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सोमवार, अप्रैल 30, 2018

"अस्तित्व हमारा" (चर्चा अंक-2956)

सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

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छोटा सा अस्तित्व हमारा .... 

नीतू ठाकुर 

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जानिए, गरीबों के मसीहा  

मेडिसिन बाबा के बारे में... 

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28 साल 

28 साल पहले, 28 अप्रैल 1990 को आगरा से प्रकाशित साप्ताहिक 'सप्तदिवा' में जब यह छपा था तब मैं लगभग 6 साल का था ( जिसे संपादक महोदय ने 7 वर्ष लिख दिया )। यह जो लिखा है पूरी तरह से बेतुका है लेकिन अपना नाम देख कर Motivation तो मिला ही। इस सबका पूरा श्रेय पापा को ही जाता है क्योंकि मुझे न कभी रोका न टोका जबकि कुछ लोगों ने कई तरह से demotivate करने की भी कोशिश की। खैर तब से अब तक मैं अपने मन का... 

Yashwant Yash 
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कलजुग अस्तित्व

हे सर्वव्यापी सर्वेश्वर क्यू लोप हुआ तू धरती पर कभी था कण कण में तेरा घर अब बस कलजुग वजूद हर घर और धर्म,पुण्य सब पाप हुआ अधर्मासुर का राज हुआ यहाँ सत्य,ईमान सब नाश हुआ और दया,प्रेम का विनाश हुआ काम,लोभ का माप बढ़ा बंटवारे पे रोता बाप खड़ा कोई रौंद गया आँचल ममता का लूट गया काजल रमणी का हरपल कुदरत का काल हुआ गंगा,तुलसी का घुट कर बुरा हाल हुआ और दानव ने मनु को गोद लिया 

anchal pandey at

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केनेषितं पतति प्रेषितं मनः 

मुझे अक्सर ये भास होता है कि जीवन का जो भी टुकरा हम जी रहे हैं वह हमारी चेतना उद्भूत अनुभूतियों के स्तर पर है. या, यूँ कहें कि जितने अंश तक हमारी चेतना अपनी भिन्न भिन्न कलाओं में विचरण करती है उसी अंश तक हम इस जीवन का अनुभव कर रहे हैं. ऐसे, विचारणा की पारंपरिक परिपाटी में हम यह मानते हैं कि पहले जड़ तत्व का प्रादुर्भाव हुआ, उसमे प्राण तत्व का आरोपण हुआ, फिर मनस तत्व के मेल से उसमे सजीव प्राणी के सृजन की सुगबुगाहट हुई. जड़ तत्व पदार्थ है, प्राण तत्व ऊर्जा है और मनस तत्व चेतना है. किन्तु... 

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कहमुकरियाँ.... 

अमीर खुसरो 

 खा गया पी गया  
दे गया बुत्ता ऐ  
सखि साजन?  
ना सखि कुत्ता... 

मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
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जी हां मैं हूं 'छ' ! 

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कार्टून :- बस धंधा ही आता है साहेब 

Kajal Kumar at 

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दैनिक जागरण जो कर रहा है,  

वो प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता है ---  

सुशील मानव 

शरारती बचपन पर sunil kumar  
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मुहूर्त्त का सच 

कई प्रकार की व्‍यस्‍तता के कारण कुछ दिनों से अपने ब्‍लोग पर नियमित रूप से ध्‍यान नहीं दे पा रही हूं। इसी दौरान पिताजी की भी एक डायरी पढने का मौका मिला , उसमें से भी कुछ उपयोगी आलेखों को इस पुस्‍तक में सम्मिलित करने की भी इच्‍छा है। उन्‍हीं चुने हुए आलेखों में से एक आज आपके लिए प्रस्‍तुत है ..... आज के अनिश्चित और अनियमित युग में हर व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है... 
संगीता पुरी 
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शीर्षकहीन 

आनन्द वर्धन ओझा  
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मुक्त मुक्तक :  

885 -  

सूखा तालाब 

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मासूमीयत 

Mere Man Kee पर 
Rishabh Shukla  
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मैं श्रमिक ---  

कविता -- 

क्षितिज पर Renu  

रविवार, अप्रैल 29, 2018

"कर्तव्य और अधिकार" (चर्चा अंक-2955)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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मेरा वजूद 

ढूँढती आ रही हूँ 
बचपन से अपने वजूद को 
ज़िन्दगी के हर कोने में झाँक आई 
लेकिन अभी तक वो जगह नहीं मिली 
जहाँ मैं अपने आप से 
दो घड़ी के लिए ही सही 
कभी मिल पाती... 
Sudhinama पर sadhana vaid  
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करो हो क़त्ल .... 

