ज़िंदगी का सफ़र
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Thursday, September 30, 2021
चर्चा - 4203
ज़िंदगी का सफ़र
Wednesday, September 29, 2021
"ये ज़रूरी तो नहीं" (चर्चा अंक-4202)
मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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कॉफी की तासीर निराली।।
जब तन में आलस जगता हो,
नहीं काम में मन लगता हो,
थर्मस से उडेलकर कप में,
पीना इसकी एक प्याली।
कॉफी की तासीर निराली।।
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बोलना चाहिए इसे अब
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ये ज़रूरी तो नहीं
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श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह‘रेत के रिश्ते’
की अठारहवीं कवितापाण्डुरोग का रोगी
तुम्हारा यह सूरज
न तो फसलें पकाता है
न बादल बनाता है।उजाला तो खैर इसके पास
कभी था ही नहीं।
वह गर्भ, गर्भ ही नहीं था
जिसमें इसका भ्रूण बना,
वह कोख, कोख ही नहीं थी
जिसने इसे जना।एकोऽहम्
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केंद्र बिंदुमें रह
जाते हैं सिर्फ अवसाद भरे दिन, इस
अंधकार से मुक्ति दिलाता है
केवल अपना अंतर्मन, अग्निशिखा
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अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस: मरने से पहले जीना सीख लो!!
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल--
व्यंग्य - धनुष के बेजोड़ तीरंदाज लतीफ़ घोंघी
मेरे दिल की बात--
स्वप्नों का बाजार सजा हैं
आज रात बहुत कठिनाई से
किसी की चाहत से बड़ा
उसका कोई खरीदार नहीं है |
दुविधा में हूँ जाऊं या न जाऊं
स्वप्नों के उस बाजार में
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सफेद फूल का मौसम
तुम्हें और मुझे
दोनों को पसंद है।
हां
सफेद फूलों का मौसम
उनकी दुनिया
सब है
यहीं
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अब तो भारतीय पारम्परिक जीवन शैली को अपना लें
भारतीय संस्कृति में प्रकृति और नारी को बहुत सम्मान दिया गया है। इसलिए धरती और नदियों को भी माँ कहकर ही बुलाते हैं। समय-समय पर पेड़ों की भी पूजा की जाती है पेड़ों में प्रमुख है:- पीपल,बरगद,आम,महुआ,बाँस, आवला,विल्व,केला नीम,अशोक,पलास,शमी, तुलसी आदि मेरी नज़र से--
प्रकृति को बदलना है, सोच बदलिये
हम ठान लें कि सोशल मीडिया पर महीने में दो पोस्ट प्रकृति संरक्षण या जागरुकता की अवश्य लिखेंगे और महीने में एक बार कुछ दिनों के लिए डीपी पर भी प्रकृति को ही जगह देंगे, क्यों न हम अपनी डीपी पर पीपल, आम, नीम, आंवला या कोई और वृक्ष लगाएं... Editor Blog--
पितृ पक्ष की बेला हो और डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश ' को साहित्यिक सुमन अर्पित न किये जाए तो श्राद्धपक्ष के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।डॉ. नन्दलाल मेहता वागीश का निधन, 80 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
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आज के लिए बस इतना ही...!
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Tuesday, September 28, 2021
"आसमाँ चूम लेंगे हम"(चर्चा अंक 4201)
हौसला माँ ने दिया , 'पर' दे रहे पापा
कहकही सुन डर भला,क्यों खोयें हम आपा
यूँ ना अब से डरेंगे हम ,
आसमाँ चूम लेंगे हम
ख्वाब हर पूरा करेंगे, भेड़ियों से ना डरेंगे
सीख कर जूड़ो-कराँटे, अपने लिए खुद ही लडेंगे
हर बुरी नजर की नजरें नोंच लेंगे हम
आसमाँ चूम लेंगे हम
खुशी से झूम लेंगे हम ।
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अभी-अभी...घर- आंगन के हर कोने से
स्मृतियों के तो तार जुड़े है
कौन तार गठरी में बाँधू
सब के सब अपने लगते हैं
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आखिर तुम्हें क्या तकलीफ है पथिक
खामोश और तन्हा घूम रहे हो
सूरज भी झील मे डूब गया है,
और कोई पक्षी भी चहचहाता नहीं है।
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मन की बातें .......शब्दों के सहारे...पुराने सिक्कों को देख कर
मां को याद आ जाते हैं पिता
पंच पैसी या दस पैसी
चवन्नी अठन्नी या रूपया को देख
पिता के संग यात्रा कर लेती है वह
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जागो-जागो ऐ इंसानमेरे
कटे शरीर पर
लोग पैर रखकर
बतिया रहे हैं
कि
पर्यावरण बहुत बिगड गया है, गर्मी भी बहुत है।
मैं सुन पा रहा हूं
प्रकृति और धरा की चीख
मेरे कटे शरीर को देखकर
उसमें मां का दारुण दर्द है।
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आज हमारी देश की सुरसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी का भी जन्मदिन है
उनको जन्मदिन की अशेष शुभकामनायें
ऐसी हस्तियाँ भी कभी-कभी ही जन्म लेती है।
आज का सफर यही तक ,अब आज्ञा दे
आपका दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा