मित्रों!
मैंने वादा किया था कि शनिवार को कुछ लिंकों के साथ आपसे रूबरू हूँगा। पेश-ए-खिदमत हैं कुछ लिंक!
कल फिर किसी चट्टान को फोड़ने की कोशिश होगी * *कल फिर किसी ईमान को निचोड़ने की कोशिश होगी * *सूरज तो दिन में हर रोज की तरह दमकेगा लेकिन सच्चाई का दमन तो होता ही रहेगा। मैं हूँ आईना. तुम्हारे.......* *कल,आज और कल का* *जिसमें तुम्हें नज़र आएगा* *अपना बीता हुआ कल* *साथ ही उससे जुडी स्मृतियाँ....। आना जितना आसान रहा... क्या जाना भी आसान ?प्रिये ! कुछ बात मेरी भी मान प्रिये ! तुम प्रकृति नटी से लगती हो इन बासन्ती परिधानों में....! सुन्दर दोहे रच रहे, रविकर जैसे मित्र। अनुशंसा की रीत भी, होती बहुत विचित्र।।.... रिश्ते रिसियाते रहे, हिरदय हाट बिकाय लोकिन आपके लिए है-विशिष्ट आमंत्रण...!अभिव्यंजना में देखिए- कुछ श्रणिकाएँ!... १ लोगों को पहले हाथ जोड़ कर, रिश्ते जोड़ते देखा है, फिर दिल जीतकर उनका, विश्वास तोड़ते देखा है....। क्योंकि..."मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है "....! शाम-ऐ- तन्हाई में . हमको तुम्हारी याद आती हे, तेरे प्यार की बाते हमे अब तक रुलाती हे, तुन गई तो जीस्त के सब लुत्फ़ चले गए ,ख़ाक मेरे बदन की अब हवा उडाती है....! राजेश उत्साही के ब्लाग गुल्लक पर देखिये भवानी प्रसाद मिश्र की तीन कविताएं...! बस एक ही मन्त्र है । सुखी एवं खुश रहने का मूल मन्त्र - कभी किसी से कोई अपेक्षा मत रखिये। अपेक्षाएं कभी पूरी नहीं होतीं। पूरी ना हो पाने की अवस्था में मन को दुखी एवं अवसादित करती हैं....। पानी रे पानी - रहीम खानखाना लिख कर गए हैं, "रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून. पानी बिना ना ऊबरे मोती, मानस, चून." ....! बेचारा मत्ला!!! - समस्या पूर्ति- वक़्त है लिक्खूँ मगर लिक्खूँ भी क्या? वक़्ते-गर्दिश के जुनूँ का ख़ामिजा?..... वक्र मुखी सांसदों का दुस्साहस .वक्र मुखी सांसदों का दुस्साहस . ये वक्र मुखी सांसद कभी किसी राज्यपाल को बूढी गाय कहकर तो कभी राष्ट्रपति की संविधानिक....! घर की सफाई करते कूड़े़ को भी उलट-पुलट देख लेता हूं कई बार.. बिना जांचे-परखे कूड़ेदान में फेंकने का मलाल रह जाता है जीवनभर..जीवन का कूड़ेदान....! बदलते मौसम में हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे बीमारियों का हमला शुरू हो जाता है। लेकिन अगर आप अपनी इस क्षमता को थोड़ा मजबूत कर लें तो ..खान-पान और प्रतिरोधक क्षमता .! रिश्तों में एक खुशबू होती है, बस उसे मुठ्ठी में भरने की जरूरत है ....रचना को जन्मदिन की बधाई व शुभकामनाएं --- *‘ हमारी फ़ितरत ही ऐसी है कि* *एक जैसी ठहर नही पाती है * * हर नये दिन के साथ वो भी बदल जाती है!’...तुझे उम्मीदे वफ़ा हो..... - * * * * * * *यूँ खेलते हैं मेरे दिल से जो, वो क्या जाने...* *गर मेरा दिल बुझा तो फिर न जला पाऊँगी ! सौम्य भारत में सोमालिया रहता है , ओढ़ता,पहनता, बिछाता है दर्द ,सहता है ....! झुर्रियों पर सिंगार अच्छा नहीं लगता हर वक़्त त्यौहार अच्छा नहीं लगता। रूठना तो बड़ा अच्छा लगता है उनका गुस्सा बार बार का अच्छा नहीं लगता। ....गांधी की बात गोड़से का काम .... - आज बिना किसी भूमिका के कुछ सीधी सपाट बातें करना चाहता हूं। पहले मैं आपको बता दूं कि मैं भी चाहता हूं कि संसद में साफ सुथरी छवि के लोग आएं।....जो भी आगे कदम बढ़ायेंगे। फासलों को वही मिटायेंगे।। तुम हमें याद करोगे जब भी, हम बिना पंख उड़ के आयेंगे। यही हसरत तो मुद्दतों से है, हम तुम्हें हाल-ए-दिल सुनायेंगे... ! रामनवमी के उपलक्ष्य में माँ की एक उत्कृष्ट रचना आपने सामने प्रस्तुत करने जा रही हूँ ! आशा है आपको उनकी यह रचना अवश्य पसंद आयेगी ...! बन्दर बाँट - दो बिल्ली एक राह जा रहीं नजर आयी उनको एक रोटी. आपस में वे लगीं थी लड़ने, पहले देखी मैंने यह रोटी. कोई फैसला हुआ न उनमें, उसी समय एक बन्दर आया.....! बातें खुद से - आगाज भी होगा अंजाम भी होगा नाम उसी का गूंजेगा गुमनाम जो होगा ....... अस्तित्व बचाना खुद का सीमा मिट न पाए करीब किसी के इतना भी न होना कि.....? सात चिरंजीवियों में से एक हैं परशुराम - परशुराम भार्गव वंशी महर्षि जमदग्नि के पांच पुत्रों में सबसे छोटे थे। इनकी माता कामली रेणुका इक्ष्वाकु वंशी राजा की पुत्री थीं। इनका नाम ‘राम’ था........।
"उल्लूक टाईम्स " देखता है क्या - कोई कुछ देखता है कोई कुछ देखता है कोई कुछ भी कभी यहाँ नहीं देखता है तू जहर देखता है वो शहर देखता है बैचेनी तुम्हारी कोई बेखबर देखता है....! कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...* लो आज छेड़ ही देते हैं.......! सपने क्या हैं? सपने खिलोने होते है, थोड़ी सी देर खेल लो, फिर टूट जाते हैं,आँखों के खुलने पर सपने पीडायें है, दबी घुटन है मन की....! तखने जीयब शान सँ - समय के सँग सँग डेग बढ़ाबी तखने जीयब शान सँ ऊपर सँ किछु रोज कमाबी तखने जीयब शान सँ काका, काकी, पिसा, पिसी अछि सम्बन्ध पुरान यौ हुनका सब केँ दूर भगाबी तखने जी...! आज सुबह दरवाजे की घंटी बजी। द्वार खोल कर देखा तो पांच से दस साल की चार-पांच बच्चियां लाल रंग के कपड़े पहने खड़ी थीं। छूटते ही उनमें सबसे बड़ी लड़की ने ..... अंकल, कन्या खिलाओगे'? *मुक्त परीक्षा से होकर,* *हम अपने घर में आये।* *हमें देखकर दादा-दादी, * *फूले नहीं समाये।।* ** *लगा हुआ था काशीपुर में,* *बाल सुन्दरी माँ का मेला...फूले नहीं समाये" ....! निर्झर के निर्मल जल-सी मैं .. कभी चंचल, कभी मतवाली मैं .. कभी गरजती बिज़ली -सी मैं ...मैं की परिभाषा .... कभी बरसती बदरी -सी मैं ..... कभी सलोनी मुस्कान-सी मैं ...! मुक्ति बंधन सुनो आदम! युगों से बंधी बेड़ियों से बंधन मुक्ति के लिए मैंने जब भी आवाज उठायी ..! चाहत - तुझे चाहा है तेरी ही पूजा की है इसके सिवा न है तलाश कोई न है चाहत मेरी । तेरी तलाश तू ही मेरी चाहत मेरा जीवन अर्पित है तुझको तुझ बिन मैं नहीं । * * * * *सुना है तुम सभ्य हो.. -हिन्दुस्तान की समस्या यह नहीं है कि हम क्या करते हैं? जो हम करते हैं वह मानव स्वभाव है, वो कोई समस्या नहीं.. सारी दुनिया वही करती है मगर समस्या यह है कि ...नकल का अधिकार - 'भैया, पास न भयेन तो बप्पा बहुतै मारी' अर्थ था कि भैया, यदि परीक्षा में पास न हो पाये तो पिताजी बहुत पिटायी करेंगे। “क्रोध पर नियंत्रण” प्रोग्राम को चलाईए अपने सिस्टम पर तेज - कुछ ट्रिक और टिप्स -पिछले अध्याय में पाठकों नें कहा कि क्रोध बुरी बला है किन्तु इस पर नियंत्रण नही चलता। ‘क्रोध पर नियंत्रण’ एक जटिल और हैवी सॉफ्ट्वेयर है जिसे आपके सिस्टम पर...! मौसमके उपहार ... प्रीति -डोर में हमें बाँधने को आया मौसम |