परेशां हैं यहां तो थे वहां भी  
करे है तंज़ हम पर मेह्र्बां भी  
हमें ज़ाया न समझें साहिबे-दिल  
हरारत है अभी बाक़ी यहां भी ... 
Suresh Swapnil 
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बाहों में 

आ मेरी बाहों में आ जा
सब कि नज़रों से तुझे दूर रखूँ 
नजर का काला टीका लगाऊँ
जब भी कोई कष्ट आए
कष्ट से दूरी इतनी हो कि
वह तेरी छाया तक को न छू पाए... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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एकलव्य कथा 

कक्षा 9-10 के अहिन्दीभाषी बच्चों को हिन्दी पढ़ाते समय श्रुतिलेख लिखवा रही थी और इसी क्रम में शब्द "एकलव्य" लिखवाया। उत्सुकतावश मैनें उनसे पूछ लिया कि क्या वे एकलव्य के विषय में जानते हैं? उन्होंने कथा के विषय में जो बताया,मैं सन्न रह गयी... 
संवेदना संसार पर रंजना  
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उत्तरदायित्व 

उत्तरदायित्व का ज्ञान
"अंजना, जरा पानी देना।"
"अंजना, चादर ठीक से ओढ़ा दो बेटा।"
"अंजना, मन भारी लग रहा, कुछ देर मेरे पास बैठो।"
"माँ, पानी भी दिया, चादर भी दिया। पास बैठने का समय नहीं, आपके बेटे आएंगे, वही बैठेंगे।"
बहु की बात सुनकर प्रमिला जी की आंखें छलक गईं... 
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु' 
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शनिवार, अप्रैल 28, 2018

"यह समुद्र नहीं, शारदा सागर है" (चर्चा अंक-2954)

मित्रों! 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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309. इंसान 

वह आदमी, 
जिससे मैं सुबह मिला था, 
कमाल का इंसान था, 
बड़ा दयावान,बड़ा संवेदनशील, 
किसी का बुरा न करनेवाला, 
किसी का बुरा न चाहनेवाला, 
सब की खुशी में खुश, 
सबके दुख में दुखी.
वही आदमी जब शाम को मिला, 
तो बदला हुआ था,.. 
कविताएँ पर Onkar  
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अस्तित्व 


purushottam kumar sinha  
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रेप समस्या व  

समाधान हेतु विमर्श 

लिखना तो बहुत दिनों से चाहता था किन्तु लिखा नहीं| जैसे ही मोदी सरकार ने रेपिस्टों के खिलाफ कठोर कानून बनाया कि नाबालिग से रेप करने वाले को फाँसी की सजा दी जायेगी व अन्य में अधिकतम सजा उम्रकैद होगी तो मैं अपने को लिखने से रोक नहीं पाया| रेप अत्यधिक निन्दनीय कृत्य है, किसी भी समाज के लिए कलंक है, किसी भी रूप में स्त्री अस्मिता से खिलवाड़ एक सभ्य समाज में त्याज्य होना चाहिए| रेप से रेप पीड़िता को व उसके परिवार को गहरा मानसिक, सामाजिक, पारिवारिक व आर्थिक आघात पहुँचता है| अपूरणीय क्षति होती है जिसकी भरपाई कई पीढ़ियों बाद भी सम्भव नहीं होती| कभी कभी पीड़िता व उसके परिवार का समापन हो जाता है...  
Vimal Shukla  
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विचारक 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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TV 

Mere Man Kee पर 
Rishabh Shukla  
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