा सकती है। पाकिस्तान में पब्लिक का मानना है कि जरदारीजी से की जा सकती है, अगर बात नान सीरियस हो तो। पर भारत पाक शांति वार्ता नान सीरियस बात नहीं है। इसलिए जरदारीजी से बात करना बेकार है। जरदारी के मामले में एक बात और कही जाती है कि जरदारीजी को कोई सीरियसली नहीं लेता, खुद जरदारीजी भी खुद को सीरियसली नहीं लेते।

अन्त में आज का कार्टून
Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

कार्टून:- कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूंढ़े वन माहिं...Twitter Twitter

आज के लिए बस इतना ही…..!
नमस्ते!