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Thursday, April 30, 2015

मौसम ने करवट बदली { चर्चा - 1961 }

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 
पिछले बुधवार अनुपस्थित रहा । कारण गेहूं की कटाई के समय मुझे थोड़ी दिक्कत हो जाती है । आज बारिश हो रही है । गेहूं की कटाई भी हो चुकी है तो लगता है ये बारिश अब राहत देगी । वैसे किसानों से भगवान और सरकार नाराज ही है । दुआ करो कि अगली फसल अच्छी हो ताकि अन्नदाता खुश रह सके और देश खुशहाल बन सके । 
चलते हैं चर्चा की ओर
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NGT announces Rs 5,000 fine for open burning of leaves, garbage in Delhi
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धन्यवाद 

Wednesday, April 29, 2015

“शब्द गठरिया बाँध" छन्द संग्रह का विमोचन इलाहाबाद में....चर्चा मंच 1960



पुरुषोत्तम पाण्डेय 



डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 

गीत "धूप में घर सब बनाना जानते हैं" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

वेदना के "रूप" को पहचानते हैं। 
धूप में घर सब बनाना जानते हैं।।

भावनाओं पर कड़ा पहरा रहा, 
दुःख से नाता बड़ा गहरा रहा, 
मीत इनको ज़िन्दग़ी का मानते हैं। 
धूप में घर सब बनाना जानते हैं... 

Tuesday, April 28, 2015

'यथा राजा तथा प्रजा ' ये भूकम्प मोदी की करनी का फल है.......चर्चा मंच 1959


प्रवीण पाण्डेय 

गीत "कौन सुनेगा सरगम के सुर" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

मीठे सुर में गाकर कोयलक्यों तुम समय गँवाती हो?
कौन सुनेगा सरगम के सुरकिसको गीत सुनाती हो?

बाज और बगुलों ने सारे, घेर लिए हैं बाग अभी,
खारे सागर के पानी में, नहीं गलेगी दाल कभी,
पेड़ों की झुरमुट में बैठी, किसकी आस लगाती हो?
कौन सुनेगा सरगम के सुरकिसको गीत सुनाती हो... 

प्यार का आलम 

भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार


Monday, April 27, 2015

'तिलिस्म छुअन का..' (चर्चा अंक-1958)

मित्रों।
सोमवार की चर्चाकार अनूषा जैन जी ने सूचित किया है-
"शास्त्री जी, इस रविवार, 
मेरा भाई आ रहा है, अमेरिका से, 
तो सोमवार की चर्चा करने में इस बार असमर्थ रहूंगी."
इसलिए सोमवार की चर्चा में
मेरी पसन्द के लिंक देखिए।

दोहे "धरती और पहाड़ पर, 

है कुदरत की मार" 

वसुन्धरा कैसे सजेभर सोलह सिंगार।
धरती और पहाड़ परहै कुदरत की मार।।
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आदिकाल से चल रहाकुदरत का यह खेल।
मानव सब कुछ जानकरबोता विष की बेल... 
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ज़लज़ला 

मतलबी इंसान है मतलब में अपनी मुब्तला। 
बारहा पर्यावरण को चोट पहुँचाता चला.... 
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तेरे बिन ओ मीता ! 

आँखों में रात गयी , 
पथ तकते दिन बीता , 
तेरे बिन ओ मीता ! 
अंधकार के घर से सुबह निकल आयी है , 
पूरब ने कंधों पर रोशनी उठाई है ; 
किन्तु दिखी नहीं कहीं 
सपनों की परिणीता.. 
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आस कैसी 

सोचता हूँ सहज होकर, 
भावना से रहित होकर, 
अपेक्षित संसार से क्या ? 
हेतु किस मैं जी रहा हूँ... 
प्रवीण पाण्डेय 
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''दिल मेरा तैयार है '' 

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ग़म का समंदर पी जाने को दिल मेरा तैयार है !
मर -मर कर यूँ जी जाने को दिल मेरा तैयार... 
shikha kaushik 
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यह है देश का 

सबसे पुराना रेलवे स्टेशन 

रोयापुरम, तब भारत में पहली बार रेल 16 अप्रैल 1853 के दिन चली थी। इसके बाद धीरे-धीरे इसे अपनी सुविधा के अनुसार अंग्रेजों ने देश भर में इसका विस्तार किया... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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मिट्टियों की सिर्फ कहानियां होती हैं 

निशानियाँ नहीं ... 

करते रहे दोहन करते रहे शोषण 
आखिर सीमा थी उसकी भी 
और जब सीमाएं लांघी जाती हैं 
तबाहियों के मंज़र ही नज़र आते हैं 
कोशिशों के तमाम आग्रह जब निरस्त हुए 
खूँटा तोडना ही तब अंतिम विकल्प नज़र आया 
वो बेचैन थी ....
vandana gupta 
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स्वप्न का अनुबंध कैसा ... 

फलसफ़ों की बात है कौन झूठा कौन सच्चा  
सबके अपने राग स्वर हैं कौन मंदा कौन अच्छा... 
उन्नयन  पर udaya veer singh 
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कुछ तस्वीरें ... 

सिगरेट के धुंए से बनती तस्वीर
शक्ल मिलते ही
फूंक मार के तहस नहस

हालांकि आ चुकी होती हो तब तब
मेरे ज़ेहन में तुम

दागे हुए प्रश्नों का अंजाना डर
ताकत का गुमान की मैं भी मिटा सकता हूँ
या "सेडस्टिक प्लेज़र"... 
स्वप्न मेरे ... पर Digamber Naswa 
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गुफ्तगू के मार्च-2015 अंक में 

3.ख़ास ग़ज़लें 
(फि़राक़ गोरखपुरी, दुष्यंत कुमार, 
शकेब जलाली, मेराज फै़ज़ाबादी)... 
गुफ्तगू पर editor : guftgu