ITNI SI BAAT
"उल्लूक टाईम्स " देखता है क्या - कोई कुछ देखता है कोई कुछ देखता है कोई कुछ भी कभी यहाँ नहीं देखता है तू जहर देखता है वो शहर देखता है बैचेनी तुम्हारी कोई बेखबर देखता है....! कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...* लो आज छेड़ ही देते हैं.......! सपने क्या हैं? सपने खिलोने होते है, थोड़ी सी देर खेल लो, फिर टूट जाते हैं,आँखों के खुलने पर सपने पीडायें है, दबी घुटन है मन की....! तखने जीयब शान सँ - समय के सँग सँग डेग बढ़ाबी तखने जीयब शान सँ ऊपर सँ किछु रोज कमाबी तखने जीयब शान सँ काका, काकी, पिसा, पिसी अछि सम्बन्ध पुरान यौ हुनका सब केँ दूर भगाबी तखने जी...! आज सुबह दरवाजे की घंटी बजी। द्वार खोल कर देखा तो पांच से दस साल की चार-पांच बच्चियां लाल रंग के कपड़े पहने खड़ी थीं। छूटते ही उनमें सबसे बड़ी लड़की ने ..... अंकल, कन्या खिलाओगे'? *मुक्त परीक्षा से होकर,* *हम अपने घर में आये।* *हमें देखकर दादा-दादी, * *फूले नहीं समाये।।* ** *लगा हुआ था काशीपुर में,* *बाल सुन्दरी माँ का मेला...फूले नहीं समाये" ....! निर्झर के निर्मल जल-सी मैं .. कभी चंचल, कभी मतवाली मैं .. कभी गरजती बिज़ली -सी मैं ...मैं की परिभाषा .... कभी बरसती बदरी -सी मैं ..... कभी सलोनी मुस्कान-सी मैं ...! मुक्ति बंधन सुनो आदम! युगों से बंधी बेड़ियों से बंधन मुक्ति के लिए मैंने जब भी आवाज उठायी ..! चाहत - तुझे चाहा है तेरी ही पूजा की है इसके सिवा न है तलाश कोई न है चाहत मेरी । तेरी तलाश तू ही मेरी चाहत मेरा जीवन अर्पित है तुझको तुझ बिन मैं नहीं । * * * * *सुना है तुम सभ्य हो.. -हिन्दुस्तान की समस्या यह नहीं है कि हम क्या करते हैं? जो हम करते हैं वह मानव स्वभाव है, वो कोई समस्या नहीं.. सारी दुनिया वही करती है मगर समस्या यह है कि ...नकल का अधिकार - 'भैया, पास न भयेन तो बप्पा बहुतै मारी' अर्थ था कि भैया, यदि परीक्षा में पास न हो पाये तो पिताजी बहुत पिटायी करेंगे। “क्रोध पर नियंत्रण” प्रोग्राम को चलाईए अपने सिस्टम पर तेज - कुछ ट्रिक और टिप्स -पिछले अध्याय में पाठकों नें कहा कि क्रोध बुरी बला है किन्तु इस पर नियंत्रण नही चलता। ‘क्रोध पर नियंत्रण’ एक जटिल और हैवी सॉफ्ट्वेयर है जिसे आपके सिस्टम पर...! मौसमके उपहार ... प्रीति -डोर में हमें बाँधने को आया मौसम |
बिखरे रिश्ते, इन्हें साधने को आया मौसम||
मर्मस्पर्शी रचनाओं का संकलन है*** *“**कर्मनाशा**”* * **लगभग दो माह पूर्व डॉ. सिद्धेश्वर सिंह द्वारा रचित मुझे एक कविता संग्रह मिला जिसका नाम था कर्मनाशा...!
अब देखिए ये शानदार कार्टून!मर्मस्पर्शी रचनाओं का संकलन है*** *“**कर्मनाशा**”* * **लगभग दो माह पूर्व डॉ. सिद्धेश्वर सिंह द्वारा रचित मुझे एक कविता संग्रह मिला जिसका नाम था कर्मनाशा...!
ITNI SI BAAT