सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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छोटा सा अस्तित्व हमारा ....
नीतू ठाकुर
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जानिए, गरीबों के मसीहा
मेडिसिन बाबा के बारे में...
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28 साल
28 साल पहले, 28 अप्रैल 1990 को आगरा से प्रकाशित साप्ताहिक 'सप्तदिवा' में जब यह छपा था तब मैं लगभग 6 साल का था ( जिसे संपादक महोदय ने 7 वर्ष लिख दिया )। यह जो लिखा है पूरी तरह से बेतुका है लेकिन अपना नाम देख कर Motivation तो मिला ही। इस सबका पूरा श्रेय पापा को ही जाता है क्योंकि मुझे न कभी रोका न टोका जबकि कुछ लोगों ने कई तरह से demotivate करने की भी कोशिश की। खैर तब से अब तक मैं अपने मन का...
Yashwant Yash
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Yashwant Yash
कलजुग अस्तित्व
हे सर्वव्यापी सर्वेश्वर क्यू लोप हुआ तू धरती पर कभी था कण कण में तेरा घर अब बस कलजुग वजूद हर घर और धर्म,पुण्य सब पाप हुआ अधर्मासुर का राज हुआ यहाँ सत्य,ईमान सब नाश हुआ और दया,प्रेम का विनाश हुआ काम,लोभ का माप बढ़ा बंटवारे पे रोता बाप खड़ा कोई रौंद गया आँचल ममता का लूट गया काजल रमणी का हरपल कुदरत का काल हुआ गंगा,तुलसी का घुट कर बुरा हाल हुआ और दानव ने मनु को गोद लिया
anchal pandey at
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केनेषितं पतति प्रेषितं मनः
मुझे अक्सर ये भास होता है कि जीवन का जो भी टुकरा हम जी रहे हैं वह हमारी चेतना उद्भूत अनुभूतियों के स्तर पर है. या, यूँ कहें कि जितने अंश तक हमारी चेतना अपनी भिन्न भिन्न कलाओं में विचरण करती है उसी अंश तक हम इस जीवन का अनुभव कर रहे हैं. ऐसे, विचारणा की पारंपरिक परिपाटी में हम यह मानते हैं कि पहले जड़ तत्व का प्रादुर्भाव हुआ, उसमे प्राण तत्व का आरोपण हुआ, फिर मनस तत्व के मेल से उसमे सजीव प्राणी के सृजन की सुगबुगाहट हुई. जड़ तत्व पदार्थ है, प्राण तत्व ऊर्जा है और मनस तत्व चेतना है. किन्तु...
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कहमुकरियाँ....
अमीर खुसरो
खा गया पी गया
दे गया बुत्ता ऐ
सखि साजन?
ना सखि कुत्ता...
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जी हां मैं हूं 'छ' !
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कार्टून :- बस धंधा ही आता है साहेब
Kajal Kumar at
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दैनिक जागरण जो कर रहा है,
वो प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता है ---
सुशील मानव
मुहूर्त्त का सच
कई प्रकार की व्यस्तता के कारण कुछ दिनों से अपने ब्लोग पर नियमित रूप से ध्यान नहीं दे पा रही हूं। इसी दौरान पिताजी की भी एक डायरी पढने का मौका मिला , उसमें से भी कुछ उपयोगी आलेखों को इस पुस्तक में सम्मिलित करने की भी इच्छा है। उन्हीं चुने हुए आलेखों में से एक आज आपके लिए प्रस्तुत है ..... आज के अनिश्चित और अनियमित युग में हर व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है...
संगीता पुरी
--शीर्षकहीन
आनन्द वर्धन ओझा
--मुक्त मुक्तक :
885 -
सूखा तालाब
मासूमीयत
Mere Man Kee पर
Rishabh Shukla
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